प्यासे होंटों से जब कोई झील न बोली बाबू-जी
हम ने अपने ही आँसू से आँख भिगो ली बाबू-जी
फिर कोई काला सपना था पलकों के दरवाज़ों पर
हम ने यूँ ही डर के मारे आँख न खोली बाबू-जी
भूले से जाने-अनजाने वार न करना तुम उन पर
जिन जिन के कंधों पर है ये प्रीत की डोली बाबू-जी
ये मत पूछो इस दुनिया ने कौन से अब त्यौहार दिए
दी हम को अंधी दीवाली ख़ून की होली बाबू-जी
दिल निकले ही मेहनत के घर हाथ जो हम ने भेजे थे
वो ही ख़ाली ले कर लौटे शाम को झोली बाबू-जी
हम पर कितने ज़ुल्म हुए हैं कौन बताए दुनिया को
बंदूक़ों में बाक़ी है क्या एक भी गोली बाबू-जी
वो भी अपनी आँखों में नाख़ून ही ले कर बैठे थे
दिखने में जिन की सूरत थी बहुत ही भोली बाबू-जी
ये कह कह कर कल हम को सारी ख़ुशियाँ मिल जाएँगी
करते रहते हो क्यूँ हम से रोज़ ठिठोली बाबू-जी
उस में कुछ टूटे सपने थे कुछ आहें कुछ आँसू थे
जब जब भी हम ने ये अपनी जेब टटोली बाबू-जी
अब की बार तो राखी पर भी भी दे न सकी कुछ भय्या को
अब उस के सूने माथे पर सिर्फ़ है रोली बाबू-जी