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लफड़ा

19 जुलाई 2022

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उस बार 'युनिट” के 'प्रोडक्शन मैनेजर” ने मेरे ठहरने की व्यवस्था “दि डायना गेस्ट हाउस' में की थी।

इसके पहले मुझे खार स्टेशन के पास 'होटल सदाबहार! में टिकाया जाता था।

इसलिए, नई जगह के बारे में तरह-तरह के सवाल मुँह से अनायास निकलते गए और 'आफिस-ब्वाय' गर्दन हिलाकर सभी सवालों के जवाब में 'हॉँजी-हाँजी' कहता गया ।

बोला-“साब! डायना गेस्ट हाउस में भी “इंडस्ट्री! का लोग सब रहता है।

एक गोआनीज लेडी का है...”

गोआनीज लेडी ?

याद आई, होटल सदाबहार में रहते समय इस गेस्ट हाउस के किस्से सुना करता था। जब-जब हमारे होटल सदाबहार में कोई 'लफड़ा” होता, उस दिन कोई-न-कोई व्यक्ति 'डायना” की कोई नई कहानी सुनाता।

होटल सदाबहार में भी इंडस्ट्री' अर्थात्‌ 'फिल्मइंडस्ट्री' के लोग रहते हैं। इसके प्रोप्रायटर बूढ़े सरदारजी और उनके लड़के, हर नए व्यक्ति को हर कमरे की विशेषता बतलाते समय, फिल्‍मी दुनिया की किसी बड़ी हस्ती का नाम लेते हैं-“म्यूजिक डिरेक्टर” रबिनदेव मजुमदार का नाम सुना है ?

जब पहली बार बम्बई आया था, तो इसी कमरे में डेढ़ साल तक था और सुमन्त कुमार जब आया था... ।”

यों, लफड़े तो सदाबहार होटल के भी एक से एक दिलचस्प हैं। लेकिन डायना गेस्ट हाउस के किस्से दिलचस्प होने के साथ 'हॉट' भी हैं।

गोआनीज लेडी का नाम लेते ही मेरी आँखों के सामने गर्मागर्म 'स्पाइस्ड-पोर्क' का एक प्लेट आ जाता है!

गेस्ट हाउस के सामने टैक्सी लगी। तीन-चार परिचित चेहरे एकसाथ दिखलाई पड़े और सभी एकसाथ किलक पड़े-“अरे! दादा ? आप ?...कब आए ?”

मुझे राहत मिली।

सुना, यदुवीर भी इसी गेस्ट हाउस में रहता है। उसके दोस्त रामपाल ने कहा-“दादा! आपको क्‍या बताएँ ? बगैर एक बार आपकी चर्चा किए यदुवीर कभी “बेड-टी' तक नहीं लेता। और, इस बार आपको यहाँ ठहराने का इन्तजाम उसी हरामजादे ने करवाया होगा। वह बोलता था-दादा को एक बार इस गेस्ट हाउस में जरूर टिकाना होगा... ।”

इन परिचितों की कृपा से मुझे इस नई जगह में आकर कोई प्रारम्भिक परिश्रम नहीं करना पड़ा।

सचमुच गेस्ट की तरह बैठा रहा। रामपाल दौड़कर गया और दो-तीन 'मूरत” को साथ ले आया।

कमरे की सफाई से लेकर बाथरूम की धुलाई तुरंत हो गई।

रामपाल ने हर 'मूरत' का परिचय दिया-“दादा! यह है गफूर। यह रामदास और यह दास गुप्ता। हाँ, बंगाली दास गुप्ता। ये सभी आपके “बन्दे' हैं। सभी साले “चाइल्ड-हीरो' बनने के लिए घर से भागे थे और अब...दादा! अब आप आ गए हैं। कसम खुदा की-आपको रोज एक नया प्लॉट मिलेगा यहाँ।...अभी तो आप हमारी "मैडम' से मिले ही नहीं।”

बाहर एक तीखी और पतली आवाज गूँज उठी। रामपाल ने दाँतों से जीभ काटते हुए कहा-“आ गई! आ गई चुड़ैल !”

नीले रंग के स्कर्ट में एक नाटी, काली और मोटी महिला दरवाजे पर प्रकट हुई, और अचरज से मुझे देखने लगी। फिर रामपाल पर बरस पड़ी-“तुम? तुम इदर में कहाँ? नया गेस्ट के पास हमारा चुगली खाने आया है? इडियट! ठहरो, आज तुमको निकालेगा। अब्बी निकालेगा...।”

रामपाल ने आज्ञाकारी पुत्र की तरह मुखमुद्रा बनाकर कहा-“मैडम! क्‍या बोलता है आप? हम अभी पेट-भर बैदे की भुर्जी और बटाटा-फ्राय खाया है, तुम्हारा चुगली किस पेट में खाएगा? पूछ लो, दादा को इस “गेस्ट हाउस” में लाया कौन? मैडम, हम तुम्हारा भला छोड़कर कभी बुरा नहीं किया। और, तुम... ।”

मैडम तुरत खुश हो गई। बोली-“अरे नहीं बेटा। तुमको हम खूब पहचानता है।...बोलो ना, तुम्हारा यह नया गेस्ट...यह दादा किदर से आया है ?”

रामपाल ने जवाब दिया-“आप हैं हमारे दादा। स्टोरी और डॉयलॉग लिखते हैं। खुदा कसम, ए फर्स्ट क्लास जैंटलमैन... ।”

“रखो तुम्हारा खुदा कसम। अरे, जब आता है, तो सभी फर्स्ट क्लास जैंटलमैन होता है ।'-मैडम बोली-“मगर, तुम लोग सबको बिगाड़कर छुट्टी कर देता है। एकदम “थर्ड क्लास” कर देता है।”

इस बार रामपाल के तेवर बदल गए-“मैडम प्लीज बी सिरियस! दादा तुम्हारे इस रिचेड गेस्ट हाउस” में आ गए हैं तो इसका मतलब नहीं कि...”

“अरे बेटे! गाली काहे कूँ बकता है? हम तो “'लव' में बोला और तुम बोम मारने लगा ।” मैडम अब खुशामद के सुर में बोलने लगी-“दादा! आपका यह रामपाल...हि इज ए चाइल्ड...लड़का है एकदम”

बाहर, फटी हुई आवाज में किसी ने पुकारा-“'मैडम !”

मैडम ने सिर पकड़कर कहा-“यह कुत्ता का बच्चा इदर में किदर से काहेकूँ आ गया ? जरूर ड्रंक है।”

मैडम बाहर चली गई। मुझे मुस्कुराते हुए देखकर रामपाल उत्साहित हुआ- “दादा, आप आ गए हैं। कसम खुदा की, आप खुश होकर लौटिएगा इस बार बम्बई से ...ठहरए, मैं यदुवीर को फोन करता हूँ। साला आजकल 'वेरी बिजी हीरो' के साथ लगा हुआ है।”

मैंने पूछा-“और तुम ?”

“अप्पन तो वही 'हैपी वैली' साहब का साथ है। 'दर्द का दरिया' में फर्स्ट असिस्‍टेंट लगा हुआ हूँ।...अभी आया दादा। आप तब तक नहा-धो लीजिए। बाधरूम में जाइएगा, तो कमरा बन्द कर लीजिएगा।

रामपाल चला गया। मैं नहाने की तैयारी में लग गया। कन्धे पर लुंगी-तौलिया ओर हाथ में साबुनदानी लेकर दरवाजा बन्द करने जा रहा था कि मैडम आई--"दादा, एक्सकयूज भी, डिस्टर्ब किया आपको। लेकिन...।”

बह इधर-उधर देखकर मेरे करीब चली आई। फिर धीरे-से बोली-''यह रामपाल को तुम कितने दिन से जानता है ?

बस? दो साल से ? यों लड़का अच्छा है। मगर, मैं कहती हूँ-थोड़ा 'केयरफुल' रहना। यहाँ किसी का भरोसा नहीं। डोण्ट बिलीव एनीबडी तुमको फुर्सत में बतलाएगा...दे आर वेरी डर्टी! अच्छा दादा, तुम ड्रिंक तो नहीं करता ? हाँ, खबरदार...।”

बाहर फिर किसी ने पुकारा-“मै-ड-म!”

मैडम ने मुँह बनाकर कहा-“इदर सभी शैतान हैं मगर मैं भी शैतान का खाला है। मेरे पास कोई लफड़ा नहीं। अब्बी गड़बड़ किया कि अब्बी गेट आउट किया। तुम इनकी बात में नहीं आना। सब डेंजरस है। फुर्सत में तुमको सब बतलाएगा...”

बाहर यदुवीर का ठहाका सुनाई पड़ा मैडम बोली-“यह आया दूसरा शैतान का बच्चा। वो रामपाल है न, फिर भी अच्छा है। यह यदुवीर. “तुम जानता है उसको? कब से ?...ओह, बहुत गन्दा बहुत... ।”

“क्यों मदर ? दादा से पुराना रिश्ता है क्या ? “-यदुवीर के ठहाके से कमरा हिलने लगा।

मैडम बोली-“देख यदुवीर! हमेशा 'मस्करी” ठीक नहीं। तुम इस तरह पागल का माफिक हँसता क्‍यों है ?”

“मदर... !!”

“फिर मदर बोलता है ?”

“मदर नहीं तो कया बोलेगा? ग्रैण्ड मदर ?”

“अब्बी निकालेंगा...।”

“किसको ?”

“तुमको ।”

“देखता हूँ कौन निकालता है किसको!”

“हम निकालेंगा-हम। पाँच महीने का रेन्ट बाकी पड़ा है। ऊपर से वीकली दस-पन्द्रा कर्जा खाता है रेगुलरली...लाज नहीं ?”

“काहे की लाज ?”

“तुम दिन में भी ड्रिंक करने लगा ?”

ड्रिंक किया तो किसी के मरे हुए खसम का क्या ?”

“'अब्बी निकल जाओ ?"

"नहीं निकलेंगे!'

“नहीं ?

“नहीं निकलता ।

“नहीं ?”'

“नहीं। “नहीं। “नहीं !

"माई गॉड,..!

मैडम सिर पीट-पीटकर रोने लगी। पैर पटक-पटकर नाचती, न जाने किस भाषा में क्या-क्या बोलने लगी।

मैंने अवाक्‌ और अप्रसन्‍न होकर यदुवीर की ओर देखा। यदुवीर अप्रतिभ नहीं हुआ। उसने आँखें मटकाकर मुझे संकेत किया-“'मजा देखिए ना।”

मैडम कमरे से बाहर चली गई, तो यदुवीर फिर ठठाकर हँस पड़ा। मैंने कहा- “यह कहाँ आ गया मैं ?”

“दादा, आपको यहाँ ठहराने की व्यवस्था मैंने ही करवाई है। एक सप्ताह ही रहकर देख लीजिए... ।”

रामपाल हँसता हुआ आया-“'चूतिए ! देखना मैडम आज तुमको निकालकर ही पानी पीयेगी। कह रही है, नया गेस्ट के सामने हमारा इनसल्ट किया, हमारे मरे हुए खसम का नाम लिया ।...रो रही है, ऑफिस का दरवाजा बन्द करके ”

“मारो साली कुतिया को !”-यदुवीर ने बिछावन पर लुढ़कते हुए कहा-“और बतलाइए दादा... ।”

बांद्रा के दि डायना गेस्ट हाउस” की मालकिन, अधपगली गोआनीज मोटी मेम को बांद्रा से खार तक का बच्चा-बच्चा जानता है। राह चलते बड़बड़ाती रहती है। 'तंदुरी चिकन” कहने से बेहद चिढ़ती है। छोटे-छोटे बच्चे 'तंदुरी चिकन' कहकर गली में भाग जाते हैं और मैडम मोड़ पर खड़ी होकर गालियाँ सुनाती रहती है-““तेरी मदर तंदुरी चिकन, तेरा बाप तंदुरी चिकन... ।”

उसी शाम को यदुवीर ने नया तमाशा दिखाया। दिन-भर की रूठी और नाराज मैडम को चुटकी बजाकर खुश कर दिया। यदुवीर ने बड़े प्यार से 'हैलो मैडम” कहा और वह रोने लगी-““नहीं, नहीं, हम तुमसे नहीं बोलेंगा। नहीं... ।'

“मैडम! डियर...डार्लिंग...मेरी सुनो... ।'

“कुच्छ नहीं सुनेंगा।...हम तुमसे “लव” में बात किया और तुम नया गेस्ट के सामने हमको गाली बोला। नहीं-नहीं... ।

चौबीस घंटे में ही मेरा सिर बार-बार चकराने लगा ।-मैं कहाँ आ गया। पागल हो जाऊँगा यहाँ... ।

डायना गेस्ट हाउस बाहर से जितना नया और साफ-सुथरा दिखाई पड़ता है, अन्दर से उतना ही पुराना और गन्दा है। लकड़ी की खिड़कियाँ और रंगीन टाइल के इस मकान की उम्र एक सौ साल से कम नहीं होगी। सब मिलाकर बीस बड़े और पाँच छोटे कमरे हैं।

बड़े में चार और छोटे में दो गेस्ट रहते हैं। हर कमरे के बीच में लकड़ी का एक पार्टीशन और दरवाजा है जो दोनों ओर से बन्द रहता है।

हर कमरे के बाथरूम का फ्लश बिगड़ा हुआ है और झरना हमेशा चूता-टपकता रहता है। तेलचटूटों की टोलियाँ दिन-रात टहलती रहती हैं।

दीवारों के पलस्तर छूते ही झरझराकर झड़ने लगते हैं।

पर्लैँग पर खटमलों का और कमरों में मच्छरों का राज। किचन तो 'हेल' ही है। फिर भी, यहाँ रहनेवाले गेस्ट को हमेशा एहसास होता है कि मैडम की विशेष कृपा यानी एहसान से ही उन्हें यह जगह मिली है।

मैडम फिल्‍मी लोगों से घृणा करती है। कहती है-“एक आदमी होता है शराबी, कोई होता है छोकरीबाज, कोई जुआड़ी। अलग-अलग आदमी में अलग-अलग ऐब।

मगर यह फिल्म का आदमी एक ऐसा जानवर होता है जिसको सिंग भी होता है, जहरीले दाँत भी, तेज नाखून और हाथी के जैसा सूँड भी...आई हेट...आई हेट !

लेकिन, उसकी घृणा के बावजूद उसके गेस्ट हाउस के हर कमरे में हमेशा फिल्‍मी लोग ही रहते हैं और रहेंगे।

मैडम रोज शराब के खिलाफ हर गेस्ट के कमरे में जाकर भाषण और चेतावनी देती है-“नो वाइन एंड नो वीमन...दारू भी नहीं, छोकरी भी नहीं।”

और रोज शराब भी आती है और लड़कियाँ भी। खुद मैडम शराब पीती है और उसके लिए एक अधेड़ आदमी हर शनिवार को आता है जिसको ऑफिसवाले कमरे में बन्द करके मैडम खुद छोकरी हो जाती है। सभी जानते हैं...!

उस रात रामपाल और यदुवीर दोनों रेस में हारकर लौटे थे। इसलिए टैक्सी से उतरकर सीधे मैडम के पास हाजिर हुए। रामपाल ने गिड़गिड़ाते हुए कहा-“मैडम !

हमारी जान आज तुम्हारे हाथ! बाहर टैक्सी में 'छोकरी” का मवाली बैठा हुआ है। प्लीज मैडम... ।

“क्या-आ-आ? छोकरी लेकर आया है ?”

“नहीं मैडम ।”-कान पकड़ते हुए रामपाल ने कहा-“ऐसा काम हम कभी नहीं करेंगे।”

“तब ?”

“उधर ही 'खलास' करके आया ।...मैं समझा कि यदुवीर साले के पास पैसा और यदुवीर समझा कि रामपाल साले के पास पैसा होगा... !

“एक ही छोकरी था या दो?”-मैडम ने दिलचस्पी के साथ पूछा।

“नहीं मैडम! एक ही... ।”

“गेट आउट”

“मैडम! मवाली टैक्सी में बैठा है। हमारी जान ले लेगा। ख़दा की कसम...”

“और तुम ? -मैडम ने यदुवीर की ओर मुड़कर कहा-' तुम चुप काहे को हो ? अब बोलता क्‍यों नहीं ? एँ ? उदर में छोकड़ी के साथ ऐश करके आया है। इदर में अब बाहर जाकर मवाली के जूते खाओ ना ।...ठीक है, अच्चा है!”

यदुवीर बोला-“तुम यहाँ लाने ही नहीं देतीं मैडम !”

“हम तुमको कब मना किया ? बोलो ? मना किया कबी? कसम खाकर बोल- तुमको कबी बोला...?”

