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कभी

28 मई 2022

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मैं एक बार फिर हार गयी थी।

मैंने अपनी मुट्ठी फर्श पर मार दी। मैं थोड़ी और देर रस्सी को क्यों नहीं थामे रह पायी? उसकी गर्दन केवल एक निषान के साथ आजाद हो गयी थी। “ह-मजादी! आज बताता हूॅ तुझे!” उसने मेरी पीठ पर लात मारी। मैं अपने घुटनों के बल गिर गया। इस वार ने मुझे ऐसा महसूस कराया, जैसे कि मेरे फेफड़े मेरे मुंह तक आ गए हों। मुझे तुरंत तेज दर्द महसूस हुआ। जब तक खुद को सम्हालकर नजरें उठा पाती तो देखा कि चीफ ने अपनी बंदूक मेरे चेहरे पर तानी हुई है। मैं अभी तक हाॅफ रही थी। चेहरा पसीने से चमक रहा था। मैंने धीरे से उसे देखा ... सीधे उसकी आँखों में। वह खून और आग से भरी र्हुइं थीं। मेरे होंठ उसे देखते हुए मुस्कुरा गये क्योंकि वह मुझे गोली मारने वाला था। मैं इसके लिए तैयार थी। मैं उसकी आँखों में देखती रही। वह ट्रिगर खींच रहा था और उसी क्षण दरवाजा खुला। “जनाब।”

मैं इस आवाज के साथ पीछे मुडी। “रिहान?” चीफ और मैंने एक साथ कहा।

रिहान दरवाजे पर था। उसके चेहरे से दाढ़ी से साफ थी। गहरे नीले रंग की जींस, भूरे रंग की चमड़े की जैकेट और उसकी खुली हुई चेन के बीच लटकता खूबसूरत मफलर। 

चीफ ने उसे देखते ही शायद गोली दागना भूल गया। “जल्दि वापस आ गए?” उसने थोड़े विस्मय के साथ पूछा।

“कुछ है जो इससे ज्यादा जरूरी है।” वह मेरे बारे में बात कर रहा था। उसके हर शब्द के साथ भाप हवा में मिल रही थी।

चीफ ने उसे अंदर आने के लिए इशारा किया। जब वह मेरे पास से गुजर रहा था तो मैंने देखा कि उसकी आँखें मुझ पर टिकी हुई थीं, जैसे कि वह विश्वास ही नहीं करता था कि यह मैं ही हूॅ। जाहिर था कि वह मुझे यहाँ देखकर एकदम चैंक गया है। उसकी मूक दृष्टि में बहुत सारे सवाल थे। समझना मुष्किल था कि वह मुझे यहां देखकर खुश था या दुंखी? हमारी आँखें बस एक बार मिलीं और मैंने एक अजनबी को देखा जो केवल मेरी स्थिति के बारे में अनुमान लगा सकता था।

“क्या हुआ?” चीफ ने पूछा और अपने बिस्तर पर बैठ गया।

“सुरक्षा लगभग दोगुनी है। हमें यहाॅ के किसी स्थानीय व्यक्ति के पहचान पत्र की जरूरत होगी।” रिहान ने उसे बताया।

मैं उन दोनों की बातों को पूरे गौर से सुनकर समझने की कोषिष कर रही थी। उनकी पहेलियों का मतलब निकालने की कोषिष कर रही थी। रिहान मेज के सहारे खड़ा था, चीफ के बगल में। उसकी आँखें घूम-फिर कर मुझ पर आ रही थीं। मुझे नहीं पता क्यों?

“और शिकार के बारे में क्या खबर है?” चीफ ने पिस्तौल बिस्तर पर रख दी

रिहान ने अपनी बाहें अपनी छाती पर बाॅध लीं और थोड़ा आगे की ओर झुक गया। “कल या परसों तक।”

“सौ प्रतिशत?” चीफ ने पूछा

“नब्बे प्रतिशत।” रिहान ने वाक्त पूरा किया “खबर केवल खबर होती है।”

चीफ के माथे पर कुछ महीन रेखाएँ उभर आयीं। उसकी आँखें एक कोने से दूसरे कोने तक दौड़ रही थीं, जैसे वह कोई रास्ता खोज रहा हो। और जब उसे बाहर निकलने का रास्ता मिला तो वह झटके से उठ खड़ा हुआ। धीमी आवाज में वे कुछ बातें करते रहे। मैं बस आखिरी वाक्य समझ सकी कि उसे अभी यहाॅ से रवाना होना होगा।

वह कमरे से बाहर जा रहा था कि मेरे पास ठिठका। वापस जा कर अपनी पिस्तौल हाथ में ली और मुझ पर फिर से निषाना साधने को था कि -“मेरे पास इससे बेहतर विकल्प है।” रिहान ने कहा।

चीफ के हाथ कुछ सोचकर नीचे हुए। उसने रिहान के दॅाहिने कंधे पर हाथ रखा -“मुझे तुम पर भरोसा है। जो ठीक लगे, करो।” उसकी जलती हुई आँखें मेरे शरीर के हर इंच को जलाने की कोशिश कर रही थीं। अपने शॉल को कंधे पर रखकर वह कमरे से बाहर निकल गया।

Û Û Û Û Û Û

मैंने राहत के साथ अपनी आँखें बंद कर लीं, और जब मैंने इसे खोला, तो मैंने रिहान को किसी तरह की दुविधा में पाया ... वह आँखें मेरे चेहरे से चिपकी हुई थीं। कुछ सवाल अभी भी उसकी नीली आँखों में थे।

हम दोनों थोड़ी देर तक एक-दूसरे को घूरते रहे।

रिहान मेरे साथ वहाँ कमरे में अकेला बचा। उसने एक शब्द भी नहीं कहा। वह दुंखी और शांत और परेषान सभी कुछ एक साथ लग रहा था। मुझे पता था कि वह अपने चीफ की आज्ञा का पालन जरूर करेगा। “तुम्हें तो खुष होना चाहिये। पहले तुमने मेरी माँ को मारा और अब मुझे मारोगे।” 

“क्या बकवास कर रही हो??”उसने कहते हुए अपनी जगह बदल दी

मैंने उठने की कोशिश की लेकिन मेरी रीढ़ तेज दर्द से कांपने लगी। मैं अपने आप को संतुलित नहीं कर सकी और फिर अपने घुटनों पर गिरने को थी कि वह तेजी से मेरे पास आया। उसने अपनी बाँह मेरे बाएँ कांख से दायीं ओर अडा ली। अपनी बांह को मेरी कमर पर लपेटते हुए उसने मुझे पकड़ लिया और मुझे लगा कि मैं हवा में उठ रही हूॅ। मैं अपने पैरों पर नहीं थी लेकिन मैं खडी थी। लंबे समय के बाद मैंने उसे इस तरह देखा होगा....बिना दाढ़ी के। वैसे ही मासूम और लुभावने चेहरे के साथ। उस रात वह लगभग छह साल पहले की तरह दिख रहा था। “तुम ठीक हो?” उसकी चिन्ता मुझे कोई बनावट नहीं थी लेकिन मैंने उसे एक हाथ की दूरी पर पीछे धकेल दिया।

“तुमने क्या किया?” 

उसके सवाल का जवाब देना मैने जरूरी नहीं समझा। मैं उसके सामने खामोष खड़ी रही। वह उस रस्सी को उठा लाया और मेरे हाथों पर रखते हुए-“मैंने उसकी गर्दन के चारों ओर एक निशान देखा है और मुझे यकीन है कि यह वही रस्सी है।”

“तुम सही समझ रहे हो।” मैंने उसकी आँखों में देखा। “मैंने उसका गला घोंटने की कोशिश की।”

“या रब!” उसके होंठ खुल गये। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और अपना चेहरा छत की तरफ कर लिया और फिर उसने अपना सिर झुका लिया। “तुमने उसे मारने की कोशिश की-,” उसने कई बार अपना सिर अफसोस के साथ हिलाया। “तुम ने उसे मारने की कोशिश की।” वह कमर पर हाथ रखे हुए उसने गहरी साँस ली। 

मैं उसे विस्मय से देखे जा रही थी। उसने एक बार भी ये नहीं पूछा था कि मुझे ऐसा क्यों करना पड़ा। रिहान की आॅखें मुझपर लौटीं। “तुम ये सब मेरे लिए मुष्किल क्यों बना रही हो?” 

