“याद नहीं।” उसने जवाब दिया
“शायद पंद्रह दिन, या उससे भी ज्यादा।” अन्य महिलाओं में से एक ने वहीं कोने से जवाब दिया। “हमारे पास दिनों की गिनती करने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने हमारा सब कुछ ले लिया। ”वह फफक् पड़ी। बालों में अपनी उँगलियाँ डालते हुए उसने अपना सिर कोहनियों पर टिका लिया।
“पंद्रह दिन?” ताजुब्ब था। वे आंतकवादी लोगों को इतने लंबे समय अपने साथ क्यों रखेंगे? यदि इन सब को पंद्रह दिनों से रखा गया है, तो इसका मतलब है कि वे कैदी नहीं हैं। मैंने उनकी हालत देखी। सभी महिलायें बत्तीस से चालीस साल के बीच की थीं। जो मेरे बगल में बैठी थी-अष्विश्री-, वह तो इन सभी से कम उम्र की थी। दूसरी तरफ लड़कों को दंसवा या ग्यारहवां साल लगा होगा। मुझे उन सभी कैदियों में कोई संबंध या पैटर्न या शैली नहीं मिल रही थी। “तो, आप सभी को अपने घरों से उठाया गया है?” मैनंे उन सभी को संदेह से देखा।
“हम में से कोई भी नहीं।” अष्विश्री ने कहा।
“फिर?” मैंने अपनी आँखें बारीक करीं।
“वे मेरे बच्चे हैं।” एक महिला ने उन लड़कों को अपनी बाॅहों में भरा। “कुछ दिन पहले हम सेना और आतंकवादियों के बीच संघर्ष में फॅस गये थे। आतंकवादियों ने हमें सरकारी गोलियों के खिलाफ अपनी ढाल के रूप में इस्तेमाल किया और यहां ले आये।”
“आप सभी?” मैंने उन महिलाओं की ओर देखा।
अश्विश्री ने कहा, “नहीं। मैं एक पर्यटक हूं। मैं गुजरात से यहाॅ-, धरती पर स्वर्ग देखने आयी थी। मुझे क्या पता था कि-” वह रूॅआसी होकर चुप हो गयी। मैने उसके कन्धे पर हाथ रखा। “जब हम यहाँ लाए थे, तो कुछ और लड़कियाँ और बच्चे थे, जिन्हें कुछ अजनबी लोग ले गए।”
उन्होंने मुझे बताया कि उनके साथ यहाॅ कम से कम बीस बंधक थे और उनमें से अधिकांश को अलग-अलग जगहों पर भेज दिया गया था। सेना और आतंकवादीयों के बीच संघर्ष में कुछ लोग पहले ही मारे गए थे। केवल एक महिला है जो सबसे लंबे समय तक यहाॅ है, लेकिन उसने अपनी आशा और भावनात्मक संतुलन खो दिया था। जितना मैं समझ सकती था, उन्हें कई कारणों से यहाँ रखा गया होगा... जिसमें मानव तस्करी भी शामिल हो सकती थी। मैंने उन्हें एक-एक करके देखा और आह भरते हुए खामोष हो गयी। “क्या तुमने कभी यहाॅ से भागने कीे कोशिश की?” मैंने एक महिला से पूछा। उसने अपना सिर ना में हिला दिया। “क्यों नहीं?” मैंने पूछा
उसके चेहरे पर निराषा के बादल छाते चले गये। “हम तीन दिन पहले आठ लोग थे ...।” वह उलझन में लग रही थी। “-नहीं, मुझे लगता है कि चार दिन बीत चुके हैं।” उलझन में छटपटाकर- “हम दिनों को गिन ही नहीं सकते।” उसने एक खिंचीं हुई मुस्कान के साथ कहा। “उस वक्त हम सो रहे थे इसलिए कह सकती हूॅ कि वह रात होगी। हम सभी गहरी नींद में थे कि हमने कुछ शोर सुना और हम जाग गये।” उसने छोटे दरवाजे की ओर उंगली उठाई। “उस आदमी ने शौचालय के रोषनदान को तोड़ दिया था। वह नीचे कूदने की कोशिश कर रहा था, जब उन्होंने-,” कहते हुए उसका गला सूख सा गया। .“उन्होनें-, उन्होनें उसे गोली मार दी!” भय उसकी आॅखों से उतरकर पूरे चेहरे पर छा गया। “ठीक उसके चेहरे पर।”
“ओह!” मैनें मुॅह पर हाथ रख लिया
“किसी ने भी उसे टॉयलेट जाते हुए या रोषनदान को तोड़ते हुए नहीं देखा, ना ही हमने उन आतंकवादियों को अंदर आते देखा...बस हमने उसे मरा हुआ देखा।” चेहरे को हाथों से ढाॅपते हुए उसने सिर झुका लिया- “मैं कभी उसके फटे चेहरे को नहीं भूल सकती...भगवान!”
“यानि-,” मैंने अपने होंठ चाट लिए। “यानि हम सब यहाँ मारने के लिए हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए है।”
“और रात में उन्हें खुश करने के लिए भी।” उसका चेहरा कड़वा हो गया
“ओह शिट!” जितना मैने सोचा था हालात उससे भी बुरे थे। “हर रात?”
“नहीं-, लेकिन ज्यादातर रातें।” एक अल्पविराम लेकर- “इनका चीफ बुरा है, लेकिन उसके चमचे उससे भी खराब हैं!” अश्विश्री ने कहा और उसकी नजरों ने मुझे उसके शब्दों से अधिक बताया।
उसके चेहरे और जहाॅ तक मैं उसके अंगों को देख सकती थी-, हर जगह दाॅतों और खरोंचों के निशान दिखे। मैंने दूसरे की ओर भी देखा, वे भी उसी हालत में थे। मेरी नसों में बिजली सी दौड़ गयी। मैं अगली हो सकती हूॅ? मैं इसके बारे में सोचना नहीं चाहती थी। मैंने उन बच्चों को देखा, जो हमसे ज्यादा डरे हुए थे। इतनी छोटी सी उम्र में जाने कैसे-कैसे हालातों से उनका सामना हो चुका था और आगे जाने और भी क्या हो सकता था। कसम से-,मैं उनके बदले अपनी जान दे सकती थी अगर वे आतंकवादी उन्हें जाने देते।