गर्मी के दिनों में सबसे मुश्किल काम मुझे लगता है पंखा साफ करना।
टेबल पर चढ़ कर पंखा साफ करना कठिन लगता है और उन्हें उतार कर साफ करना अपने से संभव नहीं। पंखे की सफाई बहुत सावधानी से करनी होती है, क्योंकि ज़रा अधिक ज़ोर पड़ा और डैने टेढ़े हो गए तो फिर पंखा गया काम से। न वो सिर्फ ठंडी हवा भर नहीं देगा, बल्कि दिखने में भी खराब लगेगा।
सर्दी के दिनों में मुझे पंखे नहीं साफ करने पड़ते, पर गर्मी के दिनों महीने में एक बार सफाई ज़रूरी हो जाती है।
घर की सफाई रोज़ होती है। घर की सफाई आसान है। पर पंखे की सफाई आसान नहीं। खैर, आप सोच रहे होंगे कि पंखों सफाई पर संजय सिन्हा का ध्यान अचानक क्यों चला गया? क्या आज उन्हें पंखों की सफाई करनी है?
नहीं ऐसा नहीं है। और आज तो संभव भी नहीं। कई दिनों की भोपाल-जबलपुर की यात्रा से आज ही लौटा हूं। आज बहुत काम है। आज पंखों की सफाई के बारे में मैं सोच भी नहीं सकता।
असल में हुआ ये कि यात्रा के दौरान में टीवी नहीं देख पाया। ऐसे में मुझे चिंता थी कि जिन शो को मैंने बनाने की ज़िम्मेदारी लोगों को सौंपी थी, वो शो पता नहीं कैसे बने। एयरपोर्ट से बाहर आते हुए मैंने एक साथी को फोन किया कि शो कैसे बने?
जिससे मैंने पूछा था, उसने बताया कि फलां शो ठीक बन गया था। पर एक शो में स्क्रिप्ट वैसी नहीं लिखी गई, जैसी लिखी जानी चाहिए थी।
मैंने पूछा कि स्क्रिप्ट किसने लिखी?
“सर, फलां ने।”
“आपने देखी थी?”
“नहीं।”
“फिर कोई बात नहीं। जिसने लिखी थी, उससे मैं कल बात कर लूंगा।”
मेरे साथी को उम्मीद थी कि मैं ये सुन कर नाराज़ होऊंगा कि फलां ने स्क्रिप्ट अच्छी नहीं लिखी। मैं जानता हूं कि मेरा साथी फलां को पसंद नहीं करता। बहुत मुमकिन है कि उसने सचमुच बहुत अच्छी स्क्रिप्ट न लिखी हो। पर सीनियर होने के नाते मेरे साथी की ये ज़िम्मेदारी थी कि मेरी अनुपस्थिति में वो खुद स्क्रिप्ट चेक करते। पर उन्होंने ऐसा नहीं किया और अब मुझसे अपने जूनियर की शिकायत कर रहे थे।
बात खत्म हो गई। मैंने कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं जताई। मैं कभी एकतरफा शिकायत परप्रतिक्रिया नहीं जताता।
पर एयरपोर्ट से निकल कर गाड़ी में बैठते हुए मुझे याद आया कि कुछ दिन पहले मेरी पोस्ट पर एक परिजन ने कमेंट किया था-
“जो पंखे चलते हैं, वो गंदे होते हैं। जो नहीं चलते, वो गंदे नहीं होते।”
मैं सोच रहा था कि सचमुच मेरे घर में कई पंखे हैं। तीन कमरे अधिकत समय खाली रहते हैं। ऐसे में सबसे अधिक मेरे कमरे का पंखा गंदा होता है। ड्राइंग रूम में भी दो पंखे लगे हैं। डाइनिंग टेबल के ऊपर वाला पंखा कम गंदा होता है, जहां सोफा है, वहां का पंखा अधिक गंदा होता है।
मैं सोचता था कि एक ही रूम में लगे दो पंखों में से एक अधिक गंदा और दूसरा कम गंदा क्यों होता है।
परिजन ने लिखा था कि जो पंखा चलता है, वो गंदा होता है। जो रुका रहता है, वो गंदा नहीं होता। कल मेरा साथी कह रहा था कि फलां ने स्क्रिप्ट लिखी, वो बहुत अच्छी नहीं थी।
पर जो लिखेगा, गलती तो वही करेगा।
अब मैं क्या करूं, चलने वाले पंखे को डांटूं, उसके खिलाफ ऐक्शन लूं कि तुम बहुत गंदा होते हो और रुके पंखे की सराहना करूं कि वाह! तुम तो कभी गंदा होते ही नहीं।
मूल लेख क : संजय सिन्हा