शुभप्रभात मित्रों........
"गीतिका "
गद्य लिखूं या पद्य लिखूं कुछ समझ न आता मितवा।
खुद को समझूँ या समझाऊँ समझ न आता मितवा।
चली राह है सोच समझकर पर सब कहें अनाडी-
उनकी राह पकड़ कर देखी समझ न आता मितवा।।
धर्म कर्म कर रहे सभी हमने भी हरि को पूजा
नौ मन पंडित दश मन ज्ञानी समझ न आता मितवा।।
मेरी काट तुम्हारे मन में तेरी मेरे मन में
क्या बैतरनी पार लगेगी समझ न आता मितवा।।
मंदिर मस्जिद या गुरुद्वारा समझ चर्च भी आता।
इक दीवार धर्म दो फतवा समझ न आता मितवा।।
किसकी जुड़ी टूट गई किसकी करधन प्रभु ही जानें
बिन साँचे का ईट पकाना समझ न आता मितवा।।
डाकू और लुटेरों का महिमा मंडन जग ने देखा।
वजू ईबादत ध्यान जबरिया समझ न आता मितवा।।
'गौतम' गहना टूट गया अब क्या पहनेगा प्राणी।
इक दूजे की टांग खींचना समझ न आता मितवा।।
महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी