थोड़ा किया थोड़ा और करना है
नदियों सा मुझे बहते रहना है
पहाड़ सी ऊंचाई मुझे पाना है
समंदर की गहराई तक जाना है
थोड़ा किया थोड़ा और करना है
मुझे आसमाँ में ऊंचा उड़ना है
सूर्य की तरह उजाला लाना है
चन्द्रमा की तरह अँधेरा हटाना है
चट्टान की तरह अडिग रहना है
थोड़ा किया थोड़ा और करना है
मुझे आग में तप के निकालना है
धरती सा सबको समेटे रखना है
बारिश की तरह सबको भिगोना है
बादल की तरह सबपे छा जाना है
थोड़ा किया थोड़ा और करना है
मुझे हवा की तरह ठंढ़क देना है
पानी की तरह प्यास बुझाना है
फूलों जैसा हरदम खिलना है
शहद से ज्यादा मीठा बनना है
थोड़ा किया थोड़ा और करना है
जिन्दगी को अभी खूब हंसाना है
दुःखों को अपनों से दूर भगाना है
खुशियाँ कहीं से चुरा के लाना है
किस्मत अपनी नींद से जगाना है
थोड़ा किया थोड़ा और करना है
मंज़िल अपनी नजदीक नहीं है
मंज़िल को दौड़ कर पकड़ना है
वक़्त के पीछे मुझे भागना नहीं है
वक़्त को कान पकड़ के लाना है
थोड़ा किया थोड़ा और करना है
मुझे बड़ों की दुआएँ लेना है
अभी छोटों संग प्यार बाँटना है
कमज़ोर की लड़ाई लड़ना है
गिरने वालों का सहारा बनना है
थोड़ा किया थोड़ा और करना है
मुझे रुकना नहीं चलते रहना है
दूसरों के आंसू हांथों से पोछना है
इस जहाँ को कुछ दे के जाना है
गुज़रा अगर तारों सा टिमटिमाना है
थोड़ा किया थोड़ा और करना है
✍️ स्वरचित : गौरव कर्ण (गुरुग्राम, हरियाणा)