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जीवन

hindi articles, stories and books related to jivan


व्यस्त जीवन शैली में योग को अंग बनाईये,स्पर्धा भरे माहौल में चरम संतोष पाईये,निराशा ढकेल,सकारात्मक सोच का संचार कराता,उत्साह का सम्बर्धन कर व्यक्तित्व व सेहत बनाता,स्नान आदि से निवृत हो, ढीले वस्त्र धारण कर कीजिए योगासन,वर्ज आसन को छोड़ ,खाली पेट कीजिए सब आसन,मन्त्र योग,हठ योग,ली योग,राज योग इसके हैं

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लेख स्नेह और दुलार खो गया एक बच्चे की उन्नति और विकास के लिए अभिभावकों के साथ निरंतर बच्चे की पढ़ाई और क्रियाकलापों को लेकर वार्तालाप बहुत आवश्यक है क्योंकि इससे एक बच्चे के विकास के चरणों का पता चलता है । 24 घंटों में से बच्चे 8 घंटे स्कूल में अपनी शिक्षिकाओं, सहप

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'' एक सूरज जो अभी ऊगा नहीं , एक चंदा जो अभी डूबा नहीं | एक कुसुम जो अभी खिला नहीं , एक भौंरा जो अभी पराग चुना नहीं | एक मशाल जो अभी जला नहीं , एक मिशाल जो अभी बना नहीं | एक इश्क़ जो अभी हुआ नहीं

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वर्ष 2018 के “विश्वजल दिवस” उत्सव के लिए विषय "जल के लिए प्रकृति के आधार पर समाधान"होगा ।‘जलसंकट आर्थिक विकास व स्थायित्व के लियेबड़ा खतरा है और जलवायु परिवर्तन समस्या को और बढ़ा रहा है ।’ (जिम योंग किम, अध्यक्ष-विश्व बैंक)“पानी पूरी प्

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कुछ वक्त गये, दुपैसियल बाजार से फनां हो गये... फिर तीन, पांच, दस और बीसपैसियल भी साथ हो लिए,चवन्नी की बिसात क्या, अब अठन्नी भी पाकिट छोड़ गये, न जाने कितने, ताबो-बिसात वाले यूं ही बेखास हो गये।इसी दुपैसियल से तिलंगी, लेमचूस और खट्टा पाचक जुटाये थे... बामुश्किल जुगाड़े थे दसपैसियल तो भाई संग फुलप्लेट

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चरागों में तुझको ढूंढा, खुशबुओं में तुझको पाया,पता तेरा मालूम न था, तभी तो यह लुत्फ पाया।पिछली गली में साया कोई अंधेरे में गुनगुनाता था,तेरे लिए जो खरीदी थी पाजेब, मैं उसको दे आया।पगली ही थी, चीथरों में लिपटी दुआएं बांट रही थी,मेरी कोट में पड़ा गुलाब मैं उसके पल्लू में बांध आया।भुट्टे बेचती बुढ़िया न

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सबके अपने-अपने तयशुदा सांचे होते हैं,इश्क भी सांचों की खांचों में फंसे होते हैं।मां-बाप, भाई-बहन, जोरू-सैंयां सब सांचे हैं,आप अच्छे जब सबके सांचों में ठले होते हैं।प्रेम, रूप-स्वरूप की आकृति से परे बेवा है,हम तो ईश्वर को भी पत्थरों में कैद रखते हैं।सफलता-विफलता के भी सरगम तय छोड़े हैं,रिश्तों की रागद

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कहने वाले कह रहे हैं, सुनना कोई चाहता नहीं,‘मैं’ का मिजाज है ऐसा, परे कुछ दिखता नहीं...अपने विचार क्या, तर्क क्या, ‘मैं’ ही मिथ्या है,वजूद के कमरे से मगर कोई निकलता ही नहीं...सत्य, यथार्थ की मिल्कियत विरासत में नहीं मिलती,पराक्रम के पौरुष को मगर रणभूमि भाता ही नहीं...ईश्वर को, जीवन को समझने की जिद ल

जीवन नीरस है -२ तुम बिन है सूना आसमां तुम बिन है सूनी जमी तेरी ज़रूरत है जीवन नीरस है आंखें गीली तो नहीं दिल रो रहा रात दिन मन में हिलोरें खूब हैं जो मैं जी रहा तेरे बिन सीढ़ियों से गिर पड़ते हैं चलते-चलते रुक जाते हैं अब राह की रु

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अपनी ही चेतना के खंडित एवं विकृत बोधत्व के कारण, इंसान की नीयति कभी भी उसको वह मुकाम नहीं हासिल करने देती, जिसका व हकदार भले ही न हो, पर उसमें उसे पाने का माद्दा होता है। इसलिए कि सीमित व अविकसित बोधत्व उसे वह देखने ही नहीं देती, जो वहां होता है। तुर्रा यह कि जो मिट्टी व कौड़ी वह उठा लाता है, उसे बड़े

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नाखून चबाती मशहूर अभिनेत्री मेघना कमल कमरे में इधर-उधर टहल रही थी। फ़ोन पर अपने मैनेजर पर चिल्लाती हुई वो टीवी न्यूज़ चैनल्स बदल-बदल कर खुद पर आ रही खबरों को देखने लगी। पिछली रात पास के अपार्टमेंट में से किसी ने उसकी एक वीडियो बनाई थी जिसमें वो एक पिल्ले को किक मारती हुई अपने बंगले से बाहर कर रही थी।

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.... विडियो क्लिप की जुबानी ....

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जब हम लोग छोटे थे, तब परीक्षा में अक्सर विलोम (विरोधी) शब्द लिखो, परीक्षा में प्रश्न पूछा जाता था और हम खुशी-खुशी उत्तर लिख देते थे जैसे- सुख का दुख, खुशी का गम, हंसने का रोना इत्यादि-इत्यादि । किन्तु इस प्रकार के परीक्षा में पूछे जाने वाले विरोधाभाषी शब्द, कब और कैसे हमारे जीवन का अभिन्न भाग बन कर

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जीवन में हजारों लड़ाइयां जीतने से अच्छा है कि, तुम स्वयं पर विजय प्राप्त कर लो । फिर जीत हमेशा तुम्हारी ही होगी, इसे तुमसे कोई नहीं छीन सकता है ।किसी भी हालात में तीन चीजें कभी भी छुपी नहीं रह सकती, वो है- सूर्य, चन्द्रमा और सत्य ।जीवन में किसी उद्देश्य या लक्ष्य तक

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भागदौड़ भरे जीवन मे अनेक बार ऐसे अवसर अवश्य आते है, जब व्यक्ति स्वयं के व्यक्तित्त्व को न बदलकर, विश्व को बदलने की नाकाम कोशिश करता है । इस विचारधारा वाला छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब या अच्छा-बुरा कोई भी व्यक्ति हो सकता है । यहाँ तक कि, अनेक बार दृढ़-निश्चयी और अच्छा व्यक्ति भी अपने व्यक्तित्त्व को नहीं बदल प

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नशे, दारु की लथ में अपना पति खो चुकी औरत नशे में ही उसे ढूँढ रही है और पूछ रही है ऐसी क्या ख़ास बात है नशे में जो कितनी आसानी से कितनी ज़िन्दगीयां लील लेता है। इस बार एक कविता और एक नज़्म के साथ पेश है - नशेड़ी औरत! (काव्य कॉमिक्स)Illustrator - Amit Albert :: Poet, Scr

दोहेमोल तोलकर बोलिये, वचन के न हो पाँव !कोइ कथन बने औषधि, कोइ दे घने घाव !!………..(१)दोस्त ऐसा खोजिये, बुरे समय हो साथ !सुख में तो बहुरे मिले, संकट न आवे पास !!……..(२)संगती ऐसी राखिये, जित मिले सुविचार !झूठा सारा जग भया, सुसंगत तारे पार !! ………(३)विद्या मन से पाइये,

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