गुरु ही ब्रम्हा, गुरु ही विष्णु
गुरु ही देव महेश्वर हैं
गुरु साक्षात परमेश्वर हैं
ऐसे गुरु को मेरा प्रणाम है
गुरु ही माता, गुरु पिता हैं
गुरु ही मेरे जननी हैं
गुरु ने चलना बोलना सिखाया
ऐसे गुरु को मेरा प्रणाम है
गुरु ही स्कुल, गुरु ही कॉलेज
गुरु ही सर्व शिक्षा हैं
गुरु ने पढ़ना लिखना सिखाया
ऐसे गुरु को मेरा प्रणाम है
गुरु ही कार्य, गुरु ही व्यापार
गुरु ही मेरा मेहनत हैं
गुरु वही जिसने कार्य सिखाया
ऐसे गुरु को मेरा प्रणाम है
गुरु ही योग, गुरु ही जोग
गुरु ही मेरा आश्रम हैं
गुरु ने मन की शान्ति सिखाया
ऐसे गुरु को मेरा प्रणाम है
गुरु ही तन, गुरु ही मन
गुरु ही मेरे अंदर हैं
जो भी गुरूओं से ज्ञान मिला है
ऐसे गुरूओं को मेरा प्रणाम है
✍️ स्वरचित : गौरव कर्ण (गुरुग्राम, हरियाणा)