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कभी

28 मई 2022

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अचानक मुझे बाहर कुछ आवाजें सुनाई दीं। मैंने पहली आवाज को पहचाना-, यह अश्वश्री थी और दूसरा कुछ पुरुष था। जब तक मैं बाल्टी से कूद कर नीचे आयी तब तक दरवाजे पर एक तेज दस्तक ने मुझे चैंका दिया! “कौन?” मैं अंदर से ही चिल्लायी। 

“तुम अंदर क्या कर रही हो? दरवाजा खोलो।” एक पुरुष की आवाज ने मेरा साहस बिखेर दिया। वह दरवाजे पर दस्तक दे रहा था। यह मेरी योजना का हिस्सा नहीं था, लेकिन मैं जानती थी कि मुझे कुछ नयी चीजों के लिए भी तैयार तो रहना ही था। “मैं फे्रष हो रही हूॅं।” मैने किसी तरह जवाब दिया भी लेकिन ये काफी नहीं था। सन्देह उस आदमी को अंदर खींच लाया? मैं दरवाजे के पीछे थी। इसके बाद क्या होना था मैं सब जानती थी। पहले, वह निकास को देखेगा! दूसरा, वह मुझे ढूॅढेगा कि मैं अभी भी वहाँ हूँ? और तीसरा, मैं अपनी पूरी ताकत से उसके सिर पर बाल्टी मारूगीं। 

मैं खुद भी बेहद घबरा गयी थी उसकी हालत देखकर। मेरा वार कुछ ज्यादा ही तेज लगा! वह मेरे पैरों के सामने आधी बेहोषी में बड़बड़ा सा रहा था। कुद देर के लिए मुझे पता ही नहीं चला कि क्या करना चाहिये? मेरे वार और उसकी चींख् 14 फीट की दूरी को लाॅघते हुए बरामदे तक जरूर पहुॅची होगी। 

जैसा कि मैं उम्मीद कर ही रही थी अश्विश्री सबसे पहले अन्दर आयी और सबसे स्वाभाविक प्रश्न पूछा। “ये क्या किया तुमने??” उसका हाथ उसके माथे पर था। खून बहता देख वह पागल सी हो गई-, यही कमजोरी सब से अहम होती है औरत में। वह चिल्लाने ही वाली थी कि मैंने झटके से उसका मुँह ढँक लिया। “चुप। अैार जाकर बच्चों को भी ले आओ। हमें तुरन्त निकलना है।” मैं उसके कान में फुसफुसायी

“नहीं!” उसने मना कर दिया। 

“मुझ पर भरोसा रखो।” अपनी घबराहट पर काबू रखते हुए मैने कहा। “हम सभी मानव चेन बनाकर यहाॅ से सुरक्षित उतर सकते हैं।” मैने कहा। “लड़के पहले जाएंगे और मैं तुम्हारे बाद सबसे अंत में।” मैंने सुनिश्चित किया लेकिन वह मुझ से सहमत नहीं थी। 

“तुम समझती क्यों नहीं?” 

“बस नहीं। हम यहां से भाग नहीं सकते।” उसने मेरा हाथ पकडा और-“तुम भी मेरे साथ चलो। हम माफी माॅग लेगें।”

“क्या बकवास है!”मैंने अपना हाथ छुडा लिया। “तुम्हें डर है तो जाओ। मेरे पास बर्बाद करने के लिए वक्त नहीं है।” मेरी घबरायी नजरें उस उग्रवादी पर ही थीं जो किसी भी वक्त उठ सकता था और चिल्ला कर बाकियों को बुला सकता था। 

अश्विश्री जा चुकी थी। मैने प्लाईवुड का वह टुकड़ा हाथ में लिया जो रोषनदान में लगा हुआ था और दोबारा रोषनदान की तरफ बढ़ गयी। बाल्टी पर चढ़कर मैनंे वह टुकडा नीचे काॅटों भरे मैदान में फेंक दिया, इस उम्मीद के साथ  िकवह मुझे उन काॅटों से कुछ हद तक तक बचा ही लेगा। मैं जानती थी कि ये कोई सही विकल्प नहीं है लेकिन-“और कोई रास्ता भी तो नहीं है।” मैं अपनेआप से कहते हुए कूद गयी।

“आआआह!” प्लाईबोर्ड इतना मजबूत नहीं था कि मेरा वजन सह सके। जब मैं इस पर कूदी तो वह टूट गया था। मुझे नहीं पता था कि कितने काॅटें, नुकीली लकड़ीयाॅ और तारों ने मेरे पैर और पीठ काट दिए थे। मुझे अनगिनत घाव मिले, लेकिन मुझे तुरंत खड़ा होना पड़ा। मैनें हर तरफ देखा और आखिर में ऊपर रोषनदान की तरफ। अश्विश्री एक आशा और भय और अफसोस के साथ नीचे मेरी ओर झाॅक रही थी। मुझे पता था कि वह बाल्टी पर खड़ी होगी। मैंने आखिरी बार कोशिश की थी। अपना हाथ हवा में लहराया, उसे कूदने के लिए कहा लेकिन उसके डर ने उसके साहस को हरा दिया।

जैसे ही मेरी आँखें जमीन पर वापस आईं, मुझे एक शोर सुनाई दिया। इससे पहले कि मैं एक कदम उठा पाती, मैंने खुद को घिरा हुआ पाया। “फिर से नही!” मैंने अपनी आँखें निचोड़ लीं और उसी पल मेरे सिर के पीछे कुछ जोर से टकराया। एक पल के लिए मुझे लगा कि मैदान मेरे पास आ रहा है और फिर सब कुछ अंधेरा था।

Û Û Û Û Û Û

आंखें खोलते ही मैंने खुद को फर्श पर लेटा महसूस किया। दुनिया मेरे चारों ओर घूम रही थी। एक पल के लिए मुझे लगा जैसे मेरी आत्मा भाप में बदल रही है और मेरे शरीर के रोम से बाहर निकल रही है। मुझे लगा कि मेरा दिल कम धड़क रहा है। मुझे लगा जैसे मेरे हाथ और पैर और कंधे अब मेरे काबू में नहीं हैं। मेरे सिर का पिछला हिस्सा बुरी तरह दुखं रहा था। इस दर्द ने मुझे उस वार के बारे में याद दिलाया जो मुझे भागने हुए मिला था।

मैं इतनी दंग थी कि मुझे यह महसूस करने में कुछ वक्त लगा कि मैं अभी भी जिन्दा हूं। मैंने उठने की कोशिश की और गिर गयी। तीसरे प्रयास में मैं दीवार के सहारे से बैठ पायी थी। मुझे रस्सियों से बांध दिया गया था। मेरे हाथ और मेरे पैर पूरी तरह से लिपटे हुए थे। मैं हिल सकती थी लेकिन उठ नहीं सकती थी। मेरे दोनों पैर एक साथ बंधे थे।

मैंने चारों तरफ नजरें घुमायीं। ये चीफ का कमरा था और मैं वहाॅ अकेली थी। सब कुछ पहले जैसा था। मैं सोच रही थी- “आखिर क्यों, उन्होंने मुझे नहीं मारा?”  मैंने अपने पीछे देखा। ताजा खून का एक धब्बा था जिसे धीरे-धीरे मिट्टी खुद में सोखती जा रही थी। यह मेरा खून था। और अब इससे ज्यादा बहने की उम्मीद थी।

मैंने अपनी आँखें दरवाजे पर टिका दीं। मैं इंतजार कर रही थी कि कब यह खुलेगा? अब वे मेरे साथ क्या करेंगे? आगे क्या?

जल्द ही मैंने कुछ कदमों की आवाज और लकड़ी की कर्कश आवाज सुनी। मैं समझ गयी कि कोई सीढि़यों से नीचे उतर रहा है। मेरा अनुमान एकदम सही था। जल्द ही, दरवाजा खुला और रिहान चीफ के साथ अंदर आया।

“ओह, तुम जाग गयीं?” प्रमुख ने कहा जब उसने मुझे दीवार के सहारे बैठे देखा। उसने अपनी कुर्सी ली और मेरे सामने बैठ गया। “तुम वाकई कमाल हो।” ना में सिर हिलाते हुए वह जमीन को तकने लगा। “तुमने बहुत सारी गलतियाँ की हैं। क्या तुम्हें मौत का डर नहीं है?” उसने मेरा चेहरा देखा

“केवल सांस लेना ही जीवन नहीं है।”

मेरे जवाब पर वह मुस्कुराया। “उम्दा।” उसने कहा “मैं उन लोगों की ईज्जत करता हूं जो अपनी शर्तों पर जीने की हिम्मत रखते हैं।” वह फिर मुस्कुराया और रिहान को देखा, जो दरवाजे पर बंदूक के साथ खड़ा था। हमेषा की तरह चैकस और शान्त। वह मुस्कुराया नहीं किसी बेजान मूर्ती की तरह, जो कुछ भी सुन या देख नहीं सकती।

चीफ ने मुझे सिर से पैर तक ताका। उसने मेरी हालत देखी। मेरे अंगों से खून बह रहा था। वह पीछे मुड़ा। “रिहान, उस आदमी का नाम क्या है?,”

“विदुर।” 

इस नाम के साथ, मेरे शरीर का तापमान एक सेकंड में बदल गया। ये लोग विदुर तक कैसे पहुंचे? क्या वह अभी भी यहाँ था? मैंने अपने सभी सवालों के साथ रिहान को देखा। वह मेरी तरफ नहीं देख रहा था। चीफ ने फिर से अपना चेहरा मेरी ओर कर दिया। “तो लड़की, मैं तुम्हंे यह बताने में खुषी महसूस कर रहा हूॅ कि तुम्हारा पति हमारे गनपॉइंट पर है।”

मेरे पूरे शरीर में आग लग गई या शायद मुझे बर्फीले तालाब में फेंक दिया गया या फिर किसी लेजर हथियार ने मुझे कई टुकड़ो में काट डाला। मैं केवल यह कहने की हिम्मत कर सकी कि-“तुम उसके बारे में कैसे जानते हों?”

“इसकी  चिंता मत करो।” उसने एक कुटिल मुस्कान दी। “वह अपने घर में सुरक्षित है और अभी भी अनुष्ठान वगैरह में  मषरूफ है। इसके अलावा, वह नहीं जानता कि वह खतरे में है-”

“तुम क्या चाहते हो?”

वह मेरे शब्द से अचानक चुप हो गया। मुस्कराया। “तुम पहले दिन से ही दिलचस्प रही हो।” उसने मेरे चेहरे को करीब से निहारा। “कपड़े और बर्तन धोने मंे अपना साहस और कौशल बर्बाद मत करो। मेरे पास उससे बेहतर विकल्प हैं।” मैं उसकी बात सुनती रही। “तुम्हें हमारा एक काम पूरा करना है।”

“मैं तैयार हूं।” मैंने आगे सुने बिना ही जवाब दे दिया। मुझे परवाह नहीं थी कि वह मुझसे क्या चाहता है। मुझे बस परवाह थी कि मैं क्या चाहती हूॅ? और मैं अपने पति को सुरक्षित रखने के लिए कुछ भी कर सकती थी।

वह तुरंत अपने पैरों पर खड़ा हो गया। वह मेज पर गया, वहां से कुछ लिया, जिसे मैं नहीं देख सकी। दहलीज पार करने से पहले वह रिहान के पास कुछ देर ठहरा। “यह उसका आखिरी मौका है।” मुझे पीछे देखते हुए- “अगर उसने मना कर दिया तो उसे यहीं गोली मार देना और फिर उसके पति को।” और वह बाहर था।

कसम से मेरा दिल मेरे सीने की दीवार से इतने जोर से कभी नहीं टकराया  होगा। रिहान मेरे पास आया और अपने एक घुटने पर बैठ गया। “उसे मेरे पति के बारे में कैसे पता चला?” यह मेरा पहला सवाल था और वह समझ सकता था कि कि मैं उससे क्यों पूछ रही हूँ?

उसने मेरे पैरों से रस्सियों को खोले हुए मेरे सवाल को नजरअंदाज कर दिया। मैंने उसके हाथ झटके। “दूर रहो मुझसे!” मैं चिल्लाया। “ये हमदर्दी का नाटक भी तुम ठीक से नहीं कर पा रहे।”

“मैंने तुम से कितनी ही बार कहा था कि सही वक्त का इंतजार करो।” एक अल्पविराम “मैंने कहा था कि भागने की कोशिश ना करना।” मैं उसे घूरती रही। 

उसने मेरे चेहरे पर देखते ही अपनी आँखें बन्द कर लीं। “तुम्हंे क्या लगता है कि हम बेवकूफ हैं?” उसने मेरी प्रतिक्रिया का इंतजार कियास- “हमने यहां से तीन किलोमीटर के रेडियस को कवर किया हुआ है ... एक चूहा भी हमारी इजाजत के बिना बाहर नहीं जा सकता है।”

