आधे घंटे बादः
उसने वैन को कहीं रोक दिया। एक जगह, जहाॅ मैं अपने जीवन में कभी नहीं गयी। जहाँ तक मैं देख सकती थी वहाँ तक पेड़, कोहरा, पहाड़ और घास ही दिख रहे थे। इससे पहले भी मैंने विंडशील्ड के बाहर झाॅकने की कोशिश की लेकिन सबसे पहली बात कि सब कुछ कोहरे में छिपा हुआ था और दूसरी बात, जिस तरह से उसने वैन चलायी थी-, कोई भी आसपास का माहौल नहीं देख सकता था। असल में मैं किसी मदद की तलाष में थी लेकिन वह एक ऐसी जगह ले आया था मुझे, जहाॅ मदद मिलने का कोई मतलब ही ना था।
“बाहर!” उसने मेरे लिए गाड़ी का दरवाजा खोला। मैं मन पक्का करते हुए बाहर आयी। “चलो!” मुझे अपने गनपॉइंट से धक्का देते हुए उसने चलने पर मजबूर किया। मैं चारों ओर देख रही थी कि अगर मैं पहचान सकती उस जगह कों, लेकिन मुझे ऐसा कुछ भी नहीं दिखा। बस इतना पता था कि वह कष्मीर की सीमा से लगा कोई जंगल था। शायद, हम जंगल के मध्य खड़े थे और कस्बे अब बहुत दूर छूट चुके थे। चलते हुए मैं पहाड़ो की श्रृंखला को देख रही थी। पास ही शायद पानी की कोई धारा भी बहती होगी, जिसकी आवाजें मैं सुन रही थी। इससे पहले कि मैं कुछ और देख पाती, हम एक पुराने, डबल स्टोरर्ड घर तक पहुँच गए। उसे देखकर मैं यकीन के साथ कह सकती थी कि वह कुछ 20-22 साल पुराना होगा। वह केवल पत्थर और लकड़ी और मिट्टी का बना था। उसकी खिड़कियों में शीषे तक ना थे। उसकी दीवारें इतनी बदरंग हो चुकीं थीं कि किस रंग में उसे आखिरी बार रंगा गया होगा, यह अनुमान लगाना कठिन था।
व्ह घर इस तरह से पेड़ों से घिरा हुआ था कि मैं उसे तब तक नहीं देख पायी, जब तक कि मैं तीस या पैंतीस मीटर की दूरी पर नहीं पहुॅच गयी। उसका आंगन घास और झाडि़यों और लता में छिपा था। वह बंदूकधारी मुझे घर के अंदर ले गया। मुझे यकीन था कि यह वही जगह है जहाँ उसने मुझे मारने या बलात्कार करने का फैसला किया, और मेरा दिमाग योजना बनाने लगा कि अगर वह इसमें से कोई भी कोशिश करेगा तो मैं क्या करूँगी? अपनी रक्षा के लिए क्या करूँगी?
हम लोग बरामदे में प्रवेश कर गए। ऊपरी मंजिल तक सीढि़याँ थी। उसने मुझे सीढ़याॅ चढ़ने का आदेश दिया। मैं चारों ओर टकटकी लगाए हुए आगे बढ़ रही थी। नीचे बरामदे में कतार से तीन कमरे थे। उनमें से बीच वाले पर एक ताला था, मतलब वहाॅ कोई या कुछ ऐसा है जो कीमती है। बाकि दो कमरों के दरवाजे शायद खुले भी नहीं थे, बल्कि एक दरवाजा तो कब्जों से लटका हुआ था। जब हम सीढि़यों से ऊपर चढ़ रहे थे, तो लकड़ी की चरमराहट दूर से सुनी जा सकती थी। साथ ही सीढ़ीयाॅ हमारे कदमों के साथ मिट्टी भी झाड़ रही थी। हमने ऊपरी मंजिल पर कदम रखा। हैरान थी कि हम दोनों वहाॅ अकेले नहीं थे। एक के बाद एक तीन लड़के घातक बंदूकों के साथ जाने कौन-कौन से कोनों से निकलकर हमारे सामने आये। रंगों की किसी भूल-भुलैया में जैसे आकृतियाॅ डूब जातीं हैं, वैसे ही किसी सरीसृप की तरह, वे अपने परिवेश में छिपे हुए थे। “यकीन नहंी होता।” मैं बड़बड़ायी। मैं उन्हें दस फीट की दूरी से भी नहीं देख पायी थी। यदि वे इस घर की रखवाली कर रहे थे, तो इसका सीधा मतलब था, यह एक अड्डा है।, मैंने देखा कि एक आदमी वहां से गुजर रहा था। वह नकाबपोश नहीं था और न ही वह उस लबादे में ढंका था। उसने नीले और सफेद रंग की भारी जैकेट पहन रखी थी। वह गुज़रते हुए अपने दोस्त को देखकर मुस्कुराया।
हमने वह बरामदा पार किया। ऊपर भी एक पंक्ति में तीन कमरे थे। घर की चुप्पी किसी को भी भ्रमित कर सकती थी कि यह खाली है, लेकिन असल में ऐसा नहीं था। दूसरा कमरा कुछ आवाजों से गूंज रहा था। हम पिछले पर ही रुक गए। मेरे साथ चल रहा बंदूकधारी दरवाजा खोलने वाला था कि अचानक चार आदमियों की भीड़ पहले कमरे से बाहर आ गई। इसने झटके से अपना हाथ दरवाजे से हटा लिया। उन्होंने एक-दूसरे को गले लगाया और बात की, जो कि मैं ठीक से सुन नहीं पायी, लेकिन यह सुनिश्चित था कि वे मेरे बारे में बात कर रहे थे। मैं एक कोने में खड़ी थी और तीनों ओर से उन्होनें घेरा हुआ था अन्यथा मैं सचमुच नीचे कूद सकती थी। वे जिस तरह मेरे शरीर के हर इंच को तक रहे थे, एक घृणित मुस्कान रखते हुए मुझे सच में वहाॅ से कूद जाना चाहिये था भले ही उसके बाद मैं जिन्दा बचती या नहीं। उनके चेहरों पर नकाब नहीं थे और यही कारण है कि मैं उनकी अभिव्यक्ति में वासना और रोष पढ़ सकती थी। यह निश्चित नहीं था कि वे मुझे काटेंगे या मुझे जलाएंगे या मेरा बलात्कार करेंगे? मेरा दिल तब और बैचेन होने होने लगा जब उन्होनें मुझे एक अंधेरे कमरे में धकेल दिया। यह कमरा पंक्ति में अंतिम था।
अब मैं अपनी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। मैं रोने लगी। मेरा दिल मुँह को आ गया जब मुझे लगा कि वे सब केवल एक कदम पीछे हैं और अब-, सोचकर ही मैं चींख पड़ी। उसी पल कमरे में रोशनी हुई! उन्होंने लालटेन जलाया।