दुनिया 'मेन्स डे' नहीं मनाती। जो जानवरों से भी गया बीता हो, उसका दिन भला क्यों मनाया जाए। लोलुप, लम्पटों के साथ ऐसा ही होना चाहिए। किसी कामी पुरुष के 'एसएस' को सार्वजानिक कर दिखाना चाहिए कि देखो पुरुष ऐसे 'ही' होते हैं।
कुछ साल पहले हाइकोर्ट में आए एक केस में घरवालों के दबाव के बाद लड़की ने प्रेमी पर आरोप लगाया कि लड़का उसके साथ 'छह माह' तक बलात्कार करता रहा। जज समझदार था और वकील चतुर। फैसला नज़ीर बन गया। कोई मर्द छह माह तक किसी महिला के साथ दुष्कर्म नहीं कर सकता। लड़का बरी हो गया।
लड़की ब्याह कर आई। अच्छी खासी मुस्टंडी। दो दिन बाद ही विवाद हुआ और नववधु ने पति और सास की जमकर धुलाई की और थाने में जाकर उनके खिलाफ ही रिपोर्ट लिखा आई। पति जेल में और माँ छुपती फिरी।
पड़ोसन का दिल उस पर आया ये कहना उचित नहीं होगा, कहना ये चाहिए कि उसने पड़ोसन पर गंदी निगाह डाली। दोपहर में दोनों आपत्तिजनक अवस्था में पकड़े गए तो 20 साल के लड़के पर बलात्कार का केस लगाया। आठ माह तक वो जेल में रहा।
बलात्कार एक घिनौना कर्म है इसमें कोई शक ही नहीं है। ये सेक्स की पूर्ति का साधन नहीं है बल्कि पशुता को अभिव्यक्त करने का माध्यम है। नारी पर अनैतिक आधिपत्य का काला प्रतीक है। सोचे यदि हर पुरुष बलात्कारी होता तो ये कविता लिखने वाली लेख िका घर से बाहर भी निकल सकती थी?
हाँ घर से ऑफिस, कॉलेज से घर जाते हुए आपको 'घूरती निगाहों' का सामना करना पड़ता है। बिलकुल सही है। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो आपको मुग्धता से निहारते हैं और ये भी सच है कि आपका स्वाभाविक श्रृंगार अपनी संतुष्टि के अलावा उनके लिए भी होता है।
यहीं कोई बीस प्रतिशत तो होंगे अच्छे पुरुष। बाकी बचे 80 प्रतिशत में ज्यादातर दिल फेंक होंगे, सुंदर चेहरों को चाहने वाले। इनमे कुछ प्रतिशत ठरकियों का भी है लेकिन इन्हें डराने के लिए स्क्रीन शॉट ही काफ़ी होता है। इनमे भी बलात्कारी बहुत कम हैं। ये मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं। शारीरिक सौंदर्य के मायने भी नहीं जानते।
'आमन्त्रण' तो दोनों ओर से होता है। तो फिर पुरुष ही कटघरे में क्यों। बलात्कार से सम्पूर्ण समाज घृणा करता है। क्या बलात्कार हुई महिला का पिता बलात्कार से घृणा नहीं करता होगा। आज के दौर में विदेश मंत्री एक ताकतवर महिला है तो नारी आंदोलन की कोई सार्थकता नहीं रह जाती। तथाकथित नारी आंदोलन का आधार या बटर ब्रेड यही 'पुरुष घृणा' है।
ये कविता पढ़ने के बाद मुझे लेखिका पर तरस ही आया। इस सुंदर दुनिया में यदि आपकी आँखे केवल घिन ही देखेगी तो ऐसी ही कविता उपजेगी। वो पिता पर नहीं, पति पर नहीं, बेटे पर नहीं, मित्र पर नहीं एक 'कामी पुरुष' पर होगी।
मूल लेखक : विपुल रेगे