मैंने अपनी नजरें उस पर से हटा लीं। संभवतः यह सत्य था। मैंने एक ओर देखा। मेरे सवाल का जवाब अब भी बाकि था। वह समझ गया। 

“वह तुम्हें ढूॅढ रहा है....जहाॅ उसे ढॅूढना चाहिए और जहां उसे नहीं ढूॅढना चाहिए वहाॅ भी।”उसने सख्त लहजे में कहा। अब तक मेरे पैरों पर से वह रस्सी खोल चुका था।

“रिहान?” मेरा जवाब अभी भी अधूरा था।

वह एक पल के लिए रुक गया। “विदुर ने तुम्हारे बारे में हमारे एक मुखबिर से पूछा।” मेरे हाथ आजाद हो गये। मैं अपने पैरों पर खडी हुई लेकिन बहुत कठिनाई और दर्द के साथ। “मैं तुम पर यकीन कैसे करूॅ?”

“मैं तुम्हें ऐसा करने के लिए कह भी नहीं रहा हूँ।” उसने मेरे घावों को देखा और उस अलमारी तक गया। वह वहाँ से एक छोटा डिब्बा ले आया। यह प्राथमिक उपचार था। बहुत सारी दवाएं और एंटीसेप्टिक और कैंची और विभिन्न प्रकार के सर्जरी उपकरण थे। हो सकता है कि वे किसी दुर्घटना के मामले में अपने सदस्यों की चिकित्सा और देखभाल भी यहीं करते हों।

रिहान ने कुछ एंटीसेप्टिक तरल के ढक्कन खोले और उसे रूई के फाये पर डाला। “पीछे मुडो।” उसने आदेष सा दिया।

जैसे ही उसने मेरे सिर के पीछे मेरे घाव को छुआ, मैं थोड़ा हिल गयी। एंटीसेप्टिक ने इसे जला दिया। “आराम से।” उसने कहा। उसने मेरे घाव पर रुई रख दी और मेरे सिर को पट्टी से लपेटना शुरू कर दिया।

“मेरा काम क्या है?” मैंने पूछा।

“भूल जाओ।” उसने पट्टी को कसकर देखा।

“तुम लोग मेरे पति को मार डालोगे?”

उसने मेरी आँखों में अविष्वास से देखा। “तुम्हंे उसकी चिन्ता है लेकिन अपनी नहीं?” 

मैंने अपना गला साफ किया और एक तरफ देखा। हां, मुझे अपनी चिंता बिल्कुल नहीं थी। “वह मेरी वजह से खतरे में है।” मुझे याद था कि विदुर ने मुझे उसी दिन कश्मीर छोड़ने के लिए कहा था। मैंेने ठण्डी आह भरी। काश मैंने उसकी बात सुनी होती। “मेरा काम क्या है?” मैं उसे देखते हुए दोहराया 

रिहान ने एक कदम पीछे लिया, मुझे सिर से पैर तक देखा। “ये बॉक्स लो और इसे केवल अपने जख्मों को साफ करने के लिए इस्तेमाल करना।” पहले तो मुझे उसकी बात समझ ही नहीं आयी फिर- “अपनी गर्दन या कलाई को काटने के लिए नहीं।” उसने खिड़की से बाहर झाॅका। बाहर अँधेरा हो चुका था। एक दीवार घड़ी थी जहाँ मैं समय देख सकती थी। साढ़े आठ बज चुके थे। रिहान मेरे पास आया। “अब मेरी बात बहुत ध्यान से सुनो।” उसकी आँखें चैड़ी हो गईं। “मैं कुछ समय बाद वापस आऊंगा, तब तक आप अपना इलाज करो।” मैंने सिर हिलाया। “वैसे मेरे और चीफ के अलावा इस कमरे में कोई आता ही नहीं लेकिन अगर कोई आये भी और तुमसे कुछ पूछे कि तुमने क्या फैसला किया तुम कहना कि मैं राजी हूॅ।” उसने कहा। “इसके अलावा एक भी शब्द नहीं।” उसने आदेश दिया।

मैंने उसे देखा। संभव है कि वह मुझे धोखा दे रहा था या झूठ बोल रहा था, लेकिन फिलहाल उसे पर यकीन करने के सिवा अैर कोई चारा नही था। “मुझे लगता है कि तुम कन्फ्यूज हो।” मैंने कहा, जब वह दरवाजे पर कदम रख रहा था।

“हाँ, मैं था-,” उसने जवाब दिया “तुमने मुझे खुद से रिहा किया और अब तुम्हें रिहा करना मेरा फर्ज है।” उसने अपने पीछे दरवाजा बंद कर दिया।

रिहान पहले क्या था वह मुझे याद नहीं, उसके वर्तमान का सच ये था कि अब वह एक आतंकवादी था-, वह हत्यारा था और किसी भी चीज से ज्यादा, वह एक पहेली था मेरे लिए। जितना मैं समझ सकती थी, उसके उद्देश्य और आदर्ष आपस में उलझ गये थे। शायद वह मेरी मदद करने की कोशिश कर रहा था लेकिन क्यों? क्या सिर्फ अपना कोई उद्देष्य पूरा करने के लिए? 


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कभी
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वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक पल में उठ बैठी! “माँ”? मैं उनके चेहरे को देखते हुए दोहराया। जितनी आंतकित मैं थी सुनकर शायद वह भी थे ये बात बोलते हुए। “किसकी माँ?” मैंने थोड़ी शंका के साथ पूछा कि क्या वह मेरी ही माँ के बारे में बात कर रहे हैं? उनके चेहरे पर भी शायद वही आंदेषा था, जो मेरे मन में हलचल मचा रहा था। कश्मीर में देर रात एक आतंकी हमले में मेरी मां की मौत हो गई।
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कभी...। वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक

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ये पहली मौत नहीं थी जो मैनें देखी थी। कुछ तीन साल पहले इसी तरह पिताजी को भी देख चुकी थी, और वह भी इसी घर में। वह बीमार रहते थे, उनकी मौत अपेक्षित थी लेकिन माॅ की मौत मेरे लिए चैंका देने वाली थी। मुझे

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मेरी आॅखें उस वक्त भी आसूॅओं से भर गयीं। मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा। हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक ही घटना के बारे में सोच रहे थे। अजान की आवाज खामोष हुई। “क्या यह तुम्हें अब भी ड़रा देता है?” उसने

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गर्म पानी के स्नान के बाद मैं हमाम से बाहर आयी। अपने कमरे में आकर मैनें खिडकी के पर्दे उठाए। कोहरे ने मेरी खिड़की के सभी शीषों को धुंधला कर दिया था। मैं उनके पार नहीं देख सकती थी। बाहर का मौसम सर्द है

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मैं सालों बाद उस गली पर पैदल चल रही थी, जो मेरे घर से निकलकर इन वादियों के घुमावदार रास्तों में कहीं विलीन हो जाती थी। उस गली के हर कदम पर मैं खुद को बिखरा महसूस कर रही थी। उस गली से भी ना जाने कितनी

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वह आदमी दुकान तक गया और मेरा थैला उठा लाया। उसने इसे मेरे चेहरे पर फेंक दिया और मेरे जाने का इंतजार करने लगा। मैंने एक बार दुकान पर नजर डाली। मुझे उस गरीब दुकानदार की चिंता थी, जो हर गुजरते पल के साथ

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आधे घंटे बादः उसने वैन को कहीं रोक दिया। एक जगह, जहाॅ मैं अपने जीवन में कभी नहीं गयी। जहाँ तक मैं देख सकती थी वहाँ तक पेड़, कोहरा, पहाड़ और घास ही दिख रहे थे। इससे पहले भी मैंने विंडशील्ड के बाहर झाॅ

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मेरी धड़कनें खुद मुझे भी सुनायी दे रहीं थीं। मैं महसूस कर सकती थी कि मेरा दिल मेरी छाती के पिंजर पर जोर से टकरा रहा है लेकिन उस रोषनी में मुझे जो दिखा उसने मुझे थोड़ी तस्सली दी। मुझे यह देखकर ताजुब्ब

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“याद नहीं।” उसने जवाब दिया  “शायद पंद्रह दिन, या उससे भी ज्यादा।” अन्य महिलाओं में से एक ने वहीं कोने से जवाब दिया। “हमारे पास दिनों की गिनती करने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने हमारा सब कुछ ले लिया। ”

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“तुम यहाॅ कैसे फॅसी?” अंत में सब से ज्यादा चुप रहने वाली महिला ने अपना मुंह खोला। जब से मैं यहाँ थी, मैंने पहली बार उसकी आवाज सुनी थी। उसकी आवाज हर शब्द पर कांप रही थी। “तुम कहाॅ से हो? क्या तुम भागने

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एक सेकंड में मेरे दिमाग में दर्जनों सवाल पलक कौंध गये और मैं तय नहीं कर पायी कि पहले क्या पूछूँ? मैं पूछने वाली थी कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो? लेकिन उसी क्षण मुझे याद आया कि मीनाक्षी ने मुझसे क्या कहा

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अब सारा माहौल ड़र की चादर ओढ़े खामोष होकर दुबका हुआ था। उस रोज वह कुछ घण्टे बड़े थका देने वाले थे मेरे लिए। बाकि बंधक बड़ी-बड़ी आॅखों से मुझे तक रहीं थीं, मानों कह रहीं हो कि अब हो गयी तसल्ली? मैं अपन

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मैंने बोतल एक तरफ रख दी और बच्चे की तरफ देखा। “इसे ले लो।” मैंने मुस्कुरा कर उसे आग्रह किया और पत्तल लड़कों की ओर बढ़ा दी। वे तेजी से आए और अपना मुंह भरने लगे। वे इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने इसे ठीक

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हालात बदतर होते जा रहे थे। वह जनवरी का महीना था। ज्यादातर दिन या तो बारिश होती थी या बर्फबारी। बारीष का पानी उस घर की छत से कहीं-कहीं रिसता भी था। उससे कमरे की नमी बढ़ गयी थी और साथ ही गारे की बू भी।

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रिहान ने मेरी तरफ देखा। उसने मेरी हालत देखी और मेरा डर भी। उसने मेरे कपड़ों को देखा और फिर उसने दूसरे बंधकों को देखा। “वह फिर से नहीं आयेगा। आप सभी अब सो सकते हैं।” उसने सभी से कहा लेकिन उसकी आँखें मु

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अचानक मुझे पदचाप सुनाई दी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मुझे लगा कि यह हमारा भोजन है। “ऐ तुम!” एक लड़का अंदर आया और मैं कमरे के बीच ठहर गया। हम सब उसे ताड़ रहे थे और वह सिर्फ मुझे। वह शायद ही सत्रह

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मैं एक बार फिर हार गयी थी। मैंने अपनी मुट्ठी फर्श पर मार दी। मैं थोड़ी और देर रस्सी को क्यों नहीं थामे रह पायी? उसकी गर्दन केवल एक निषान के साथ आजाद हो गयी थी। “ह-मजादी! आज बताता हूॅ तुझे!” उसने मेरी

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मेरी रीढ़ अब तक दर्द में थी। मैं अपने पैरों पर सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वहाॅ किसी ने भी मुझे किसी तरह की दवा नहीं दी। दर्द से तड़पना ही एकमात्र विकल्प बचा था मेरे पास। लगभग एक दिन न तो रिहान और

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मैने वही किया जो उसने मुझे करने को कहा था। मैंने चलने की कोशिश की। मैं थोड़ी मुश्किल से ही सही लेकिन चल सकती थी। मेरा सिर अभी भी भारी दर्द में था और मैं बहुत बीमार महसूस कर रही थी। मेरी नसों में एक ती

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वह गाड़ी चलाता रहा और विंडशील्ड से बाहर देखता रहा। यह दुखद था! यह केवल मेरे रिहान के बारे में नहीं था। मैंने वहां देखे गए प्रत्येक आतंकवादी में रिहान को पाया। उनके पास विकल्प हैं लेकिन कहां? उनकी पहचा

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जब हम उस आर्मी कैंप से निकल रहे थे तो हमें बताया कि आगे के रिकॉर्ड के लिए हमारे प्रत्येक दस्तावेज की एक प्रति उन्हे चाहिये होगी। विदुर वहीं ठहर गये ताकि उनकेा सारे कागजों की प्रतियाॅ करा कर दे सकें और

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मेरी नजर या तो सड़क पर थी या उसकी छाती पर। अभी भी खून बह रहा था। मैंने देखा कि उसकी पट्टी पर धब्बा हर मिनट के साथ अपना आकार बढ़ा रहा था। उसकी हालत गंभीर थी और मैं उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। मैं आगे नही

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मैं गाड़ी चलाते हुए उसके अगले शब्द का इंतजार कर रही थी। मेरी नजर विंडशील्ड पर टिकी थी। “रिहान?” मैंने उसे पुकारा। “मुझे घर दिखायी दे रहा है।” मैंने उससे कहा और कुछ दूरी पर ब्रेक दबाया। मैं कोई फैसला ख

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