बाहर टैक्सी का कर्कश हॉर्न बजा।

रामपाल हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाया-“मैडम प्लीज!”

“कितना माँगता है?”

“दो सौ।”

मैडम चीख पड़ी-“ऊनय-्हू! टू हंड्रेडश एक कुतिया के वास्ते-हंड्रेड रूपी पर हेड ? माई गॉड...बेटे रामपाल, बेटे जदबीर! तुम दोनों का जवाब नहीं। जवाब नहीं।... कैसी थी छोकरी ?”

“मैडम, पहले मेहरबानी करके रुपए दो । फिर सबकुछ बताऊँगा। सबकुछ..."

मैडम ने यदुवीर की ओर देखकर नाक सिकोड़ते हुए कहा-“तुम लोगों को नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। समझे ?”

सौ-सौ के दो नोट रामपाल के हाथ में थमाकर मैडम बोली-““आइ हेट यू बोथ...तुम दोनों को कल ही यहाँ से निकालेगा। देख लेना। गेट आउट”

सुना, रामपाल और यदुवीर ने ऐसा नाटक बहुत बार किया है। और हर बार मैडम ने इसी तरह की धमकियों के साथ कर्ज दिए हैं।

एक दिन यदुवीर ने कहा-“आज आपको यहाँ का 'सिनेमास्कोप' दिखलाऊँगा। आज शनिवार है न ?”

“सिनेमास्कोप ?”

वे दोनों एक ही साथ हँसे। रामपाल ने फिसफिसाकर यदुवीर से कुछ पूछा। यदुवीर ने बताया-“तीन-तीन पेयर का प्रोग्राम है आज । दस नम्बर-फ्लूट बनानेवाले बंगाली फटिक की पंजाबन भी आज आएगी। चार नम्बर जवान सरदार की बुढ़िया... और आठ नम्बर में तो आज 'कोरस'... ”

यदुवीर बोला-“और साली मदर का साला फादर भी तो आज ही आएगा ?


एक बोतल काजू की शराब और कई बोतल कोला लेकर छोकरा दास गुप्ता आया । रामपाल ने कहा-“दादा, कसम खुदा की-इसके सामने स्कॉच भी कुछ नहीं। साली पहला 'किक' ही ऐसा जमाकर लगाती है कि आदमी सीधे “आउटर-स्पेस' में

पहुँच जाता है।”

दास गुप्ता छोकरा आँखों में कोई संकेत लेकर आया। यदुवीर ने गटगटाकर गिलास खाली किया और उठकर दरवाजा बन्द कर आया | फिर बीचवाले लकड़ी के दरवाजे के पास जाकर बैठ गया।

रामपाल ने धीमे स्वर में पूछा-क्यों ? चालू है ? साला, इतना “अर्ली' ही शुरू कर दिया इस भूखे बंगाली ने ?

रामपाल गिलास हाथ में लिए ही यदुवीर के पास आया। यदुवीर को ठेलकर खुद छेद में आँखें सटाकर देखने लगा। फिर दोनों ने इशारे से मुझे बुलाया। मैंने सिर हिलाकर कहा-“नहीं ।” दोनों ने ऐसी मुद्रा बनाई जिसका मतलब था-“एक बार आकर देखिए तो! ऐसा 'शो' फिर कभी देखने को नहीं मिलेगा ।”

अचानक कमरे का दरवाजा कचमचाकर ख़ुला। कमरे में मैडम दाखिल हुई। दोनों पार्टशनवाले दरवाजे के पास उठ खड़े हुए। मैडम ने पहले अचरज से हमें बारी-बारी से देखा। फिर बगैर कुछ बोले पार्टीशनवाले दरवाजे के पास घुटने के बल बैठ गई और छेद से देखने लगी। अचानक वह छिटककर फर्श पर लुढ़क गई। ऐसा लगा, बिजली मार गई।

रामपाल और यदुवीर ने दौड़कर मैडम को सँभाला। मैडम दोनों के बाँह में अधलेटी-सी थर-थर काँप रही थी और बोलने की चेष्टा कर रही थी-“माई गॉड...यह बीमार बंगाली जरूर मरेंगा। देखा नहीं, छोकरी ने “पलटपोज' लगाया है। यह जरूर मरेंगा। देख लेना। अब्बी निकालेंगा उसक्‌...।”

यदुवीर और रामपाल, दोनों एकसाथ मैडम को प्यार-भरी खुशामद किए जा रहे थे-“मैडम ! प्लीज...डोन्ट डिस्टर्ब...'शो” बर्बाद मत करो...मरने दो साले को...तुम्हारा क्या, हमारा क्या ..डार्लिंग...तुम कितनी अच्छी हो...”

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धूल में पड़े कीमती पत्थर को देखकर जौहरी की आँखों में एक नई झलक झिलमिला गई - अपरूप-रूप! चरवाहा मोहना छौंड़ा को देखते ही पँचकौड़ी मिरदंगिया के मुँह से निकल पड़ा अपरूप-रूप! ....खेतों, मैंदानों, बाग-बगी

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रेखाएँ : वृत्तचक्र

19 जुलाई 2022
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ऊँहूँ। नहीं, यह सबकुछ भी नहीं सोचूँगा। मुझे ऐसा कुछ भी नहीं सोचना चाहिए, जिससे कि मेरा दिल कमजोर पड़ जाए। मेरा घाव जल्दी ही भर जाएगा, मैं चंगा हों जाऊँगा। मैं भी कैसा हूँ! मरने से डरता हूँ! मरने क

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लालपान की बेगम

19 जुलाई 2022
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'क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या?' बिरजू की माँ शकरकंद उबाल कर बैठी मन-ही-मन कुढ़ रही थी अपने आँगन में। सात साल का लड़का बिरजू शकरकंद के बदले तमाचे खा कर आँगन में लोट-पोट कर सारी देह मे

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विकट संकट

19 जुलाई 2022
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दिग्विजय बाबू को जो लोग अच्छी तरह जानते-पहचानते हैं, वे यह कभी नहीं विश्वास करेंगे कि दिग्विजय उर्फ दिगो बाबू कभी क्रोध से पागल होकर सड़क पर, खाली देह और ऊँची आवाज में किसी को अश्लील गालियाँ दे सकते

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संकट

19 जुलाई 2022
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मैं यह नहीं कहता कि मेरा 'सिक्स्थ-सेंस” बहुत तेज है। आदमी को यह विशेष ज्ञान नहीं दिया है, प्रकृति ने। पशुओं में, कुत्ते की षष्ठेन्द्रिय बहुत सक्रिय होती है। मैं, आदमी होकर यह दावा कैसे कर सकता हूँ ?

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ईश्वर रे, मेरे बेचारे.

19 जुलाई 2022
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अपने संबंध में कुछ लिखने की बात मन में आते ही मन के पर्दे पर एक ही छवि 'फेड इन' हो जाया करती है : एक महान महीरुह... एक विशाल वटवृक्ष... ऋषि तुल्य, विराट वनस्पति! फिर, इस छवि के ऊपर 'सुपर इंपोज' होती ह

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अक्ल और भैंस

19 जुलाई 2022
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जब अखबारों में 'हरी क्रान्ति’ की सफलता और चमत्कार की कहानियाँ बार-बार विस्तारपूर्वक प्रकाशित होने लगीं, तो एक दिन श्री अगमलाल 'अगम’ ने भी शहर का मोह त्यागकर, खेती करने का फैसला कर लिया। गाँव में, उनके

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अभिनय

19 जुलाई 2022
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छन्दा ने जिस दिन घर-भर के लोगों के छप्पर - फोड़ ठहाके के बीच मुझे 'दादू” कहकर सम्बोधित किया, मैं थोड़ा अप्रतिभ हुआ था। मेरे (अकाल) परिपक्व केश के कारण ही छन्दा (जिसकी माँ मुझे देवर मानती है और जिसकी

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उच्चाटन

19 जुलाई 2022
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ठीक वही हुआ, उसी तरह शुरू हुआ, जैसा उसने सोचा था। बरसों से मन में गुनी हुई बात अक्षर-अक्षर फल गई। रात की गाड़ी से वह गाँव लौटा-दों साल के बाद। और “मरकट-महाजन' बूढ़े मिसर को रात में ही खबर मिल गई।

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एक आदिम रात्रि की महक

19 जुलाई 2022
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न ...करमा को नींद नहीं आएगी। नए पक्के मकान में उसे कभी नींद नहीं आती। चूना और वार्निश की गंध के मारे उसकी कनपटी के पास हमेशा चौअन्नी-भर दर्द चिनचिनाता रहता है। पुरानी लाइन के पुराने 'इस्टिसन' सब हजार

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कपड़घर

19 जुलाई 2022
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ग्यारह साल की सरकारी नौकरी से, गत माह मैंने इस्तीफा दे दिया है। परिस्थिति के चाप से-और स्वेच्छा से भी। सब-डिप्टी मैजिस्ट्रेट होकर बिरनियाँ जिला आया। ग्यारह साल तक सब-डिप्टी मैजिस्ट्रेट ही रहा। बिरनि

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कस्बे की लड़की

19 जुलाई 2022
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“लल्लन काका! दादाजी कह गए हैं कि लल्लन काका से कहना कि ऱरोज फुआ के साथ... !” लल्लन काका अर्थात्‌ प्रियव्रत ने अपनी भतीजी बन्दना उर्फ बून्दी को मद्धिम आवाज में डॉट बताई, “जा-जा! मालूम है जो कह गए हैं

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कुत्ते की आवाज़

19 जुलाई 2022
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मेरा गांव ऐसे इलाके में जहां हर साल पश्चिम, पूरब और दक्षिण की – कोशी, पनार, महानन्दा और गंगा की – बाढ़ से पीड़ित प्राणियों के समूह आकर पनाह लेते हैं, सावन-भादो में ट्रेन की खिड़कियों से विशाल और सपाट धरत

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जलवा

19 जुलाई 2022
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फातिमादि को कभी देखूँगा और इस तरह देखूँगा, इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। इसलिए, कुछ देर तक 'पंटना-मार्केट” को स्वप्नलोक समझकर खोया - खोया - सा खड़ा रहा-जूते की दूकान पर । बुरके में सिर से पैर तक

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जैव

19 जुलाई 2022
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निर्मल ने मन्द-मन्द मुस्कुराती, कमरे में प्रवेश करती हुई-विभावती से पूछा-“क्यों क्या बात है ?” विभावती हँसती हुई बोली-“बात कया होगी ? बात जो होनी थी सो हो गई ।” विभा ने स्वामी के हाथ में आज की डाक

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ठेस

19 जुलाई 2022
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खेती-बारी के समय, गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते। लोग उसको बेकार ही नहीं, 'बेगार' समझते हैं। इसलिए, खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को। क्या होगा, उसको बुला कर? दूसरे

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तीन बिंदियाँ

19 जुलाई 2022
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गीताली दास अपने को सुरजीवी कहती है। नाद-सुर-ताल आदि के सहारे ही वह इस मंज़िल तक पहुँच सकी है। सभी कहते हैं, उसकी साधना सफल हुई है।…कितने भोले और बेचारे होते हैं लोग! साधना के सफल-अफसल होने की घोषणा करन

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धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे

19 जुलाई 2022
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भादों की रात। तुरत बारिस बन्द हुई है। मेढक टरटरा रहे हैं। साँप ने बेंग को पकड़ा है, बेंग की दर्द-भरी पुकार पर दिल में दया आने के बदले, भय मालूम होता है। आसपास की झाड़ियों में फैला हुआ अन्धकार और भी

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ना जाने केहि वेष में

19 जुलाई 2022
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उस दिन अखबार में अपने दैनिक राशिफल में देखा-आदि से अन्त तक हर जगह 'शुभ' और “लाभ' ही लिखा हुआ था। यात्रा : शुभ, अमृतयोग धनागम, राज्य-सम्मान तथा मित्र-लाभ ! पता नहीं, चार दिन के बाद राशिफल में कौन-सा

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नेपथ्य का अभिनेता

19 जुलाई 2022
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यद्यपि उसे पहले भी पच्चासों बार देख चुका हूँ, किन्तु उस दिन देखकर चिहुँक-सा उठा। चकित हो गया। लगा, जैसे बिना मौसम के कोई फूल या फल देख रहा होऊँ। सावन-भादों के किचकिच में, लगातार बारिश में ई कहाँ से

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प्राणों में घुले हुए रंग

19 जुलाई 2022
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शैशव की सुनहली स्मृति, नील-गगन में उड़ते हुए रंग-बिरंगे पतंगों और मनमोहक रंगीन खिलौनों के आकर्षण को मैं जान-बूझकर छोड़े देता। उन दिनों मैं स्वयं किन्ही की रंगीन आशाओं और कल्पनाओं का केन्द्र था! मेडि

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पंचलाईट

19 जुलाई 2022
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पिछले पन्द्रह दिनों से दंड-जुरमाने के पैसे जमा करके महतो टोली के पंचों ने पेट्रोमेक्स खरीदा है इस बार, रामनवमी के मेले में। गाँव में सब मिलाकर आठ पंचायतें हैं। हरेक जाति की अलग-अलग सभाचट्टी है। सभी पं

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पुरानी कहानी : नया पाठ

19 जुलाई 2022
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बंगाल की खाड़ी में डिप्रेशन - तूफान - उठा! हिमालय की किसी चोटी का बर्फ पिघला और तराई के घनघोर जंगलों के ऊपर काले-काले बादल मँडराने लगे। दिशाएँ साँस रोके मौन-स्तब्ध! कारी-कोसी के कछार पर चरते हुए पशु

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बीमारों की दुनिया में

19 जुलाई 2022
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बीरेन की जवानी में घुन लग गया। बुखार-100० 101० 102०,..। खाँसी-भीषण ! रोग-क्ष॑य के लक्षण। कथाकारों के नायक प्रायः क्षय ही से पीड़ित होते हैं। खून की के करते हैं। कथाकार इस रोग को “रोमांटिक” रोग समझ

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रखवाला

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रक्त की प्यासी सभ्य दुनिया से दूर-बहुत-दूर-हिमायल के एक पहाड़ी गावं का अंचल। छोटा-सा झोंपड़ा। पहाड़ी की ओट से छनकर आती हुई सूर्य की किरणों में छोटा-सा सरकंडे का झोंपड़ा सोने के झोंपड़े की तरह चमक रहा था।

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रसूल मिसतिरी

19 जुलाई 2022
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बहुत कम अर्से में ही इस छोटे-से गँवारू शहर में काफी परिवर्तन हो गए हैं। आशा से अधिक और शायद आवश्यकता से भी अधिक। स्कूल और होस्टल की भव्य इमारत को देखकर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है कि आज से महज आठ स

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लफड़ा

19 जुलाई 2022
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उस बार 'युनिट” के 'प्रोडक्शन मैनेजर” ने मेरे ठहरने की व्यवस्था “दि डायना गेस्ट हाउस' में की थी। इसके पहले मुझे खार स्टेशन के पास 'होटल सदाबहार! में टिकाया जाता था। इसलिए, नई जगह के बारे में तरह-तरह

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वंडरफुल स्टुडियो

19 जुलाई 2022
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फोटो तो अपने दर्जनों पोज में उतारे हुए अलबम में पड़े हैं, फ्रेम में मढ़े हुए अपने तथा दोस्तों के कमरों में लटक रहे हैं और एक जमाने में, यानी दो-तीन साल पहले, उन तस्‍वीरों को देखकर मुझे पहचाना भी जा सक

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विघटन के क्षण

19 जुलाई 2022
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रानीडिह की ऊँची जमीन पर - लाल माटीवाले खेत में-अक्षत-सिन्दूर बिखरे हुए हैं  हजारों गौरैया-मैना सूरज की पहली किरण फूटने के पहले ही खेत के बीच में 'कचर-पचर' कर रही हैं। बीती हुई रात के तीसरे पहर तक, ज

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संवदिया

19 जुलाई 2022
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हरगोबिन को अचरज हुआ - तो, आज भी किसी को संवदिया की जरूरत पड़ सकती है! इस जमाने में, जबकि गांव गांव में डाकघर खुल गए हैं, संवदिया के मार्फत संवाद क्यों भेजेगा कोई? आज तो आदमी घर बैठे ही लंका तक खबर भेज

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जै गंगा

19 जुलाई 2022
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जै गंगा ... इस दिन आधी रात को 'मनहरना’ दियारा के बिखरे गांवों और दूर दूर के टोलों में अचानक एक सम्मिलित करूण पुकार मची, नींद में माती हुई हवा कांप उठी – 'जै गंगा मैया की जै...’ !! अंधेरी रात में गंग

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