गगन में जब अपना सितारा न देखा
तो जीने का कोई सहारा न देखा
नज़र है, मगर वो नज़र क्या कि जिस ने
ख़ुद अपनी नज़र का नज़ारा न देखा
भले वो डुबाए उभारे कि हम ने
भँवर देख ली तो किनारा न देखा
वो बस नाम का आइना है कि जिस ने
कभी हुस्न को ख़ुद सँवारा न देखा
तुम्हें जब से देखा, तुम्हें देखते हैं
कभी मुड़ के ख़ुद को दोबारा न देखा
सभी नफ़रतों की दवा है मोहब्बत
कि इस से अलग कोई चारा न देखा
मैं बादल में रोया, हँसा बिजलियों में
किसी ने ये मेरा इशारा न देखा
'कुँवर' हम उसी के हुए जा रहे हैं
जिसे हम ने अब तक पुकारा न देखा