हँसा सकी न दर्द को मेरे, इनॉसुओं को रुला के न जा
बिना बुलाए जख्म मिले हैं, निशानियों को भुला के न जा
रखे राहें वफा की मंजिल, ना चल सकेंगे कदम दगा के
रुको जरा इस खाली दिल में, नदानियों को झुला के न जा॥
सहमे शिकवे तेरे आँचल, परदे लटके बिना रजा के
हटा सकी न जुल्फ के साये, विरानियों को बुला के न जा॥
कहाँ भरोषा बंद लिफाफे, गाज गिराते बिना खता के
बता तनिक जो ख्याल लायी, लिखावटों को धुला के न जा॥
बिना सर्द की उठी कपकपी, तहतक पँहुची हिलाहिला के
अश्रु बूंद संग गरम हवाएँ, बसंतियों को बुला के न जा॥
मूक साक्षी हुए तर तरुवर, खिलते मौसम कोंपल पा के
उगा के पत्ते डाली डाली, टाहनियों को डुला के न जा॥
गौतम दाग घुला नहि करते, उग आते हैं नजर चुरा के
बिना खता के नींद गंवाई, तंहाइयों को सुला के न जा॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी