समांत-आन, पदांत- देखे हैं, मात्रा भार-26
“गजल/गीतिका”
उठता ही रहा ऊपर सदा अरमान देखे हैं
बहता जहाँ पानी झुके आसमान देखे हैं
दिखे पाँव कीचड़ में बचा करके निकल जाते
उठ छींटे भी रुक जाते मजहब मान देखे हैं॥
घिसते रहे घिर मैल जमी फूल की प्याली
छवियाँ बिना दरपन बहुत छविमान देखे हैं॥
बूटी मांगने निकले हैं कई लोग अपनों से
पहाड़ों को दवा देते चमन हनुमान देखे हैं॥
हिलाई लांघकर दरिया जले आग के शोले
देती पुत्र वर ममता समय दिनमान देखे हैं॥
कहना यह कि मौसम है अभी तेरे बागों में
हवा का भरोसा क्या थकन गतिमान देखे हैं॥
गौतम बोझ औरों का उठाकर देख तो लेते
मिलते हाथ हाथों से नए गुनमान देखे हैं॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी