एक सज्जन है किराये के मकान में रहते है, छोला भठूरे का ठेला लगते हैं, उसकी कमाई से गुजरा होता है, मकान का किराया 1500 रूपए है, वो बिना नागा किये हर महीने किराया भर देते हैं, ऐसा करने का गुप्त रहस्य ये है की वे रोज 50 रूपये निश्चित तारीख को एक डिब्बे में डालते जाते हैं, जो माह पूरा होते होते है 1500 र
क्या कहूँ, कि ज़िन्दगी क्या होती है कैसे यह कभी हँसती और कभी कैसे रो लेती है हर पल बहती यह अनिल प्रवाह सी होती है या कभी फूलों की गोद में लिपटीखुशियों के महक का गुलदस्ता देती हैऔर कभी यह दुख के काँटो का संसार भी हैहै बसन्त सा
*चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद जीव को देव दुर्लभ मानव शरीर प्राप्त होता है | इस शरीर को पाकर के मनुष्य की प्रथम प्राथमिकता होती है स्वयं को एवं अपने समाज को जानने की , उसके लिए मनुष्य को आवश्यकता होती है ज्ञान की | बिना ज्ञान प्राप्त किये मनुष्य का जीवन व्यर्थ है | ज्ञान प्राप्त कर लेना महत्व
*इस संसार में दुर्लभ मनुष्य शरीर पाकर के मनुष्य संसार में सब कुछ प्राप्त करने का प्रयास करता है | मनुष्य भूल जाता है कि देव दुर्लभ शरीर ही सब कुछ प्राप्त करने का साधन है इसी शरीर के भीतर अमृत भरा हुआ है , इसी में विष है तो इसी को पारस एवं कल्पवृक्ष भी कहा गया है | मनुष्य जो चाहे इसी शरीर से प्राप्त
*ईश्वर द्वारा बनाई हुई सृष्टि कर्म पर ही आधारित है | जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल प्राप्त होता है | यह समझने की आवश्यकता है कि मनुष्य के द्वारा किया गया कर्म ही प्रारब्ध बनता है | जिस प्रकार किसान जो बीज खेत में बोता है उसे फसल के रूप में वहीं बाद में काटना पड़ता है | कोई भी मनुष्य अपने किए
*मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जो एक समाज में रहता है | किसी भी समाज में रहने के लिए मनुष्य को समाज से संबंधित बहुत से विषय का ज्ञान होना चाहिए , और मानव जीवन से संबंधित सभी प्रकार के ज्ञान हमारे महापुरुषों ने पुस्तकों में संकलित किया है | पुस्तकें हमें ज्ञान देती हैं | किसी भी विषय के बारे में जानने
*आदिकाल से इस धराधाम पर भगवान की तपस्या करके भगवान से वरदान मांगने की परंपरा रही है | लोग कठिन से कठिन तपस्या करके अपने शरीर को तपा करके ईश्वर को प्रकट करके उनसे मनचाहा वरदान मांगते थे | वरदान पाकर के जहां आसुरी प्रवृति के लोग विध्वंसक हो जाते हैं वहीं दिव्य आत्मायें लोक कल्याणक कार्य करती हैं | भग
मौन की महिमा अपरंपार है, इसके महत्व को शब्दों के जरिए अभिव्यक्त करना संभव नहीं है।प्रकृति में सदैव मौन का साम्राज्य रहता है। पुष्प वाटिका से हमें कोई पुकारता नहीं, पर हम अनायास ही उस ओर खिंचते चले जाते हैं। बड़े से बड़े वृक्षों से लदे सघन वन भी मौन रहकर ही अपनी सुषमा से सारी वसुधा को सुशोभित करते है
एक राजा की दो पत्नियां थी। प्रथम पत्नि सांवली थी वह राजा को बिल्कुल पंसद नहीं थी वहीं दूसरी पत्नि बहुत सुंदर देह व आकर्षक थी। राजा हमेशा दूसरी पत्नि को अपने साथ रखता था। वह उसकी अचूक एवं आकर्षक सुन्दरता में डूबा रहता था प्रथम पत्नि सुशील एवं बहुत गुण थी लेकिन उसका रंग सावंला होने के कारण राजा उसे पस
जिस प्रकार पौधा लगाने से पहले बीज आरोपित किया जाता है उसी प्रकार के युवा लड़के-लड़कियों के मन में दाम्पत्य जीवन के संबंधों के भावों को पैदा करने के लिए विवाह पूर्व ही अनेक संस्कार आरोपित किए जाते हैं। यद्यपि वे सारे के सारे विवाह के ही अंग माने जाते हैं। जैसे-हल्दी चढ़ाना, तैल चढ़ाना, कन्या पूजन, गाना ब
नींद व्यक्ति की सबसे ज्यादा आवश्यक है, बिना नींद या कम नींद के हम कई बीमारियों और समस्याओं के शिकार हो सकते हैं.जिस तरह पोषण के लिए आहार की जरुरत होती है उसी तरह थकान मिटने के लिए पर्याप्त नींद की जरुरत होती है, निद्रा के समय मस्तिष्क सर्वथा शान्त, निस्तब्ध या निष्क्रिय होता हो, सो बात नहीं। पाचन तं
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस संसार में संपूर्ण धरा धाम पर मनुष्य एक दूसरे से जुड़ा हुआ है | मानव जीवन में शब्दों का बड़ा प्रभाव पड़ता है | ऐसे ही दो शब्द मानव जीवन की धारा को बदल देते हैं जिसे अपमान एवं सम्मान के नाम से जाना जाता है | मनुष्य मन के अधीन माना जाता है और मान शब्द मन से ही बना है
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *मानव जीवन में कई पड़ाव आते हैं | सम्पूर्ण जीवनकाल कभी एक समान नहीं रहता है | यहाँ यदि मनुष्य की प्रशंसा होती है तो उसकी बुराई भी लोग करते रहते हैं | हालांकि संसार के लगभग सभी धर्म किसी की बुराई करना अनुचित मानते हैं परंतु मनुष्य अपनी आदत से मजबूर होकर ऐसा करता रहता है
प्लेटफार्म मन ही मन सोचता है मेर जीवन भी क्या जीवन है। हर आती जाती रेल मुझे कोसती है। किसका सगा हूँ ये प्रश्न पूछती है। रेलों का शोर है, हजारों की भीड़ है लेकिन मन में सन्नाटा क्यों है? बाहर इतनी रौनक,लेकिन मन में ये चुभता सा कौन है? रेल तो जीवन भर मुझ तक आएगी मुझसे कभी वो कुछ नहीं पायेग
***** कुछ कुछ - किस्त तीसरी ***** *** व्याकरण - भाषा की, जीवन की *** ** मैं और हम *
शीर्षक- जीवन, मरण ,मोक्ष ,अटल और सत्य"मुक्त काव्य" जीवन शरण जीवन मरणहै अटल सच दिनकर किरणमाया भरम तारक मरणवन घूमता स्वर्णिम हिरणमातु सीता का हरणक्या देख पाया राम नेजिसके लिए जीवन लियादर-बदर नित भ्रमणन कियाचोला बदलता रह गयाक्या रोक पाया चाँद नेउस चाँदनी का पथ छरणऋतु साथ आती पतझड़ीफिर शाख पर किसकी कड़ी
जीवन यात्रा कदम कदम, जिन्दगी बढ़ती रहती, आगे की ओर;बचपन से जवानी, जवानी से बुढ़ापे की ओर।. . . . जवानी से बुढ़ापे की ओर।। जीवन में आते हैं, कुछ ऐसे क्षण;शादी, सेवनिवृत्ती हैं, कुछ ऐसे ही क्षण। जब बदल जाती है जिंदगी, एकदम से;. . . . एकदम से;सिर्फ एक कदम च
क्या चाहिए जीवन केलिए जीवन सुन्दर है, जीवन आंनद है, प्रत्येक व्यक्ति केलिए;पर हम, स्वयं की कैद में रहते हैं, घुट घुटकर मरने केलिए। जो कमाई करते रहते हैं, केवल पेट पालने केलिए;वो भर पेट भोजन क्यों त्यागते, केवल कमाई करने केलिए। न जाने क्या क्या जुटाते रहते हैं, बाद में
जीवन जीना आता ही नहींहम को जीना आता ही नहीं; हम को जीना आता ही नहीं ;हम को जीना आता ही नहीं।कहीं पहुंच जाने के चक्कर में रहते हैं;जीवन यात्रा का आनंद जाना ही नहीं।और, और, और अधिक चाहते रहते हैं;नया पकड़ने केलिए, मुट्ठी ढ़ीली करना आता ही नहीं।दूसरों को जिम्मेदार ठहरता रहता है;बदलना तो स्वयं को है, पर स