पी पी के मैं टल्ली हो जाऊँ
मत बोल के, मैं नशे में हूँ
मत पूछ मुझे मैं कहाँ गिरा
हर उम्मीद नज़र के वहाँ गिरा
ठोकर से गिर के सम्भल जाता
नजरों में गिरा तो उठ ना सका
पैसा का नशा नहीं सर पे है
शराब जो पी, मैं नशे में हूँ
वो कहते हैं शराब पीने से
हर दर्द से दूर हो जाता हूँ
हर मर्ज की दवा शराब ही है
हर कर्ज को मैं भूल जाता हूँ
बिन पीए मुझे नींद आती नहीं
थोड़ी सी जो पी, मैं नशे में हूँ
ये कैसा नशा बेशर्म हो जाना
कह देना के मैं नशे में हूँ
घर बार को गिरवी रख देना
कह देना के मैं नशे में हूँ
व्यापार को तुम नष्ट कर देना
कह देना के मैं नशे में हूँ
क्यूँ पीते हो जब पचता ही नहीं
क्यूँ जीते हो जब जिंदा ही नहीं
ये जीना भला क्या जीना है
कोई जिए मरे कुछ पता ही नहीं
पी इतनी के तुझे शर्म ना हो
हर पैक से बोल, मैं नशे में हूँ
शराब को शराबियों जी भर के पी
हर ग़म और खुशी में छक के पी
पर पी इस तरह उस शराब को
शराब तुझको ना तू शराब को पी
थोड़ी सी पी और खुल के जी
मत बोल के अब, मैं नशे में हूँ
ये कैसा जिद के छूटता नहीं
मन से है बड़ा क्या शराब कोई
परिवार सजा क्यूँ भुगत रहा
उन से है बड़ा क्या शराब कोई
कर नशा जिंदा दिल जीने का
तब बोल के अब, मैं नशे में हूँ
✍️ स्वरचित : गौरव कर्ण (गुरुग्राम, हरियाणा)