"झिनकू भैया का सौभाग्य"
गजब के आदमी हैं झिनकू भैया भी। कभी धर्म, कभी समाज, कभी महंगाई, कभी जाति-पाति तो कभी किसी राजनीतिक पार्टी का झंडा थामें चौराहे चौराहे मनमनाते रहते हैँ। सर्वगुण सम्पन्ना हैं, गिरगिट की तरह रंग बदलते, मकड़ी की तरह जाला बूनते तो मौसम की तरह मिजाज पलटने में माहिर। इन्हे देखकर नौटंकी के जोकर की याद अनायास ही आ जाती है। खैर, जैसे भी हैं चरित्र और ईमान के पक्षधर होने की भरपूर कोशिश करते हैँ।
इधर कुछ महीनों से एक अलग ही चश्का पाले हुए हैं। सोसल मीडिया को जमकर कोसने वाले झिनकू भैया आजकल फेसबुक के दीवाने हो गए हैं। हररोज उनकी एक पोस्ट पड़ ही जाती है, आज फला के लड़के की तिलक में जाने का सौभाग्य मिला, आज बचपने के मित्र की बेटी की शादी में उपस्थित होकर वर वधू को आशीष प्रदान करने का सौभाग्य मिला। आज फला गाँव में पंद्रह फिट नवनिर्मित खड़जे के लोकार्पण में सम्मिलित होने का सौभाग्य मिला वगैरह वगैरह। हद तो तब हो गई जब उन्होंने अपने किसी मित्र की पत्नी के निधन की पोस्ट डाली और लिखा कि आज मेरे मित्र की पत्नी के ब्रम्हभोज में सम्मिलित होकर श्रद्धासुमन व शान्तवना देने का सौभाग्य मिला। हतप्रभ रह गया ऐसी अशोभनीय समाजीकता देखकर।
ढूढ़ने लगा उस उच्च आदर्श को जब अनजानी अर्थी को बिना रिश्ते के लोग अपना कंधा देकर सरयू घाट तक पैदल बारात कर आते थे और किसी को कानोकान भी खबर नहीँ लगती थी। आज तो एक लगन इक्यावन न्यौता (कार्ड) का शुभ संदेश बतियाने में ही बारात की बिदाई हो जाती है। मंडप और भोज के वर्तन सूरज की लालिमा से पहले धरासायी होकर पनीर के रसे पर भिनभिनाने लगते हैं। कहाँ का बसीया (बासी भोजन), कहाँ का रसिया। रिवाज और मिजाज अग्निपथ हो गया तो सुख और शांति अकथ हो गया।
यह वाकिया लिख ही रहा था कि झिनकू भैया की हँसती-खिलखिलाती एक और पोस्ट आ गई। जिसे देखकर मैं तो दंग रह गयागया और झिनकू भैया जनहित पार्टी के जिला अध्यक्ष बन गए। बधाई का दौर बदस्तूर जारी है। जैसे चार वर्षीय अग्निपथ पर आग ही आग है वैसे ही चार महीने में नेता जी के घर मेम देश से नवपल्लवित अनुराग है। जय हो खाती पीती जनता की।
महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी