मैं गौरव हूँ, मुझे भीड़ का हिस्सा नहीं बनना
मैं गौरव हूँ, मुझे कुछ सबसे अलग है दिखना
मैं वो नहीं जो ऊँचाई देख पीछे हट जाऊँ
मैं वो हूँ जो ऊँचाई पे चढ़ने की कोशिश करूँ
मैं वो नहीं जो चादर से लंबी पैर ना फैलाऊँ
मैं वो हूँ जो पैर के लंबाई का चादर ले आऊँ
मैं गौरव हूँ, मुझे भीड़ का हिस्सा नहीं बनना .....
मैं वो नहीं जो समस्या देख भाग जाऊँ
मैं वो हूँ जो समस्या को बैठ सुलझाऊँ
मैं वो नहीं जो किस्मत पर सब छोड़ दूँ
मैं वो हूँ जो कर्म करने पर भरोसा करूँ
मैं गौरव हूँ, मुझे भीड़ का हिस्सा नहीं बनना......
मैं वो नहीं जो किसी काम से डर भाग जाऊँ
मैं वो हूँ जो काम के लिए अपनी जिन्दगी खपाऊँ
मैं वो नहीं जो किसी के लिए खतरा बन जाऊँ
मैं वो हुँ जो किसी के खतरे को अपने पे ले जाऊँ
मैं गौरव हूँ, मुझे भीड़ का हिस्सा नहीं बनना.......
मैं वो नहीं जो किसी को भूखा रख पाऊँ
मैं वो हूँ जो खुद भूखा रह दूसरे का पेट भर जाऊँ
मैं वो नहीं जो किसी को चोट पहुंचाऊँ
मैं वो हूँ जो किसी का दर्द अपने पे ले जाऊँ
मैं गौरव हूँ, मुझे भीड़ का हिस्सा नहीं बनना.......
मैं वो नहीं जो मदद के लिये आगे ना आऊँ
मैं वो हूँ जो हो पाये मदद मुझसे वो कर जाऊँ
मैं वो नहीं जो किसी के आँख में आंसू दूँ
मैं वो हूँ जो दुखरो के आँख से आंसू पोछूं
मैं गौरव हूँ, मुझे भीड़ का हिस्सा नहीं बनना
मैं गौरव हूँ, मुझे कुछ सबसे अलग है दिखना
✍️ स्वरचित : गौरव कर्ण (गुरुग्राम, हरियाणा)