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कभी

28 मई 2022

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“याद नहीं।” उसने जवाब दिया 

“शायद पंद्रह दिन, या उससे भी ज्यादा।” अन्य महिलाओं में से एक ने वहीं कोने से जवाब दिया। “हमारे पास दिनों की गिनती करने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने हमारा सब कुछ ले लिया। ”वह फफक् पड़ी। बालों में अपनी उँगलियाँ डालते हुए उसने अपना सिर कोहनियों पर टिका लिया। 

“पंद्रह दिन?” ताजुब्ब था। वे आंतकवादी लोगों को इतने लंबे समय अपने साथ क्यों रखेंगे? यदि इन सब को पंद्रह दिनों से रखा गया है, तो इसका मतलब है कि वे कैदी नहीं हैं। मैंने उनकी हालत देखी। सभी महिलायें बत्तीस से चालीस साल के बीच की थीं। जो मेरे बगल में बैठी थी-अष्विश्री-, वह तो इन सभी से कम उम्र की थी। दूसरी तरफ लड़कों को दंसवा या ग्यारहवां साल लगा होगा। मुझे उन सभी कैदियों में कोई संबंध या पैटर्न या शैली नहीं मिल रही थी। “तो, आप सभी को अपने घरों से उठाया गया है?” मैनंे उन सभी को संदेह से देखा। 

“हम में से कोई भी नहीं।” अष्विश्री ने कहा।

“फिर?” मैंने अपनी आँखें बारीक करीं। 

“वे मेरे बच्चे हैं।” एक महिला ने उन लड़कों को अपनी बाॅहों में भरा। “कुछ दिन पहले हम सेना और आतंकवादियों के बीच संघर्ष में फॅस गये थे। आतंकवादियों ने हमें सरकारी गोलियों के खिलाफ अपनी ढाल के रूप में इस्तेमाल किया और यहां ले आये।” 

“आप सभी?” मैंने उन महिलाओं की ओर देखा।

अश्विश्री ने कहा, “नहीं। मैं एक पर्यटक हूं। मैं गुजरात से यहाॅ-, धरती पर स्वर्ग देखने आयी थी। मुझे क्या पता था कि-” वह रूॅआसी होकर चुप हो गयी। मैने उसके कन्धे पर हाथ रखा। “जब हम यहाँ लाए थे, तो कुछ और लड़कियाँ और बच्चे थे, जिन्हें कुछ अजनबी लोग ले गए।” 

उन्होंने मुझे बताया कि उनके साथ यहाॅ कम से कम बीस बंधक थे और उनमें से अधिकांश को अलग-अलग जगहों पर भेज दिया गया था। सेना और आतंकवादीयों के बीच संघर्ष में कुछ लोग पहले ही मारे गए थे। केवल एक महिला है जो सबसे लंबे समय तक यहाॅ है, लेकिन उसने अपनी आशा और भावनात्मक संतुलन खो दिया था। जितना मैं समझ सकती था, उन्हें कई कारणों से यहाँ रखा गया होगा... जिसमें मानव तस्करी भी शामिल हो सकती थी। मैंने उन्हें एक-एक करके देखा और आह भरते हुए खामोष हो गयी। “क्या तुमने कभी यहाॅ से भागने कीे कोशिश की?” मैंने एक महिला से पूछा। उसने अपना सिर ना में हिला दिया। “क्यों नहीं?” मैंने पूछा 

उसके चेहरे पर निराषा के बादल छाते चले गये। “हम तीन दिन पहले आठ लोग थे ...।” वह उलझन में लग रही थी।   “-नहीं, मुझे लगता है कि चार दिन बीत चुके हैं।” उलझन में छटपटाकर- “हम दिनों को गिन ही नहीं सकते।” उसने एक खिंचीं हुई मुस्कान के साथ कहा। “उस वक्त हम सो रहे थे इसलिए कह सकती हूॅ कि वह रात होगी। हम सभी गहरी नींद में थे कि हमने कुछ शोर सुना और हम जाग गये।” उसने छोटे दरवाजे की ओर उंगली उठाई। “उस आदमी ने शौचालय के रोषनदान को तोड़ दिया था। वह नीचे कूदने की कोशिश कर रहा था, जब उन्होंने-,” कहते हुए उसका गला सूख सा गया। .“उन्होनें-, उन्होनें उसे गोली मार दी!” भय उसकी आॅखों से उतरकर पूरे चेहरे पर छा गया। “ठीक उसके चेहरे पर।”

“ओह!” मैनें मुॅह पर हाथ रख लिया

“किसी ने भी उसे टॉयलेट जाते हुए या रोषनदान को तोड़ते हुए नहीं देखा, ना ही हमने उन आतंकवादियों को अंदर आते देखा...बस हमने उसे मरा हुआ देखा।” चेहरे को हाथों से ढाॅपते हुए उसने सिर झुका लिया- “मैं कभी उसके फटे चेहरे को नहीं भूल सकती...भगवान!”

“यानि-,” मैंने अपने होंठ चाट लिए। “यानि हम सब यहाँ मारने के लिए हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए है।” 

“और रात में उन्हें खुश करने के लिए भी।” उसका चेहरा कड़वा हो गया

“ओह शिट!” जितना मैने सोचा था हालात उससे भी बुरे थे। “हर रात?” 

“नहीं-, लेकिन ज्यादातर रातें।” एक अल्पविराम लेकर- “इनका चीफ बुरा है, लेकिन उसके चमचे उससे भी खराब हैं!” अश्विश्री ने कहा और उसकी नजरों ने मुझे उसके शब्दों से अधिक बताया।

उसके चेहरे और जहाॅ तक मैं उसके अंगों को देख सकती थी-, हर जगह दाॅतों और खरोंचों के निशान दिखे। मैंने दूसरे की ओर भी देखा, वे भी उसी हालत में थे। मेरी नसों में बिजली सी दौड़ गयी। मैं अगली हो सकती हूॅ? मैं इसके बारे में सोचना नहीं चाहती थी। मैंने उन बच्चों को देखा, जो हमसे ज्यादा डरे हुए थे। इतनी छोटी सी उम्र में जाने कैसे-कैसे हालातों से उनका सामना हो चुका था और आगे जाने और भी क्या हो सकता था। कसम से-,मैं उनके बदले अपनी जान दे सकती थी अगर वे आतंकवादी उन्हें जाने देते। 


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वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक पल में उठ बैठी! “माँ”? मैं उनके चेहरे को देखते हुए दोहराया। जितनी आंतकित मैं थी सुनकर शायद वह भी थे ये बात बोलते हुए। “किसकी माँ?” मैंने थोड़ी शंका के साथ पूछा कि क्या वह मेरी ही माँ के बारे में बात कर रहे हैं? उनके चेहरे पर भी शायद वही आंदेषा था, जो मेरे मन में हलचल मचा रहा था। कश्मीर में देर रात एक आतंकी हमले में मेरी मां की मौत हो गई।
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कभी...। वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक

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ये पहली मौत नहीं थी जो मैनें देखी थी। कुछ तीन साल पहले इसी तरह पिताजी को भी देख चुकी थी, और वह भी इसी घर में। वह बीमार रहते थे, उनकी मौत अपेक्षित थी लेकिन माॅ की मौत मेरे लिए चैंका देने वाली थी। मुझे

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मेरी आॅखें उस वक्त भी आसूॅओं से भर गयीं। मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा। हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक ही घटना के बारे में सोच रहे थे। अजान की आवाज खामोष हुई। “क्या यह तुम्हें अब भी ड़रा देता है?” उसने

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गर्म पानी के स्नान के बाद मैं हमाम से बाहर आयी। अपने कमरे में आकर मैनें खिडकी के पर्दे उठाए। कोहरे ने मेरी खिड़की के सभी शीषों को धुंधला कर दिया था। मैं उनके पार नहीं देख सकती थी। बाहर का मौसम सर्द है

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मैं सालों बाद उस गली पर पैदल चल रही थी, जो मेरे घर से निकलकर इन वादियों के घुमावदार रास्तों में कहीं विलीन हो जाती थी। उस गली के हर कदम पर मैं खुद को बिखरा महसूस कर रही थी। उस गली से भी ना जाने कितनी

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वह आदमी दुकान तक गया और मेरा थैला उठा लाया। उसने इसे मेरे चेहरे पर फेंक दिया और मेरे जाने का इंतजार करने लगा। मैंने एक बार दुकान पर नजर डाली। मुझे उस गरीब दुकानदार की चिंता थी, जो हर गुजरते पल के साथ

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आधे घंटे बादः उसने वैन को कहीं रोक दिया। एक जगह, जहाॅ मैं अपने जीवन में कभी नहीं गयी। जहाँ तक मैं देख सकती थी वहाँ तक पेड़, कोहरा, पहाड़ और घास ही दिख रहे थे। इससे पहले भी मैंने विंडशील्ड के बाहर झाॅ

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मेरी धड़कनें खुद मुझे भी सुनायी दे रहीं थीं। मैं महसूस कर सकती थी कि मेरा दिल मेरी छाती के पिंजर पर जोर से टकरा रहा है लेकिन उस रोषनी में मुझे जो दिखा उसने मुझे थोड़ी तस्सली दी। मुझे यह देखकर ताजुब्ब

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“याद नहीं।” उसने जवाब दिया  “शायद पंद्रह दिन, या उससे भी ज्यादा।” अन्य महिलाओं में से एक ने वहीं कोने से जवाब दिया। “हमारे पास दिनों की गिनती करने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने हमारा सब कुछ ले लिया। ”

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“तुम यहाॅ कैसे फॅसी?” अंत में सब से ज्यादा चुप रहने वाली महिला ने अपना मुंह खोला। जब से मैं यहाँ थी, मैंने पहली बार उसकी आवाज सुनी थी। उसकी आवाज हर शब्द पर कांप रही थी। “तुम कहाॅ से हो? क्या तुम भागने

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एक सेकंड में मेरे दिमाग में दर्जनों सवाल पलक कौंध गये और मैं तय नहीं कर पायी कि पहले क्या पूछूँ? मैं पूछने वाली थी कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो? लेकिन उसी क्षण मुझे याद आया कि मीनाक्षी ने मुझसे क्या कहा

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अब सारा माहौल ड़र की चादर ओढ़े खामोष होकर दुबका हुआ था। उस रोज वह कुछ घण्टे बड़े थका देने वाले थे मेरे लिए। बाकि बंधक बड़ी-बड़ी आॅखों से मुझे तक रहीं थीं, मानों कह रहीं हो कि अब हो गयी तसल्ली? मैं अपन

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मैंने बोतल एक तरफ रख दी और बच्चे की तरफ देखा। “इसे ले लो।” मैंने मुस्कुरा कर उसे आग्रह किया और पत्तल लड़कों की ओर बढ़ा दी। वे तेजी से आए और अपना मुंह भरने लगे। वे इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने इसे ठीक

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हालात बदतर होते जा रहे थे। वह जनवरी का महीना था। ज्यादातर दिन या तो बारिश होती थी या बर्फबारी। बारीष का पानी उस घर की छत से कहीं-कहीं रिसता भी था। उससे कमरे की नमी बढ़ गयी थी और साथ ही गारे की बू भी।

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रिहान ने मेरी तरफ देखा। उसने मेरी हालत देखी और मेरा डर भी। उसने मेरे कपड़ों को देखा और फिर उसने दूसरे बंधकों को देखा। “वह फिर से नहीं आयेगा। आप सभी अब सो सकते हैं।” उसने सभी से कहा लेकिन उसकी आँखें मु

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अचानक मुझे पदचाप सुनाई दी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मुझे लगा कि यह हमारा भोजन है। “ऐ तुम!” एक लड़का अंदर आया और मैं कमरे के बीच ठहर गया। हम सब उसे ताड़ रहे थे और वह सिर्फ मुझे। वह शायद ही सत्रह

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मैं एक बार फिर हार गयी थी। मैंने अपनी मुट्ठी फर्श पर मार दी। मैं थोड़ी और देर रस्सी को क्यों नहीं थामे रह पायी? उसकी गर्दन केवल एक निषान के साथ आजाद हो गयी थी। “ह-मजादी! आज बताता हूॅ तुझे!” उसने मेरी

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मेरी रीढ़ अब तक दर्द में थी। मैं अपने पैरों पर सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वहाॅ किसी ने भी मुझे किसी तरह की दवा नहीं दी। दर्द से तड़पना ही एकमात्र विकल्प बचा था मेरे पास। लगभग एक दिन न तो रिहान और

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अचानक मुझे बाहर कुछ आवाजें सुनाई दीं। मैंने पहली आवाज को पहचाना-, यह अश्वश्री थी और दूसरा कुछ पुरुष था। जब तक मैं बाल्टी से कूद कर नीचे आयी तब तक दरवाजे पर एक तेज दस्तक ने मुझे चैंका दिया! “कौन?” मैं

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मैने वही किया जो उसने मुझे करने को कहा था। मैंने चलने की कोशिश की। मैं थोड़ी मुश्किल से ही सही लेकिन चल सकती थी। मेरा सिर अभी भी भारी दर्द में था और मैं बहुत बीमार महसूस कर रही थी। मेरी नसों में एक ती

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वह गाड़ी चलाता रहा और विंडशील्ड से बाहर देखता रहा। यह दुखद था! यह केवल मेरे रिहान के बारे में नहीं था। मैंने वहां देखे गए प्रत्येक आतंकवादी में रिहान को पाया। उनके पास विकल्प हैं लेकिन कहां? उनकी पहचा

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जब हम उस आर्मी कैंप से निकल रहे थे तो हमें बताया कि आगे के रिकॉर्ड के लिए हमारे प्रत्येक दस्तावेज की एक प्रति उन्हे चाहिये होगी। विदुर वहीं ठहर गये ताकि उनकेा सारे कागजों की प्रतियाॅ करा कर दे सकें और

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मेरी नजर या तो सड़क पर थी या उसकी छाती पर। अभी भी खून बह रहा था। मैंने देखा कि उसकी पट्टी पर धब्बा हर मिनट के साथ अपना आकार बढ़ा रहा था। उसकी हालत गंभीर थी और मैं उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। मैं आगे नही

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मैं गाड़ी चलाते हुए उसके अगले शब्द का इंतजार कर रही थी। मेरी नजर विंडशील्ड पर टिकी थी। “रिहान?” मैंने उसे पुकारा। “मुझे घर दिखायी दे रहा है।” मैंने उससे कहा और कुछ दूरी पर ब्रेक दबाया। मैं कोई फैसला ख

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