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कभी

28 मई 2022

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आधे घंटे बादः

उसने वैन को कहीं रोक दिया। एक जगह, जहाॅ मैं अपने जीवन में कभी नहीं गयी। जहाँ तक मैं देख सकती थी वहाँ तक पेड़, कोहरा, पहाड़ और घास ही दिख रहे थे। इससे पहले भी मैंने विंडशील्ड के बाहर झाॅकने की कोशिश की लेकिन सबसे पहली बात कि सब कुछ कोहरे में छिपा हुआ था और दूसरी बात, जिस तरह से उसने वैन चलायी थी-, कोई भी आसपास का माहौल नहीं देख सकता था। असल में मैं किसी मदद की तलाष में थी लेकिन वह एक ऐसी जगह ले आया था मुझे, जहाॅ मदद मिलने का कोई मतलब ही ना था। 

“बाहर!” उसने मेरे लिए गाड़ी का दरवाजा खोला। मैं मन पक्का करते हुए बाहर आयी। “चलो!” मुझे अपने गनपॉइंट से धक्का देते हुए उसने चलने पर मजबूर किया। मैं चारों ओर देख रही थी कि अगर मैं पहचान सकती उस जगह कों, लेकिन मुझे ऐसा कुछ भी नहीं दिखा। बस इतना पता था कि वह कष्मीर की सीमा से लगा कोई जंगल था। शायद, हम जंगल के मध्य खड़े थे और कस्बे अब बहुत दूर छूट चुके थे। चलते हुए मैं पहाड़ो की श्रृंखला को देख रही थी। पास ही शायद पानी की कोई धारा भी बहती होगी, जिसकी आवाजें मैं सुन रही थी। इससे पहले कि मैं कुछ और देख पाती, हम एक पुराने, डबल स्टोरर्ड घर तक पहुँच गए। उसे देखकर मैं यकीन के साथ कह सकती थी कि वह कुछ 20-22 साल पुराना होगा। वह केवल पत्थर और लकड़ी और मिट्टी का बना था। उसकी खिड़कियों में शीषे तक ना थे। उसकी दीवारें इतनी बदरंग हो चुकीं थीं कि किस रंग में उसे आखिरी बार रंगा गया होगा, यह अनुमान लगाना कठिन था। 

व्ह घर इस तरह से पेड़ों से घिरा हुआ था कि मैं उसे तब तक नहीं देख पायी, जब तक कि मैं तीस या पैंतीस मीटर की दूरी पर नहीं पहुॅच गयी। उसका आंगन घास और झाडि़यों और लता में छिपा था। वह बंदूकधारी मुझे घर के अंदर ले गया। मुझे यकीन था कि यह वही जगह है जहाँ उसने मुझे मारने या बलात्कार करने का फैसला किया, और मेरा दिमाग योजना बनाने लगा कि अगर वह इसमें से कोई भी कोशिश करेगा तो मैं क्या करूँगी? अपनी रक्षा के लिए क्या करूँगी?

हम लोग बरामदे में प्रवेश कर गए। ऊपरी मंजिल तक सीढि़याँ थी। उसने मुझे सीढ़याॅ चढ़ने का आदेश दिया। मैं चारों ओर टकटकी लगाए हुए आगे बढ़ रही थी। नीचे बरामदे में कतार से तीन कमरे थे। उनमें से बीच वाले पर एक ताला था, मतलब वहाॅ कोई या कुछ ऐसा है जो कीमती है। बाकि दो कमरों के दरवाजे शायद खुले भी नहीं थे, बल्कि एक दरवाजा तो कब्जों से लटका हुआ था। जब हम सीढि़यों से ऊपर चढ़ रहे थे, तो लकड़ी की चरमराहट दूर से सुनी जा सकती थी। साथ ही सीढ़ीयाॅ हमारे कदमों के साथ मिट्टी भी झाड़ रही थी। हमने ऊपरी मंजिल पर कदम रखा। हैरान थी कि हम दोनों वहाॅ अकेले नहीं थे। एक के बाद एक तीन लड़के घातक बंदूकों के साथ जाने कौन-कौन से कोनों से निकलकर हमारे सामने आये। रंगों की किसी भूल-भुलैया में जैसे आकृतियाॅ डूब जातीं हैं, वैसे ही किसी सरीसृप की तरह, वे अपने परिवेश में छिपे हुए थे। “यकीन नहंी होता।” मैं बड़बड़ायी। मैं उन्हें दस फीट की दूरी से भी नहीं देख पायी थी। यदि वे इस घर की रखवाली कर रहे थे, तो इसका सीधा मतलब था, यह एक अड्डा है।, मैंने देखा कि एक आदमी वहां से गुजर रहा था। वह नकाबपोश नहीं था और न ही वह उस लबादे में ढंका था। उसने नीले और सफेद रंग की भारी जैकेट पहन रखी थी। वह गुज़रते हुए अपने दोस्त को देखकर मुस्कुराया। 

हमने वह बरामदा पार किया। ऊपर भी एक पंक्ति में तीन कमरे थे। घर की चुप्पी किसी को भी भ्रमित कर सकती थी कि यह खाली है, लेकिन असल में ऐसा नहीं था। दूसरा कमरा कुछ आवाजों से गूंज रहा था। हम पिछले पर ही रुक गए। मेरे साथ चल रहा बंदूकधारी दरवाजा खोलने वाला था कि अचानक चार आदमियों की भीड़ पहले कमरे से बाहर आ गई। इसने झटके से अपना हाथ दरवाजे से हटा लिया। उन्होंने एक-दूसरे को गले लगाया और बात की, जो कि मैं ठीक से  सुन नहीं पायी, लेकिन यह सुनिश्चित था कि वे मेरे बारे में बात कर रहे थे। मैं एक कोने में खड़ी थी और तीनों ओर से उन्होनें घेरा हुआ था अन्यथा मैं सचमुच नीचे कूद सकती थी। वे जिस तरह मेरे शरीर के हर इंच को तक रहे थे, एक घृणित मुस्कान रखते हुए मुझे सच में वहाॅ से कूद जाना चाहिये था भले ही उसके बाद मैं जिन्दा बचती या नहीं। उनके चेहरों पर नकाब नहीं थे और यही कारण है कि मैं उनकी अभिव्यक्ति में वासना और रोष पढ़ सकती थी। यह निश्चित नहीं था कि वे मुझे काटेंगे या मुझे जलाएंगे या मेरा बलात्कार करेंगे? मेरा दिल तब और बैचेन होने होने लगा जब उन्होनें मुझे एक अंधेरे कमरे में धकेल दिया। यह कमरा पंक्ति में अंतिम था।

अब मैं अपनी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। मैं रोने लगी। मेरा दिल मुँह को आ गया जब मुझे लगा कि वे सब केवल एक कदम पीछे हैं और अब-, सोचकर ही मैं चींख पड़ी। उसी पल कमरे में रोशनी हुई! उन्होंने लालटेन जलाया।


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वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक पल में उठ बैठी! “माँ”? मैं उनके चेहरे को देखते हुए दोहराया। जितनी आंतकित मैं थी सुनकर शायद वह भी थे ये बात बोलते हुए। “किसकी माँ?” मैंने थोड़ी शंका के साथ पूछा कि क्या वह मेरी ही माँ के बारे में बात कर रहे हैं? उनके चेहरे पर भी शायद वही आंदेषा था, जो मेरे मन में हलचल मचा रहा था। कश्मीर में देर रात एक आतंकी हमले में मेरी मां की मौत हो गई।
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कभी...। वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक

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ये पहली मौत नहीं थी जो मैनें देखी थी। कुछ तीन साल पहले इसी तरह पिताजी को भी देख चुकी थी, और वह भी इसी घर में। वह बीमार रहते थे, उनकी मौत अपेक्षित थी लेकिन माॅ की मौत मेरे लिए चैंका देने वाली थी। मुझे

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मेरी आॅखें उस वक्त भी आसूॅओं से भर गयीं। मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा। हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक ही घटना के बारे में सोच रहे थे। अजान की आवाज खामोष हुई। “क्या यह तुम्हें अब भी ड़रा देता है?” उसने

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गर्म पानी के स्नान के बाद मैं हमाम से बाहर आयी। अपने कमरे में आकर मैनें खिडकी के पर्दे उठाए। कोहरे ने मेरी खिड़की के सभी शीषों को धुंधला कर दिया था। मैं उनके पार नहीं देख सकती थी। बाहर का मौसम सर्द है

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मैं सालों बाद उस गली पर पैदल चल रही थी, जो मेरे घर से निकलकर इन वादियों के घुमावदार रास्तों में कहीं विलीन हो जाती थी। उस गली के हर कदम पर मैं खुद को बिखरा महसूस कर रही थी। उस गली से भी ना जाने कितनी

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वह आदमी दुकान तक गया और मेरा थैला उठा लाया। उसने इसे मेरे चेहरे पर फेंक दिया और मेरे जाने का इंतजार करने लगा। मैंने एक बार दुकान पर नजर डाली। मुझे उस गरीब दुकानदार की चिंता थी, जो हर गुजरते पल के साथ

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मेरी धड़कनें खुद मुझे भी सुनायी दे रहीं थीं। मैं महसूस कर सकती थी कि मेरा दिल मेरी छाती के पिंजर पर जोर से टकरा रहा है लेकिन उस रोषनी में मुझे जो दिखा उसने मुझे थोड़ी तस्सली दी। मुझे यह देखकर ताजुब्ब

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“याद नहीं।” उसने जवाब दिया  “शायद पंद्रह दिन, या उससे भी ज्यादा।” अन्य महिलाओं में से एक ने वहीं कोने से जवाब दिया। “हमारे पास दिनों की गिनती करने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने हमारा सब कुछ ले लिया। ”

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“तुम यहाॅ कैसे फॅसी?” अंत में सब से ज्यादा चुप रहने वाली महिला ने अपना मुंह खोला। जब से मैं यहाँ थी, मैंने पहली बार उसकी आवाज सुनी थी। उसकी आवाज हर शब्द पर कांप रही थी। “तुम कहाॅ से हो? क्या तुम भागने

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एक सेकंड में मेरे दिमाग में दर्जनों सवाल पलक कौंध गये और मैं तय नहीं कर पायी कि पहले क्या पूछूँ? मैं पूछने वाली थी कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो? लेकिन उसी क्षण मुझे याद आया कि मीनाक्षी ने मुझसे क्या कहा

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अब सारा माहौल ड़र की चादर ओढ़े खामोष होकर दुबका हुआ था। उस रोज वह कुछ घण्टे बड़े थका देने वाले थे मेरे लिए। बाकि बंधक बड़ी-बड़ी आॅखों से मुझे तक रहीं थीं, मानों कह रहीं हो कि अब हो गयी तसल्ली? मैं अपन

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मैंने बोतल एक तरफ रख दी और बच्चे की तरफ देखा। “इसे ले लो।” मैंने मुस्कुरा कर उसे आग्रह किया और पत्तल लड़कों की ओर बढ़ा दी। वे तेजी से आए और अपना मुंह भरने लगे। वे इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने इसे ठीक

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हालात बदतर होते जा रहे थे। वह जनवरी का महीना था। ज्यादातर दिन या तो बारिश होती थी या बर्फबारी। बारीष का पानी उस घर की छत से कहीं-कहीं रिसता भी था। उससे कमरे की नमी बढ़ गयी थी और साथ ही गारे की बू भी।

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रिहान ने मेरी तरफ देखा। उसने मेरी हालत देखी और मेरा डर भी। उसने मेरे कपड़ों को देखा और फिर उसने दूसरे बंधकों को देखा। “वह फिर से नहीं आयेगा। आप सभी अब सो सकते हैं।” उसने सभी से कहा लेकिन उसकी आँखें मु

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अचानक मुझे पदचाप सुनाई दी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मुझे लगा कि यह हमारा भोजन है। “ऐ तुम!” एक लड़का अंदर आया और मैं कमरे के बीच ठहर गया। हम सब उसे ताड़ रहे थे और वह सिर्फ मुझे। वह शायद ही सत्रह

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मैं एक बार फिर हार गयी थी। मैंने अपनी मुट्ठी फर्श पर मार दी। मैं थोड़ी और देर रस्सी को क्यों नहीं थामे रह पायी? उसकी गर्दन केवल एक निषान के साथ आजाद हो गयी थी। “ह-मजादी! आज बताता हूॅ तुझे!” उसने मेरी

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मेरी रीढ़ अब तक दर्द में थी। मैं अपने पैरों पर सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वहाॅ किसी ने भी मुझे किसी तरह की दवा नहीं दी। दर्द से तड़पना ही एकमात्र विकल्प बचा था मेरे पास। लगभग एक दिन न तो रिहान और

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अचानक मुझे बाहर कुछ आवाजें सुनाई दीं। मैंने पहली आवाज को पहचाना-, यह अश्वश्री थी और दूसरा कुछ पुरुष था। जब तक मैं बाल्टी से कूद कर नीचे आयी तब तक दरवाजे पर एक तेज दस्तक ने मुझे चैंका दिया! “कौन?” मैं

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मैने वही किया जो उसने मुझे करने को कहा था। मैंने चलने की कोशिश की। मैं थोड़ी मुश्किल से ही सही लेकिन चल सकती थी। मेरा सिर अभी भी भारी दर्द में था और मैं बहुत बीमार महसूस कर रही थी। मेरी नसों में एक ती

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वह गाड़ी चलाता रहा और विंडशील्ड से बाहर देखता रहा। यह दुखद था! यह केवल मेरे रिहान के बारे में नहीं था। मैंने वहां देखे गए प्रत्येक आतंकवादी में रिहान को पाया। उनके पास विकल्प हैं लेकिन कहां? उनकी पहचा

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जब हम उस आर्मी कैंप से निकल रहे थे तो हमें बताया कि आगे के रिकॉर्ड के लिए हमारे प्रत्येक दस्तावेज की एक प्रति उन्हे चाहिये होगी। विदुर वहीं ठहर गये ताकि उनकेा सारे कागजों की प्रतियाॅ करा कर दे सकें और

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मेरी नजर या तो सड़क पर थी या उसकी छाती पर। अभी भी खून बह रहा था। मैंने देखा कि उसकी पट्टी पर धब्बा हर मिनट के साथ अपना आकार बढ़ा रहा था। उसकी हालत गंभीर थी और मैं उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। मैं आगे नही

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मैं गाड़ी चलाते हुए उसके अगले शब्द का इंतजार कर रही थी। मेरी नजर विंडशील्ड पर टिकी थी। “रिहान?” मैंने उसे पुकारा। “मुझे घर दिखायी दे रहा है।” मैंने उससे कहा और कुछ दूरी पर ब्रेक दबाया। मैं कोई फैसला ख

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