कब कोई कोरे पन्नो को पढ़ पाता हैं।कब कोई ख़ामोशी को सुन पाता हैं।शोरगुल , भीड़ और आपाधापी के बीच।भीतर एक सन्नाटा हैं।लिखते लिखते यु ही।अश्क अक्सर ढल जाते हैं।जीवन भागता रहता हैं।क्या हम समझ पाते हैं.-राहुल मैं कहता आँखन देखी.: जीवन
आत्महत्या करना कायरता है अब चाहे किसी भी तनाव में हो पर जीवन की जंग तो हार ही गए। इस प्रकार का कायरता पूर्ण कार्य किसी को भी नहीं करना चाहिए। संघर्ष के बाद सफलता है और रात के बाद दिन है। यह प्रकृति का नियम है जिससे सृष्टि चल रही है। सुख और दुःख तो आते जाते रहते हैं। माता-पिता चाहें तो अपने