मेरी रीढ़ अब तक दर्द में थी। मैं अपने पैरों पर सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वहाॅ किसी ने भी मुझे किसी तरह की दवा नहीं दी। दर्द से तड़पना ही एकमात्र विकल्प बचा था मेरे पास। लगभग एक दिन न तो रिहान और न ही उसका प्रमुख दिखाई दिया। केवल एक जाना-पहचाना चेहरा था-युसूफ। वही बदसूरत चेहरा उन्हीं गंदे इरादों के साथ।
हम चारों की मौत तय थी। दो दिन तक मैं बस खाती रही -,और सोती रही- और दूसरों से बात करती रही। और अगर मैं ऐसा नहीं कर रही होती तो मैं यह सोचती रहती कि रिहान ने अपने चीफ को मेरे बारे में क्या जवाब दिया होगा-, क्योंकि मैं अब तक जिंदा थी ...। मैं दिन-रात इसके बारे में सोच रही थी कि चीफ ने मुझे दोबारा क्यों नहीं बुलाया? अन्य बंधक भी मुझ से यही सवाल कर रहे थे , लेकिन मैं उन्हें क्या जवाब देती? मुझे यकीन था कि उन लोगों ने मेरे लिए कुछ और खतरनाक योजना बनाई होगी।
हो सकता है कि बाहर धूप थी, क्योंकि हम सभी तापमान में गर्माहट और सकारात्मक परिवर्तन के साथ-साथ हमारे स्वास्थ्य में भी सुधार महसूस कर रहे थे। दो दिन बाद मेरी पीठ बेहतर थी। मैं खड़े होकर चल सकती थी। उस रात से पिछले दो दिन मैनंे बिना कुछ गलत हरकत किये काटे थे लेकिन यहाॅ से भागने के इरादे को छोडा नहीं था...हार नहीं मानी थी, और मेरा मानना है कि किसी को भी नहीं माननी चाहिये। मुझे अपना पूरा जीवन एक अंधेरे कमरे में कैद होकर नहीं गुजारना था जिसकी गंध ही मुझे बीमार करने के लिए पर्याप्त है। मैं हर पल मौत के ड़र के साथ नहीं जी सकती थी। इस डर के साथ नहीं जी सकती थी कि किसी भी समय मेरा बलात्कार किया जा सकता था। मैं इस अपराधबोध के साथ नहीं जीना चाहती थी कि वहाॅ विदुर मेरे कारण खतरे में है। जिन्दगी या मौत, लेकिन मैं बस उसे अपनी शर्तों पर चाहती थी।
मुझे उस जगह या क्षेत्र या शहर से दूरी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। अन्य ंबधकों ने मुझे पहले ही बताया था कि अगर किसी तरह मैं यहाॅ से भाग भी जाऊॅ, तो भी घने जंगल में खो जाऊंगी और वहीं भटकते हुए दम तोड़ दूॅगी। इससे बाहर निकलने का रास्ता बिना मदद के ढॅूढा ही नहीं जा सकता। इसका सीधा मतलब था, मुझे कुछ उपयोगी चीजें तैयार करने और जानकारी इकट्ठा करने की जरूरत है। हमारे अंधेरे कमरे में खाली दीवारों और नम हवा के अलावा कुछ नहीं था। और हमारे शौचालय में केवल तीन चीजें थीं, जंग लगी बाल्टी-, प्लास्टिक का मग और सबसे उपयोगी चीज रोषनदान। दूसरों की तरह, मुझे यह भी पता था कि हम हथियारों के खिलाफ एक जंग लगी बाल्टी के साथ नहीं लड़ सकते, लेकिन फिर भी मैने अपने कान और आॅखें खुली रखीं। मैं अजान और अन्य घोषणाओं की तरह प्रत्येक आवाज़ को ध्यान से सुनती रही। मैंने महसूस किया कि उन आवाजों की दिशा हमेशा बाईं ओर थी। यह निश्चित था, अगर सौभाग्य से मुझे भागने का मौका मिला, तो मुझे बाईं ओर ही जाना होगा। शहर, जीवन और लोगों को केवल वहीं पाया जा सकता है। मैंने उन आतंकवादियों की हर हरकत पर नजर रखी। मैं देखती रही कि कब वे अन्य गतिविधियों में व्यस्त होते हैं? असल में वे हमसे ज्यादा व्यस्त थे। मैंने पाया कि शाम के वक्त वे मुश्किल से हमें देखने आते थे। और इस तरह मैंने कुछ चीजों की योजना बनाई।
मैंने अपनी आशा को जीवित रखा इसलिए नहीं क्योंकि मैं मुक्त रहना चाहती थी बल्कि इसलिए कि मैं अपने पति को सुरक्षित और खुश भी देखना चाहती थी। उस रात रिहान के मुॅह से उसका नाम सुनकर मुझे विदुर की और ज्यादा फिक्र होने लगी थी। वह भी मारा जा सकता था और यह सोच मुझे हर पल मार रही थी। अपनी हालत की मैं खुद जिम्मेदारी थी और वह जिस खतरे में था उसके लिए भी।
इन विचारों में शाम हो गयी।
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शायद मैं पागल थी, लेकिन अपनी भूल सुधारने का यही एक रास्ता था। मुझे अश्विश्री से पता चला था कि जो आदमी मारा गया, वह मेरे जैसे ही सोचता था। उसने भागने की हिम्मत की। मैं भी ठीक उसी तरह सोच रही थी जैसे उसने सोचा होगा, लेकिन मैं भाग्यशाली थी कि मुझे उसकी गलतियों से सीखने का मौका मिला। उनकी पहली गलती थी कि उन्होंने रात में भागने की कोशिश की। मुझे रात के बजाय शाम का समय बेहतर लगा, क्योंकि रात के सन्नाटे में उग्रवादी आहटों को बेहतर सुन सकते थे।
मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि वह सातंवी शाम थी। मैं टॉयलेट में थी। जैसे-जैसे मैं रोषनदान के करीब गयी मुझे बारिष की तड़तड़ाहट सुनायी दी। यह तो और भी अच्छा था! मैंने एक बार जोर से ताली बजाई। अश्वश्री जल्दी से अंदर आयी, जैसी कि मुझे उम्मीद थी भी। “क्या हुआ?” उसने अपनी चैड़ी खुली आँखों से दीवारों के हर एक हिस्से को पढ़ते हुए पूछा।
“कुछ नहीं।” मैंने शांत स्वर में कहा। वह थोड़ी देर के लिए कमरे और मुझे तकती रही और जब उसे कुछ समझ ना आया तो बाहर लौट गई। मुझे अच्छा लगा कि उन आतंकवादियों में से कोई भी इस आवाज को नहीं सुन सका। अष्विश्री के जाने के बाद मैं रोषनदान की तरफ बढ़ ही रही थी कि एक आंतकी ने दरवाजा भड़ाक कर खोल दिया। कुछ पल मुझे अपनी लाल आँखों से घूरने के बाद जैसे ही वह कुछ कहने को था कि अज़ान की तेज आवाज ने उसके होंठों को जकड़ लिया। “तुम्हारी उलटी गिनती शुरू हो चुकी है।” वह कहते ही बाहर चला गया।
मुझे अच्छी तरह पता था कि मेरे दिन गिने जाने लगे थे। मैं उस पर मुस्कुरायी और फिर बाल्टी उठा लायी। मुझे पता था कि वह सीधे नमाज के लिए बरामदे में गया होगा। शौचालय से बरामदे की दूरी लगभग चैदह फीट की थी। हवादार खिड़की छह फीट की ऊंचाई पर थी, क्योंकि यह मेरे सिर के ऊपर थी, जब मैं इसके नीचे खड़ी थी। समंभावना थी कि फिर से कोई मेरी जांच करने के लिए आ जाये और ये भी हो सकता था कि वे इतनी जल्दी दोबारा ना आयें। कुछ भी हो सकता था। मैं इससे पहले कई मौके गंवा चुकी थी।
बाल्टी के ऊपर खुद को संतुलित करते हुए, मैंने मग की मदद से उन सभी ग्यारह नाखूनों को बाहर निकाला। ध्यान से मैंने प्लाई बोर्ड को रोषनदान से अलग किया और बाहर की दुनिया मेरे सामने थी। लम्बे वक्त के बाद बाहर की दुनिया देखना कितना सुखद था। बारिश हो रही थी और मैंने उन पेड़ों और झाडि़यों को आसमान से गिरती हुई ठंडी बूंदों में नहाते देखा। मुझे ऐसा लगा जैसे मैं दशकों बाद इन चीजों को देख रही हूँ। इसने मुझे थोड़ी देर के लिए मंत्रमुग्ध कर दिया और जल्द ही मेरी नज़र कुछ लाल धब्बों पर गई। मैंने इसे गौर से देखा। हां, यह खून था, शायद उसी आदमी का जिसने मुझ से पहले भागने की कोशिश की थी। “बेचारा।” मैं बड़बड़ायी और एक गहरी साँस के साथ नीचे झाॅका।
”ओह, गॉड।” मैं बेवकूफ थी कि मैंने मान लिया कि वे आतंकवादी कमअक्ल है। असल में वे नहीं थे। यहाॅ रोषनदान के ठीक नीचे मैदान पत्थरों और लकडि़यों और कुछ कंटीले तारों से भरा था। यह निश्चित था कि कोई भी सीधे इसमें कूद नहीं सकता था, और यदि कोई कूद भी जाये तो बुरी तरह जख्मी हो जायेगा। मेरी एक चूक पूरे शरीर पर दर्जनों घावों को चिह्नित करने के लिए पर्याप्त होगी, लेकिन मेरे पास सोचने का समय नहीं था, क्योंकि मैंने पहले ही पांच मिनट गंवा चुकी थी। जमीन पर कूदना कोई विकल्प नहीं था, लेकिन मुझे नीचे उतरने के लिए कुछ भी नहीं मिला ... कोई रस्सी नहीं, कोई तार नहीं ।