गीत/नवगीत विशेष, वर्षा ऋतु, श्रावण गीतिका/ग़ज़ल मन भाए मेरे बदरा,भिगा जा मुझे छाई कारी बादरिया,जगा जा मुझे मोरी कोरी माहलिया,मुरझाई सनम रंग दे अपने हि बरना,रंगा जा मुझे॥ काली कोयलिया कुंहुकत,मोरी डाली राग बरखा की मल्हारी,सुना जा मुझे॥मोरा आँगन बरसा जा, रेनिर्मोहिया मोर अनारी की सारी,दिखा जा म
जय जगन्नाथ... बोलो जय जगन्नाथ...रथ महोत्सव पर निकली यात्रा में उत्साहित बच्चों के मुंह से निकलने वालेइस जयकारे ने नुक्कड़ से मोहल्ले की ओर जाने वाली पगडंडी पर चल रही उदासमाला की तंद्रा मानो भंग कर दी।जीवन के गुजरे पल खास कर उसका अतीत किसी फिल्म के फ्लैश बैक की तरह उसकीआंखों के सामने नाचने लगा।क्योंक
भूखों को भूख सहने की आदत धीरे - धीरे *भूखे को भूख, खाए को खाजा...!!भूखे को भूख सहने की आदत धीरे - धीरे पड़ ही जाती है। वहीं पांत में बैठ जी भर कर जीमने के बाद स्वादिष्ट मिठाइयों का अपना ही मजा है। शायद सरकारें कुछ ऐसा ही सोचती है। इसीलिए तेल वाले सिरों पर और ज्यादा तेल चुपड़ते जाने का सिलसिला लगाता
आप किसी भी क्षेत्र में फेल हो जाते हैं तो इसका अर्थ यह नहीं कि आप निराश हो जाएं।इस आंग्ल अक्षर FAIL का अर्थ समझेंगे तो आप कदापि निराश नहीं होंगे।फेल के चार अक्षर की सच्ची अभिव्यक्ति इस प्रकार है-F-FIRSTA-ATTEMPTI- INL-LEARNINGवस्तुतः स्पष्ट है कि फेल से तात्पर्य है कि पहला प्रयास सीखना होता है।यदि आ
आपसमें हम रूठ गए जो, हाथ हमारे छूट गए जो । ऐसेमें अब तुम ही बोलो, कौन मनाएगा फिर किसको ।|अहम् तुम्हारा बहुत बड़ा है, मुझमेंभी कुछ मान भरा है । नहींबढ़ेंगे आगे जो हम, कौन भगाएगा इस "मैं" को ।।जीवन पथ है संकरीला सा, ऊबड़खाबड़ और सूना सा । चलेअकेले, कोई आकर राह दिखाएगा फिर किसको ||यों ही रूठे रहे अगर हम,
क्रोध से अपना अहित होता है। क्रोध का कुटम्ब अवगुण सम्पन्न है। आईए क्रोध के कुटुम्ब का परिचय प्राप्त करें। क्रोध का दादा है-द्वेष! क्रोध का पिता है-भय! क्रोध की माता है-उपेक्षा! क्रोध की एक लाडली बहन है-जिद्द! क्रोध का अग्रज है-अंहकार! क्रोध की पत्नी है-हिंसा! क्रोध की पुत्रियां हैं-निंदा और चुगली!