“मैं इसे मुश्किल नहीं बना रही...बल्कि मैं तो इसे आसान बना रही हॅू। ”

“हाँ, बिल्कुल।” वह बाईं ओर मुड़ गया जैसे कि वह कुछ करने वाला है, लेकिन उसे सही शब्द नहीं मिल रहे।

“सोच क्या रहे हो? उसके हुक्म की तामील करो। मार दो मुझे।”  उन हालातों में मैं सच में ये चाहती थी कि कोई मेरी जान ले ले। 

उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। “मुझे पता है कि तुम क्या चाहती हो?”उसने कहा।  “दरवाजा खुला है ... मैं वादा करता हूॅ कि मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा। जाओ।” 

मैंने अपने पीछे देखा ... हाँ, दरवाजा खुला था और मुझे पहले से ही पता था, लेकिन मैंने एक इंच भी हिली नहीं। वह मेरे करीब आया। “अरन्या, यहाँ से भागना कोई विकल्प नहीं है। तुम्हें सही समय का इंतजार करना चाहिए। ”

“और मैं उन्हें मेरे साथ बलात्कार करने की अनुमति भी दे दूॅ?” मैंने उसें अवाक कर दिया। “मैंने तुमसे पहले ही कह दिया था कि मुझे यहाँ रखने के बजाय मुझे मारना आसान है।”

उसने इस बार मुझे अनसुना कर दिया। उसने दरवाजे की ओर कुछ तेज कदम उठाए और वहाँ से उसने एक नाम पुकारा...शायद अफजल। और फिर वह मेरे पास वापस आया। वह मेरे सामने खड़ा था लेकिन उसकी नजरें दरवाजे पर थी। और मैं सोच रही थी कि उसने मुझे अभी तक गोली क्यों नहीं मारी? मुझे पता था कि वह अपने प्रमुख की अवज्ञा नहीं कर सकता। किसी आदेश को अस्वीकार करने का यहाॅ कोई मतलब नहीं है। “क्या तुम मुझे नहीं मारोगे?” मैं दया के साथ मुस्कुराया।

उसने मेरे चेहरे पर नजर डाली- “और न ही मैंने तुम्हारी माँ को मारा है।” इन शब्दों के साथ उसकी आँखें फिर से दरवाजे पर थीं ... सीधी और सख्त।

“क्या मतलब है?” अब मैं अवाक् थी। “मुझे पता है कि तुम वहाँ थे जब मेरी माँ को मारा गया।” मैं चिल्ला पडी

“हाँ, मैं वहाँ था, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि मैं हत्यारा हूँ।” उसने कठोर स्वर में कहा। “और तुम्हारी बेहतर जानकारी के लिए बता दूॅ कि तुम्हारा वो पूजा का सामान तुम्हारे पति के पास पहुॅच चुका है।”

मेरा मुॅह खुला रह गया। “मेरा पति?” मुझे यकीन नहीं हुआ कि वह मेरे पति के बारे मंे ही बोल रहा है।

“हाँ ...” उंगली के पोर से अपना माथा खुजाते हुए-“ कोई... विदुर। अजीब नाम है।” लव्जों को चबाते हुए उसने बात पूरी की।

इससे पहले कि मैं यह समझने की कोशिश करूं कि वह वास्तव में क्या कहना चाहता है, हमें कुछ कदमों की आहट सुनायी दी। “शांत रहो,” रिहान ने मुझसे कहा और बस अगले ही पल वही नौसिखुआ आतंकवादी हमारे सामने था। “इसे कमरे में ले जाओ।” रिहान ने उसे आदेश दिया।

“और तुम्हारे चीफ का हुक्म?” मैंने चलते हुए उसकी ओर देखा।

“वह आपकी दिक्कत नहीं है।” उन्होंने लापरवाही से कहा लेकिन मैं देख सकती थी कि वह इसी बात को लेकर कुछ बैचेन है।

वह मुझसे नाराज था या निराश था? लेकिन जो कभी हुआ वह मेरी गलती नहीं थी। मैंने वही किया जो मुझे करना चाहिए था। अगर चीफ को दो हाथ मिले हैं तो मेरे पास भी हैं। अगर उसे मारने का हुनर मिला है, तो मैं भी वापस लड़ने की हिम्मत रखती हूं। हो सकता है कि मैं एक आदमी की तरह मजबूत नहीं हूॅ लेकिन मैं भी एक जिन्दा इंसान हूॅ और जब तक मैं जीवित हूं, कोई भी मुझे अपनी कठपुतली नहीं बना सकता।

शयद वह पाॅचवी सुबह थी और मैं भागने के बारे में सोच भी नहीं सकी थी। मेरी कोई योजना नहीं थी। पिछली रात हुई  घटना ने मुझे पूरी तरह से चकनाचूर कर दिया। सुहानी और अन्य दो महिलाओं को यहाँ से ले जाया जा चुका था। हमें बताया गया कि बीमार और बूढ़े जानवरों की तरह, उन्हें भी मरने के लिए घने, बर्फीले जंगल में कहीं छोड़ दिया गया था। अब हम केवल चार थे अश्वश्री, दो लड़के और मैं। दोनों लड़के रो रहे थे और अपनी माँ के बारे में लगातार पूछ रहे थे। उन्होंने खाना और बात करना तक छोड़ दिया। अश्विश्री और मैं उनकी हालत देखकर बहुत टूटा हुआ महसूस कर रहे थे। अंत में, मुझे झूठ बोलना पड़ा, उन्हें सांत्वना देने के लिए-कि आपकी माँ को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया है।

वह कमरा एक असली नरक था, जो मौत से भी बदतर था।


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वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक पल में उठ बैठी! “माँ”? मैं उनके चेहरे को देखते हुए दोहराया। जितनी आंतकित मैं थी सुनकर शायद वह भी थे ये बात बोलते हुए। “किसकी माँ?” मैंने थोड़ी शंका के साथ पूछा कि क्या वह मेरी ही माँ के बारे में बात कर रहे हैं? उनके चेहरे पर भी शायद वही आंदेषा था, जो मेरे मन में हलचल मचा रहा था। कश्मीर में देर रात एक आतंकी हमले में मेरी मां की मौत हो गई।
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कभी...। वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक

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ये पहली मौत नहीं थी जो मैनें देखी थी। कुछ तीन साल पहले इसी तरह पिताजी को भी देख चुकी थी, और वह भी इसी घर में। वह बीमार रहते थे, उनकी मौत अपेक्षित थी लेकिन माॅ की मौत मेरे लिए चैंका देने वाली थी। मुझे

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मेरी आॅखें उस वक्त भी आसूॅओं से भर गयीं। मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा। हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक ही घटना के बारे में सोच रहे थे। अजान की आवाज खामोष हुई। “क्या यह तुम्हें अब भी ड़रा देता है?” उसने

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गर्म पानी के स्नान के बाद मैं हमाम से बाहर आयी। अपने कमरे में आकर मैनें खिडकी के पर्दे उठाए। कोहरे ने मेरी खिड़की के सभी शीषों को धुंधला कर दिया था। मैं उनके पार नहीं देख सकती थी। बाहर का मौसम सर्द है

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मैं सालों बाद उस गली पर पैदल चल रही थी, जो मेरे घर से निकलकर इन वादियों के घुमावदार रास्तों में कहीं विलीन हो जाती थी। उस गली के हर कदम पर मैं खुद को बिखरा महसूस कर रही थी। उस गली से भी ना जाने कितनी

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वह आदमी दुकान तक गया और मेरा थैला उठा लाया। उसने इसे मेरे चेहरे पर फेंक दिया और मेरे जाने का इंतजार करने लगा। मैंने एक बार दुकान पर नजर डाली। मुझे उस गरीब दुकानदार की चिंता थी, जो हर गुजरते पल के साथ

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आधे घंटे बादः उसने वैन को कहीं रोक दिया। एक जगह, जहाॅ मैं अपने जीवन में कभी नहीं गयी। जहाँ तक मैं देख सकती थी वहाँ तक पेड़, कोहरा, पहाड़ और घास ही दिख रहे थे। इससे पहले भी मैंने विंडशील्ड के बाहर झाॅ

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मेरी धड़कनें खुद मुझे भी सुनायी दे रहीं थीं। मैं महसूस कर सकती थी कि मेरा दिल मेरी छाती के पिंजर पर जोर से टकरा रहा है लेकिन उस रोषनी में मुझे जो दिखा उसने मुझे थोड़ी तस्सली दी। मुझे यह देखकर ताजुब्ब

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“याद नहीं।” उसने जवाब दिया  “शायद पंद्रह दिन, या उससे भी ज्यादा।” अन्य महिलाओं में से एक ने वहीं कोने से जवाब दिया। “हमारे पास दिनों की गिनती करने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने हमारा सब कुछ ले लिया। ”

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“तुम यहाॅ कैसे फॅसी?” अंत में सब से ज्यादा चुप रहने वाली महिला ने अपना मुंह खोला। जब से मैं यहाँ थी, मैंने पहली बार उसकी आवाज सुनी थी। उसकी आवाज हर शब्द पर कांप रही थी। “तुम कहाॅ से हो? क्या तुम भागने

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एक सेकंड में मेरे दिमाग में दर्जनों सवाल पलक कौंध गये और मैं तय नहीं कर पायी कि पहले क्या पूछूँ? मैं पूछने वाली थी कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो? लेकिन उसी क्षण मुझे याद आया कि मीनाक्षी ने मुझसे क्या कहा

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अब सारा माहौल ड़र की चादर ओढ़े खामोष होकर दुबका हुआ था। उस रोज वह कुछ घण्टे बड़े थका देने वाले थे मेरे लिए। बाकि बंधक बड़ी-बड़ी आॅखों से मुझे तक रहीं थीं, मानों कह रहीं हो कि अब हो गयी तसल्ली? मैं अपन

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मैंने बोतल एक तरफ रख दी और बच्चे की तरफ देखा। “इसे ले लो।” मैंने मुस्कुरा कर उसे आग्रह किया और पत्तल लड़कों की ओर बढ़ा दी। वे तेजी से आए और अपना मुंह भरने लगे। वे इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने इसे ठीक

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हालात बदतर होते जा रहे थे। वह जनवरी का महीना था। ज्यादातर दिन या तो बारिश होती थी या बर्फबारी। बारीष का पानी उस घर की छत से कहीं-कहीं रिसता भी था। उससे कमरे की नमी बढ़ गयी थी और साथ ही गारे की बू भी।

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रिहान ने मेरी तरफ देखा। उसने मेरी हालत देखी और मेरा डर भी। उसने मेरे कपड़ों को देखा और फिर उसने दूसरे बंधकों को देखा। “वह फिर से नहीं आयेगा। आप सभी अब सो सकते हैं।” उसने सभी से कहा लेकिन उसकी आँखें मु

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अचानक मुझे पदचाप सुनाई दी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मुझे लगा कि यह हमारा भोजन है। “ऐ तुम!” एक लड़का अंदर आया और मैं कमरे के बीच ठहर गया। हम सब उसे ताड़ रहे थे और वह सिर्फ मुझे। वह शायद ही सत्रह

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मेरी रीढ़ अब तक दर्द में थी। मैं अपने पैरों पर सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वहाॅ किसी ने भी मुझे किसी तरह की दवा नहीं दी। दर्द से तड़पना ही एकमात्र विकल्प बचा था मेरे पास। लगभग एक दिन न तो रिहान और

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अचानक मुझे बाहर कुछ आवाजें सुनाई दीं। मैंने पहली आवाज को पहचाना-, यह अश्वश्री थी और दूसरा कुछ पुरुष था। जब तक मैं बाल्टी से कूद कर नीचे आयी तब तक दरवाजे पर एक तेज दस्तक ने मुझे चैंका दिया! “कौन?” मैं

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मैने वही किया जो उसने मुझे करने को कहा था। मैंने चलने की कोशिश की। मैं थोड़ी मुश्किल से ही सही लेकिन चल सकती थी। मेरा सिर अभी भी भारी दर्द में था और मैं बहुत बीमार महसूस कर रही थी। मेरी नसों में एक ती

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वह गाड़ी चलाता रहा और विंडशील्ड से बाहर देखता रहा। यह दुखद था! यह केवल मेरे रिहान के बारे में नहीं था। मैंने वहां देखे गए प्रत्येक आतंकवादी में रिहान को पाया। उनके पास विकल्प हैं लेकिन कहां? उनकी पहचा

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जब हम उस आर्मी कैंप से निकल रहे थे तो हमें बताया कि आगे के रिकॉर्ड के लिए हमारे प्रत्येक दस्तावेज की एक प्रति उन्हे चाहिये होगी। विदुर वहीं ठहर गये ताकि उनकेा सारे कागजों की प्रतियाॅ करा कर दे सकें और

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मेरी नजर या तो सड़क पर थी या उसकी छाती पर। अभी भी खून बह रहा था। मैंने देखा कि उसकी पट्टी पर धब्बा हर मिनट के साथ अपना आकार बढ़ा रहा था। उसकी हालत गंभीर थी और मैं उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। मैं आगे नही

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मैं गाड़ी चलाते हुए उसके अगले शब्द का इंतजार कर रही थी। मेरी नजर विंडशील्ड पर टिकी थी। “रिहान?” मैंने उसे पुकारा। “मुझे घर दिखायी दे रहा है।” मैंने उससे कहा और कुछ दूरी पर ब्रेक दबाया। मैं कोई फैसला ख

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