मैं कैसे बदल जाऊँ, अब मैं कैसे बदल जाऊँ
भगवान ने बनाया मुझको ऐसा, मैं कैसे बदल जाऊँ
‘ना’ बोलने से दिल दुखता, तो कैसे ‘ना’ बोलूँ
उम्मीद से माँगे मुझसे कोई, तो कैसे ‘ना’ बोलूँ
ग़र काम किसी के आ सकूँ, तो कैसे ‘ना’ बोलूँ
अब ‘ना’ बोलने को बोले सब, तो कैसे बदल जाऊँ
भगवान ने बनाया मुझको ऐसा, मैं कैसे बदल जाऊँ
दोस्त बुलाए मुझको, तो कैसे ना भरोसा करूँ
रिश्ते ग़र कुछ बोले, तो कैसे ना भरोसा करूँ
कोई झूठ ही बोले मुझसे, तो कैसे ना भरोसा करूँ
अब भरोसा ना करने को बोले सब, तो कैसे बदल जाऊँ
भगवान ने बनाया मुझको ऐसा, मैं कैसे बदल जाऊँ
कोई सामने से मदद माँगे, तो कैसे ना मैं मदद करूँ
कोई रो-कलप के चाहे कुछ, तो कैसे ना मैं मदद करूँ
कोई दिल में बुरा हो चाहे कुछ, तो कैसे ना मैं मदद करूँ
अब मदद ना करने को बोले सब, तो कैसे बदल जाऊँ
भगवान ने बनाया मुझको ऐसा, मैं कैसे बदल जाऊँ
मेरे खून में नहीं ग़द्दारी, तो कैसे मैं ग़द्दारी करूँ
माँ बाप की शिक्षा भूल के, तो कैसे मैं ग़द्दारी करूँ
मुझे लगता डर भगवान से, तो कैसे मैं ग़द्दारी करूँ
अब ग़द्दारी करने को बोले सब, तो कैसे बदल जाऊँ
भगवान ने बनाया मुझको ऐसा, मैं कैसे बदल जाऊँ
मैं जानता ‘ना’ ना बोलने से, मैं ही तो परेशान होता
सब पे भरोसा करने से, मैं ही तो धोखा खाता
बिना जाने मदद करके, मैं ही तो बर्बाद होता
जो किस्मत में लिखा है मेरे, तो कैसे बदल जाऊँ
भगवान ने बनाया मुझको ऐसा, मैं कैसे बदल जाऊँ
✍️ स्वरचित : गौरव कर्ण (गुरुग्राम, हरियाणा)