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जैव

19 जुलाई 2022

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निर्मल ने मन्द-मन्द मुस्कुराती, कमरे में प्रवेश करती हुई-विभावती से पूछा-“क्यों क्या बात है ?”

विभावती हँसती हुई बोली-“बात कया होगी ?

बात जो होनी थी सो हो गई ।”

विभा ने स्वामी के हाथ में आज की डाक से आई हुई चिट्ठी दी। निर्मल ने पढ़ना शुरू किया-“पूजनीया भाभी,...आगे समाचार यह है कि पिछले सप्ताह से ही सुबह उठकर उल्टी-मतली...लेकिन, मेरी सासजी बहुत खुश हैं।... ।”

पत्र में ननद ने 'भौजाई” को विस्तारपूर्वक यानी खोलकर सबकुछ लिखा है। किन्तु निर्मल इससे आगे कुछ नहीं पढ़ सका।

“जो बात होनी थी सो हो गई न ? मैं जानती थी। चाहे पचास रुपए की किताब के प्रेमोपहार' या सौ रुपए की-जो बात होनी थी सो हो गई ।” विभा हँसकर।

निर्मल चिढ़ गया-“बेमौके की ऐसी हँसी सुनकर मेरी देह जल जाती है।”

विभावती समझ जाती है, कि पति अभी बहुत चिढ़े हुए हैं। वह कमरे से बाहर चली गई, हँसती-मुस्कुराती।

निर्मल के सिर पर मानो वज्र गिर पड़ा है।

उसका माथा चकरा रहा है। कान के पास झींगुर बोलने लगे हैं।

शारदा गर्भवती माने प्रेगनेन्ट हो गई ?

उसकी एकमात्र छोटी बहन, सोलह साल की शारदा - बिना माँ-बाप की-“कोरपच्छ” लड़की।

निर्मल से ग्यारह साल छोटी शारदा! निर्मल की माँ ने आँख मूँदने के पहले-विभावती से कहा था-“बहू! अब तू ही इसकी माँ... ।”

पिता ने मरते समय निर्मल से कहा था-“बेटा!

बस, एक दायित्व तुम्हारे सिर पर दे जाता हूँ।

शारदा को 'सुपात्र' के हाथ में देना ।”...इतना खर्च-वर्च सब बेकार ? यह तो पूरा 'कुपात्र” निकला ।

और इसी 'कुपात्र' के फेर में पड़कर उसने अपनी दुलारी बहन की शादी कच्ची उम्र में ही कर दी...अंग्रेजी तथा हिन्दी में उपलब्ध दाम्पत्य-जीवन को सुखमय बनानेवाली प्रसिद्ध किताबों का एक सेट उसने विशेष रूप से भेंट किया था शारदा के पति प्रोफेसर सुकुमार राय को निर्मल ने हिसाब लगाकर देखा...तो, इसका अर्थ हुआ कि सुहागरात में ही... ?

शारदा की शादी हुए तीन ही महीने हुए हैं। अभी (प्रिंस होटल” का बिल भुगतान देना बाकी है। और...और... ?

पड़ोस के फ्लैट की बूढ़ी मौसी आई है।

शारदा को बहुत प्यार करती थी मौसी। विभावती ने मौसी को भी शुभ संवाद सुना दिया-“हाँ, तीन महीने”

“विभा !”-निर्मल ने उच्च स्वर में ही पुकारा। प्रसन्‍नता से बूढ़ी मौसी के चेहरे की झुर्रियाँ खिल पड़ीं।

“कर दिया न ब्राडकास्ट ? तुम लोगों के पेट में कोई बात जो पचे... ।”

इस बार विभा ने जवाब दिया-“तुम तो चिढ़कर बेकार भुर्ता हुए जा रहे हो ”

“बेकार माने ?...शर्म की बात है। इस कच्ची उम्र में...मुश्किल है...शारदा मर गई समझ लो।”

“क्यों 'कुलच्छन' की बोली बोलते हो? माथा गर्म करने से कुछ नहीं होगा। आज ही अस्पताल में 'साइड-रूम” के लिए दर्खास्त दे दो ।”

विभा रसोईघर में चली गई।

निर्मल सोचने लगा-सच ही तो! माथा गर्म करने से क्या होगा। आज ही अस्पताल में 'साइड-रूम' के लिए दर्खास्त दे देना ठीक होगा। प्रोफेसर सुकुमार राय! फर्स्ट क्लास फर्स्ट...गोल्ड मेडलिस्ट हैं। कुपात्र कहीं का!...आजकल के नौजवानों में यही ऐब-डिग्री से लदे हुए गधे !...लेकिन, हिसाब से तो...?

सुहागरात में ही 'कंसीव' किया होगा शारदा ने क्योंकि उसके बाद 'मेहमान' भागलपुर चला गया था। दो महीने के बाद आकर शारदा को ले गया है। और एक महीने के बाद यह पत्र...?

दोपहर को भोजन 'रुचा” नहीं तो विभा ने मुँह फुला दिया-““इस तरह खाना-पीना छोड़ने से क्या होगा?”

“विभा! मैं प्रार्थना करता हूँ...मुझे शान्तिपूर्वक इस समस्या पर कुछ सोचने भी दोगी ?”

“पूछती हूँ, यह भी कोई समस्या है ?”

“तुम भी बूढ़ी मौसी के सुर में सुर मिलाकर ऐसी बातें करोगी, इसकी मुझे उम्मीद नहीं थी।”

“तो क्‍या करूँ? सिर पकड़कर रोऊँ ?”

“विभा”-निर्मल की आँखें डबडबा आई-“शारदा मर जाएगी। जरूर मर जाएगी ।”

“तुम्हारे कहने से मरेगी ? कुछ नहीं होगा। तुम्हारी दुलारी बहन शारदा को एक गोलमटोल सुन्दर मुन्ना के सिवा और कुछ नहीं होगा।”

“वह इतनी दुबली है सो... ।”

“सो जानेगी डॉक्टर मिस जोजेफ और जानेंगे स्त्रीरोग के पुरुष विशेषज्ञ डॉक्टर शर्मा... ।”

डॉक्टर शर्मा का नाम सुनते ही निर्मल को काम की बात सूझी-क्यों न डॉक्टर शर्मा को फोन करके सलाह ले? उसने डिरेक्टरी में डॉक्टर शर्मा का नम्बर खोजकर

निकाला और ढिरेक्टरी के मुखप्रृष्ठ पर लिखने के बाद उसने डायल पर नम्बर मिलाया। चोंगा रखकर फिर डायल किया। बहुत देर तक उधर घंटी बजती रही फिर किसी आदमी ने चिढ़ी आवाज में पूछा - “हैलो ?”

“एँ ? डॉक्टर शर्मा हैं? अस्पताल में? देखिए साहब, इस तरह झल्लाइए मत । आप कौन हैं?...तुम डॉक्टर साहब के ड्राइवर होकर ऐसी बातें कहोगे... ?”

उस छोर पर चोंगा रख दिया गया। इसके बाद जब अस्पताल का नम्बर लगाया तो दूँ-ऊँ-ग, दँ-ऊँ-ग...।

निर्मल के कमरे से बहुत देर तक टेलीफोन डायल करने की आवाज आती रही- क्रिर, क्रिर, क्रिर !

फिर मन कड़वा हो गया निर्मल का।

विभा आई और पास बैठकर गम्भीरतापूर्वक बातें करने लगी-“देखों! तुम क्या सलाह लेना चाहते हो डॉक्टर से । यही न कि कम उम्र की कमजोर लड़की”

“विभा! तुम फिर छेड़ने आईं ” निर्मल कहते-कहते रुक गया। उसने अपनी पत्नी के चेहरे पर सहानुभूति की रेखाएँ देखीं। उसे विभा का इस तरह गम्भीर हो जाना अच्छा लगा।

दोपहर के भोजन के बाद विभा रोज एक बीड़ा पान खाती है।

पान मुँह में रखकर जब वह बोलने लगती है तो निर्मल उसके क्रमशः लाल होते हुए हॉ्ों को देखता रहता है। विभा बोली-“तुम सुकुमार को एक चिट्ठी लिख दो और अगले महीने ही जाकर शारदा को लिवा लाओ ।”

“तुम ठीक कहती हो। मैं भी यही सोच रहा था।”

विभा अब मुस्कुराई। निर्मल बोला-“जानवर है। क्या कहा जाए इस सुकुमार को ?”

विभा ने बात पूरी की-“किसकों कहा जाए? न बहन शारदा को धैर्य और न बहनोई सुकुमार साहब को संतोष... ।”

“अब मार खाएगी विभा ”

विभा हँसती हुई लेट गई पति के बगल में और अपनी उँगलियों पर जोड़ने और जोड़कर हिसाब निकालने लगी।

शारदा का “एसपेक्टिंग डेट” यानी “संभावित तिथि” अर्थात्‌ फरवरी में “मासिक धर्म” बन्द हुआ है तो नवम्बर के दूसरे सप्ताह में ? वह पति को गुदगुदाती बोली-“होनेवाले मामू साहब!

एक “टोकरी” ऊन चाहिए...जाड़े में जन्म लेनेवाले शिशु को गर्म रखने के लिए पसमीना-ऊन... ।”

भाई और भाभी ने मिलकर शारदा को बचा लिया।

चौथे महीने में ही निर्मल भागलपुर जाकर, लड़-झगड़कर शारदा को पटना लिवा लाया। पहले हर महीने, बाद में प्रत्येक पखवारे में हेल्थ विजिटर” और “मिडवाइफ' से जाँच करवाकर - वे सलाह लेते और तदनुसार परिश्रम, भोजन और दवा की व्यवस्था इसके बावजूद शारदा की जान संकट में पड़ गई।

नवम्बर के दूसरे सप्ताह में शारदा बारह घंटे तक अस्पताल में सिर कटी हुई चिड़िया की तरह दर्द से तड़फती-छटपटाती रही। अन्त में सी. एस. (सिजेरियन-सेक्शन अर्थात्‌ पेट चीरकर) करके बच्चा निकाला गया। बच्चा स्वस्थ है छै पौंड का बेबी!

अस्पताल से पन्‍द्रह दिन के बाद जब डेरे पर आई शारदा तो एक दिन चोर की तरह मुँह छिपाता हुआ आकर खड़ा हुआ प्रोफेसर सुकुमार विभा हँसकर बोली-““आ गए, आ गए! जुलियस सीजर के पिता सुकुमार साहब...प्रोफेसर ऑफ बोटानी ।”

शाम को निर्मल और विभा तस्वीर देखने गए-बहुत दिनों के बाद। पिछले दो महीने से दोनों परेशान होकर दौड़ते-भागते रहे हैं।

राह में विभा बोली-“मेहमान शायद शारदा को लेने आया है।”

निर्मल बोला-“बोले तो मेरे सामने। जूता खाएगा।”

लौटते समय विभा बोली-“कल एक बार डॉक्टर जोजेफ की क्लिनिक में चलोगे ?

“क्यों ? अब क्या है ?”-निर्मल ने चौंककर पूछा।

विभा बोली-“शारदा कहती थी कि एक बार डॉक्टर जोजेफ ने बुलाया है।”

विभा और निर्मल । विवाह के पाँच वर्ष बाद भी जब विभा को “कुछ” नहीं हुआ तो निर्मल ने डॉक्टरों को दिखलाकर सलाह ली थी। एक छोटा-सा ऑपरेशन भी हुआ था। किन्तु अन्ततः दोनों ने मन-ही-मन मान लिया था-कुछ नहीं होगा। विधि के विधान को उन्होंने स्वीकार कर लिया था। वे प्रसन्‍न थे, सुखी थे, कहीं कोई रिक्तता नहीं कोई कमी. नहीं महसूस करते थे। किन्तु उसकी बहन शारदा के आने के बाद से

दूसरे दिन डॉक्टर जोजेफ की क्लिनिक से लौटकर शारदा अपने पति और भाभी के साथ खिलखिलाकर हँस रही थी-“'देखा भाभी! मैंने कहा था न? ठीक हुआ न, मेरी छूत लग गई न? हा-हा? मैं जानती थी। तुम्हारे लक्षण सभी...”

निर्मल ने पूछा-“'क्या बात है शारदा ?”

वे सभी चुप हो गए। उस कमरे से विभा की गिड़गिड़ाती आवाज और शारदा की मद्धिम खिलखिलाहट के साथ शारदा के शिशु के किलकने की सम्मिलित आवाज आई। निर्मल ने फिर पूछा-“शारदा! क्या है ?”

शारदा ने कोई जवाब नहीं दिया। वह उठकर पूजाघर में गई और शंख फूँकने लगी-“धू-ऊ-ऊ। धू-ऊ-ऊ!

प्रोफेसर सुकुमार लजाते और मुस्कुराते हुए निर्मल को समझा रहे थे-““भाईजी! वनस्पति-जगत्‌ में भी ऐसा होता है।

इस प्राकृतिक प्रक्रिया को हमारे शास्त्र में 'पोलिनेशन' कहते हैं-पी. ओ. एल. एल. आई. एन. ए. टी. इ. अर्थात्‌ फर्टिलाइजिंग ए फ्लावर बाइ कनवेईग...नारियल या पपीता अथवा सुपारी का कोई पेड़ अगर नहीं

फलता है तो पास में एक दूसरा पेड़ लगाया जाता है और जब दूसरा पेड़ फूलने-फलने लगता है तो पहला निष्फला पेड़ भी... ।”

निर्मल ने झुँआलाकर कहा-“क्या बक रहे हो, मैं कुछ नहीं समझ रहा ।...देखो सुकुमार, मैं कोई बहस, कोई बात नहीं करना चाहता-नहीं सुनना चाहता। शारदा सालभर यहाँ रहेगी। इस बीच कोई... ।”

सुकुमार तुतलाकर कह रहा था-“भाई साहब...मतलब...आप तो बेकार...”

हँसती हुई शारदा ने खिड़की के उस पार से ही अपने भाई और पति और दुनिया-जहान को सुनाने के लहजे में कहा-“मैं जाऊँगी ही नहीं। कोई जबर्दस्ती ले जाएगा क्या?...भाभी को डॉक्टर ने...।”

लगा, शारदा का मुँह किसी ने दबा दिया। उसकी बोली मुँह में ही रह गई।

सुकुमार ने झाँककर देखा-भाभी अपनी ननद का मुँह हथेली से बन्द करके हँस रही है।

सुकुमार ने कहा-“अच्छी बात है भाभी! यह “शुभ संवाद” मुझे ही सुनाने का अवसर आपने दे दिया। बहुत धन्यवाद! भाईजी, बात यह है कि भाभी...भाभी को डॉक्टर जोजेफ ने जाँच कर “पक्की” रिपोर्ट दे दी है-मतलब भाभी ने “कंसीव'... अर्थात्‌ वही जो मैं कह रहा था न पोलिनेशन...”

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रचनाएँ
फणीश्वरनाथ रेणु जी की प्रसिद्ध कहानियाँ
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फणीश्वरनाथ रेणु भारत वर्ष के साहिया समाज के बहुत ही जाने माने कविकार और कहानीकार थे| उनके लेखन ने बहुत से लोगो को मनोरंजित किया है| उनका जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के अररिया में हुआ था| उन्होंने अपने साहित्य जीवन में बहुत से उपन्यासों को सराया गया| उनकी एक बहुत ही मशहूर उपन्यास मैला आंचल को बहुत ख्याति मिली की उनको पद्म विभूषण पुरस्कार से नवाज़ा गया| हम आपके लिये फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियाँ, मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम) एक आदिम रात्रि की महक, लाल पान की बेगम , पंचलाइट, तबे एकला चलो रे, ठेस , संवदियास्वतंत्र भारत में उनकी रचनाएं विकास को शहर-केंद्रित बनाने वालों का ध्यान अंचल के समस्याओं की ओर खींचती है। वे अपनी गहरी मानवीय संवेदनाओं के कारण अभावग्रस्त जनता की बेबसी और पीड़ा भोगते से लगते हैं। उनकी इस संवेदनशीलता के साथ यह विश्वास भी जुड़ा है कि आज के त्रस्त मनुष्य में अपने जीवन दशा को बदल लेने की शक्ति भी है।
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अतिथि-सत्कार

19 जुलाई 2022
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इतिहास, मजहब और आदमी

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उस दिन दीवाली थी-लक्ष्मी के शुभागमन का एकमात्र दिन। सुबह उठते ही मनमोहन, माँ से लड़कर “कैम्प” में चला गया था। आस-पास गाँवों में जोरों से हैजा और मलेरिया फैला हुआ था। भूख और रोग का संयुक्त मोर्चा । प

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एक अकहानी का सुपात्र

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पिछले कई वर्षों से लगातार यह सुनते-सुनते कि अब 'कहानी' नाम की कोई चीज दुनिया में ऐसे ही रह गई है-मुझे भी विश्वास-सा हो चला था कि कहानी सचमुच मर गई। हमारा मौजूदा समाज “कहानीहीन' हो गया है, हठातू कहीं,

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एक रंगबाज गाँव की भूमिका

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सड़क खुलने और बस 'सर्विस' चालू होने के बाद से सात नदी (और दो जंगल) पार का पिछलपाँक इलाके के हलवाहे-चरवाहे भी "चालू" हो गए हैं...! 'ए रोक-के ! कहकर “बस' को कहीं पर रोका जा सकता है और “ठे-क्हेय कहकर “

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कलाकार

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काशी के बंगाली टोले की एक गन्दी गली में वह कुछ दिनों से रहने लगा था। दुबला पतला, लम्बा-सा युवक, जिसका गोरा रंग अब उतर रहा था, आँखों के नीचे की हड़डियाँ बाहर निकल रही थीं और चप्पल के फीते टूटे जा रहे

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काक चरित

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किसनलाल ने सुबह उठकर अपनी दोनों तलहथियों को देखा। फिर इष्ट-नाम जाप किया ।...भजन का प्रोग्राम हो गया ? आठ बज गए ? सावित्री बाजार चली है, वह उठकर बैठ गया और बाएँ हाथ से दाहिने कन्धे को छूकर देखा...नही

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खँडहर

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लड़ाई, झगड़ा, घटना, दुर्घटना, हादसा-इस तरह की कोई भी बात नहीं हुई। तीन भहीने पर गोपालकृष्ण गाँव लौटा था। शाम को बाबूजी ने, लम्बी-चौड़ी भूमिका बाँधकर, दीन-दुनिया के नीच-ऊँच दिखाकर, बड़े प्यार से कहा-

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जड़ाऊ मुखड़ा

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बटुक बाबू ने मन-ही-मन तय कर लिया - ऑपरेशन करवाना ही होगा। और, इसी जाड़े में। बटुक बाबू पिछले एक सप्ताह से मानसिक अशान्ति भोग रहे थे, चुपचाप! जब-जब उनकी इकलौती बेटी बुला सामने आती, बटुक बाबू का चेहर

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टौन्टी नैन का खेल

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‘लड़की मिडिल पास है !’ ‘मिडिल पास ?’ ‘मिडिल पास ही नहीं, दोहा कवित्त जोड़ती है।’ ‘देखने में भी, सुनते हैं कि गोरी है।’ ‘सीप्रसाद बाबू की बेटी काली कैसे होगी ?’ ‘विश्वास नहीं होता है।’ ‘सुमरचन्ना

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तव शुभ नामे

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एक-एक कर बहुत सारे शब्दों को “नकारता' जा रहा हूँ 'नकार” दिया है। नेति-नेति! माता, मातृभूमि, जन्म-भूमि, देश, राष्ट्र, देशभक्ति-जैसे चालू शब्दों की अब मुझे जरूरत नहीं होती। माँ की 'ममता' और मातृभूमि प

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तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम

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हिरामन गाड़ीवान की पीठ में गुदगुदी लगती है... पिछले बीस साल से गाड़ी हाँकता है हिरामन। बैलगाड़ी। सीमा के उस पार, मोरंग राज नेपाल से धान और लकड़ी ढो चुका है। कंट्रोल के जमाने में चोरबाजारी का माल इस पार स

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न मिटनेवाली भूख

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1. आठ बज रहे थे। दीदी बिछौने पर पड़ी चुपचाप टुकुर-टुकुर देख रही थी-छत की ओर। उसके बाल तकिए पर बिखरे हुए थे, इधर-उधर लटक रहे थे। एक मोटी किताब, नीचे चप्पल के पास, औंधे मुंह गिरकर न जाने कब से पड़ी हुई

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नित्य लीला

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किसन ने गली से आँककर देखा, नन्दमहर और जशुमति गोशाले की अँगनाई में बैठे किसी गम्भीर बात पर सोच-विचार कर रहे हैं। पिता की मुद्रा से स्पष्ट है कि आज उनकी दाढ़ में फिर दर्द उभरा है, और सिर्फ गोधूलिवेला क

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नैना जोगिन

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रतनी ने मुझे देखा तो घुटने से ऊपर खोंसी हुई साड़ी को 'कोंचा' की जल्दी से नीचे गिरा लिया। सदा साइरेन की तरह गूँजनेवाली उसकी आवाज कंठनली में ही अटक गई। साड़ी की कोंचा नीचे गिराने की हड़बड़ी में उसका 'आँ

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पहलवान की ढोलक

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जाड़े का दिन। अमावस्या की रात—ठंढ़ी और काली। मलेरिया और हैजे से पीड़ित गांव भयार्त शिशु की तरह थर—थर कांप रहा था। पुरानी और उजड़ी, बांस—फूस की झोपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य। अं

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पार्टी का भूत

19 जुलाई 2022
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यारों की शक्ल से अजी डरता हूँ इसलिए किस पारटी के आप हैं? वह पूछ न बैठे। सूखकर काँटा हो गया हूँ। आँखें धँस गई हैं, बाल बढ़ गए हैं। पाजामा फट गया है। चप्पल टूट गई है। आशिकों की-सी सूरत हो गई है। दिन म

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बट बाबा

19 जुलाई 2022
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गाँव से सटे, सड़क के किनारे का वह पुराना वट-वृक्ष। इस बार पतझ्ड़ में उसके पत्ते जो झड़े तो लाल-लाल कोमल पत्तियों को कौन कहे, कोंपल भी नहीं लगे। धीरे-धीरे वह सूखतां गया और एकदम सूख गया-खड़ा ही खड़ा ।

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मन का रंग

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मैं समझ गया, वह जो आदमी दो बार इस बेंच के आस-पास चक्कर लगाकर मेरे चेहरे को गौर से देखकर गया है न-वह मेरे पास ही आकर बैठेगा। बैठने से पहले मद्धिम आवाज में “कपट विनय” भरे शब्दों से मुझे जरा-सा खिसक जान

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रसप्रिया

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धूल में पड़े कीमती पत्थर को देखकर जौहरी की आँखों में एक नई झलक झिलमिला गई - अपरूप-रूप! चरवाहा मोहना छौंड़ा को देखते ही पँचकौड़ी मिरदंगिया के मुँह से निकल पड़ा अपरूप-रूप! ....खेतों, मैंदानों, बाग-बगी

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रेखाएँ : वृत्तचक्र

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ऊँहूँ। नहीं, यह सबकुछ भी नहीं सोचूँगा। मुझे ऐसा कुछ भी नहीं सोचना चाहिए, जिससे कि मेरा दिल कमजोर पड़ जाए। मेरा घाव जल्दी ही भर जाएगा, मैं चंगा हों जाऊँगा। मैं भी कैसा हूँ! मरने से डरता हूँ! मरने क

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'क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या?' बिरजू की माँ शकरकंद उबाल कर बैठी मन-ही-मन कुढ़ रही थी अपने आँगन में। सात साल का लड़का बिरजू शकरकंद के बदले तमाचे खा कर आँगन में लोट-पोट कर सारी देह मे

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दिग्विजय बाबू को जो लोग अच्छी तरह जानते-पहचानते हैं, वे यह कभी नहीं विश्वास करेंगे कि दिग्विजय उर्फ दिगो बाबू कभी क्रोध से पागल होकर सड़क पर, खाली देह और ऊँची आवाज में किसी को अश्लील गालियाँ दे सकते

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संकट

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मैं यह नहीं कहता कि मेरा 'सिक्स्थ-सेंस” बहुत तेज है। आदमी को यह विशेष ज्ञान नहीं दिया है, प्रकृति ने। पशुओं में, कुत्ते की षष्ठेन्द्रिय बहुत सक्रिय होती है। मैं, आदमी होकर यह दावा कैसे कर सकता हूँ ?

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ईश्वर रे, मेरे बेचारे.

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अपने संबंध में कुछ लिखने की बात मन में आते ही मन के पर्दे पर एक ही छवि 'फेड इन' हो जाया करती है : एक महान महीरुह... एक विशाल वटवृक्ष... ऋषि तुल्य, विराट वनस्पति! फिर, इस छवि के ऊपर 'सुपर इंपोज' होती ह

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अक्ल और भैंस

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जब अखबारों में 'हरी क्रान्ति’ की सफलता और चमत्कार की कहानियाँ बार-बार विस्तारपूर्वक प्रकाशित होने लगीं, तो एक दिन श्री अगमलाल 'अगम’ ने भी शहर का मोह त्यागकर, खेती करने का फैसला कर लिया। गाँव में, उनके

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छन्दा ने जिस दिन घर-भर के लोगों के छप्पर - फोड़ ठहाके के बीच मुझे 'दादू” कहकर सम्बोधित किया, मैं थोड़ा अप्रतिभ हुआ था। मेरे (अकाल) परिपक्व केश के कारण ही छन्दा (जिसकी माँ मुझे देवर मानती है और जिसकी

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उच्चाटन

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ठीक वही हुआ, उसी तरह शुरू हुआ, जैसा उसने सोचा था। बरसों से मन में गुनी हुई बात अक्षर-अक्षर फल गई। रात की गाड़ी से वह गाँव लौटा-दों साल के बाद। और “मरकट-महाजन' बूढ़े मिसर को रात में ही खबर मिल गई।

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एक आदिम रात्रि की महक

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न ...करमा को नींद नहीं आएगी। नए पक्के मकान में उसे कभी नींद नहीं आती। चूना और वार्निश की गंध के मारे उसकी कनपटी के पास हमेशा चौअन्नी-भर दर्द चिनचिनाता रहता है। पुरानी लाइन के पुराने 'इस्टिसन' सब हजार

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कपड़घर

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ग्यारह साल की सरकारी नौकरी से, गत माह मैंने इस्तीफा दे दिया है। परिस्थिति के चाप से-और स्वेच्छा से भी। सब-डिप्टी मैजिस्ट्रेट होकर बिरनियाँ जिला आया। ग्यारह साल तक सब-डिप्टी मैजिस्ट्रेट ही रहा। बिरनि

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“लल्लन काका! दादाजी कह गए हैं कि लल्लन काका से कहना कि ऱरोज फुआ के साथ... !” लल्लन काका अर्थात्‌ प्रियव्रत ने अपनी भतीजी बन्दना उर्फ बून्दी को मद्धिम आवाज में डॉट बताई, “जा-जा! मालूम है जो कह गए हैं

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कुत्ते की आवाज़

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मेरा गांव ऐसे इलाके में जहां हर साल पश्चिम, पूरब और दक्षिण की – कोशी, पनार, महानन्दा और गंगा की – बाढ़ से पीड़ित प्राणियों के समूह आकर पनाह लेते हैं, सावन-भादो में ट्रेन की खिड़कियों से विशाल और सपाट धरत

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जलवा

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फातिमादि को कभी देखूँगा और इस तरह देखूँगा, इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। इसलिए, कुछ देर तक 'पंटना-मार्केट” को स्वप्नलोक समझकर खोया - खोया - सा खड़ा रहा-जूते की दूकान पर । बुरके में सिर से पैर तक

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जैव

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निर्मल ने मन्द-मन्द मुस्कुराती, कमरे में प्रवेश करती हुई-विभावती से पूछा-“क्यों क्या बात है ?” विभावती हँसती हुई बोली-“बात कया होगी ? बात जो होनी थी सो हो गई ।” विभा ने स्वामी के हाथ में आज की डाक

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ठेस

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खेती-बारी के समय, गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते। लोग उसको बेकार ही नहीं, 'बेगार' समझते हैं। इसलिए, खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को। क्या होगा, उसको बुला कर? दूसरे

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तीन बिंदियाँ

19 जुलाई 2022
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गीताली दास अपने को सुरजीवी कहती है। नाद-सुर-ताल आदि के सहारे ही वह इस मंज़िल तक पहुँच सकी है। सभी कहते हैं, उसकी साधना सफल हुई है।…कितने भोले और बेचारे होते हैं लोग! साधना के सफल-अफसल होने की घोषणा करन

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धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे

19 जुलाई 2022
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भादों की रात। तुरत बारिस बन्द हुई है। मेढक टरटरा रहे हैं। साँप ने बेंग को पकड़ा है, बेंग की दर्द-भरी पुकार पर दिल में दया आने के बदले, भय मालूम होता है। आसपास की झाड़ियों में फैला हुआ अन्धकार और भी

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ना जाने केहि वेष में

19 जुलाई 2022
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उस दिन अखबार में अपने दैनिक राशिफल में देखा-आदि से अन्त तक हर जगह 'शुभ' और “लाभ' ही लिखा हुआ था। यात्रा : शुभ, अमृतयोग धनागम, राज्य-सम्मान तथा मित्र-लाभ ! पता नहीं, चार दिन के बाद राशिफल में कौन-सा

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नेपथ्य का अभिनेता

19 जुलाई 2022
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यद्यपि उसे पहले भी पच्चासों बार देख चुका हूँ, किन्तु उस दिन देखकर चिहुँक-सा उठा। चकित हो गया। लगा, जैसे बिना मौसम के कोई फूल या फल देख रहा होऊँ। सावन-भादों के किचकिच में, लगातार बारिश में ई कहाँ से

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प्राणों में घुले हुए रंग

19 जुलाई 2022
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शैशव की सुनहली स्मृति, नील-गगन में उड़ते हुए रंग-बिरंगे पतंगों और मनमोहक रंगीन खिलौनों के आकर्षण को मैं जान-बूझकर छोड़े देता। उन दिनों मैं स्वयं किन्ही की रंगीन आशाओं और कल्पनाओं का केन्द्र था! मेडि

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पंचलाईट

19 जुलाई 2022
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पिछले पन्द्रह दिनों से दंड-जुरमाने के पैसे जमा करके महतो टोली के पंचों ने पेट्रोमेक्स खरीदा है इस बार, रामनवमी के मेले में। गाँव में सब मिलाकर आठ पंचायतें हैं। हरेक जाति की अलग-अलग सभाचट्टी है। सभी पं

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पुरानी कहानी : नया पाठ

19 जुलाई 2022
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बंगाल की खाड़ी में डिप्रेशन - तूफान - उठा! हिमालय की किसी चोटी का बर्फ पिघला और तराई के घनघोर जंगलों के ऊपर काले-काले बादल मँडराने लगे। दिशाएँ साँस रोके मौन-स्तब्ध! कारी-कोसी के कछार पर चरते हुए पशु

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बीमारों की दुनिया में

19 जुलाई 2022
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बीरेन की जवानी में घुन लग गया। बुखार-100० 101० 102०,..। खाँसी-भीषण ! रोग-क्ष॑य के लक्षण। कथाकारों के नायक प्रायः क्षय ही से पीड़ित होते हैं। खून की के करते हैं। कथाकार इस रोग को “रोमांटिक” रोग समझ

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रखवाला

19 जुलाई 2022
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रक्त की प्यासी सभ्य दुनिया से दूर-बहुत-दूर-हिमायल के एक पहाड़ी गावं का अंचल। छोटा-सा झोंपड़ा। पहाड़ी की ओट से छनकर आती हुई सूर्य की किरणों में छोटा-सा सरकंडे का झोंपड़ा सोने के झोंपड़े की तरह चमक रहा था।

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रसूल मिसतिरी

19 जुलाई 2022
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बहुत कम अर्से में ही इस छोटे-से गँवारू शहर में काफी परिवर्तन हो गए हैं। आशा से अधिक और शायद आवश्यकता से भी अधिक। स्कूल और होस्टल की भव्य इमारत को देखकर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है कि आज से महज आठ स

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लफड़ा

19 जुलाई 2022
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उस बार 'युनिट” के 'प्रोडक्शन मैनेजर” ने मेरे ठहरने की व्यवस्था “दि डायना गेस्ट हाउस' में की थी। इसके पहले मुझे खार स्टेशन के पास 'होटल सदाबहार! में टिकाया जाता था। इसलिए, नई जगह के बारे में तरह-तरह

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वंडरफुल स्टुडियो

19 जुलाई 2022
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फोटो तो अपने दर्जनों पोज में उतारे हुए अलबम में पड़े हैं, फ्रेम में मढ़े हुए अपने तथा दोस्तों के कमरों में लटक रहे हैं और एक जमाने में, यानी दो-तीन साल पहले, उन तस्‍वीरों को देखकर मुझे पहचाना भी जा सक

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विघटन के क्षण

19 जुलाई 2022
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रानीडिह की ऊँची जमीन पर - लाल माटीवाले खेत में-अक्षत-सिन्दूर बिखरे हुए हैं  हजारों गौरैया-मैना सूरज की पहली किरण फूटने के पहले ही खेत के बीच में 'कचर-पचर' कर रही हैं। बीती हुई रात के तीसरे पहर तक, ज

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संवदिया

19 जुलाई 2022
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हरगोबिन को अचरज हुआ - तो, आज भी किसी को संवदिया की जरूरत पड़ सकती है! इस जमाने में, जबकि गांव गांव में डाकघर खुल गए हैं, संवदिया के मार्फत संवाद क्यों भेजेगा कोई? आज तो आदमी घर बैठे ही लंका तक खबर भेज

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जै गंगा

19 जुलाई 2022
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जै गंगा ... इस दिन आधी रात को 'मनहरना’ दियारा के बिखरे गांवों और दूर दूर के टोलों में अचानक एक सम्मिलित करूण पुकार मची, नींद में माती हुई हवा कांप उठी – 'जै गंगा मैया की जै...’ !! अंधेरी रात में गंग

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