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कभी

28 मई 2022

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मेरी रीढ़ अब तक दर्द में थी। मैं अपने पैरों पर सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वहाॅ किसी ने भी मुझे किसी तरह की दवा नहीं दी। दर्द से तड़पना ही एकमात्र विकल्प बचा था मेरे पास। लगभग एक दिन न तो रिहान और न ही उसका प्रमुख दिखाई दिया। केवल एक जाना-पहचाना चेहरा था-युसूफ। वही बदसूरत चेहरा उन्हीं गंदे इरादों के साथ।

हम चारों की मौत तय थी। दो दिन तक मैं बस खाती रही -,और सोती रही- और दूसरों से बात करती रही। और अगर मैं ऐसा नहीं कर रही होती तो मैं यह सोचती रहती कि रिहान ने अपने चीफ को मेरे बारे में क्या जवाब दिया होगा-, क्योंकि मैं अब तक जिंदा थी ...। मैं दिन-रात इसके बारे में सोच रही थी कि चीफ ने मुझे दोबारा क्यों नहीं बुलाया? अन्य बंधक भी मुझ से यही सवाल कर रहे थे , लेकिन मैं उन्हें क्या जवाब देती? मुझे यकीन था कि उन लोगों ने मेरे लिए कुछ और खतरनाक योजना बनाई होगी। 

हो सकता है कि बाहर धूप थी, क्योंकि हम सभी तापमान में गर्माहट और सकारात्मक परिवर्तन के साथ-साथ हमारे स्वास्थ्य में भी सुधार महसूस कर रहे थे। दो दिन बाद मेरी पीठ बेहतर थी। मैं खड़े होकर चल सकती थी। उस रात से पिछले दो दिन मैनंे बिना कुछ गलत हरकत किये काटे थे लेकिन यहाॅ से भागने के इरादे को छोडा नहीं था...हार नहीं मानी थी, और मेरा मानना है कि किसी को भी नहीं माननी चाहिये। मुझे अपना पूरा जीवन एक अंधेरे कमरे में कैद होकर नहीं गुजारना था जिसकी गंध ही मुझे बीमार करने के लिए पर्याप्त है। मैं हर पल मौत के ड़र के साथ नहीं जी सकती थी। इस डर के साथ नहीं जी सकती थी कि किसी भी समय मेरा बलात्कार किया जा सकता था। मैं इस अपराधबोध के साथ नहीं जीना चाहती थी कि वहाॅ विदुर मेरे कारण खतरे में है। जिन्दगी या मौत, लेकिन मैं बस उसे अपनी शर्तों पर चाहती थी। 

मुझे उस जगह या क्षेत्र या शहर से दूरी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। अन्य ंबधकों ने मुझे पहले ही बताया था कि अगर किसी तरह मैं यहाॅ से भाग भी जाऊॅ, तो भी घने जंगल में खो जाऊंगी और वहीं भटकते हुए दम तोड़ दूॅगी। इससे बाहर निकलने का रास्ता बिना मदद के ढॅूढा ही नहीं जा सकता। इसका सीधा मतलब था, मुझे कुछ उपयोगी चीजें तैयार करने और जानकारी इकट्ठा करने की जरूरत है। हमारे अंधेरे कमरे में खाली दीवारों और नम हवा के अलावा कुछ नहीं था। और हमारे शौचालय में केवल तीन चीजें थीं, जंग लगी बाल्टी-, प्लास्टिक का मग और सबसे उपयोगी चीज रोषनदान। दूसरों की तरह, मुझे यह भी पता था कि हम हथियारों के खिलाफ एक जंग लगी बाल्टी के साथ नहीं लड़ सकते, लेकिन फिर भी मैने अपने कान और आॅखें खुली रखीं। मैं अजान और अन्य घोषणाओं की तरह प्रत्येक आवाज़ को ध्यान से सुनती रही। मैंने महसूस किया कि उन आवाजों की दिशा हमेशा बाईं ओर थी। यह निश्चित था, अगर सौभाग्य से मुझे भागने का मौका मिला, तो मुझे बाईं ओर ही जाना होगा। शहर, जीवन और लोगों को केवल वहीं पाया जा सकता है। मैंने उन आतंकवादियों की हर हरकत पर नजर रखी। मैं देखती रही कि कब वे अन्य गतिविधियों में व्यस्त होते हैं? असल में वे हमसे ज्यादा व्यस्त थे। मैंने पाया कि शाम के वक्त वे मुश्किल से हमें देखने आते थे। और इस तरह मैंने कुछ चीजों की योजना बनाई।

मैंने अपनी आशा को जीवित रखा इसलिए नहीं क्योंकि मैं मुक्त रहना चाहती थी बल्कि इसलिए कि मैं अपने पति को सुरक्षित और खुश भी देखना चाहती थी। उस रात रिहान के मुॅह से उसका नाम सुनकर मुझे विदुर की और ज्यादा फिक्र होने लगी थी। वह भी मारा जा सकता था और यह सोच मुझे हर पल मार रही थी। अपनी हालत की मैं खुद जिम्मेदारी थी और वह जिस खतरे में था उसके लिए भी। 

इन विचारों में शाम हो गयी।

Û Û Û Û Û Û

शायद मैं पागल थी, लेकिन अपनी भूल सुधारने का यही एक रास्ता था। मुझे अश्विश्री से पता चला था कि जो आदमी मारा गया, वह मेरे जैसे ही सोचता था। उसने भागने की हिम्मत की। मैं भी ठीक उसी तरह सोच रही थी जैसे उसने सोचा होगा, लेकिन मैं भाग्यशाली थी कि मुझे उसकी गलतियों से सीखने का मौका मिला। उनकी पहली गलती थी कि उन्होंने रात में भागने की कोशिश की। मुझे रात के बजाय शाम का समय बेहतर लगा, क्योंकि रात के सन्नाटे में उग्रवादी आहटों को बेहतर सुन सकते थे। 

मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि वह सातंवी शाम थी। मैं टॉयलेट में थी। जैसे-जैसे मैं रोषनदान के करीब गयी मुझे बारिष की तड़तड़ाहट सुनायी दी। यह तो और भी अच्छा था! मैंने एक बार जोर से ताली बजाई। अश्वश्री जल्दी से अंदर आयी, जैसी कि मुझे उम्मीद थी भी। “क्या हुआ?” उसने अपनी चैड़ी खुली आँखों से दीवारों के हर एक हिस्से को पढ़ते हुए पूछा।

“कुछ नहीं।” मैंने शांत स्वर में कहा। वह थोड़ी देर के लिए कमरे और मुझे तकती रही और जब उसे कुछ समझ ना आया तो बाहर लौट गई। मुझे अच्छा लगा कि उन आतंकवादियों में से कोई भी इस आवाज को नहीं सुन सका। अष्विश्री के जाने के बाद मैं रोषनदान की तरफ बढ़ ही रही थी कि एक आंतकी ने दरवाजा भड़ाक कर खोल दिया। कुछ पल मुझे अपनी लाल आँखों से घूरने के बाद जैसे ही वह कुछ कहने को था कि अज़ान की तेज आवाज ने उसके होंठों को जकड़ लिया। “तुम्हारी उलटी गिनती शुरू हो चुकी है।” वह कहते ही बाहर चला गया।

मुझे अच्छी तरह पता था कि मेरे दिन गिने जाने लगे थे। मैं उस पर मुस्कुरायी और फिर बाल्टी उठा लायी। मुझे पता था कि वह सीधे नमाज के लिए बरामदे में गया होगा। शौचालय से बरामदे की दूरी लगभग चैदह फीट की थी। हवादार खिड़की छह फीट की ऊंचाई पर थी, क्योंकि यह मेरे सिर के ऊपर थी, जब मैं इसके नीचे खड़ी थी। समंभावना थी कि फिर से कोई मेरी जांच करने के लिए आ जाये और ये भी हो सकता था कि वे इतनी जल्दी दोबारा ना आयें। कुछ भी हो सकता था। मैं इससे पहले कई मौके गंवा चुकी थी।

बाल्टी के ऊपर खुद को संतुलित करते हुए, मैंने मग की मदद से उन सभी ग्यारह नाखूनों को बाहर निकाला। ध्यान से मैंने प्लाई बोर्ड को रोषनदान से अलग किया और बाहर की दुनिया मेरे सामने थी। लम्बे वक्त के बाद बाहर की दुनिया देखना कितना सुखद था। बारिश हो रही थी और मैंने उन पेड़ों और झाडि़यों को आसमान से गिरती हुई ठंडी बूंदों में नहाते देखा। मुझे ऐसा लगा जैसे मैं दशकों बाद इन चीजों को देख रही हूँ। इसने मुझे थोड़ी देर के लिए मंत्रमुग्ध कर दिया और जल्द ही मेरी नज़र कुछ लाल धब्बों पर गई। मैंने इसे गौर से देखा। हां, यह खून था, शायद उसी आदमी का जिसने मुझ से पहले भागने की कोशिश की थी। “बेचारा।” मैं बड़बड़ायी और एक गहरी साँस के साथ नीचे झाॅका।

”ओह, गॉड।” मैं बेवकूफ थी कि मैंने मान लिया कि वे आतंकवादी कमअक्ल है। असल में वे नहीं थे। यहाॅ रोषनदान के ठीक नीचे मैदान पत्थरों और लकडि़यों और कुछ कंटीले तारों से भरा था। यह निश्चित था कि कोई भी सीधे इसमें कूद नहीं सकता था, और यदि कोई कूद भी जाये तो बुरी तरह जख्मी हो जायेगा। मेरी एक चूक पूरे शरीर पर दर्जनों घावों को चिह्नित करने के लिए पर्याप्त होगी, लेकिन मेरे पास सोचने का समय नहीं था, क्योंकि मैंने पहले ही पांच मिनट गंवा चुकी थी। जमीन पर कूदना कोई विकल्प नहीं था, लेकिन मुझे नीचे उतरने के लिए कुछ भी नहीं मिला ... कोई रस्सी नहीं, कोई तार नहीं । 


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वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक पल में उठ बैठी! “माँ”? मैं उनके चेहरे को देखते हुए दोहराया। जितनी आंतकित मैं थी सुनकर शायद वह भी थे ये बात बोलते हुए। “किसकी माँ?” मैंने थोड़ी शंका के साथ पूछा कि क्या वह मेरी ही माँ के बारे में बात कर रहे हैं? उनके चेहरे पर भी शायद वही आंदेषा था, जो मेरे मन में हलचल मचा रहा था। कश्मीर में देर रात एक आतंकी हमले में मेरी मां की मौत हो गई।
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कभी...। वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक

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ये पहली मौत नहीं थी जो मैनें देखी थी। कुछ तीन साल पहले इसी तरह पिताजी को भी देख चुकी थी, और वह भी इसी घर में। वह बीमार रहते थे, उनकी मौत अपेक्षित थी लेकिन माॅ की मौत मेरे लिए चैंका देने वाली थी। मुझे

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मेरी आॅखें उस वक्त भी आसूॅओं से भर गयीं। मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा। हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक ही घटना के बारे में सोच रहे थे। अजान की आवाज खामोष हुई। “क्या यह तुम्हें अब भी ड़रा देता है?” उसने

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गर्म पानी के स्नान के बाद मैं हमाम से बाहर आयी। अपने कमरे में आकर मैनें खिडकी के पर्दे उठाए। कोहरे ने मेरी खिड़की के सभी शीषों को धुंधला कर दिया था। मैं उनके पार नहीं देख सकती थी। बाहर का मौसम सर्द है

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मैं सालों बाद उस गली पर पैदल चल रही थी, जो मेरे घर से निकलकर इन वादियों के घुमावदार रास्तों में कहीं विलीन हो जाती थी। उस गली के हर कदम पर मैं खुद को बिखरा महसूस कर रही थी। उस गली से भी ना जाने कितनी

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वह आदमी दुकान तक गया और मेरा थैला उठा लाया। उसने इसे मेरे चेहरे पर फेंक दिया और मेरे जाने का इंतजार करने लगा। मैंने एक बार दुकान पर नजर डाली। मुझे उस गरीब दुकानदार की चिंता थी, जो हर गुजरते पल के साथ

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आधे घंटे बादः उसने वैन को कहीं रोक दिया। एक जगह, जहाॅ मैं अपने जीवन में कभी नहीं गयी। जहाँ तक मैं देख सकती थी वहाँ तक पेड़, कोहरा, पहाड़ और घास ही दिख रहे थे। इससे पहले भी मैंने विंडशील्ड के बाहर झाॅ

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मेरी धड़कनें खुद मुझे भी सुनायी दे रहीं थीं। मैं महसूस कर सकती थी कि मेरा दिल मेरी छाती के पिंजर पर जोर से टकरा रहा है लेकिन उस रोषनी में मुझे जो दिखा उसने मुझे थोड़ी तस्सली दी। मुझे यह देखकर ताजुब्ब

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“याद नहीं।” उसने जवाब दिया  “शायद पंद्रह दिन, या उससे भी ज्यादा।” अन्य महिलाओं में से एक ने वहीं कोने से जवाब दिया। “हमारे पास दिनों की गिनती करने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने हमारा सब कुछ ले लिया। ”

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“तुम यहाॅ कैसे फॅसी?” अंत में सब से ज्यादा चुप रहने वाली महिला ने अपना मुंह खोला। जब से मैं यहाँ थी, मैंने पहली बार उसकी आवाज सुनी थी। उसकी आवाज हर शब्द पर कांप रही थी। “तुम कहाॅ से हो? क्या तुम भागने

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एक सेकंड में मेरे दिमाग में दर्जनों सवाल पलक कौंध गये और मैं तय नहीं कर पायी कि पहले क्या पूछूँ? मैं पूछने वाली थी कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो? लेकिन उसी क्षण मुझे याद आया कि मीनाक्षी ने मुझसे क्या कहा

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अब सारा माहौल ड़र की चादर ओढ़े खामोष होकर दुबका हुआ था। उस रोज वह कुछ घण्टे बड़े थका देने वाले थे मेरे लिए। बाकि बंधक बड़ी-बड़ी आॅखों से मुझे तक रहीं थीं, मानों कह रहीं हो कि अब हो गयी तसल्ली? मैं अपन

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मैंने बोतल एक तरफ रख दी और बच्चे की तरफ देखा। “इसे ले लो।” मैंने मुस्कुरा कर उसे आग्रह किया और पत्तल लड़कों की ओर बढ़ा दी। वे तेजी से आए और अपना मुंह भरने लगे। वे इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने इसे ठीक

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हालात बदतर होते जा रहे थे। वह जनवरी का महीना था। ज्यादातर दिन या तो बारिश होती थी या बर्फबारी। बारीष का पानी उस घर की छत से कहीं-कहीं रिसता भी था। उससे कमरे की नमी बढ़ गयी थी और साथ ही गारे की बू भी।

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रिहान ने मेरी तरफ देखा। उसने मेरी हालत देखी और मेरा डर भी। उसने मेरे कपड़ों को देखा और फिर उसने दूसरे बंधकों को देखा। “वह फिर से नहीं आयेगा। आप सभी अब सो सकते हैं।” उसने सभी से कहा लेकिन उसकी आँखें मु

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अचानक मुझे पदचाप सुनाई दी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मुझे लगा कि यह हमारा भोजन है। “ऐ तुम!” एक लड़का अंदर आया और मैं कमरे के बीच ठहर गया। हम सब उसे ताड़ रहे थे और वह सिर्फ मुझे। वह शायद ही सत्रह

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मैं एक बार फिर हार गयी थी। मैंने अपनी मुट्ठी फर्श पर मार दी। मैं थोड़ी और देर रस्सी को क्यों नहीं थामे रह पायी? उसकी गर्दन केवल एक निषान के साथ आजाद हो गयी थी। “ह-मजादी! आज बताता हूॅ तुझे!” उसने मेरी

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मेरी रीढ़ अब तक दर्द में थी। मैं अपने पैरों पर सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वहाॅ किसी ने भी मुझे किसी तरह की दवा नहीं दी। दर्द से तड़पना ही एकमात्र विकल्प बचा था मेरे पास। लगभग एक दिन न तो रिहान और

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अचानक मुझे बाहर कुछ आवाजें सुनाई दीं। मैंने पहली आवाज को पहचाना-, यह अश्वश्री थी और दूसरा कुछ पुरुष था। जब तक मैं बाल्टी से कूद कर नीचे आयी तब तक दरवाजे पर एक तेज दस्तक ने मुझे चैंका दिया! “कौन?” मैं

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मैने वही किया जो उसने मुझे करने को कहा था। मैंने चलने की कोशिश की। मैं थोड़ी मुश्किल से ही सही लेकिन चल सकती थी। मेरा सिर अभी भी भारी दर्द में था और मैं बहुत बीमार महसूस कर रही थी। मेरी नसों में एक ती

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वह गाड़ी चलाता रहा और विंडशील्ड से बाहर देखता रहा। यह दुखद था! यह केवल मेरे रिहान के बारे में नहीं था। मैंने वहां देखे गए प्रत्येक आतंकवादी में रिहान को पाया। उनके पास विकल्प हैं लेकिन कहां? उनकी पहचा

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जब हम उस आर्मी कैंप से निकल रहे थे तो हमें बताया कि आगे के रिकॉर्ड के लिए हमारे प्रत्येक दस्तावेज की एक प्रति उन्हे चाहिये होगी। विदुर वहीं ठहर गये ताकि उनकेा सारे कागजों की प्रतियाॅ करा कर दे सकें और

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मेरी नजर या तो सड़क पर थी या उसकी छाती पर। अभी भी खून बह रहा था। मैंने देखा कि उसकी पट्टी पर धब्बा हर मिनट के साथ अपना आकार बढ़ा रहा था। उसकी हालत गंभीर थी और मैं उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। मैं आगे नही

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मैं गाड़ी चलाते हुए उसके अगले शब्द का इंतजार कर रही थी। मेरी नजर विंडशील्ड पर टिकी थी। “रिहान?” मैंने उसे पुकारा। “मुझे घर दिखायी दे रहा है।” मैंने उससे कहा और कुछ दूरी पर ब्रेक दबाया। मैं कोई फैसला ख

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