जीवन कुछ रंग जगा,
मन में उमंग जगा
आँख मे सतरंग जगा
दिल मे तरंग जगा,
क्यूँ जहां बदरंग दिखे
ज़िन्दगी कटी पतंग दिखे
हर खेल सतरंज दिखे
हर खिलाड़ी भुजंग दिखे
हर चेहरा फिर खिलखिलायेगा
हर घर फिर गुनगुनायेगा
ये जहां फिर जगमगायेगा
सब पंछी फिर चहचहायेगा
सबकुछ क्यूँ नीरस लगे
जिन्दगी क्यूँ बेबस लगे
सड़कें क्यूँ खामोश लागे
भगवान क्यूँ मदहोश लागे
सबको अब उठना होगा
दुश्मन से लड़ना होगा
अपनी रक्षा करना होगा
अंगारे कोभी पीना होगा
हर तरफ़ अंधेरा छाया
हर इन्सान लाचार पाया
क्यूँ फैलाया दर्दका साया
भगवान कैसी तेरी माया
ज़िंदगीको फिर दौराते हैं
नींदसे सबको जगाते हैं
बिखरोंको फिर सजाते हैं
पुराना जहां बनाते हैं
✍️ स्वरचित : गौरव कर्ण (गुरुग्राम, हरियाणा)