मैने वही किया जो उसने मुझे करने को कहा था। मैंने चलने की कोशिश की। मैं थोड़ी मुश्किल से ही सही लेकिन चल सकती थी। मेरा सिर अभी भी भारी दर्द में था और मैं बहुत बीमार महसूस कर रही थी। मेरी नसों में एक तीखा दर्द दौड़ रहा था। जब से मैं यहाॅ थी, मैं दर्द में थी। मैंने एक दर्द निवारक दवा खा ली। अचानक मैंने पहली मंजिल से चींख और शोर सुना। मैं खिड़की पर लपकी और आड़ से बाहर देखने लगी। उस वक्त तक तो बाहर कुछ ना दिखा लेकिन यह निश्चित था कि ऊपरी मंजिल पर कुछ हुआ है। जल्द ही हलचल बढ़ गई थी। मैंने पदचाप सुने। शायद वे दो या दो से अधिक थे। वे सीढि़यों से नीचे उतर रहे थे। मैंने खिड़की के कोने से देखा कि अश्वश्री और वे दोनों लड़के आतंकवादियों के साथ एक काले रंग की कार की तरफ बढ रहे थे। वे सभी रो रहे थे और भयभीत लग रहे थे। कार आंगन के बीच में खड़ी थी। जैसे ही वे कार तक पहुँचे, उन आतंकवादियों ने उन्हें जबरन धकेल दिया और दरवाजे बन्द कर दिये। वे आंतकवादी खुद उस कार में नहीं बैठे। बाहर ही खड़े रहे।
इससे पहले कि मैं अपनी आंखों पर विश्वास कर पाती, कार कोहरे और बर्फ में गायब हो गई। “हे ईष्वर।” मैं यह पता नहीं लगा सकी कि उन्हें कहाँ ले जाया जाएगा? सोच-सोचकर मेरा दिमाग घूमने लगा। मैंने अपना सिर पकड़ लिया और कोने में वहीं दुबक कर बैठ गयी।
दर्द निवारक दवा मेरे खून में काम करने लगी थी। मेरा शरीर शिथिल हो रहा था और इससे पहले कि मैं अपनी आँखें बंद कर पाऊं, मुझे लगा कि मेरे खून में ठंडक बढ़ रही है। एक ठंडा और शांत अंधेरा पूरे कमरे और मुझे अपने में समेटता जा रहा था। मुझे सुकून महसूस हुआ। उस समय मैं वास्तव में भागना या बचना नहीं चाहता थी ...या रिहान या विदुर या अष्विश्री के बारे में सोचना नहीं चाहती थी, कुछ भी नहीं करना चाहती थी, बस सोना चाहती थी। मैं मरने की हद तक थकन महसूस कर रही थी। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं।
ठंडी हवा के झोंके ने मेरी त्वचा को सहला कर मुझे झकझोर दिया। जब मैं जागी तो मैंने एक खिड़की से बाहर आकाश में चन्द्रमा और तारे देखे। यह आधी रात नहीं थी, मुझे लगता है क्योंकि चंद्रमा आकाश के केंद्र में नहीं था। सबसे पहली बात जो मेरे मन को याद थी, वह थी विदुर और अगली थी रिहान जो शायद मुझे लेने आयेगा लेकिन कब? मुझे ज्यादा इंतजार करने या सोचने की जरूरत नहीं पडी।
जल्दी ही दरवाजा खुल गया।
काले लबादे में लिपटा एक आदमी अंदर आया। उसका चेहरा एक आतंकवादी की तरह ही ढंका हुआ था। उसने एक मफलर, एक मंकी कैप पहना हुआ था। मैं जल्दी से खड़ी हो गयी। मैंने उसे पहचानने में देर नहीं की। हाँ, यह रिहान था। मैं उसे इस तरह देखकर चैंक गयी। ऐसा नहीं था कि, मैंने उसे कभी भी लबादे पहने हुए नहीं देखा था लेकिन यह पहली बार था जब वह अपने वास्तविक रूप में दिखायी दिया मुझे। वह मारने या मरने के लिए तैयार लग रहा था, बहुत चैकस और सुरक्षात्मक।
हालाँकि, उसे पता था कि मैं वहीं हूॅ लेकिन उसने मेरी तरफ नहीं देखा। उसने एक चाबी ली जो दरवाजे के पिछली तरफ एक कील से लटक रही थी। फिर वह बक्सों के पास गया। वह सब कुछ इस तरह से कर रहा था, जैसे उसे किसी बोर्ड मीटिंग के लिए देर हो रही हो। वह बेहद जल्दी में था।
मेरी निगाहें उसका पीछा करती रहीं। “अश्विश्री और लड़कों को कौन ले गया?” मैंने उसकी ओर बढ़ते हुए पूछा।
उसने बक्से का ताला खोला। मैं यह देखकर चकित रह गयी कि बक्से में हथियार थे। बक्सा बम और बंदूकों और पिस्तौल और गोलियों जैसी चीजों से लगभग भरा हुआ था। उसमें कुछ ऐसे हथियार भी जिन्हें मैने पहले कभी नहीं देखा था, ना ही मुझे उनके नाम पता थे। रिहान ने एक पिस्तौल ली, और उसे अपने लबादे के अन्दर छुपा लिया। साथ ही कई गोलियां भी उसने अपने साथ ले लीं।
“तुम क्या कर रहे हैं?”मैंने पूछा और उसके बगल में खड़ी हो गयी। वह पहले की तरह व्यस्त था। “मैं तुमसे बात कर रही हूँ?” उसने अब मेरी तरफ देखा। “तुम क्या कर रहे हैं?” मैंने अपना प्रश्न दोहराया
“वही जो तुम मुझसे करने के लिए कहती थीं।” मैंने उसकी ओर आँखें उठाकर देखा। “मैं तुम्हें यहाँ से ले जा रहा हूँ।”
“क्या? लेकिन कैसे?” अंत में, मेरे दिमाग ने फिर से काम करना शुरू किया।
उसने अपने हाथों को अपनी छाती पर बाॅधकर मुझे एक पल को ताका। “मैं जानता हूॅ कि तुम्हारे पास बहुत सारे सवाल होगें लेकिन फिलहाल हमें यहाँ से निकलना है।” कहते हुए उसने एक लबादा मेरी तरफ भी बढ़ा दिया। मैंने उसे देखने में वक्त बर्बाद नहीं किया और ना ही ये सोचने में कि उसे कैसे पहनूॅगी या पहन कर मैं कैसी दिखूॅगीं? लेकिन पहनने से पहले मै अटक सी गयी। रिहान वहीं था। “पीछे मुड़ो।”
वह थोड़ी देर तक मुझे देखता ही रहा। “तुम ऐसे ही-,” एक साॅस भरते हुए उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी। “इसे अपने कपड़ों के ऊपर ही पहन सकती हो।”
“ओह-!” वह सही था। मेरे लिए वह लबादा बहुत ढीला था। मुझे एक पल नहीं लगा उसे पहहने में। फिर उसने झट से मेरे सर के ऊपर एक कपड़ा लपेट दिया और मेरे चेहरे को भी ढँक दिया। उसी तरह उन्होंने अपना चेहरा ढका हुआ था। केवल मेरी आँखें देखी जा सकती थीं। “सहज रहो।” वह चाहता था कि मैं उनमें से एक की तरह दिखूं-, आत्मविष्वास से भरी हुई।
उसने दूसरे बक्से का रूख किया और उसका ताला खोला। वहाॅ से एक लम्बी दुनाली निकाल कर मेरे कन्धों पर उसी तरह पहना दिया जैसे उसने खुद पहनी थी। अब मैं तैयार थी। उसने एक कदम पीछे लिया और मेरी तरफ देखा। वह निराश लग रहा था। “अब क्या?” मैंने पूछा
“तुम-,” हाथों से मेरे कद को नापते हुए-“थोडी छोटी हो।” उसने तर्जनी अपने मुस्कुराते हुए होठों पर रख दी।
हां, मैं कद में उन सब से छोटी थीं सिर्फ पांच फीट और पांच इंच की। उसने चारों ओर देखा। वह कुछ खोज रहा था लेकिन नहीं मिला। उसने थोड़ा सोचा और अचानक उसने अपने जूते उतार दिए। “इसे पहनो।” उसने उन दोनों को मेरे पास उछाल दिया
मैंने नहीं पूछा- क्यों, क्या-, कहाँ या कुछ भी। मैंने वही किया जो उसने कहा था। मेरे पास कोई विकल्प नहीं था।
यह सब करने के बाद उसने मुझे एक बार फिर से देखा। “थोडा चलकर दिखाओ।” मेरे दोनों पैरों में दर्द था। इसके अलावा उसके जूते मेरे पैरों मेे फिट भी नहीं थे। मेरी चाल ठीक नहीं थी। “हमारी तरह तन कर चलने की कोशिश करो। झुकना मत।” उसने कहा।
मैंने सीधे चलने की कोशिश की। यह सब बातें करते हुए, वह मेरे पास आया और मुझे सिर से पैर तक देखा। मैं भी सीधे उसकी आँखों में देख सकता था। उसके जूतों के साथ, मेरा कद कुछ इंच बढ़ गया था लेकिन उसके साथ चलना आसान नहीं था। “मेरे बाद चलना और एक भी शब्द नहीं बोलना।” उसने दरवाजे की ओर दो कदम उठाए और अचानक पीछे मुड़ गया- “खांसी या छींक तक नहीं।” वह मुझसे ज्यादा चिंतित लग रहा था। मैंने सिर हिलाया और उसके पीछे हो ली।
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मैंने दहलीज पार की और पाया कि बरामदा लगभग आतंकवादियों से भरा था। वे सभी किसी खास मकसद के लिए इकट्ठे हुए थे। वे स्थानांतरण या ऐसा ही कुछ करने की बात कर रहे थे। मैं रिहान के पीछे थी, लेकिन मेरी नजर यहां पर सभी पर जा रही थी। रिहान ने मुझे उनकी तरह ही कपड़े पहनाए, क्योंकि वह चाहता था कि मैं उनके साथ आऊँ, या उसका कोई और कारण था? क्या रिहान ने मुझे सच बताया? क्या वह सचमुच मुझे इसमें से निकाल रहा था या यह मेरे काम का हिस्सा था?
मैंने सिर्फ अपना मुंह बंद रखा और उसके कदमों का अनुसरण किया। जैसी कि उम्मीद थी, उनमें से कई हमारे रास्ते में आए। बाहर जाते समय एक-दूसरे को गले लगाना उनकी एक आम रस्म थी। उनमें से एक रिहान के बाद मेरी तरफ बढ़ गयसा। “अब क्या?” मैं अपनी जगह पर रुक गयी, सोच रही थी कि क्या करू इतने में रिहान हमारे बीच आ गया। “हमें देर हो रही है।”
इस घर के आंगन में वही वैन खड़ी थी, लगभग घास और झाड़ी में छिपी हुई। रिहान ड्राॅइवर की सीट पर बैठ गया और मैं उसके बगल में बैठी। हम दोनों ने वैन में बैठने के बाद एक गहरी सांस ली। “तुम ठीक हो?” मैंने सिर हिलाया। उसने रियर व्यू मिरर पर अपनी नजर रखते हुए इंजन चालू किया।
हमने उस मनहसू घर को पीछे छोड़ दिया गया था। पूरी तरह से पेड़ों और कोहरे में छिपा हुआ वह घर हर पल दूर जा रहा था और मैं राहत की साॅसें ले रही थी।
जब हम उससे लगभग आधा किलोमीटर पहुॅच गये। “हम कहाँ जा रहे हैं?” मैंने रिहान से पूछा।
“तुम्हारे घर।” उसने इत्मिनान से जवाब दिया।
मैंने अपनी आँखों को विंडशील्ड पर घुमाया। “मुझे उम्मीद है कि तुम मुझसे झूठ नहीं बोल रहे हैं, कि विदुर सुरक्षित है और मेरे घर पर ही है।” उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया और वैसे ही गाड़ी चलाता रहा। “क्या तुम मुझे यकीन दिला सकते हो इस बात पर?”
उसने ब्रेक दबा दिए। एक तेज झटके ने हम दोनों को हिला दिया। उसने मुझे देखा। “मुझे गाड़ी चलाने दोगी?”
“नहीं, पहले मुझे सच बताओ।” मैंने उसके चेहरे पर वही बंदूक तान दी जो उसने मुझे चलने से पहले दी थी। “क्या ये मेरे काम का हिस्सा है?”
उसने बिना किसी डर के मुझे कुछ देर तक देखा। “अब तक सब को खबर हो गयी होगी कि तुम वहाॅ नहीं हो।” उसने एक साॅस में कह दियस। “विदुर जिन्दा है लेकिन खतरे में हैं।”
“गाड़ी चलाते रहो-,लेकिन साथ ही बताते भी रहो।” मैने अब भी बन्दूक की नली नीचे नहीं की।
उसने बैरल पर एक लापरवाह नज़र डाली। “वो तुम्हारी कमजोरी जान चुके हैं। हमारा एक आदमी विदुर पर नजर रखे हुए है।”
“बताते रहो?”
“वह घर पर महफूज़ था लेकिन अब नहीं है, क्योंकि तुम अब कैद नहीं हो।”
“क्या?” मैं जैसे किसी भूल-भुलैया में चकरा गयी थी। कैान सा रास्ता सही है और कौन सा गलत, तय नहीं कर पा रही थी? “आखिर तुम लोग मुझसे चाहते क्या हो??”
उसने मुस्कुराते हुए अपने कंधे उचका दिए। “तुम उसके लिए पहले ही रजामंदी दे चुकी हो। अब पूछने का क्या मतलब है?” मैं अब भी उसे कुछ असमंजस में देख रही थी। “वे चाहते हैं कि तुम एक मानवबम बन कर कुछ स्थानीय मंत्रियों को मारने का उनका मकसद पूरा कर दो। अभी दो चार दिनों के भीतर यहाॅ के सभी मंत्रियों की एक खास बैठक होनी तय है।”
“लेकिन मैं ही क्यों?” मैंने जोर दिया “अब कहाॅ गये तुम्हारे वह भक्त जो पहले ही अपना जीवन और लहू जिहाद के लिए कुर्बान कर चुके है?”
उसके होंठ मुस्कुरा गये। “पहली बात ये कि ये काम जिहाद का हिस्सा नहीं बल्कि नोट कमाने का तरीका है। विपक्ष अक्सर हमें इस तरह के कामों का अन्जाम देने की तगड़ी रकम देता है।”
“और दूसरी बात?”
“दूसरी बात ये कि मेरे पहचान-पत्र वहाॅ काम नहीं कर पाते।” मैं यह सुनकर हैरान रह गया। वह अपने बारे में बात कर रहा था। यानि कि मुझे या उसे मानवबन बनकर उस काम को पूरा करना ही था? “हमें एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जिसकी पहचान वैध हो। जो बिना किसी शक के सुरक्षा में सेंध लगाकर उस बैठत तक पहुॅच सके।” उसने कहना जारी रखा मानों वह मुझे कोई परी कथा सुना रहा हो।
“और उन्होंने मेरे पति को बंदूक की नोक पर रख दिया, ताकि मैं मना न कर सकूं।” मैं विचारशील थी।
”बेशक।” उसने एक बार फिर अपने कंधे को उचकाया और बैरल को नीचे कर दिया जो मैं अभी उसके चेहरे पर ताने हुई थी। “यह लोड नहीं है।”
“उफ!” मैं शर्मिन्दा सी हो गयी। मैंने अपना गला साफ किया और अपनी बंदूक गोद में रख ली।
ये मेरे साथ क्या हो रहा है? मैंने अपने चेहरे से कपड़ा हटाया और गहरी साँस ली। मैंने अपने जीवन में पहले कभी इतना असहाय महसूस नहीं किया होगा। मैंने पीछे की सीट पर कपड़ा फेंक दिया और तनाव में अपना सिर थाम कर बैठ गयी। अब पूछने के लिए जैसे कुछ भी नहीं बचा था मेरे पास।
रिहान ने वैन एक जगह रोक दी। मैंने विंडशील्ड से बाहर देखा। हम अभी भी जंगल में थे। मैं पूछ सकती थी कि क्यों, कब- क्या, लेकिन वह पहले से ही वैन से बाहर था। उसने पीछे की सीट से एक नंबर प्लेट उठायी। “तुम भी बाहर आ सकती हो।”
मैंने तरफ का दरवाजा खोला और बाहर कदम रखा। सात दिनों के बाद मैं खुली हवा में था ... निडर और मुक्त। मैंने आसमान की तरफ देखा। मैंने बादलों और चाँद और सितारों को देखा। जंगल में अभी भी कहीं-कहीं बर्फ थी। हवा सुन्न कर देने की हद तक ठण्डी और अपने साथ जंगल की महक को लेकर बह रही थी। मैं देख सकती थी उन अनगिनत जुगनुओं को जो हमारे चारों ओर झिलमिला रहे थे।
रिहान ने अपने चेहरे से नकाब और लबादा उतार कर पीछे की सीट पर रख दिया। मैं खुश था या दुंखी या सदमे में उसे फिर से रिहान की तरह देखकर। चांदनी में, वह छह साल पहले की तरह ताजा और निष्पाप दिख रहा था। मैं उसे पुराने दिनों की तरह देख कर मुस्कुरा गयी। उसके चेहरे पर वही आकर्षण था और उसकी आँखों में फिर वही चमक। मैं मुस्कुरा रही थी जब भी उसके नरम बाल उसकी हर हरकत के साथ लहराते। उसने सफेद कमीज पहन रखी थी-, वही भूरी जैकेट-, नीली नीली जींस और मफलर भी-,लेकिन जूते नहीं थे।
“कोई जूते नहीं?” मेरे मन ने कहा और अचानक मैंने अपने पैरों की ओर देखा। मैं उसके जूते कैसे भूल सकती थी? वह उस वैन पर नंबर प्लेट लगाने के लिए कंकडीली़ जमीन पर नंगे पाॅव ही चल रहा था अब तक, बिना षिकन के।
“मुझे लगता है तुम्हें अपने जूते वापस लेने चाहिए। मैं इसमें सहज नहीं हूँ।”
उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उसने मुझे या जूतों को देखा तक नहीं। वह अपना काम करता रहा। “तुमने किस ने इतना बदल दिया रिहान?” मैंने अपना हाथ सीने पर बाॅधें वैन के सहारे पीठ टिकाये खड़ी हो गयी।
उसने नंबर प्लेट लगाई और मेरे पास आया। वह मेरे सामने था। अपने हाथों में स्क्रू ड्राइवर को धीरे-धीरे उछालते हुए उसने कुछ विचार किया-“मुझे पता नहीं।” उसकी आँखें कुछ समय के लिए उसकी पिछली यादों में खो गईं और जल्द ही लौट आयीं। “मैं वाकई तुम्हें बताना चाहता हूॅ-,” वह धीरे से मुझ पर झुक रहा था और यहाॅ मैंने अपनी सांस रोक ली। वह क्या कर रहा है? उनका दाहिना हाथ मेरी दिशा में बढा और मुझे यकीन था कि वह मुझे छूने को, लेकिन- “लेकिन हमारे पास अभी समय नही है।” मेरी तरफ बढ़ रहे उसके हाथ ने मेरे लिए वैन का एक दरवाजा खोल दिया।
मैंने अपनी सांस वापस ली। मेरे मन ने मुझसे पूछा कि क्या होता अगर वह वाकई ऐसा कुछ करने की कोषिष करता? मै शादीषुदा हूॅ-, कहते हुए मैंने अपना सिर झटका और अंदर बैठ गयी।
हम कुछ पलों के लिए मौन रहे और - “अब तो मुझे बता सकते हैं।” मुझे यह जानने में दिलचस्पी थी ... या शायद मैं उनकी कहानी जानने के लिए तडव रही थी।
उसने अपना गला साफ किया। “क्या तुम मुझ पर यकीन करोगी?” उसने मेरा चेहरा पढ़ते हुए पूछा
“मैं कोशिश करूँगीं।” मैने जवाब दिया
“मुझे याद नहीं कि मेरे साथ क्या हुआ था? मैंने चीजों को इतना गलत क्यों समझ लिया?” वह अपने विचार में डूब सा गया। उसने मुझे देखा। “मैं तुमये बहुत प्यार करता था। मैं तुम्हारे साथ और अपने परिवार के साथ बहुत खुश था। अपने दोस्तों के साथ लेकिन- “ अपने होठों को काटते हुए उसने कुछ सोचा। “क्या तुम्हें याद है कि मुझे एक मजहबी टूर पर भेजा गया था?” मैंने उस पर नजर रखते हुए हाॅ में सिर हिलाया। वे सारे दृश्य मेरी आंखों के सामने आज भी थे। “और कोई नही बल्कि मेरे पापा ही थे जो चाहते थे कि मैं वहाँ जाऊँ। उन्होनें मुझे मजबूर किया।” उसने कहा “मैं उनकी खुषी के लिए वहाॅ गया।” एक पल को उसके लव्जों का प्रवाह टूटा। “वह सब मेरे मुताबिक नहीं था फिर भी मुझे वहाॅ अच्छा लगा। सब कुछ इतना पाक और खुषनुमा था। मैं हाफिजों और उनके शब्दों से प्रभावति हो गया। मैं कभी उस खुषबू को भी नहीं भूल सकता जो वहाॅ बिखरी होती थी लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, कुछ बदल गया। ” उसने मेरी ओर देखा। “उन्होंने हमें हमारे समुदाय के बारे में बताना शुरू किया। उन्होंने हमें दर्जनों हिंसक वीडियो दिखाए। उन्होंने हमें बताया कि हमारे समुदाय के लोग दुनिया भर में मारे गए हैं। महिलाओं और बच्चों के साथ बलात्कार किया जाता है और उन्हें बेरहमी से मार दिया जाता है।” उसने दर्द में अपनी आँखें बंद कर लीं। “काश, मैं उन विडीयों के पीछे का सच देख पाता।”
मैंने अपना सर झुका लिया। मेरे पास कहने के लिए कोई शब्द नहीं था। उसने मेरी ओर देखा। “क्या तुम विश्वास करोगी अगर मैं कहूँ कि यह सब मेरे पापा ने ही किया था?”
एक और चैंकाने वाली बात जो मुझे पता चली। “वह ऐसा क्यों करेगें?”
“वह चाहते थे कि मैं तुम्हें भूल जाऊॅ लेकिन-” उसने बात अधूरी छोड़ दी। “उन्होंने यह मेरे बेहतर कल के लिए किया और उन्हें कभी नहीं पता था कि वह अपने बच्चे को दोज़ख में झोंक रहे हैं।”
हम कुछ पलों के लिए चुप हो गये। “क्या तुमने कभी इस सब से बाहर निकलने की कोशिश नहीं की?” मैंने पूछा।
उसने विंडशील्ड से बाहर देखते हुए अपने होंठों पर जीभ फेरी। “हाॅ, मैं सब छोड़ देना चाहता था लेकिन इसलिए नहीं कि मैं उनके खिलाफ था, बल्कि इसलिए कि मुझे लोगों को मारने से नफरत है। मैं बहुत पहले समझ चुका था कि जि़हाद का मज़हब से कोई वास्ता नहीं है।”
“फिर भी जिहाद के नाम पर जान ले लेते हो?”
उसने एक भारी साॅस छोड़ी। “हम में से ज्यादातर लोग कभी स्कूल ही नहीं गए अरन्या। मौलवीयों ने जो कुछ भी बताया, वही हमारे लिए सच है। ज्यादातर बच्चे गरीब परिवारों से हैं और वे अपनी आजीविका के लिए कुछ भी करते हैं। हम में से अधिकांश के लिए तो यह एक व्यवसाय है।”