छंद- लीला, समांत- इया अपदांत विधान- २४ मात्रा के इस छंद में १४ १० पर यति तथा पदांत में सगण (११२) का विधान है
"गीतिका”
भोर हुई निकलो साजन महके री बगिया
हाथ पाँव भी झटकारो आलस क्यों खटिया
बहुत रात्रि तक जागते नाक रोज बजती
सोते हो तुम देर तलक खेंच अब चदरिया॥
बिन हर्रे बिना फिटकरी काया चम चमके
ऋषियों की यह नेकी है योग करे दुनिया॥
ऋषियों की अद्भुतम छटा सुंदर है करनी
करें तप साधक साधना भारत बड़ गुनिया॥
योगी का बल योग रहा भोगी है अदना
बिना योग काया पतनम भरे घर रोगिया॥
पहर दोपहरी शाम को फुरसत के समया
उठक बैठक स्वांस भरो रोग कहाँ धनिया॥
नहलाओ मालिश मज्जन अंजन शुभ नयना
रगड़ के धोएँ हाथ मुँह दातुन करें निबिया॥
गैया कर रही पागुरी गुलाट मारे बछवा
बैल जुवाठा कांधें पर न दूध घी दहिया॥
निर्मल जल भोजन पके पाचक जल भरपूर
शुभकामना बधाइयाँ है भर हर दिन पनिया॥
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी