shabd-logo

खँडहर

19 जुलाई 2022

18 बार देखा गया 18

लड़ाई, झगड़ा, घटना, दुर्घटना, हादसा-इस तरह की कोई भी बात नहीं हुई।

तीन भहीने पर गोपालकृष्ण गाँव लौटा था।

शाम को बाबूजी ने, लम्बी-चौड़ी भूमिका बाँधकर, दीन-दुनिया के नीच-ऊँच दिखाकर, बड़े प्यार से कहा-' “गोपाल बजुआ!

परसों शिवचलित्तर बाबू से कचहरी में भेंट हुई थी। कुशल-समाचार पूछन के बाद तुम्हारे बारे में भी बातें हुईं। बोले कि-गोपाल तो आजकल हम लोगों से भेंट भी नहीं करता है। जिला पबलिसिटी ऑफिसर की जगह खाली है। लेकिन सवाल है कि आवारागर्दी छोड़े तब तो! ढाई सौ रुपए माहवार, भत्ता, फिर एक लाउडस्पीकर और एक जीप-गाड़ी...”

बीच में ही गोपाल हँंसकर उठ खड़ा हुआ था। बाबूजी की आँखें लाल हो गई थीं-दुख से, दर्द से, गुस्से से। एक धक्का-सा लगा था; पुराने मकान की दीवार में अचानक दरारें पड़ गई थीं।

श्रीयुत्त गोपालकृष्णजी! लीडर साहब! लेखकजी!

राजकुमार की तरह से पाला।

शहर में, तारा बाबू वकील के बच्चों को जो कुछ भी खाते-पहनते देखा, इसे खिलाया, पहनाया।

सीधे शहर में पढ़ने भेजा । पढ़ाई का खर्च! जब कभी भोला-भाला-सा मुँह बनाकर सामने आ खड़ा होता, पैसों की माँग करता; बस जमा-खरच लेना भूल जाता। ज्यों-ज्यों वकालत पास [करने] की मंजिल करीब आती गई, मुट्ठी खोलकर रुपए देता गया। मगर कानून पढ़ने के पहले ही सरकार बहादुर का कानून तोड़ बैठा, जेल गया। पैरवी करने गया तो वकीलों ने हँसकर कहा-अरे क्‍या कीजिएगा पैरवी करके, आपका बेटा तो लीडर हो गया। अब क्‍या चाहिए!...जिस दिन जेल से रिहा हुआ, शहर के धूमधाम, उसके गले में फूलमाला और “गोपाल बाबू की जय! सुनकर मेरा भी मन बदल गया। सोचा, चलो नहीं पास किया तो नहीं। 42 के आन्दोलन में, घर छोड़कर, बाल-बच्चों के साथ रिश्तेदारों के यहाँ जब भटकना और अपमानित होना पड़ता था, सह लेता था।

घर की चीजें कुर्क हुईं, खलिहान लुटवा दिया गया। सब हुआ, मगर इसकी याद आते ही सब भूल जाता था। ताना देकर जब कोई कहता कि अच्छा सपूत निकला गोपाल, तो गांधीजी और जवाहरलाल की बात सुनाकर उसका मुंह बन्द कर देता था।

खैर, वह जमाना भी बीता। अच्छे दिन आए, कांग्रेस का राज हुआ। एम.एल.ए. नहीं हुआ तो कोई बात नहीं, नौकरी नहीं की तो कोई हर्ज नहीं। मगर एम.एल.ए. और सरकारी अफसरों से हेल-मेल रखने में इसकी कौन-सी इज्जत खराब हो जाती। मुरली प्रसाद सब दिन से कांग्रेस के खिलाफ रहा, कांग्रेसियों को गाली देता रहा। '42 में पुलिसवालों के साथ घरों में आग लगवाता फिरा। लेकिन उसका बेटा आज कांग्रेस का प्रेसिडेंट है, अफसरों के साथ मोटर में घूमता है, मिल के मालिक, करोड़पति सब उसके आगे हाथ बाँधे खड़े रहते हैं। और एक यह हैं! सुराज-सुराज हल्ला करते थे, सुराज भी मिला। अब क्‍या लोगे? आसमान का चाँद ?...बाबू गोपालकृष्ण, सोशलिस्ट लीडर, लेखक! इसके पीछे घर बर्बाद हो गया। इसके कारण जमींदार से बैठे-बिठाए दुश्मनी हो गई, जमीन नीलाम हो गई, इज्जत मिट्टी में मिल गई ।...और जिन्दगी में पहली बार जो जी खोलकर मन का अरमान सुनाया तो हँस पड़ा। माँ की उँगलियों के छल्ले सेठजी के यहाँ बन्धक पड़ गए और 'पूँजीवाद नाश हो” का नारा लगाते हैं। घर के लोगों को तो एक शाम खिला नहीं सकते, दुनिया के मजदूरों की चिन्ता से दुबले हो रहे हैं। लेखक बने हैं, कहानियाँ लिखते हैं और अपने घर की कहानी पढ़ नहीं सकते। कमाना नहीं, सिर्फ खाना जानते हैं। पहले “क' तब 'ख'। पहले “कमाओ' तब “खाओ'।

सो नहीं गोपाल की माँ ने आकर खाने की बात पूछी तो मुँह नोचने को तैयार हो गए। बूढ़ी की समझ में बात नहीं आई। छोटे बेटे भूपाल ने सारी बातें सुनाईं। सुनकर बूढ़ी का गला भी भर आया। चुपचाप आँगन में लौट आई। मन-ही-मन कुढ़ गई-भगवान जाने लड़के को क्‍या हो गया है। मुझसे तो कभी बोलता भी नहीं है। महीनों के बाद घर आता है तो टिकने का नाम नहीं लेता। अरे, माँ-बाप अब कितने दिन हैं। अपना जो धरम था सो निभाया। भले की बात नहीं कहेंगे? इसमें हँसने की कौन-सी बात थी! जिसने पैदा किया उसी पर हँसते हो!

हँसो, पढ़-लिखकर पंडित बने हो, तुम्हारे सामने माँ-बाप क्या हैं?

कुछ नहीं।

और बाप ने गोपाल बबुआ छोड़कर 'रे गोपाल! भी कभी नहीं कहा ।

भूपाल को तो कभी फूटी आँख से भी नहीं देखा, बाप ने। भूपाल को सब लंठ कहते हैं, पढ़ा-लिखा नहीं है, दिन-भर अकेला खेतों में लगा रहता है, फिर भी झिड़की सुनता है। पर कभी तो बाप के मुँह पर जवाब नहीं दिया। वैसी ही हैं रानीजी! बाप के घर में तो महीने में पन्द्रह दिन एकादशी होती है और यहाँ रानी बनी बैठी रहती हैं। एक-न-एक बीमारी लगी रहती है। दोनों प्राणी में एक भी तो हाथ-पैर हिलावे। भूपाल की बहू कुछ बोली कि महाभारत मचा देती है। मैं कुछ नहीं बोलती, लेकिन भूपाल की बहू दिन-भर रसोईघर में खटती है, उसे तो बोलने का हक है। बात बर्दाश्त नहीं करती तो लाट साहब के साथ ही क्‍यों नहीं रहती है? साथ रखे तो उन्हें भी आटे-दाल का भाव मालूम हो ।”

जाबुजी नहीं ख़ाएेंगे क्या भूपाल की बहू ने आकर पूछा 'नहीं । बंसी की माँ से से कहो न, भोपाल को परोस दे। माँ भाड़ी गले से बोली। बंसी की माँ ने सुना तो फट पड़ी -- हाँ वे क्यों नहीं खाएंगें। पेट पोसने के लिए ही तो घर आते है। कत्तों को भी अकल होती है, वे खाना देनेवालों की भौं से उनके भन की बात समझ लेले है , मगर ये उससे भी...''-बात अधूरी छोडकर, गुस्से में पाँव पटकती हुई वह पड़ोस की भौसी के आँगन की ओर चली। वह अन्दर ही अन्दर रो रही थी।

इनके कारण अब हस घर में रहना मुश्किल है। ये तो कुछ समझते नहीं, झिड़कियाँ और ताने मुझे सहने पड़ते हैं। और मुझे ही कौन कलेजे से लगाए रहते हैं जो इनके लिए बातें सुनूँ। मन का कोई भी शौक पूरा नहीं कर सकी। कभी अपने हाथ से एक फटी हुई चादर भी जो लाकर देते! रमिया का पति भी तो कांग्रेस में है, घर में गाँठ के गाँठ कपड़े भरे पड़े हैं। आजकल रोज सोनार की दुकान लगी रहती है उसके यहाँ। और एक यह हैं मिट्टी के माधो! आग लगे जेवर और कपड़े में! घर में रहें तो समझूँ कि सबकुछ है। एक दिन के लिए कभी आए भी तो मुँह से गिनकर बात निकालेंगे। मुझसे ऐसी बात करेंगे, मानो धोबिन को गन्दे कपड़ों का हिसाब बता रहे हों। कलेजे पर पत्थर धरकर इतने दिनों तक सही, अब नहीं। कहाँ से मरने के लिए एक अभागिन जो गोद में आई है सो इनके हाथ में हमेशा आग लगी रहती है। एक पैसे का बिस्कुट भी बेचारी को कभी नहीं लाकर देते। दूध-दही आँखों के आगे ही बिला जाता है। बिचारी को एक चम्मच भी कभी मयस्सर नहीं होता। जिसको बाप ही नहीं देगा उसे दूसरे क्या देंगे?...चन्दू की माँ की बातें याद आती हैं तो कलेजा फटने लगता है। कहती थी, अरे तू तो राजरानी बनेगी, राजरानी! सुराज हो गया है, अब सुराजी का राज है।

अब काहे की फिक्र!

सो पास-पड़ोसन साड़ी की चिधियाँ देखकर ताना देती हैं। घर से निकलना भी मुश्किल है। मेरी मौत भी नहीं आती...”

यों भागी गले से बोली घाँगने के लि रसोईघर में भूपाल ने थाली पर बैठते हुए बहू से पूछा-“नेताजी का भोग लग गया?” अपने व्यंग्य पर आप ही वह मुस्कुराया। बहू ने परोसते हुए कहा-“अभी रानीजी फूल लाने गई हैं!”

एक घर के ओसारे पर भूपाल का बेटा केदार, पड़ोस के दो-तीन बच्चे और बॉँसुरी आपस में बत-कटौअल कर रहे थे। चार साल की बाँसुरी ने फटे हुए फ्राक पर बाप की ढीली-ढीली बंडी पहन ली थी। केदार उसकी बेढब पोशाक पर हँसता। बाँसुरी मुँह बनाकर कहती-“मेरे बाबूजी आए हैं /” पड़ोस का एक बदमाश लड़का बोल उठता-“तुम्हारे बाबूजी का नाम गोपाल। गोपाल बजावे गाल ।” बाँसुरी कहती-“मैं बाबूजी के साथ मेला जाऊँगी।” केदार कहता-“मैं मामूजी के यहाँ जाऊँगा। मेरे मामूजी को मोतर गारी है। तम्हारे माम को हैं?” बाँसुरी कुछ क्षण चुप रहकर जवाब देती-“'मुझे बाब॒जी मोटर ला देंगे।” सब बच्चे हैंस पड़ते-' 'लुपया कहाँ है जो लावेंगे मोतर गारी ।” बाँसरी हारकर चिल्लाती-' 'बाबजी !'

गोपाल दरवाजा बन्द कर अपने कमरे में लिख रहा था-'पूँजीवादी समाज ने मध्यवर्ग, विशेषतया निम्नमध्यवर्ग और सर्वहारा वर्ग के दैनिक जीवन मेँ जैसी विकृतियाँ पैदा की हैं, उनका चित्रण तीव्र अनुभूति के माध्यम से हो। ये विकृतियाँ जीवन के हरेक पहलू में वर्तमान हैं--पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक । सम्पूर्ण भावसत्ता विकृत हो गई है। क्‍या वह स्त्री-पुरुष का प्रेम हो, सनन्‍्तान-प्रेम हो आदि-आदि। सारा जीवन विश्वृंखल है-व्यक्ति का हर भाग विघटित है। व्यक्ति का विश्लेषण कीजिए, पता चलेगा कि वे कितने 'डिसटॉर्टेड', 'एवनॉर्मल', “न्यूराटिक' हो गए हैं। लेकिन इन सबके बावजूद समाज में विद्रोहात्मकता जीवित है, वही आशा का केन्द्र है... ।”

“बाबूजी !” बाँसुरी रो पड़ी।

गोपाल बाहर आया। बच्चे भाग चुके थे। बाँसुरी ने ठुमकते हुए कहा-“बाबू जी, तुम मुझे मोटर नहीं ला दोगे? मन्नू कहता था तुम्हारे बाबूजी झूठे हैं। केदार भैया कहते थे तुम्हारे बाबूजी के पास रुपैया कहाँ?”

