कवि भी मैं कविता भी मैं
छंदों की व्यथा भी मैं
कवि की हूँ कल्पना भी मैं
'गौरव' की रचना भी मैं
कलम भी मैं दवात भी मैं
लेखनी की शुरुआत भी मैं
लेखक की लिखावट हूँ मैं
लेख की हूँ बनावट भी मैं
शब्द भी मैं शब्दार्थ भी मैं
शब्द में छुपा यथार्थ हूँ मैं
शब्द का होता प्रभाव हूँ मैं
शब्द चयन का भाव भी मैं
साहित्य भी मैं साहित्यकार भी मैं
साहित्य से जुड़ा परिवार हूँ मैं
साहित्यकारों की व्याख्या हूँ मैं
किताबों में छपी पटकथा हूँ मैं
वेद भी मैं पुराण भी मैं
गीता में लिखा ज्ञान हूँ मैं
ऋषि मुनियों का मान हूँ मैं
ईश्वरीय बरदान हूँ मैं
गीत भी मैं संगीत भी मैं
सुर-ताल सरगम भी मैं
लव से निकला साक्ष्य हूँ मैं
जिव्हा पे बैठा वाक्य हूँ मैं
ज्ञान भी मैं विज्ञान भी मैं
ज्ञानियों का अभिमान भी मैं
कलम से खिंची लकीर हूँ मैं
पापियों की लिखी तकदीर हूँ मैं
मैं तेरे अंदर ही रहती हूँ
तेरे ही जिव्हा पे बस्ती हूँ
सब कहते मुझे ज्ञान दाता
मैं ही हूँ तेरी सरस्वती माता
✍️ स्वरचित : गौरव कर्ण (गुरुग्राम, हरियाणा)