वर्ष के तीसरे ग्रैंड स्लैम विबलडन में उस समय अजीबो-गरीब स्थिति पैदा हो गई जब पुरुष युगल वर्ग के मुकाबले में उरुग्वे के पाब्लो क्यूवास को मैच के बीच में टॉयलेट ब्रेक न मिलने पर उन्होंने कोर्ट पर बैठकर प्रदर्शन शुरू कर दिया। पुरुष युगल के तीसरे दौर में पाब्लो और उनके जोड़ीदार स्पेन के मार्सेल ग्रैनोलर
कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियहम बनाएँगे अपना घरहोगा नया कोई रास्ता होगी नयी कोई डगरछोड़ अपनी रह तुम चली आना सीधी इधर||मार्ग को ना खोजना ना सोचना गंतव्य किधरमंज़िल वही बन जाएगी साथ चलेंगे हम जिधर||कुछ दूर मेरे साथ चलो तब ही तो तुम जानोगीहर ओर अजनबी होंगे लेकिन ना होगा
सभी समाचार पत्र और पत्रिकाएं राशिफल छापते हैं। अब तो नैट पर, अपने मोबाईल पर दैनिक राशिफल पढ़ने को मिल जाता है। प्राय: समाचार पत्रों में सूर्य राशि से जोकि अंग्रेजी तारीख के अनुसार अमुक अवधि से अमुक अवधि में उत्पन्न्ा होने पर ज्ञात होती है के अनुसार राशिफल लिखा रहता है। यह सूर्य राशि होती है औ
यह अच्छी तरह अनुभव कर लिया गया है कि खिलखिलाकर हँसने से अच्छी भूख लगती है, पाचनशक्ति बढ़ती है और रक्त का संचार ठीक गति से होता है ।। क्षय जैसे भयंकर रोगों में हँसना अमृत- तुल्य गुणकारी सिद्ध हुआ है ।। खिल- खिलाकर हँसने से मुँह, गरदन, छाती और उदर के बहुत उपयोगी स्नायुओं को आवश्यकीय कसरत करनी पड़ती है,
आप स्कूटर की टंकी फुल कराकर मेरठ से अलीगढ़ की यात्रा करने के लिए निकल पड़े हैं पर आपका पेट्रोल आधे रास्ते में ही समाप्त हो गया और आपकी यात्रा रुक गयी। स्पष्ट है कि जब तक आपके पास क्षमता है तब तक ही आप सफलता की सीढ़ी चढ़ सकेंगे। सफलता उसी अनुपात में मिलती हैजिस अनुपात में आपके पास वांछित वस्तु पाने
पूर्व में सात भाग में सूर्योपनिषद् की चर्चा की गई है। इस चर्चा में सूर्योपनिषद् के अमृत का रसास्वादन कराया गया था। यदि आप सूर्योपनिषद् को पुस्तक रूप में अपने मेल पर मुफ्त में पाना चाहते हैं तो मित्रता का अनुरोध करते हुए उपनिषदों का अमृत वेबपेज का अनुसरण करें और मुझे मेरे अधोलिखित मेल पर उक्त पुस्त
जिलाधिकारी महोदय ने प्रत्येक गाँव में खेल मैदान विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।हलचल सी शुरू हुई बच्चों में,हाथ पैर फैला कसरत चालू कर दी।कोई क्रिकेट मैच की तो कोई गिल्ली डन्डा ही खेलता नज़र आता।अभी तक किसी के खाली पड़े खेत या बाग में खेलते थे,अब अपना खेल मैदान होने जा रहा है।सब बहुत खुशी से चयनि
जीवन राह देता है पर हम उसे पकड़ नही पाते हैं। अकर्मण्यता या आलस्य वश ऐसा होता है। भाग्य भी पुरुषार्थ से फलीभूत होता है। कर्म के योग से कुशलता प्राप्त होती है। कर्म की महत्ता सर्वोपरि है। बिना कर्म के कुछ नहीं मिलता है। ईश्वर आशीष से हमें जो यह अनमोल जीवन मिला है इसे सार्थक करने के लिए हमें कर्म को म
यः सदाऽहरहर्जपति स वै ब्रह्मणो भवति स वै ब्रह्मणो भवति। सूर्याभिमुखो जप्त्वा महाव्याधिभयात्प्रमुच्यते। अलक्ष्मीर्नश्यति। अभक्ष्य- भक्षणात्पूतो भवति। अगम्यागमनात्पूतो भवति। पतितसंभाषणात्पूतो भवति। असत्संभाषणात्पूतो भवति। मध्याह्ने सूर्याभिमुखः पठेत्। सद्योत्पन्न्पंचमहापातकात्प्रमुच्यते। सैषां स