हाँस्यम, व्यंग्य और हाँस्य
"दोहा"
झूठ मूठ का हास्य है, झूठ मूठ का व्यंग।
झूठी ताली दे सजन, कहाँ प्रेम का रंग।।
"मुक्तक"
अजब गजब की बात आप करते हैं भैया।
हँसने की उम्मीद लगा आए हैं सैंया।
महँगाई की मार ले गई चढ़ी जवानी-
अब क्या दूँ जेवनार रसोई बिगड़ी दैया।।
आलू सा था गाल टमाटर सा पिचका है।
कजरारे थे नैन प्याज का रस चिपका है।
दाँत होठ से दबा दबा कर मुसकाती थी
खुलकर हँसता कौन देख लो मुँह बिचका है।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी