जितने भी मयखाने हैं
सब तेरे दीवाने हैं
तेरे चितवन के आगे
सारे तीर पुराने हैं
शमा बुझी उनसे पहले
हैरत में परवाने हैं
जिन्हें न पढ़ पाए हम खुद
हम ऐसे अफ़साने हैं
कैसे खुद को ढूँढोगे
हर मन में तहखाने हैं
वो अपने निकले, जिनको
हम समझे बेगाने हैं