छंद - दिग्पाल /मृदुगति (मापनी युक्त मात्रिक छंद )मापनी -221 2122 221 2122
“गीतिका”
मौसम बहुत सुहाना मन को लुभा रहा है
डाली झुकी लचककर फल फूल छा रहा है
मानों गरम हवा यह गेसू सुखा रही हो
कोयल सुना रही है भौंरा सुना रहा है॥
नव रंग आ रहे हैं घिर हर कली कली पर
फैली हुई लताएँ दिल गुनगुना रहा है॥
लाली लिए अधर पर मैना बुला रही है
बुलबुल सखा बुलाए चातक फुला रहा है॥
रसपान कर रही है मधु मांखियों की टोली
कण-कण पराग कोमल खुद को लुटा रहा है॥
अनुपम धरा कियारी अंकुर उगा रही है
लगता नहीं यहाँ पर लू लपलपा रहा है॥
गौतम भुला न जाना इस बाग में छहाँ कर
सुख को सुखा न देना जब गुल खिला रहा है॥
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी