ऐ जिन्दगी चल नई शुरूआत करते हैं
कभी तु आसमान में उड़ रहा था
ज़मी पे आने से मना कर रहा था
वक़्त ने तुझे पटक दिया है
हांथ से तुझे झटक दिया है
चल छोर अब जो हुआ उसे भूलते हैं
ऐ जिन्दगी चल नई शुरूआत करते हैं
ऐ जिन्दगी चल खुशियों के पल ढूंढते हैं
खुशियाँ यहीं खिल खिला रही थी
यहीं साथ बैठ ठहाके लगा रही थी
अब वो क्यूँ नहीं दिख रहा है
अब वो क्यूँ गुम सा हो गया है
पहले यहीं था अब कहाँ छुपा पूछते हैं
ऐ जिन्दगी चल खुशियों के पल ढूंढते हैं
ऐ जिन्दगी चल होंठो पे मुस्कान लाते हैं
ये जहां खुशियों से भरा पड़ा था
हर शख्स यहाँ हँस खेल रहा था
अब हर आँख नम क्यूँ है
अब हर घर में ग़म क्यूँ है
चल आज दर्द को गुदगुदी लगा हँसाते हैं
ऐ जिन्दगी चल होंठो पे मुस्कान लाते हैं
ऐ जिन्दगी चल मंज़िल को लाँघते हैं
राहों में तेरे बाधाएँ तो बहोत थी
साथ तेरे विपदाएँ भी बहोत थी
तुझे बैठना नहीं भागना है
तुझे हिम्मत नहीं हरना है
हँसते खेलते हर मुश्किल से निकलते हैं
ऐ जिन्दगी चल मंज़िल को लाँघते हैं
✍️ स्वरचित : गौरव कर्ण (गुरुग्राम, हरियाणा)