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कभी

28 मई 2022

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गर्म पानी के स्नान के बाद मैं हमाम से बाहर आयी। अपने कमरे में आकर मैनें खिडकी के पर्दे उठाए। कोहरे ने मेरी खिड़की के सभी शीषों को धुंधला कर दिया था। मैं उनके पार नहीं देख सकती थी। बाहर का मौसम सर्द है बस इतना पता था। मैंने अपनी जींस के ऊपर बादामी रंग का स्वेटशर्ट पहन रखा था, क्योंकि मैं इसमें सहज महसूस करती थी। कन्धों पर माॅ की शाल ले कर मैं उस कमरे में गयी जहाँ विदुर फर्श पर सो रहा थे। उसी कमरे में जहाँ से माँ का शव ले जाया गया था। वह तेरंहवीं तक इसी तरह जमीन पर सोने वाले थे। वह माॅ के लिए हर वह संस्कार निर्वाह कर रहे थे जो कि एक बेटे को करने चाहिए। एक कोने में छोटा सा स्टूल था जिसे गेंदें के फूलों से सजाया गया था। मेरी माँ की मुस्कुराती हुई तस्वीर के सामने अगरबत्ती महक रही थी और एक दीपक झिलमिला रहा था। विदुर ने खुद ये सब किया था। मुझे उस पर नाज़ है ... मुझे लगता है कि इतना अच्छा जीवनसाथी पाकर मैं धन्य हो गयी हॅू। मैं वही दहलीज के सहारे खड़ी उसे निहारने लगी। कभी-कभी लगता है कि ये हमारी कहानी थी ....विदुर और मेरी। इस जिन्दगी के सफर के लिए ईष्वर ने उसे ही मेरा हमसफर चुना था। कभी-कभी मुझे लगता है कि रिहान से प्यार करना मेरी किषोरावस्था का एक चरण भर था। जैसे वह सब एक सुंदर सपने और भयानक वास्तविकता के अलावा कुछ भी नहीं था।

Û Û Û Û Û

मीनाक्षी और उसकी मां सहित हम घर में केवल चार लोग बचे थे, और हम काफी नहीं थे। मैं सच में अपने ही घर में सहज और सुरक्षित महसूस नहीं कर रही थी। उस अधजले घर में रहना थोड़ा डरावना था, जो अब हमारी कॉलोनी में लगभग अकेला था। हमारे लगभग सभी पड़ोसी अपने घरों से दूर जा चुके थे शायद कभी ना लौटने के लिए।  कभी-कभी कुछ पुलिसकर्मी घर आते थे और मुझे लगता कि काष वे तेंहरवीं तक हमारे साथ रह पाते? विदुर और मैं, टूट गए थे। हर समय, हमें एक मजबूत एहसास था कि कभी भी जिस तरह से मेरी माँ को मारा गया था उसी तरह हमें भी मारा जा सकता है।

हालाँकि मुझे तेंहरवीं से पहले घर से बाहर कदम रखना तो नहीं चाहिये था लेकिन मैं ना बाहर जाती तो कौन जाता? आगे के संस्कारों के लिए नारायण अंकल ने सामग्री की जो सूची हमें दी थी, वह सारा सामान बाज़ार से लेकर आना था।  मैंने विदुर जो जगाने के लिए उसके कंधे को छुआ। “मैं जरा बाज़ार से होकर आती हूॅ।”

“एक बार फिर सोच लो?” उन्होंने उठते हुए मुझसे पूछा। मैने सिर झुका लिया। दीवार के सहारे अपनी पीठ टिकाते हुए वह आराम से बैठे और कंबल को अपनी छाती तक खींच लिया। “यहाॅ रहकर संस्कार ठीक से हो भी नहंी पायेगें। नोएड़ा जाकर करते हैं?” उन्होंने पूछा।

“मैं भागना नहीं चाहती विदुर।” और कोई शब्द नहीं मिले मुझे अपनी दषा समझाने के लिए।

“बात भागने की नहीं है-,” उनकी आवाज उठ गयी और हम दोनों ने एक साथ दूसरे कमरे में झाॅका जहाॅ मिनाक्षी की माताजी सो रहीं थीं। विदुर ने आवाज दबा ली। “बात समझदारी की है। मैं भी नहीं चाहता कि उनके संस्कारों के बीच कोई विघ्न पड़ें।”

“और वह भी नहीं चाहेगीं कि उनका आखिरी संस्कार किसी दूसरे घर में हो।” मैंने माॅ की तस्वीर देखी मेरी आँखें भर आईं। “ये घर उनके लिए सब कुछ था।”

विदुर  ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया, उसे धीरे से चूमा। “मुझे बस ये फिक्र है कि हम किसी मुसीबत में ना पडे़ं।”

“कम से कम तीन दिन?” सवाल के लहजे में पूछा गया मेरा वाक्य कोई सवाल नहीं था बल्कि एक अनुरोध और एक आदेश- दोनों था।

मुझे वैसे भी रोज़मर्रा की जरूरतों के सामान के लिए बाज़ार आना ही था। मैं घर से बाहर निकलने को छटपटा भी रही थी। उस मायूसी और मातम में मेरा दम घुट रहा था। बाहर की खुली हवा और कोहरे से लदी उन खामोष गलियों के बीच से गुजरते हुए मैं ना जाने अपनेआप से क्या बातें करना चाहती थी? ना जाने क्या अफसोस था जो उस घर में निकल नहीं रहा था और माॅ की शाल से ढॅकें चेहरे में मेरे आॅसू देखने वाला भी कोई नहीं था। शायद मैं ये मातम सिर्फ अपनेआप के साथ ही मनाना चाहती थी। वैसे भी उस माहौल में विदुर का बाहर निकलना ज्यादा असुरक्षित था। मैं अपने कस्बे के बारे में विदुर से बहुत ज्यादा जानती थी। मैं बेहतर समझ सकती थी कि कब हवा तूफानों में बदल सकती थी है?

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वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक पल में उठ बैठी! “माँ”? मैं उनके चेहरे को देखते हुए दोहराया। जितनी आंतकित मैं थी सुनकर शायद वह भी थे ये बात बोलते हुए। “किसकी माँ?” मैंने थोड़ी शंका के साथ पूछा कि क्या वह मेरी ही माँ के बारे में बात कर रहे हैं? उनके चेहरे पर भी शायद वही आंदेषा था, जो मेरे मन में हलचल मचा रहा था। कश्मीर में देर रात एक आतंकी हमले में मेरी मां की मौत हो गई।
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कभी...। वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक

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ये पहली मौत नहीं थी जो मैनें देखी थी। कुछ तीन साल पहले इसी तरह पिताजी को भी देख चुकी थी, और वह भी इसी घर में। वह बीमार रहते थे, उनकी मौत अपेक्षित थी लेकिन माॅ की मौत मेरे लिए चैंका देने वाली थी। मुझे

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मेरी आॅखें उस वक्त भी आसूॅओं से भर गयीं। मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा। हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक ही घटना के बारे में सोच रहे थे। अजान की आवाज खामोष हुई। “क्या यह तुम्हें अब भी ड़रा देता है?” उसने

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गर्म पानी के स्नान के बाद मैं हमाम से बाहर आयी। अपने कमरे में आकर मैनें खिडकी के पर्दे उठाए। कोहरे ने मेरी खिड़की के सभी शीषों को धुंधला कर दिया था। मैं उनके पार नहीं देख सकती थी। बाहर का मौसम सर्द है

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मैं सालों बाद उस गली पर पैदल चल रही थी, जो मेरे घर से निकलकर इन वादियों के घुमावदार रास्तों में कहीं विलीन हो जाती थी। उस गली के हर कदम पर मैं खुद को बिखरा महसूस कर रही थी। उस गली से भी ना जाने कितनी

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वह आदमी दुकान तक गया और मेरा थैला उठा लाया। उसने इसे मेरे चेहरे पर फेंक दिया और मेरे जाने का इंतजार करने लगा। मैंने एक बार दुकान पर नजर डाली। मुझे उस गरीब दुकानदार की चिंता थी, जो हर गुजरते पल के साथ

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आधे घंटे बादः उसने वैन को कहीं रोक दिया। एक जगह, जहाॅ मैं अपने जीवन में कभी नहीं गयी। जहाँ तक मैं देख सकती थी वहाँ तक पेड़, कोहरा, पहाड़ और घास ही दिख रहे थे। इससे पहले भी मैंने विंडशील्ड के बाहर झाॅ

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मेरी धड़कनें खुद मुझे भी सुनायी दे रहीं थीं। मैं महसूस कर सकती थी कि मेरा दिल मेरी छाती के पिंजर पर जोर से टकरा रहा है लेकिन उस रोषनी में मुझे जो दिखा उसने मुझे थोड़ी तस्सली दी। मुझे यह देखकर ताजुब्ब

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“याद नहीं।” उसने जवाब दिया  “शायद पंद्रह दिन, या उससे भी ज्यादा।” अन्य महिलाओं में से एक ने वहीं कोने से जवाब दिया। “हमारे पास दिनों की गिनती करने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने हमारा सब कुछ ले लिया। ”

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“तुम यहाॅ कैसे फॅसी?” अंत में सब से ज्यादा चुप रहने वाली महिला ने अपना मुंह खोला। जब से मैं यहाँ थी, मैंने पहली बार उसकी आवाज सुनी थी। उसकी आवाज हर शब्द पर कांप रही थी। “तुम कहाॅ से हो? क्या तुम भागने

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एक सेकंड में मेरे दिमाग में दर्जनों सवाल पलक कौंध गये और मैं तय नहीं कर पायी कि पहले क्या पूछूँ? मैं पूछने वाली थी कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो? लेकिन उसी क्षण मुझे याद आया कि मीनाक्षी ने मुझसे क्या कहा

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अब सारा माहौल ड़र की चादर ओढ़े खामोष होकर दुबका हुआ था। उस रोज वह कुछ घण्टे बड़े थका देने वाले थे मेरे लिए। बाकि बंधक बड़ी-बड़ी आॅखों से मुझे तक रहीं थीं, मानों कह रहीं हो कि अब हो गयी तसल्ली? मैं अपन

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मैंने बोतल एक तरफ रख दी और बच्चे की तरफ देखा। “इसे ले लो।” मैंने मुस्कुरा कर उसे आग्रह किया और पत्तल लड़कों की ओर बढ़ा दी। वे तेजी से आए और अपना मुंह भरने लगे। वे इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने इसे ठीक

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हालात बदतर होते जा रहे थे। वह जनवरी का महीना था। ज्यादातर दिन या तो बारिश होती थी या बर्फबारी। बारीष का पानी उस घर की छत से कहीं-कहीं रिसता भी था। उससे कमरे की नमी बढ़ गयी थी और साथ ही गारे की बू भी।

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रिहान ने मेरी तरफ देखा। उसने मेरी हालत देखी और मेरा डर भी। उसने मेरे कपड़ों को देखा और फिर उसने दूसरे बंधकों को देखा। “वह फिर से नहीं आयेगा। आप सभी अब सो सकते हैं।” उसने सभी से कहा लेकिन उसकी आँखें मु

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अचानक मुझे पदचाप सुनाई दी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मुझे लगा कि यह हमारा भोजन है। “ऐ तुम!” एक लड़का अंदर आया और मैं कमरे के बीच ठहर गया। हम सब उसे ताड़ रहे थे और वह सिर्फ मुझे। वह शायद ही सत्रह

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मैं एक बार फिर हार गयी थी। मैंने अपनी मुट्ठी फर्श पर मार दी। मैं थोड़ी और देर रस्सी को क्यों नहीं थामे रह पायी? उसकी गर्दन केवल एक निषान के साथ आजाद हो गयी थी। “ह-मजादी! आज बताता हूॅ तुझे!” उसने मेरी

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मेरी रीढ़ अब तक दर्द में थी। मैं अपने पैरों पर सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वहाॅ किसी ने भी मुझे किसी तरह की दवा नहीं दी। दर्द से तड़पना ही एकमात्र विकल्प बचा था मेरे पास। लगभग एक दिन न तो रिहान और

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अचानक मुझे बाहर कुछ आवाजें सुनाई दीं। मैंने पहली आवाज को पहचाना-, यह अश्वश्री थी और दूसरा कुछ पुरुष था। जब तक मैं बाल्टी से कूद कर नीचे आयी तब तक दरवाजे पर एक तेज दस्तक ने मुझे चैंका दिया! “कौन?” मैं

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मैने वही किया जो उसने मुझे करने को कहा था। मैंने चलने की कोशिश की। मैं थोड़ी मुश्किल से ही सही लेकिन चल सकती थी। मेरा सिर अभी भी भारी दर्द में था और मैं बहुत बीमार महसूस कर रही थी। मेरी नसों में एक ती

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वह गाड़ी चलाता रहा और विंडशील्ड से बाहर देखता रहा। यह दुखद था! यह केवल मेरे रिहान के बारे में नहीं था। मैंने वहां देखे गए प्रत्येक आतंकवादी में रिहान को पाया। उनके पास विकल्प हैं लेकिन कहां? उनकी पहचा

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जब हम उस आर्मी कैंप से निकल रहे थे तो हमें बताया कि आगे के रिकॉर्ड के लिए हमारे प्रत्येक दस्तावेज की एक प्रति उन्हे चाहिये होगी। विदुर वहीं ठहर गये ताकि उनकेा सारे कागजों की प्रतियाॅ करा कर दे सकें और

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मेरी नजर या तो सड़क पर थी या उसकी छाती पर। अभी भी खून बह रहा था। मैंने देखा कि उसकी पट्टी पर धब्बा हर मिनट के साथ अपना आकार बढ़ा रहा था। उसकी हालत गंभीर थी और मैं उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। मैं आगे नही

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मैं गाड़ी चलाते हुए उसके अगले शब्द का इंतजार कर रही थी। मेरी नजर विंडशील्ड पर टिकी थी। “रिहान?” मैंने उसे पुकारा। “मुझे घर दिखायी दे रहा है।” मैंने उससे कहा और कुछ दूरी पर ब्रेक दबाया। मैं कोई फैसला ख

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