गोपाल ने प्यार से उसे गोद में लेते हुए कहा-“मेरे पास बहुत पैसे हैं। मैं तुम्हें मोटर ला दूँगा /”-फिर कुछ याद करके हँसा और हँसते हुए बाँसुरी के कान में धीरे-से कहा-“मैं तुम्हें जीप गाड़ी ला दूँगा, चलो अभी खा लें !” वह एक बार फिर ठठाकर हँसा ।

आँगन में अँधेरा था। सब कमरे बन्द थे। उसने पुकारा-“माँ, बाबूजी ने भोजन कर लिया। बंसी की माँ कहाँ गई। मुझे भूख लगी है।”

किसी ओर से जवाब नहीं मिला। आँगन में एक गुमसुम उदासी छाई हुई थी- एक खौफनाक खामोशी।

बाँसुरी को बहुत दिनों के बाद बाप की गोदी मिली थी। खुशी से वह फूली नहीं समाती थी। वह आप ही हँसती थी।

अन्धकार और मौन। खँंडहर की याद आई गोपाल को। वह मुस्कुराया। खिलखिलाकर हँस पड़ी उसकी गोद में बाँसुरी-भविष्य की सुन्दर बाँसुरी।

49
रचनाएँ
फणीश्वरनाथ रेणु जी की प्रसिद्ध कहानियाँ
0.0
फणीश्वरनाथ रेणु भारत वर्ष के साहिया समाज के बहुत ही जाने माने कविकार और कहानीकार थे| उनके लेखन ने बहुत से लोगो को मनोरंजित किया है| उनका जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के अररिया में हुआ था| उन्होंने अपने साहित्य जीवन में बहुत से उपन्यासों को सराया गया| उनकी एक बहुत ही मशहूर उपन्यास मैला आंचल को बहुत ख्याति मिली की उनको पद्म विभूषण पुरस्कार से नवाज़ा गया| हम आपके लिये फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियाँ, मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम) एक आदिम रात्रि की महक, लाल पान की बेगम , पंचलाइट, तबे एकला चलो रे, ठेस , संवदियास्वतंत्र भारत में उनकी रचनाएं विकास को शहर-केंद्रित बनाने वालों का ध्यान अंचल के समस्याओं की ओर खींचती है। वे अपनी गहरी मानवीय संवेदनाओं के कारण अभावग्रस्त जनता की बेबसी और पीड़ा भोगते से लगते हैं। उनकी इस संवेदनशीलता के साथ यह विश्वास भी जुड़ा है कि आज के त्रस्त मनुष्य में अपने जीवन दशा को बदल लेने की शक्ति भी है।
1

अतिथि-सत्कार

19 जुलाई 2022
1
0
0

भला आदमी मन्दाक्रान्ता गति से बातें कर रहा था, गा-गाकर बोलता हो मानो। मैंने बाधा डालते हुए पूछा था, “किन्तु प्रधान अतिथि क्‍यों?” उनकी मन्द मुस्कुराहट जरा भी मन्द नहीं हुई और उन्होंने मेरे इस सवाल म

2

इतिहास, मजहब और आदमी

19 जुलाई 2022
0
0
0

उस दिन दीवाली थी-लक्ष्मी के शुभागमन का एकमात्र दिन। सुबह उठते ही मनमोहन, माँ से लड़कर “कैम्प” में चला गया था। आस-पास गाँवों में जोरों से हैजा और मलेरिया फैला हुआ था। भूख और रोग का संयुक्त मोर्चा । प

3

एक अकहानी का सुपात्र

19 जुलाई 2022
0
0
0

पिछले कई वर्षों से लगातार यह सुनते-सुनते कि अब 'कहानी' नाम की कोई चीज दुनिया में ऐसे ही रह गई है-मुझे भी विश्वास-सा हो चला था कि कहानी सचमुच मर गई। हमारा मौजूदा समाज “कहानीहीन' हो गया है, हठातू कहीं,

4

एक रंगबाज गाँव की भूमिका

19 जुलाई 2022
0
0
0

सड़क खुलने और बस 'सर्विस' चालू होने के बाद से सात नदी (और दो जंगल) पार का पिछलपाँक इलाके के हलवाहे-चरवाहे भी "चालू" हो गए हैं...! 'ए रोक-के ! कहकर “बस' को कहीं पर रोका जा सकता है और “ठे-क्हेय कहकर “

5

कलाकार

19 जुलाई 2022
0
0
0

काशी के बंगाली टोले की एक गन्दी गली में वह कुछ दिनों से रहने लगा था। दुबला पतला, लम्बा-सा युवक, जिसका गोरा रंग अब उतर रहा था, आँखों के नीचे की हड़डियाँ बाहर निकल रही थीं और चप्पल के फीते टूटे जा रहे

6

काक चरित

19 जुलाई 2022
0
0
0

किसनलाल ने सुबह उठकर अपनी दोनों तलहथियों को देखा। फिर इष्ट-नाम जाप किया ।...भजन का प्रोग्राम हो गया ? आठ बज गए ? सावित्री बाजार चली है, वह उठकर बैठ गया और बाएँ हाथ से दाहिने कन्धे को छूकर देखा...नही

7

खँडहर

19 जुलाई 2022
0
0
0

लड़ाई, झगड़ा, घटना, दुर्घटना, हादसा-इस तरह की कोई भी बात नहीं हुई। तीन भहीने पर गोपालकृष्ण गाँव लौटा था। शाम को बाबूजी ने, लम्बी-चौड़ी भूमिका बाँधकर, दीन-दुनिया के नीच-ऊँच दिखाकर, बड़े प्यार से कहा-

8

जड़ाऊ मुखड़ा

19 जुलाई 2022
0
0
0

बटुक बाबू ने मन-ही-मन तय कर लिया - ऑपरेशन करवाना ही होगा। और, इसी जाड़े में। बटुक बाबू पिछले एक सप्ताह से मानसिक अशान्ति भोग रहे थे, चुपचाप! जब-जब उनकी इकलौती बेटी बुला सामने आती, बटुक बाबू का चेहर

9

टौन्टी नैन का खेल

19 जुलाई 2022
0
0
0

‘लड़की मिडिल पास है !’ ‘मिडिल पास ?’ ‘मिडिल पास ही नहीं, दोहा कवित्त जोड़ती है।’ ‘देखने में भी, सुनते हैं कि गोरी है।’ ‘सीप्रसाद बाबू की बेटी काली कैसे होगी ?’ ‘विश्वास नहीं होता है।’ ‘सुमरचन्ना

10

तव शुभ नामे

19 जुलाई 2022
0
0
0

एक-एक कर बहुत सारे शब्दों को “नकारता' जा रहा हूँ 'नकार” दिया है। नेति-नेति! माता, मातृभूमि, जन्म-भूमि, देश, राष्ट्र, देशभक्ति-जैसे चालू शब्दों की अब मुझे जरूरत नहीं होती। माँ की 'ममता' और मातृभूमि प

11

तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम

19 जुलाई 2022
0
0
0

हिरामन गाड़ीवान की पीठ में गुदगुदी लगती है... पिछले बीस साल से गाड़ी हाँकता है हिरामन। बैलगाड़ी। सीमा के उस पार, मोरंग राज नेपाल से धान और लकड़ी ढो चुका है। कंट्रोल के जमाने में चोरबाजारी का माल इस पार स

12

न मिटनेवाली भूख

19 जुलाई 2022
0
0
0

1. आठ बज रहे थे। दीदी बिछौने पर पड़ी चुपचाप टुकुर-टुकुर देख रही थी-छत की ओर। उसके बाल तकिए पर बिखरे हुए थे, इधर-उधर लटक रहे थे। एक मोटी किताब, नीचे चप्पल के पास, औंधे मुंह गिरकर न जाने कब से पड़ी हुई

13

नित्य लीला

19 जुलाई 2022
0
0
0

किसन ने गली से आँककर देखा, नन्दमहर और जशुमति गोशाले की अँगनाई में बैठे किसी गम्भीर बात पर सोच-विचार कर रहे हैं। पिता की मुद्रा से स्पष्ट है कि आज उनकी दाढ़ में फिर दर्द उभरा है, और सिर्फ गोधूलिवेला क

14

नैना जोगिन

19 जुलाई 2022
0
0
0

रतनी ने मुझे देखा तो घुटने से ऊपर खोंसी हुई साड़ी को 'कोंचा' की जल्दी से नीचे गिरा लिया। सदा साइरेन की तरह गूँजनेवाली उसकी आवाज कंठनली में ही अटक गई। साड़ी की कोंचा नीचे गिराने की हड़बड़ी में उसका 'आँ

15

पहलवान की ढोलक

19 जुलाई 2022
0
0
0

जाड़े का दिन। अमावस्या की रात—ठंढ़ी और काली। मलेरिया और हैजे से पीड़ित गांव भयार्त शिशु की तरह थर—थर कांप रहा था। पुरानी और उजड़ी, बांस—फूस की झोपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य। अं

16

पार्टी का भूत

19 जुलाई 2022
0
0
0

यारों की शक्ल से अजी डरता हूँ इसलिए किस पारटी के आप हैं? वह पूछ न बैठे। सूखकर काँटा हो गया हूँ। आँखें धँस गई हैं, बाल बढ़ गए हैं। पाजामा फट गया है। चप्पल टूट गई है। आशिकों की-सी सूरत हो गई है। दिन म

17

बट बाबा

19 जुलाई 2022
0
0
0

गाँव से सटे, सड़क के किनारे का वह पुराना वट-वृक्ष। इस बार पतझ्ड़ में उसके पत्ते जो झड़े तो लाल-लाल कोमल पत्तियों को कौन कहे, कोंपल भी नहीं लगे। धीरे-धीरे वह सूखतां गया और एकदम सूख गया-खड़ा ही खड़ा ।

18

मन का रंग

19 जुलाई 2022
0
0
0

मैं समझ गया, वह जो आदमी दो बार इस बेंच के आस-पास चक्कर लगाकर मेरे चेहरे को गौर से देखकर गया है न-वह मेरे पास ही आकर बैठेगा। बैठने से पहले मद्धिम आवाज में “कपट विनय” भरे शब्दों से मुझे जरा-सा खिसक जान

19

रसप्रिया

19 जुलाई 2022
0
0
0

धूल में पड़े कीमती पत्थर को देखकर जौहरी की आँखों में एक नई झलक झिलमिला गई - अपरूप-रूप! चरवाहा मोहना छौंड़ा को देखते ही पँचकौड़ी मिरदंगिया के मुँह से निकल पड़ा अपरूप-रूप! ....खेतों, मैंदानों, बाग-बगी

20

रेखाएँ : वृत्तचक्र

19 जुलाई 2022
0
0
0

ऊँहूँ। नहीं, यह सबकुछ भी नहीं सोचूँगा। मुझे ऐसा कुछ भी नहीं सोचना चाहिए, जिससे कि मेरा दिल कमजोर पड़ जाए। मेरा घाव जल्दी ही भर जाएगा, मैं चंगा हों जाऊँगा। मैं भी कैसा हूँ! मरने से डरता हूँ! मरने क

21

लालपान की बेगम

19 जुलाई 2022
0
0
0

'क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या?' बिरजू की माँ शकरकंद उबाल कर बैठी मन-ही-मन कुढ़ रही थी अपने आँगन में। सात साल का लड़का बिरजू शकरकंद के बदले तमाचे खा कर आँगन में लोट-पोट कर सारी देह मे

22

विकट संकट

19 जुलाई 2022
0
0
0

दिग्विजय बाबू को जो लोग अच्छी तरह जानते-पहचानते हैं, वे यह कभी नहीं विश्वास करेंगे कि दिग्विजय उर्फ दिगो बाबू कभी क्रोध से पागल होकर सड़क पर, खाली देह और ऊँची आवाज में किसी को अश्लील गालियाँ दे सकते

23

संकट

19 जुलाई 2022
0
0
0

मैं यह नहीं कहता कि मेरा 'सिक्स्थ-सेंस” बहुत तेज है। आदमी को यह विशेष ज्ञान नहीं दिया है, प्रकृति ने। पशुओं में, कुत्ते की षष्ठेन्द्रिय बहुत सक्रिय होती है। मैं, आदमी होकर यह दावा कैसे कर सकता हूँ ?

24

ईश्वर रे, मेरे बेचारे.

19 जुलाई 2022
0
0
0

अपने संबंध में कुछ लिखने की बात मन में आते ही मन के पर्दे पर एक ही छवि 'फेड इन' हो जाया करती है : एक महान महीरुह... एक विशाल वटवृक्ष... ऋषि तुल्य, विराट वनस्पति! फिर, इस छवि के ऊपर 'सुपर इंपोज' होती ह

25

अक्ल और भैंस

19 जुलाई 2022
0
0
0

जब अखबारों में 'हरी क्रान्ति’ की सफलता और चमत्कार की कहानियाँ बार-बार विस्तारपूर्वक प्रकाशित होने लगीं, तो एक दिन श्री अगमलाल 'अगम’ ने भी शहर का मोह त्यागकर, खेती करने का फैसला कर लिया। गाँव में, उनके

26

अभिनय

19 जुलाई 2022
0
0
0

छन्दा ने जिस दिन घर-भर के लोगों के छप्पर - फोड़ ठहाके के बीच मुझे 'दादू” कहकर सम्बोधित किया, मैं थोड़ा अप्रतिभ हुआ था। मेरे (अकाल) परिपक्व केश के कारण ही छन्दा (जिसकी माँ मुझे देवर मानती है और जिसकी

27

उच्चाटन

19 जुलाई 2022
0
0
0

ठीक वही हुआ, उसी तरह शुरू हुआ, जैसा उसने सोचा था। बरसों से मन में गुनी हुई बात अक्षर-अक्षर फल गई। रात की गाड़ी से वह गाँव लौटा-दों साल के बाद। और “मरकट-महाजन' बूढ़े मिसर को रात में ही खबर मिल गई।

28

एक आदिम रात्रि की महक

19 जुलाई 2022
0
0
0

न ...करमा को नींद नहीं आएगी। नए पक्के मकान में उसे कभी नींद नहीं आती। चूना और वार्निश की गंध के मारे उसकी कनपटी के पास हमेशा चौअन्नी-भर दर्द चिनचिनाता रहता है। पुरानी लाइन के पुराने 'इस्टिसन' सब हजार

29

कपड़घर

19 जुलाई 2022
0
0
0

ग्यारह साल की सरकारी नौकरी से, गत माह मैंने इस्तीफा दे दिया है। परिस्थिति के चाप से-और स्वेच्छा से भी। सब-डिप्टी मैजिस्ट्रेट होकर बिरनियाँ जिला आया। ग्यारह साल तक सब-डिप्टी मैजिस्ट्रेट ही रहा। बिरनि

30

कस्बे की लड़की

19 जुलाई 2022
0
0
0

“लल्लन काका! दादाजी कह गए हैं कि लल्लन काका से कहना कि ऱरोज फुआ के साथ... !” लल्लन काका अर्थात्‌ प्रियव्रत ने अपनी भतीजी बन्दना उर्फ बून्दी को मद्धिम आवाज में डॉट बताई, “जा-जा! मालूम है जो कह गए हैं

31

कुत्ते की आवाज़

19 जुलाई 2022
0
0
0

मेरा गांव ऐसे इलाके में जहां हर साल पश्चिम, पूरब और दक्षिण की – कोशी, पनार, महानन्दा और गंगा की – बाढ़ से पीड़ित प्राणियों के समूह आकर पनाह लेते हैं, सावन-भादो में ट्रेन की खिड़कियों से विशाल और सपाट धरत

32

जलवा

19 जुलाई 2022
0
0
0

फातिमादि को कभी देखूँगा और इस तरह देखूँगा, इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। इसलिए, कुछ देर तक 'पंटना-मार्केट” को स्वप्नलोक समझकर खोया - खोया - सा खड़ा रहा-जूते की दूकान पर । बुरके में सिर से पैर तक

33

जैव

19 जुलाई 2022
0
0
0

निर्मल ने मन्द-मन्द मुस्कुराती, कमरे में प्रवेश करती हुई-विभावती से पूछा-“क्यों क्या बात है ?” विभावती हँसती हुई बोली-“बात कया होगी ? बात जो होनी थी सो हो गई ।” विभा ने स्वामी के हाथ में आज की डाक

34

ठेस

19 जुलाई 2022
0
0
0

खेती-बारी के समय, गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते। लोग उसको बेकार ही नहीं, 'बेगार' समझते हैं। इसलिए, खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को। क्या होगा, उसको बुला कर? दूसरे

35

तीन बिंदियाँ

19 जुलाई 2022
0
0
0

गीताली दास अपने को सुरजीवी कहती है। नाद-सुर-ताल आदि के सहारे ही वह इस मंज़िल तक पहुँच सकी है। सभी कहते हैं, उसकी साधना सफल हुई है।…कितने भोले और बेचारे होते हैं लोग! साधना के सफल-अफसल होने की घोषणा करन

36

धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे

19 जुलाई 2022
0
0
0

भादों की रात। तुरत बारिस बन्द हुई है। मेढक टरटरा रहे हैं। साँप ने बेंग को पकड़ा है, बेंग की दर्द-भरी पुकार पर दिल में दया आने के बदले, भय मालूम होता है। आसपास की झाड़ियों में फैला हुआ अन्धकार और भी

37

ना जाने केहि वेष में

19 जुलाई 2022
0
0
0

उस दिन अखबार में अपने दैनिक राशिफल में देखा-आदि से अन्त तक हर जगह 'शुभ' और “लाभ' ही लिखा हुआ था। यात्रा : शुभ, अमृतयोग धनागम, राज्य-सम्मान तथा मित्र-लाभ ! पता नहीं, चार दिन के बाद राशिफल में कौन-सा

38

नेपथ्य का अभिनेता

19 जुलाई 2022
0
0
0

यद्यपि उसे पहले भी पच्चासों बार देख चुका हूँ, किन्तु उस दिन देखकर चिहुँक-सा उठा। चकित हो गया। लगा, जैसे बिना मौसम के कोई फूल या फल देख रहा होऊँ। सावन-भादों के किचकिच में, लगातार बारिश में ई कहाँ से

39

प्राणों में घुले हुए रंग

19 जुलाई 2022
0
0
0

शैशव की सुनहली स्मृति, नील-गगन में उड़ते हुए रंग-बिरंगे पतंगों और मनमोहक रंगीन खिलौनों के आकर्षण को मैं जान-बूझकर छोड़े देता। उन दिनों मैं स्वयं किन्ही की रंगीन आशाओं और कल्पनाओं का केन्द्र था! मेडि

40

पंचलाईट

19 जुलाई 2022
1
0
0

पिछले पन्द्रह दिनों से दंड-जुरमाने के पैसे जमा करके महतो टोली के पंचों ने पेट्रोमेक्स खरीदा है इस बार, रामनवमी के मेले में। गाँव में सब मिलाकर आठ पंचायतें हैं। हरेक जाति की अलग-अलग सभाचट्टी है। सभी पं

41

पुरानी कहानी : नया पाठ

19 जुलाई 2022
1
0
0

बंगाल की खाड़ी में डिप्रेशन - तूफान - उठा! हिमालय की किसी चोटी का बर्फ पिघला और तराई के घनघोर जंगलों के ऊपर काले-काले बादल मँडराने लगे। दिशाएँ साँस रोके मौन-स्तब्ध! कारी-कोसी के कछार पर चरते हुए पशु

42

बीमारों की दुनिया में

19 जुलाई 2022
0
0
0

बीरेन की जवानी में घुन लग गया। बुखार-100० 101० 102०,..। खाँसी-भीषण ! रोग-क्ष॑य के लक्षण। कथाकारों के नायक प्रायः क्षय ही से पीड़ित होते हैं। खून की के करते हैं। कथाकार इस रोग को “रोमांटिक” रोग समझ

43

रखवाला

19 जुलाई 2022
0
0
0

रक्त की प्यासी सभ्य दुनिया से दूर-बहुत-दूर-हिमायल के एक पहाड़ी गावं का अंचल। छोटा-सा झोंपड़ा। पहाड़ी की ओट से छनकर आती हुई सूर्य की किरणों में छोटा-सा सरकंडे का झोंपड़ा सोने के झोंपड़े की तरह चमक रहा था।

44

रसूल मिसतिरी

19 जुलाई 2022
0
0
0

बहुत कम अर्से में ही इस छोटे-से गँवारू शहर में काफी परिवर्तन हो गए हैं। आशा से अधिक और शायद आवश्यकता से भी अधिक। स्कूल और होस्टल की भव्य इमारत को देखकर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है कि आज से महज आठ स

45

लफड़ा

19 जुलाई 2022
0
0
0

उस बार 'युनिट” के 'प्रोडक्शन मैनेजर” ने मेरे ठहरने की व्यवस्था “दि डायना गेस्ट हाउस' में की थी। इसके पहले मुझे खार स्टेशन के पास 'होटल सदाबहार! में टिकाया जाता था। इसलिए, नई जगह के बारे में तरह-तरह

46

वंडरफुल स्टुडियो

19 जुलाई 2022
0
0
0

फोटो तो अपने दर्जनों पोज में उतारे हुए अलबम में पड़े हैं, फ्रेम में मढ़े हुए अपने तथा दोस्तों के कमरों में लटक रहे हैं और एक जमाने में, यानी दो-तीन साल पहले, उन तस्‍वीरों को देखकर मुझे पहचाना भी जा सक

47

विघटन के क्षण

19 जुलाई 2022
0
0
0

रानीडिह की ऊँची जमीन पर - लाल माटीवाले खेत में-अक्षत-सिन्दूर बिखरे हुए हैं  हजारों गौरैया-मैना सूरज की पहली किरण फूटने के पहले ही खेत के बीच में 'कचर-पचर' कर रही हैं। बीती हुई रात के तीसरे पहर तक, ज

48

संवदिया

19 जुलाई 2022
0
0
0

हरगोबिन को अचरज हुआ - तो, आज भी किसी को संवदिया की जरूरत पड़ सकती है! इस जमाने में, जबकि गांव गांव में डाकघर खुल गए हैं, संवदिया के मार्फत संवाद क्यों भेजेगा कोई? आज तो आदमी घर बैठे ही लंका तक खबर भेज

49

जै गंगा

19 जुलाई 2022
0
0
0

जै गंगा ... इस दिन आधी रात को 'मनहरना’ दियारा के बिखरे गांवों और दूर दूर के टोलों में अचानक एक सम्मिलित करूण पुकार मची, नींद में माती हुई हवा कांप उठी – 'जै गंगा मैया की जै...’ !! अंधेरी रात में गंग

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए