मैने सोंचा न था, जमाना इतना बुरा है
हर चेहर के पीछे, झूठ का पर्दा पड़ा है
अपने दिल की सूनी, दिमाग कभी न लगाया
दिल ने भरोसा करी, धोखा हरदम है खाया
दोस्तों ने सगा बन, मेरे दिल से है खेला
जब तक सत्ता रहा, साथ चलता रहा रेला
जब मुड़ के जो देखा, कोइ पीछे न खारा है
मैने सोंचा न था, जमाना इतना बुरा है
अपनों ने हरदम टोका, संभल जा अब भी जरा
ये सब पैसों के खातिर, रिस्ता तुझसे है जोरा
बात उनकी न मानी, किया अपनी ही मनमनी
आज लुट गया गौरव, देख उनकी करिस्तानी
दोस्तों से बहोत, धोखा मुझको मिला है
मैने सोंचा न था, जमाना इतना बुरा है
जब तक देता रहा, तब तक अच्छे रहे हम
मांगा अपना दीया, तो बुरा बन गये हम
दोस्त कोई नहीं है, सब हैं पैसों के यार
छोर के चल दिय, जिन्हे था पैसों से प्यार
आज अकेला हूं मैं, कोई मेरा कहाँ है
मैने सोंचा न था, जमाना इतना बुरा है
जब ठोकर लगा, तब ये आंखे खुली है
औरों की अब तो छोड़ो, भरोसा खुद पे नहीं है
जब परछाई हमारा, साथ हरदम नहीं है
औरों की फिर क्यूँ सोंचे, जो अपना नहीं है
आज मतलब के ख़ातिर, ज़माना तुझ से जुड़ा है
मैंने सोंचा न था, ज़माना इतना बुरा है
आज धर्म और जाति में, हम बंट से गये हैं
आज पक्ष और विपक्ष में, हम पट से गये हैं
आज अपने भी हम से, मतलब रखता नहीं है
गिर जाओ गर रास्ते, कोई उठाता नहीं है
आज इंसान की इंसानियत, मर सा गया है
मैंने सोंचा न था, ज़माना इतना बुरा है
पैसों के ख़ातिर दुनिया, अपनों का सौदा करते
जिंदगी की तो छोड़ो, मौत का सौदा करते
हुस्न का सौदा करते, जिस्म का सौदा करते
मरने के बाद भी, लाश का सौदा करते
दुनिया के बाजार में, आज सब बिक रहा है
मैंने सोंचा न था, ज़माना इतना बुरा है
✍️ स्वरचित : गौरव कर्ण (गुरुग्राम, हरियाणा)