वो मिरी रातें मिरी आँखों में आ कर ले गई
याद तेरी चोर थी नींदें चुरा कर ले गई
ज़िंदगी की डाइरी में एक ही तो गीत था
कोई मीठी धुन उसे भी गुनगुना कर ले गई
सर्दियों की गुनगुनी सी धूप के एहसास तक
मेरे मन की चाँदनी मुझ को बुला कर ले गई
एक ख़ुशबू सा मैं अपनी पंखुड़ी में बंद था
आई इक पागल हवा मुझ को उड़ा कर ले गई
राह में थक कर जहाँ बैठी अगर ये ज़िंदगी
मौत आई बाँह थामी और उठा कर ले गई
वर्ना तू भी राह में गिरता चला जाता 'कुँवर'
वो तो इक ठोकर थी जो तुझ को बचा कर ले गई