छंद - विधाता (मापनी युक्त ) मापनी- १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
“गीतिका”
उषा की लाल लाली रे बता किरनें कहाँ छायी
दिशाओं में अंधेरा ले खता कहने कहाँ आयी
परख ले खुद प्रभा है तूँ तुझे किसकी जरूरत है
निगाहों से लुटेरा बन वफ़ा पहने कहाँ धायी॥
मुझे अब भी वही फरियाद है नाशाद करती जो
किसी का दिल दुखा आयी बता क्यों फिर उसे लायी ॥
मचाकर रख दिया पल में खल बली कैसी
चला करके मर्म बरछी दवा रखने भुला भायी॥
भला हो उस रसूके जतन का तुझको सम्हाला तो
नए घाटों किनारों पर गिरा परदा नहा आयी॥
बहाकर ले गई दरिया उठी उन हर लहरों को
बता कैसे सहन पाई घिरी मजमा लगा आयी॥
बहक कर एक घर “गौतम” बनाया था किनारे पर
उसी में आ समा जाती मगर नक्शा उठा लायी॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखापुरी