shabd-logo

तव शुभ नामे

19 जुलाई 2022

29 बार देखा गया 29

एक-एक कर बहुत सारे शब्दों को “नकारता' जा रहा हूँ 'नकार” दिया है।

नेति-नेति! माता, मातृभूमि, जन्म-भूमि, देश, राष्ट्र, देशभक्ति-जैसे चालू शब्दों की अब मुझे जरूरत नहीं होती।

माँ की 'ममता' और मातृभूमि पर मर-मिटने के संवाद और गीतों की बातें अब सिर्फ बम्बई और मद्रास के फिल्म प्रोड्यूसर ही करते हैं। गाँव-समाज से नेह-छोह तोड़े दो दशक हो गए।

अब कभी अपने गाँव की याद नहीं आती।

गाँव के 'चौपाल' और “गोहाल' और “अलाव' के किस्से भूल चुका हूँ।

कोसी कछार की हवा मुझे समय-असमय निमन्त्रण नहीं देती और न दूर किसी गाँव के ताड़ या खजूर या नारियल के पेड़ ही इशारों से मुझे बुलाते हैं।

'कमलदह” और “रानी-पोखर” के पुरइन-फूलों के जंगल में भूला 'मन-भमरा” अब गुन-गुन नहीं करता...धीरे-से आना बगियन में रे भोंमरा, धीरे-से आना बगियन में...पंकज मल्लिक का यह गीत अब मन में गुदगुदी पैदा नहीं कर पाता।

जिस गाँव में मेरा जन्म हुआ, उसका नाम भी चेष्टा करके भूल गया हूँ। किन्तु इस कटिहार जंक्शन रेलवे-स्टेशन के मोह को अब भी नहीं काट सका हूँ।

गाँव छोड़ा, जिला छोड़ा, प्रान्त छोड़ा, मगर हर पाँच या सात वर्षों के बाद कोई-न-कोई बहाना बनाकर कटिहार चला आता हूँ।

नम्बर दो ओवरब्रिज पर आकर घंटों खड़ा होकर चारों ओर देखता हूँ।

“पहली बार, गंगा-स्नान को जाते समय, बचपन में माँ के साथ मैं इस ओवरब्रिज के इसी स्थान पर आकर खड़ा हुआ था।

माँ ने उत्तर-पूर्व की ओर हाथ उठाकर दिखलाते हुए कहा था-“वह है “कामच्छा'-कमिच्छा” जानेवाली गाड़ी, पच्छिम की ओर वह गाड़ी काशीजी-प्रयागजी तक जाएगी और दक्षिणवाली वह लाइन गंगा के मनिहारी घाट तक चली गई है।”

तब से आज तक न जाने कितनी बार इस स्थान पर आकर खड़ा हुआ हूँ। तब से अब तक इस रेलवे के कितने नाम अदल-बदलकर पड़े...ई. बी. रेलवे, बी. ए. रेलवे, ए. बी. रेलवे, ओ. टी. रेलवे और नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर रेलवे; किन्तु अब तक मैं ई. बी. रेलवे ही समझता हूँ।

यहाँ आकर मैं दिशाहारा-सा हो जाता हूँ, अर्थात्‌ पूरब-पच्छिम, उत्तर-दक्षिण के बदले कामरूप-कमिच्छा की ओर, काशी-प्रयाग की ओर और गंगा की ओर के रूप में दिशाओं का अनुभव करता हूँ। सात वर्षों के बाद आया हूँ, लेकिन लगता है कि पिछले सप्ताह की बात है! कभी-कभी तो सिर्फ एक दिन के लिए ही दौड़ा आया एकदम सीधे बम्बई से! रेलवे के एक रिटायर्ड अफसर से सुना था कि प्लेटफार्म के इस छोर से उस छोर तक चक्कर लगाकर गाड़ी के यात्रियों को देखना एक रोग है और हर रेलवे स्टेशन के आसपास रहनेवाले कुछ लोग इस रोग के शिकार हो जाते हैं।

और, इस रोग का सम्बन्ध सीधे यौन-विकार से है।

एक किस्म का एक और रोग है, चलती हुई गाड़ी में सम्भोग-सुख प्राप्त करने की लालसा।

सम्भव है, कटिहार जंक्शन से मेरा यह लगाव भी वैसा ही रोग हो, नहीं तो क्‍यों इस तरह बेदार होकर दौड़ आता हूँ? काशी, इलाहाबाद, पटना, कलकत्ता आदि से लौटते समय, दूर से ही कटिहार स्टेशन का टॉवर देखकर लगता था, कटिहार जंक्शन सिर ऊँचा किए, मुस्कुराता हुआ हमें देख रहा है।

इस बार, अब तक कटिहार जंक्शन ने मुझे नहीं पहचाना है। घने कोहरे में टॉवर छुपा हुआ था।

ओवरब्रिज पर आते ही लगा, प्रतीक्षालय के बूढ़े चौकीदार की तरह पोपली हँसी हँसकर किसी ने कहा-“इस बार बहुत दिनों के बाद इधर आना हुआ, शायद... !”

दो नम्बर प्लेटफार्म पर उतरते ही पियक्कड़ पगलू जमादार हड़बड़ाकर उठ बैठता है-बाबू, मीना बाजार आनेवाला है फिर क्या ?

मीना बाजार! पैंतीस साल पहले मीना बाजार देखने आया था। पूजा बाजार स्पेशल! कलकत्ते से आती थी वह गाड़ी।

कलककत्ते की कई प्रसिद्ध कम्पनियाँ अपनी दूकानें लेकर आती थीं...ज्वेलर्स, पर्फ्यूमर्स, बन्दूकवाले और बाग बाजार के रसगुल्लेवाले। पूरे प्लेटफार्म पर दिन-भर मेला लगा रहता।

रात में प्लेटफार्म पर ही मुफ्त सिनेमा दिखलाया जाता। उस बार स्ट्रीट सिंगर' फिल्म दिखलाई गई थी। दुर्गोत्तव के पहले एक दिन का अतिरिक्त उत्सव।

पगलू जमादार से पहली बार मीना बाजार में ही परिचय हुआ था।

एल. एस. डी. खाने के बाद लोग तरह-तरह के अलौक़िक दृश्य देखते हैं, वैसा ही कुछ होता है यहाँ आकर।

अभी तीन नम्बर प्लेटफार्म पर पहुँचते ही पोर्टर कामरूप-कमिच्छा की ओर से आनेवाली गाड़ी का सिगनल डाउन कर देगा।

सारे प्लेटफार्म की रोशनियाँ बुझा दी जाएँगी। दफ्तरों और रेल के कम्पार्टमेंट की रोशनियों के गिर्द कोलतार पोत दिया जाएगा।

घुप्प अँधेरे में सिर्फ हही और लाल रोशनियाँ टिमटिमाती-सी दिखाई पड़ने लगेंगी।

दीवारों पर, पोस्टरों में चेतावनियाँ चिपक जाएँगी...नम्बर एक प्लेटफार्म पर मिलेटरी-स्पेशल आकर रुकेगी।

मित्र-पक्ष के सिपाही...न जाने किस-किस मुल्क के! कोहिमा, दीमापुर, इम्फाल, डिब्रूगढ़ आदि कई नाम हवा में फिसफिसाकर लिए जाएँगे।

इसके बाद उधर से आएगी इवैक्वी-स्पेशल, बर्मा, रंगून को खाली करके, पैदल ही नदी-पहाड़ पार करके आनेवाली प्रवासी भारतीयों को लेकर! रामकृष्ण मिशन के संन्यासियों के साथ, स्वयंसेवक का बिल्ला लगाकर, प्लेटफार्म पर पहले से

ही तैयार है...गाड़ियाँ चीखती हुई आती हैं। रोती हुई, सिर धुनती हुई। हर कम्पार्टमेंट मे पीले-पीले औरत-मर्द-बच्चे-बूढ़े ढुँसे हुए।

अस्थि-पंजर मात्र शेष देह पिंजर, कोटरों में धंसी आँखें! अधमरे लोगों को लेकर गाड़ी आई है।

गाड़ी के रुकते ही हर कम्पार्टमेंट से नरकंकालों की टोलियाँ उतरती हैं...न हँसती हैं, न रोती हैं।

अचानक वे एक साथ चिल्लाने लगते हैं, पागलों की तरह वे इधर-उधर दौड़ते हैं।

ठोकर खाकर गिरते हैं।

हँसते हैं, रोते हैं।

नंगे-अधनंगे, चित्थी-चित्थी चीथड़ों में लिपटे लोग हवा में हाथ नचा-नचाकर पता नहीं क्या-क्या बोल रहे हैं।

पगलू जमादार, मृतक-सत्कार समिति का बैज लगाए, कन्धे पर स्ट्रेचर लेकर मेरी ओर आता है-बाबू, मीनाबाजार ही आया है...समझिए !

होमियोपैथी दवा की गोलियाँ खाकर एक पीली लड़की मुझे बहुत देर तक घूरती रहती है...फिर उससे पूछती है...बरमचारी है, मैं क्या सचमुच जिन्दा हूँ ?

इतना कहकर वह खिलखिलाकर हँस पड़ती है।

उसकी पीली दन्त-पंक्तियों में जड़ा सोना कितना गन्दा है।

इवैक्वी...इवैक्ची...धनपाल को छेड़कर भागनेवाले।

बीहड़ रास्ते में परिवार के सदस्यों को खोकर, अपनी जान किसी तरह बचाकर आसाम तक पहुँचनेवाले भाग्यशालियों के दल की वह पीली लड़की कैम्प अस्पताल में दम तोड़ते समय मुझे अपने पास बुलाती है।

इशारे से अपने गले के लॉकेट को खोलने के लिए कहती है। एक काले डोरे में लटकती सिस्टर निवेदिता की तस्वीर, दूसरी ओर महीन अक्षरों में कुछ लिखा हुआ है।

मृतक-सत्कार समिति का एक स्वयंसेवक मेरे हाथ से लॉकेट लेते हुए कहता है-अरे, यह तो रोल्डगोल्ड है!

यदि मृतक-सत्कार समितिवाले कुछ देर बाद आते, तो मैं उस लड़की की लाश के पास बैठकर दो बूँद आँसू जरूर गिराता...आँखों में अटके आँसुओं की उन बूँदों को अब तक आँखों में ही सहेजकर रखना आसान नहीं।

पगलू जमादार हँसता है-आज कुछ भी हाथ बहीं लगा! अरे बाबू, उस दिन की उस पीली लड़की के दाँतों में असली सोना था, असली! पोर्टर अब घंटा बजाकर आसाम-लखनऊ मेल आने की सूचना देता है।

लाउडस्पीकर पर ऊँघती हुई आवाज में ऐलान किया जाता है : आसाम-लखनऊ मेल ट्रेन पाँच नम्बर प्लेटफार्म पर आ रही है।

जिन यात्रियों को सोनपुर, छपरा, गोरखपुर होते हुए लखनऊ की ओर जाना है...सभी बुझी हुई रोशनियाँ जल पड़ती हैं एक साथ।

भोर का तारा आकाश पर चमक उठा।

उषा की लाली प्लेटफार्म पर छा गई है और ऐसे ही समय पाँच नम्बर प्लेटफार्म पर पार्वतीपुर पैसेंजर 'इन' करती है...रिफ्यूजी...रिफ्यूजी...फिर वही लोग, वही नरकंकाल और फिर वही पीली लड़की ?

इस बार वह मुझे देखते ही पहचान लेती है।

मैं उसके पास जाता हूँ ?

वह मुझे दोनों हाथों में जकड़कर कहती है - तुमी आमा के छेड़े को धाय पालियेगेले ?

कहाँ भाग गए थे तुम मुझे अकेली छोड़कर ?

उन्होंने मेरे दाँत से असली सोने का पत्तर निकाल लिया! हाय हाय! पगलू जमादार आकर ढादस बँधाता है-अरे, बबुनी, धरम बच गया, यही बहुत है...!

मृतक-सत्कार समितिवाले इस बार जबरदस्ती उस लड़की को स्ट्रेच॒ पर सुलाकर ले गए।

वह चीखती रही। मुझे नाम लेकर पुकारती रही। मैं कुछ न बोल सका।

उस लड़की की देह आग की तरह सुलग रही थी...हर कम्पार्टमेंट में काननबाला, यूधिका राय, अंगूरबाला, भारती-यमुना, मंजु एक स्वर से नजरुल गीत गाने लगीं : हो ओ धरमे ते धीर होओ करमे ते वीर होओ उन्नत सिर नाहिं भय; मैं मेडिकल अफसर को समझा रहा हूँ कि एक लड़की को जीवित ही जलाने को ले गए हैं लोग।

डाक्टर मुझे समझाता है कि सती प्रथा का अन्त ईश्वरचन्द्र विद्यासागर और राममोहन राय के युग में ही हो गया है। पगलू जमादार ने आकर मुझे धीरे से कहा-इस बार उसके गले में असली सोने का लॉकेंट था और उसमें आपकी तस्वीर लगी थी, बाबू!

लाउडस्पीकर पर फिर कोई ऐलान शुरू हुआ। फिर एक गाड़ी रिफ्यूजी! रिफ्यूजी-स्पेशल हठातू साइरन बजने लगा।

रोशनियाँ फिर एक-एक कर बुझने लगीं। तीन नम्बर प्लेटफार्म पर फिर अन्धकार छा गया।

लाल और हरी रोशनियाँ आकाश में टिमटिमाने लगीं।

कामरूप मेल आकर अन्धकार में खड़ी हो गई। हर कम्पार्टमेंट में कच्ची उम्र के जवान हिन्दू, मुसलमान, सिक्‍्ख..,उनके चेहरे गुस्से से तमतमाते हुए हैं।

चीखती, धड़धड़ाती आती है आसाम की ओर से एक के बाद दूसरी गाड़ी...घायलों, मृतकों और अधमरे लोगों को लेकर! आसाम, गोहाटी, डिब्रूगढ़ से भागे हुए इवैक्वी...इवैक्वी ...इस बार वह पीली लड़की अपने चेहरे पर घूँघट डालकर आई है...सेठानी की तरह।

वह मेरे पास आकर धीमे-से बोली-मास्टरजी, मेरे साथ मेरा देश जाएगा ?

बकसीस मिलेगा पूरा । चलेगा ?

पगलू जमादार मुझे आँखों के इशारे से कहता है - बाबू, उसके साथ मत जाइएगा उसके बक्श में नेपाली गाँजा भरा हुआ है! कामरूप-कमिच्छा की ओर से फिर एक स्पेशल ट्रेन आ रही है।

प्रतीक्षालय का बूढ़ा चौकीदार पोपली हँसी हँसता हुआ, मुझसे कहता है - साहब, आपकी गाड़ी आ रही है।

रेडियो पर “जन गण मन” गाया जा रहा है यानी स्टेशन अब बन्द हो रहा है। “तव शुभ नामे” के पास रेकार्ड कटा हुआ है, शायद ।

'तव शुभ नामे-तव शुभ नामे' बार-बार बज रहा है।

49
रचनाएँ
फणीश्वरनाथ रेणु जी की प्रसिद्ध कहानियाँ
0.0
फणीश्वरनाथ रेणु भारत वर्ष के साहिया समाज के बहुत ही जाने माने कविकार और कहानीकार थे| उनके लेखन ने बहुत से लोगो को मनोरंजित किया है| उनका जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के अररिया में हुआ था| उन्होंने अपने साहित्य जीवन में बहुत से उपन्यासों को सराया गया| उनकी एक बहुत ही मशहूर उपन्यास मैला आंचल को बहुत ख्याति मिली की उनको पद्म विभूषण पुरस्कार से नवाज़ा गया| हम आपके लिये फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियाँ, मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम) एक आदिम रात्रि की महक, लाल पान की बेगम , पंचलाइट, तबे एकला चलो रे, ठेस , संवदियास्वतंत्र भारत में उनकी रचनाएं विकास को शहर-केंद्रित बनाने वालों का ध्यान अंचल के समस्याओं की ओर खींचती है। वे अपनी गहरी मानवीय संवेदनाओं के कारण अभावग्रस्त जनता की बेबसी और पीड़ा भोगते से लगते हैं। उनकी इस संवेदनशीलता के साथ यह विश्वास भी जुड़ा है कि आज के त्रस्त मनुष्य में अपने जीवन दशा को बदल लेने की शक्ति भी है।
1

अतिथि-सत्कार

19 जुलाई 2022
1
0
0

भला आदमी मन्दाक्रान्ता गति से बातें कर रहा था, गा-गाकर बोलता हो मानो। मैंने बाधा डालते हुए पूछा था, “किन्तु प्रधान अतिथि क्‍यों?” उनकी मन्द मुस्कुराहट जरा भी मन्द नहीं हुई और उन्होंने मेरे इस सवाल म

2

इतिहास, मजहब और आदमी

19 जुलाई 2022
0
0
0

उस दिन दीवाली थी-लक्ष्मी के शुभागमन का एकमात्र दिन। सुबह उठते ही मनमोहन, माँ से लड़कर “कैम्प” में चला गया था। आस-पास गाँवों में जोरों से हैजा और मलेरिया फैला हुआ था। भूख और रोग का संयुक्त मोर्चा । प

3

एक अकहानी का सुपात्र

19 जुलाई 2022
0
0
0

पिछले कई वर्षों से लगातार यह सुनते-सुनते कि अब 'कहानी' नाम की कोई चीज दुनिया में ऐसे ही रह गई है-मुझे भी विश्वास-सा हो चला था कि कहानी सचमुच मर गई। हमारा मौजूदा समाज “कहानीहीन' हो गया है, हठातू कहीं,

4

एक रंगबाज गाँव की भूमिका

19 जुलाई 2022
0
0
0

सड़क खुलने और बस 'सर्विस' चालू होने के बाद से सात नदी (और दो जंगल) पार का पिछलपाँक इलाके के हलवाहे-चरवाहे भी "चालू" हो गए हैं...! 'ए रोक-के ! कहकर “बस' को कहीं पर रोका जा सकता है और “ठे-क्हेय कहकर “

5

कलाकार

19 जुलाई 2022
0
0
0

काशी के बंगाली टोले की एक गन्दी गली में वह कुछ दिनों से रहने लगा था। दुबला पतला, लम्बा-सा युवक, जिसका गोरा रंग अब उतर रहा था, आँखों के नीचे की हड़डियाँ बाहर निकल रही थीं और चप्पल के फीते टूटे जा रहे

6

काक चरित

19 जुलाई 2022
0
0
0

किसनलाल ने सुबह उठकर अपनी दोनों तलहथियों को देखा। फिर इष्ट-नाम जाप किया ।...भजन का प्रोग्राम हो गया ? आठ बज गए ? सावित्री बाजार चली है, वह उठकर बैठ गया और बाएँ हाथ से दाहिने कन्धे को छूकर देखा...नही

7

खँडहर

19 जुलाई 2022
0
0
0

लड़ाई, झगड़ा, घटना, दुर्घटना, हादसा-इस तरह की कोई भी बात नहीं हुई। तीन भहीने पर गोपालकृष्ण गाँव लौटा था। शाम को बाबूजी ने, लम्बी-चौड़ी भूमिका बाँधकर, दीन-दुनिया के नीच-ऊँच दिखाकर, बड़े प्यार से कहा-

8

जड़ाऊ मुखड़ा

19 जुलाई 2022
0
0
0

बटुक बाबू ने मन-ही-मन तय कर लिया - ऑपरेशन करवाना ही होगा। और, इसी जाड़े में। बटुक बाबू पिछले एक सप्ताह से मानसिक अशान्ति भोग रहे थे, चुपचाप! जब-जब उनकी इकलौती बेटी बुला सामने आती, बटुक बाबू का चेहर

9

टौन्टी नैन का खेल

19 जुलाई 2022
0
0
0

‘लड़की मिडिल पास है !’ ‘मिडिल पास ?’ ‘मिडिल पास ही नहीं, दोहा कवित्त जोड़ती है।’ ‘देखने में भी, सुनते हैं कि गोरी है।’ ‘सीप्रसाद बाबू की बेटी काली कैसे होगी ?’ ‘विश्वास नहीं होता है।’ ‘सुमरचन्ना

10

तव शुभ नामे

19 जुलाई 2022
0
0
0

एक-एक कर बहुत सारे शब्दों को “नकारता' जा रहा हूँ 'नकार” दिया है। नेति-नेति! माता, मातृभूमि, जन्म-भूमि, देश, राष्ट्र, देशभक्ति-जैसे चालू शब्दों की अब मुझे जरूरत नहीं होती। माँ की 'ममता' और मातृभूमि प

11

तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम

19 जुलाई 2022
0
0
0

हिरामन गाड़ीवान की पीठ में गुदगुदी लगती है... पिछले बीस साल से गाड़ी हाँकता है हिरामन। बैलगाड़ी। सीमा के उस पार, मोरंग राज नेपाल से धान और लकड़ी ढो चुका है। कंट्रोल के जमाने में चोरबाजारी का माल इस पार स

12

न मिटनेवाली भूख

19 जुलाई 2022
0
0
0

1. आठ बज रहे थे। दीदी बिछौने पर पड़ी चुपचाप टुकुर-टुकुर देख रही थी-छत की ओर। उसके बाल तकिए पर बिखरे हुए थे, इधर-उधर लटक रहे थे। एक मोटी किताब, नीचे चप्पल के पास, औंधे मुंह गिरकर न जाने कब से पड़ी हुई

13

नित्य लीला

19 जुलाई 2022
0
0
0

किसन ने गली से आँककर देखा, नन्दमहर और जशुमति गोशाले की अँगनाई में बैठे किसी गम्भीर बात पर सोच-विचार कर रहे हैं। पिता की मुद्रा से स्पष्ट है कि आज उनकी दाढ़ में फिर दर्द उभरा है, और सिर्फ गोधूलिवेला क

14

नैना जोगिन

19 जुलाई 2022
0
0
0

रतनी ने मुझे देखा तो घुटने से ऊपर खोंसी हुई साड़ी को 'कोंचा' की जल्दी से नीचे गिरा लिया। सदा साइरेन की तरह गूँजनेवाली उसकी आवाज कंठनली में ही अटक गई। साड़ी की कोंचा नीचे गिराने की हड़बड़ी में उसका 'आँ

15

पहलवान की ढोलक

19 जुलाई 2022
0
0
0

जाड़े का दिन। अमावस्या की रात—ठंढ़ी और काली। मलेरिया और हैजे से पीड़ित गांव भयार्त शिशु की तरह थर—थर कांप रहा था। पुरानी और उजड़ी, बांस—फूस की झोपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य। अं

16

पार्टी का भूत

19 जुलाई 2022
0
0
0

यारों की शक्ल से अजी डरता हूँ इसलिए किस पारटी के आप हैं? वह पूछ न बैठे। सूखकर काँटा हो गया हूँ। आँखें धँस गई हैं, बाल बढ़ गए हैं। पाजामा फट गया है। चप्पल टूट गई है। आशिकों की-सी सूरत हो गई है। दिन म

17

बट बाबा

19 जुलाई 2022
0
0
0

गाँव से सटे, सड़क के किनारे का वह पुराना वट-वृक्ष। इस बार पतझ्ड़ में उसके पत्ते जो झड़े तो लाल-लाल कोमल पत्तियों को कौन कहे, कोंपल भी नहीं लगे। धीरे-धीरे वह सूखतां गया और एकदम सूख गया-खड़ा ही खड़ा ।

18

मन का रंग

19 जुलाई 2022
0
0
0

मैं समझ गया, वह जो आदमी दो बार इस बेंच के आस-पास चक्कर लगाकर मेरे चेहरे को गौर से देखकर गया है न-वह मेरे पास ही आकर बैठेगा। बैठने से पहले मद्धिम आवाज में “कपट विनय” भरे शब्दों से मुझे जरा-सा खिसक जान

19

रसप्रिया

19 जुलाई 2022
0
0
0

धूल में पड़े कीमती पत्थर को देखकर जौहरी की आँखों में एक नई झलक झिलमिला गई - अपरूप-रूप! चरवाहा मोहना छौंड़ा को देखते ही पँचकौड़ी मिरदंगिया के मुँह से निकल पड़ा अपरूप-रूप! ....खेतों, मैंदानों, बाग-बगी

20

रेखाएँ : वृत्तचक्र

19 जुलाई 2022
0
0
0

ऊँहूँ। नहीं, यह सबकुछ भी नहीं सोचूँगा। मुझे ऐसा कुछ भी नहीं सोचना चाहिए, जिससे कि मेरा दिल कमजोर पड़ जाए। मेरा घाव जल्दी ही भर जाएगा, मैं चंगा हों जाऊँगा। मैं भी कैसा हूँ! मरने से डरता हूँ! मरने क

21

लालपान की बेगम

19 जुलाई 2022
0
0
0

'क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या?' बिरजू की माँ शकरकंद उबाल कर बैठी मन-ही-मन कुढ़ रही थी अपने आँगन में। सात साल का लड़का बिरजू शकरकंद के बदले तमाचे खा कर आँगन में लोट-पोट कर सारी देह मे

22

विकट संकट

19 जुलाई 2022
0
0
0

दिग्विजय बाबू को जो लोग अच्छी तरह जानते-पहचानते हैं, वे यह कभी नहीं विश्वास करेंगे कि दिग्विजय उर्फ दिगो बाबू कभी क्रोध से पागल होकर सड़क पर, खाली देह और ऊँची आवाज में किसी को अश्लील गालियाँ दे सकते

23

संकट

19 जुलाई 2022
0
0
0

मैं यह नहीं कहता कि मेरा 'सिक्स्थ-सेंस” बहुत तेज है। आदमी को यह विशेष ज्ञान नहीं दिया है, प्रकृति ने। पशुओं में, कुत्ते की षष्ठेन्द्रिय बहुत सक्रिय होती है। मैं, आदमी होकर यह दावा कैसे कर सकता हूँ ?

24

ईश्वर रे, मेरे बेचारे.

19 जुलाई 2022
0
0
0

अपने संबंध में कुछ लिखने की बात मन में आते ही मन के पर्दे पर एक ही छवि 'फेड इन' हो जाया करती है : एक महान महीरुह... एक विशाल वटवृक्ष... ऋषि तुल्य, विराट वनस्पति! फिर, इस छवि के ऊपर 'सुपर इंपोज' होती ह

25

अक्ल और भैंस

19 जुलाई 2022
0
0
0

जब अखबारों में 'हरी क्रान्ति’ की सफलता और चमत्कार की कहानियाँ बार-बार विस्तारपूर्वक प्रकाशित होने लगीं, तो एक दिन श्री अगमलाल 'अगम’ ने भी शहर का मोह त्यागकर, खेती करने का फैसला कर लिया। गाँव में, उनके

26

अभिनय

19 जुलाई 2022
0
0
0

छन्दा ने जिस दिन घर-भर के लोगों के छप्पर - फोड़ ठहाके के बीच मुझे 'दादू” कहकर सम्बोधित किया, मैं थोड़ा अप्रतिभ हुआ था। मेरे (अकाल) परिपक्व केश के कारण ही छन्दा (जिसकी माँ मुझे देवर मानती है और जिसकी

27

उच्चाटन

19 जुलाई 2022
0
0
0

ठीक वही हुआ, उसी तरह शुरू हुआ, जैसा उसने सोचा था। बरसों से मन में गुनी हुई बात अक्षर-अक्षर फल गई। रात की गाड़ी से वह गाँव लौटा-दों साल के बाद। और “मरकट-महाजन' बूढ़े मिसर को रात में ही खबर मिल गई।

28

एक आदिम रात्रि की महक

19 जुलाई 2022
0
0
0

न ...करमा को नींद नहीं आएगी। नए पक्के मकान में उसे कभी नींद नहीं आती। चूना और वार्निश की गंध के मारे उसकी कनपटी के पास हमेशा चौअन्नी-भर दर्द चिनचिनाता रहता है। पुरानी लाइन के पुराने 'इस्टिसन' सब हजार

29

कपड़घर

19 जुलाई 2022
0
0
0

ग्यारह साल की सरकारी नौकरी से, गत माह मैंने इस्तीफा दे दिया है। परिस्थिति के चाप से-और स्वेच्छा से भी। सब-डिप्टी मैजिस्ट्रेट होकर बिरनियाँ जिला आया। ग्यारह साल तक सब-डिप्टी मैजिस्ट्रेट ही रहा। बिरनि

30

कस्बे की लड़की

19 जुलाई 2022
0
0
0

“लल्लन काका! दादाजी कह गए हैं कि लल्लन काका से कहना कि ऱरोज फुआ के साथ... !” लल्लन काका अर्थात्‌ प्रियव्रत ने अपनी भतीजी बन्दना उर्फ बून्दी को मद्धिम आवाज में डॉट बताई, “जा-जा! मालूम है जो कह गए हैं

31

कुत्ते की आवाज़

19 जुलाई 2022
0
0
0

मेरा गांव ऐसे इलाके में जहां हर साल पश्चिम, पूरब और दक्षिण की – कोशी, पनार, महानन्दा और गंगा की – बाढ़ से पीड़ित प्राणियों के समूह आकर पनाह लेते हैं, सावन-भादो में ट्रेन की खिड़कियों से विशाल और सपाट धरत

32

जलवा

19 जुलाई 2022
0
0
0

फातिमादि को कभी देखूँगा और इस तरह देखूँगा, इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। इसलिए, कुछ देर तक 'पंटना-मार्केट” को स्वप्नलोक समझकर खोया - खोया - सा खड़ा रहा-जूते की दूकान पर । बुरके में सिर से पैर तक

33

जैव

19 जुलाई 2022
0
0
0

निर्मल ने मन्द-मन्द मुस्कुराती, कमरे में प्रवेश करती हुई-विभावती से पूछा-“क्यों क्या बात है ?” विभावती हँसती हुई बोली-“बात कया होगी ? बात जो होनी थी सो हो गई ।” विभा ने स्वामी के हाथ में आज की डाक

34

ठेस

19 जुलाई 2022
0
0
0

खेती-बारी के समय, गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते। लोग उसको बेकार ही नहीं, 'बेगार' समझते हैं। इसलिए, खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को। क्या होगा, उसको बुला कर? दूसरे

35

तीन बिंदियाँ

19 जुलाई 2022
0
0
0

गीताली दास अपने को सुरजीवी कहती है। नाद-सुर-ताल आदि के सहारे ही वह इस मंज़िल तक पहुँच सकी है। सभी कहते हैं, उसकी साधना सफल हुई है।…कितने भोले और बेचारे होते हैं लोग! साधना के सफल-अफसल होने की घोषणा करन

36

धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे

19 जुलाई 2022
0
0
0

भादों की रात। तुरत बारिस बन्द हुई है। मेढक टरटरा रहे हैं। साँप ने बेंग को पकड़ा है, बेंग की दर्द-भरी पुकार पर दिल में दया आने के बदले, भय मालूम होता है। आसपास की झाड़ियों में फैला हुआ अन्धकार और भी

37

ना जाने केहि वेष में

19 जुलाई 2022
0
0
0

उस दिन अखबार में अपने दैनिक राशिफल में देखा-आदि से अन्त तक हर जगह 'शुभ' और “लाभ' ही लिखा हुआ था। यात्रा : शुभ, अमृतयोग धनागम, राज्य-सम्मान तथा मित्र-लाभ ! पता नहीं, चार दिन के बाद राशिफल में कौन-सा

38

नेपथ्य का अभिनेता

19 जुलाई 2022
0
0
0

यद्यपि उसे पहले भी पच्चासों बार देख चुका हूँ, किन्तु उस दिन देखकर चिहुँक-सा उठा। चकित हो गया। लगा, जैसे बिना मौसम के कोई फूल या फल देख रहा होऊँ। सावन-भादों के किचकिच में, लगातार बारिश में ई कहाँ से

39

प्राणों में घुले हुए रंग

19 जुलाई 2022
0
0
0

शैशव की सुनहली स्मृति, नील-गगन में उड़ते हुए रंग-बिरंगे पतंगों और मनमोहक रंगीन खिलौनों के आकर्षण को मैं जान-बूझकर छोड़े देता। उन दिनों मैं स्वयं किन्ही की रंगीन आशाओं और कल्पनाओं का केन्द्र था! मेडि

40

पंचलाईट

19 जुलाई 2022
1
0
0

पिछले पन्द्रह दिनों से दंड-जुरमाने के पैसे जमा करके महतो टोली के पंचों ने पेट्रोमेक्स खरीदा है इस बार, रामनवमी के मेले में। गाँव में सब मिलाकर आठ पंचायतें हैं। हरेक जाति की अलग-अलग सभाचट्टी है। सभी पं

41

पुरानी कहानी : नया पाठ

19 जुलाई 2022
1
0
0

बंगाल की खाड़ी में डिप्रेशन - तूफान - उठा! हिमालय की किसी चोटी का बर्फ पिघला और तराई के घनघोर जंगलों के ऊपर काले-काले बादल मँडराने लगे। दिशाएँ साँस रोके मौन-स्तब्ध! कारी-कोसी के कछार पर चरते हुए पशु

42

बीमारों की दुनिया में

19 जुलाई 2022
0
0
0

बीरेन की जवानी में घुन लग गया। बुखार-100० 101० 102०,..। खाँसी-भीषण ! रोग-क्ष॑य के लक्षण। कथाकारों के नायक प्रायः क्षय ही से पीड़ित होते हैं। खून की के करते हैं। कथाकार इस रोग को “रोमांटिक” रोग समझ

43

रखवाला

19 जुलाई 2022
0
0
0

रक्त की प्यासी सभ्य दुनिया से दूर-बहुत-दूर-हिमायल के एक पहाड़ी गावं का अंचल। छोटा-सा झोंपड़ा। पहाड़ी की ओट से छनकर आती हुई सूर्य की किरणों में छोटा-सा सरकंडे का झोंपड़ा सोने के झोंपड़े की तरह चमक रहा था।

44

रसूल मिसतिरी

19 जुलाई 2022
0
0
0

बहुत कम अर्से में ही इस छोटे-से गँवारू शहर में काफी परिवर्तन हो गए हैं। आशा से अधिक और शायद आवश्यकता से भी अधिक। स्कूल और होस्टल की भव्य इमारत को देखकर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है कि आज से महज आठ स

45

लफड़ा

19 जुलाई 2022
0
0
0

उस बार 'युनिट” के 'प्रोडक्शन मैनेजर” ने मेरे ठहरने की व्यवस्था “दि डायना गेस्ट हाउस' में की थी। इसके पहले मुझे खार स्टेशन के पास 'होटल सदाबहार! में टिकाया जाता था। इसलिए, नई जगह के बारे में तरह-तरह

46

वंडरफुल स्टुडियो

19 जुलाई 2022
0
0
0

फोटो तो अपने दर्जनों पोज में उतारे हुए अलबम में पड़े हैं, फ्रेम में मढ़े हुए अपने तथा दोस्तों के कमरों में लटक रहे हैं और एक जमाने में, यानी दो-तीन साल पहले, उन तस्‍वीरों को देखकर मुझे पहचाना भी जा सक

47

विघटन के क्षण

19 जुलाई 2022
0
0
0

रानीडिह की ऊँची जमीन पर - लाल माटीवाले खेत में-अक्षत-सिन्दूर बिखरे हुए हैं  हजारों गौरैया-मैना सूरज की पहली किरण फूटने के पहले ही खेत के बीच में 'कचर-पचर' कर रही हैं। बीती हुई रात के तीसरे पहर तक, ज

48

संवदिया

19 जुलाई 2022
0
0
0

हरगोबिन को अचरज हुआ - तो, आज भी किसी को संवदिया की जरूरत पड़ सकती है! इस जमाने में, जबकि गांव गांव में डाकघर खुल गए हैं, संवदिया के मार्फत संवाद क्यों भेजेगा कोई? आज तो आदमी घर बैठे ही लंका तक खबर भेज

49

जै गंगा

19 जुलाई 2022
0
0
0

जै गंगा ... इस दिन आधी रात को 'मनहरना’ दियारा के बिखरे गांवों और दूर दूर के टोलों में अचानक एक सम्मिलित करूण पुकार मची, नींद में माती हुई हवा कांप उठी – 'जै गंगा मैया की जै...’ !! अंधेरी रात में गंग

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए