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मापनी -- २१२२ २१२२ २१२२ २१२
“मुक्तक”
हे जगत के अन्नदाता भूख को भर दीजिये।
हों सभी के शिर सु-छाया संग यह वर दीजिये।
उन्नति के पथ डगर पिछड़े शहर का भी नाम हो-
टप टपकती छत जहाँ उस गाँव को दर दीजिये॥-१
भूल कर शायद गए होगें सिपाही आप के।
बेटियों की हो रहीं कैसी बिदाई माप के।
जी रहें अंधेर में बिजली चिढ़ाती है कड़क-
खो गयी है प्रगति पथपर भार कंधे बाप के॥-२
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी