सोंचा था कुछ अच्छा करने का
दिमाग ने करने से रोक दिया
मन में फिर द्वंद सा होने लगा
दिल ने फिर इजाज़त दे ही दिया
करने तो चले थे किसी का भला
लालच थी वाह-वाही लेने का
खुद अपना लगा के काम किया
किस्मत ने मुझे बदनाम किया
भला करके भी मैंने क्या पाया है
मैंने अपना ही खून जलाया है
लोगों की बुराइयाँ ही है मिली
मैंने अपना ही समय गंवाया है
हर बार मैं ये ग़लती करता हूँ
हर बार मैं मन को बहलाता हूँ
हर बार ये दिल भी समझता है
फिर भी मैं गलती कर जाता हूँ
ऐ काश कि मैं दिमाग की सुनता
मन को भी द्वंद से रोक सकता
दिल की हिम्मत नहीं होती फिर
भला करने की इजाज़त दे सकता
कुछ कहावत सही ही बना है
हम जैसों के लिये ही गढ़ा है
चौबे जी गये छब्बे बनने
किस्मत ने दुबे बना भेजा है
✍️ स्वरचित : गौरव कर्ण (गुरुग्राम, हरियाणा)