वह आदमी दुकान तक गया और मेरा थैला उठा लाया। उसने इसे मेरे चेहरे पर फेंक दिया और मेरे जाने का इंतजार करने लगा। मैंने एक बार दुकान पर नजर डाली। मुझे उस गरीब दुकानदार की चिंता थी, जो हर गुजरते पल के साथ मर रहा होगा। “प्लीज़ मुझे उसकी मदद करने दो?” मैं मुष्किल से बोल पा रही थी। “एक-,एक बूढे को मार कर क्या मिलेगा, जिसके दिन पहले से ही गिने जा रहे हैं?”
जवाब में उसने ट्रिगर खींचना शुरू कर दिया और मुझे उसी वक्त महसूस होने लगा जैसे कि एक सुलगता लोहा मेरे सिर के पार हो गया लेकिन- “रूको!” एक आवाज ने मुझे चेताया लेकिन मैं हिलने तक ही हालत में नहीं थीं। आंतक ने मुझे मेरी जगह पर जड़ कर दिया था। “तुम्हें अभी वापस जाना है!” उसका एक अन्य साथी मेरे पीछे से आया और इससे पहले कि मैं महसूस कर पाऊं कि अभी जिन्दा हूॅ या नहीं, उसने मुझे एक सफेद वैन की पिछली सीट पर फेंक दिया।
“नहीं!” मेरे गालों पर पसीना आ गया। वह आदमी ड्राइवर सीट पर बैठा , जबकि दूसरा भाग गया और धुंधली सड़कों पर गायब हो गया। “ये तुम क्या कर रहे हो ??“ मैं चिल्लायी! “कहाँ ले जा रहे हो मुझे?” उसने मेरे सवालों पर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी। उसने सिर्फ मेरा सेल फोन लिया और गाड़ी चलाना करना शुरू कर दिया।
पीछे छूटती हुई सड़क पर मैंने एक घोषणा सुनी, तुरंत जगह खाली कर देने के लिए। मैंने तेजी से चलने वाली जीपों के सायरन और आवाज सुनी। वह भारतीय सेना थी, जिसने सिर्फ एक मिनट में जगह को कवर किया और मैं कितनी बदकिस्मत थी कि मुझे उनकी मदद नहीं मिल सकती थी। उस बंद गाडी में मैं केवल अपने आप पर रो सकती थी-, हाथ-पैर गाड़ी के हिस्सों पर मार सकती थी और उस आदमी के बाल खींच सकती थी। पिछले 15 मिनटों में जो कुठ बीता था उसमें सिर्फ एक ही बात थी जिसकी खुषी थी मुझे -,कि उस दुकानदार को अस्पताल ले जाया गया होगा।
लेकिन मेरा क्या? क्या वह मेरा बलात्कार करेगा? क्या वह मुझे मार देगा, या यदि वह नहीं करता, तो क्या वह मुझे सालों तक कैदी बनाकर रखेगा? मेरा दिल धक रह गया! उस स्थिति को ब्यान के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है ...लेकिन मैं केवल इतना कह सकती हूॅ कि अगर मुझे बंदूक मिल जाती तो मैं निश्चित रूप से उसकी या फिर अपनी जान ले लेती। सच में जो हो सकता था उससे तो मर जाना ही बेहतर होता-“मुझे मार डालो!” मैं चिल्लायी। उसने जवाब नहीं दिया। “या तो मुझे मार दो या छोड़ दो आई से!” मैं फिर से चिल्लायी। वह पहले की तरह ही रहा और तेजी से गाड़ी चलाता रहा। मैं बहुत असहाय हो गयी और फिर सिवाय रोने के अन्य कोई विकल्प ना बचा। मुझे विदुर की कितनी बुरी याद आ रही थी, जो मेरा इंतजार कर रहे होगें और मैं चाहती थी कि उन्हें बता सकूं कि अब शायद मैं कभी वापस नहीं आऊंगी।