मेरी आॅखें उस वक्त भी आसूॅओं से भर गयीं। मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा। हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक ही घटना के बारे में सोच रहे थे। अजान की आवाज खामोष हुई। “क्या यह तुम्हें अब भी ड़रा देता है?” उसने मुझसे पूछा।
“पहले से ज्यादा।” मैंने कहा।
यह एकमात्र त्रासदी नहीं थी। जनवरी 1990 में, कश्मीर त्रासदियों से कांप रहा था। कितने हीे लोग मारे गये...कितने भाग गए... कितनों पर बलात्कार हुए और कितने ही गायब हो गए थे? तीन लाख से अधिक, लगभग आधी आबादी को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था और, जो यहां रह गए थे वे हर पल डर में मर रहे थे।
“क्या यह सब कभी खत्म नहीं हो सकता?” मैंने मीनाक्षी से पूछा और मुझे पता था कि उसका जवाब क्या हो सकता है? उसने मेरा सिर अपने कंधे पर रख लिया। वह मेरे बालों पर हाथ फिराती रही।
“एक बात कहनी थी।” उसने कहा। “हम इस जगह को छोड़कर जा रहे हैं।” उसने सर्द लहजे में कहा। मैंने विस्मय में उसकी ओर देखा। “डैडी ने मद्रास को जाने की योजना बनाई है। हमारे कुछ रिश्तेदार हैं वहाॅ।” दो ठंडी बूंदें उसकी आँखों से ठुड्डी तक लुढ़की। “लेकिन कई लोग हैं, जिनके पास जाने के लिए कोई विकल्प नहीं हैं।”
“इसका मतलब है, अब मेरे लिए कश्मीर में कुछ नहीं बचेगा।” मैंने ठण्डी साॅस छोड़ी। “लेकिन मैं तेरे लिए खुश हॅू। एक नयी जिन्दगी के लिए शुभकामनायें।” मेरे लिए मुस्कुराना कठिन था।
“धन्यवाद।” उसने अपने आॅसू पोंछते हुए कहा- “हम अब और डर में नहीं जीना चाहते। हमारी भी जिन्दगी है, और भविष्य और महत्वाकांक्षाएं हैं। हमें एक सुरक्षित जगह की जरूरत है जहां हम अपने भविष्य पर ध्यान दे सकें।”
हम दोनों कुछ देर चुप रहे। मुझे महसूस हो रहा था कि उसे मुझसे कुछ कहना है, लेकिन वह समय ले रही थी। “क्या?” मैंने आखिरकार पूछा
“रिहान भी इसमें शामिल था।” उसने शिकायत के एक तरीके से बताया। उसकी आँखें उसकी जीभ से ज्यादा बोल रही थीं। उसने अपना सर झुका लिया।
“क्या?” मैंने पूछा। “क्या मतलब? ये सब उसने किया है?” उसने खाली चेहरे के साथ सिर हिलाया। “नहीं।” मैंने हाथों से अपना मुंह ढक लिया और एक तरफ चली गयी।
“वह यहीं था जब आंटी को गोली मारी गई।” उसने कहा। “मैंने खुद देखा है उसे इस घर से निकलते और अपने गिरोह के साथ भागते हुए।” वह बताती रही।
मैंने अपने हाथों को पैरापेट दीवार पर टिका दिया और अपनी हथेली को उसके ऊपर दबा दिया। मैं सिर से पैर तक काॅप रही थी। एक लंबे समय के बाद मुझे उसके बारे में कुछ सुनने को मिला था। मुद्दत बाद वह याद आया। दो चमकदार नीली आँखें ... एक प्यारी सी मुस्कान ... एक गिटार ..और कुछ दूधिया उंगलियाॅ जो उसके तारों को झनझना रहीं हैं। “रिहान-? यह संभव नहीं है।” मैंने इनकार किया। मैं कभी किसी को लेकर इतनी भ्रमित नहीं हुई थी जितनी कि रिहान को लेकर। पहली बार लगा कि मैं लोगों को समझती नहीं हूॅ। मैं शायद फर्क नहीं कर सकती कि लोग क्या दिखते हैं और असल में क्या हैं?
रात उसके शब्दों के साथ और गहरी होती चली गयी।