मैं कैसी बेबस माता हूँ
मैं तेरी भारत माता हूँ
छल कपट और लालच द्वेष में
अपनों से धोखा खाती हूँ
घर के जयचंदो के कारण ही
दुश्मन से रौंदी जाती हूँ
अपनों के छल से छलनी हो
मैं तार तार कई बार हुयी
अपने बिक गए दो कौड़ी में
मैं बार बार कई बार लूटी
उनके धोखे के कारण ही
मैं हजारों साल गुलाम रही
दुश्मन के अत्याचार को
मेरे बच्चों ने सदियों सहें
वीरों को जन्मे मैंने बहोत
गद्दारी से उनके खून बहें
लुटता नहीं कुनबा मेरा पर
अपनों ने घर के राज कहे
क्यूँ आज भी तू न समझ रहा
क्यूँ आज भी तू न मान रहा
मुफ्त रेवड़ी की लालच दे
दुश्मन तुझको है बांट रहा
अपनों के भेष में दुश्मन सब
बहरूपिये बन फांस रहा
मुझको मेरी वो रौनक दिला
मुझको मेरी वो रुतबा दिला
मत लड़ मर अपने अपनों से
मुझको सोने की चिड़िया बना
मुझको इतना मत बेबस कर
मुझको फिर से सम्मान दिला
✍️ स्वरचित : गौरव कर्ण (गुरुग्राम, हरियाणा)