अचानक मुझे पदचाप सुनाई दी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मुझे लगा कि यह हमारा भोजन है। “ऐ तुम!” एक लड़का अंदर आया और मैं कमरे के बीच ठहर गया। हम सब उसे ताड़ रहे थे और वह सिर्फ मुझे। वह शायद ही सत्रह या अठारह साल का होगा, लेकिन वह अपनी राइफल से इतना परफेक्ट होने की कोशिश कर रहा था। उसकी आवाज एक नये रंगरूट सी थी- बुलंद और निडर। मैं उस पर मुस्कुराने ही वाली थी कि- “चीफ ने तुम्हें बुलाया है।” मेरी मुस्कान गायब हो गई!
सन्देह के साथ मैं खड़ी हुई- “क्यों?”
वह थोड़ी देर के लिए अवाक रह गया और फिर वह मेरे पास आया। “घूम जाओ।” उसने मेरे हाथों को रस्सी से बाॅध दिया। ऐसा पहले कभी किसी के साथ नहीं हुआ था। वे कभी भी चीफ के पास ले जाते समय महिला के हाथ नहीं बाॅधते। यह हो सकता है ये नई चीज मेरे साथ इसलिए हो रही थी क्योंकि वे जानते थे कि मैं उनके खिलाफ खडी होने में सक्षम हूं।
“रुको- रुको, रुको।” मैंने कहा और जब वह हाथ बाॅध चुका था तो मैंने उसे घूरा। “हम में से प्रत्येक बुखार से पीडि़त हैं। क्या तुम उन्हें अस्पताल या डॉक्टर के पास ले जा सकते हों? ”मैंने उससे निवेदन किया और उसकी आँखें खाली पाईं। उसकी आँखों में कोई दर्द, कोई चिंता और मानवता जैसा कुछ नहीं दिखाई दिया। “कम से कम कुछ दवा ही ला दो?” मैंने जोर दिया। वह बस मुझे मेरी बात कहने का समय दे रहा था। मैंने अपनी आँखें सिकोड़ लीं- “सुहानी मर सकती है।” मैंने फिर कहा। उसने जवाब नहीं दिया और गाँठ की जाँच की कि क्या यह ढीला है? “चलो!” उसने आदेश दिया।
“मैं भी किस मषीन से बात कर रही हूॅ?” मैं गुस्से में बड़बड़ायी और उसके साथ दरवाजा पार किया। बाहर अंधेरा था। हो सकता है कि सुरक्षा कारणों से वे रात में भी रोशनी का उपयोग नहीं करते थे। घर कोहरे से घिरा था। वह एक सर्द और खूबसूरत रात थी। लंबे समय के बाद मैं खुली हवा में सांस ले रही थी लेकिन मैं अपने अगले पल को लेकर इतनी फिक्रमन्द थी कि चाॅदनी भी चुभ रही थी मुझे। दो आतंकवादी थे जो अपनी बंदूकों के साथ बरामदे में टहल रहे थे। वे चीफ की वापसी की बात कर रहे थे। तब मैं समझी कि मुझे अभी तक क्यों नहीं बुलाया गया था?
“एक औरत है जो बुखार में मर रही है।” इन शब्दों ने मेरी चाल को थोड़ा धीमा कर दिया और मैने पीछे देखा। यह वही लड़का था जो मुझे बाहर लाया था। वह ठीक मेरे पीछे चल रहा था और उसने दूसरे बंदूकधारी से सिर्फ वही एक वाक्य कहा, जो बरामदे में बंदूक के साथ टहल रहा था। जब तक मैंने बरामदे को पार किया और सीढि़यों पर कदम रखा, मैंने देखा कि एक बंदूकधारी कमरे में घुस गया और उसने सुहानी को बाहर निकाल लिया। मैं थोड़ी देर के लिए वहीं जम सी गयी। जिस तरह से उसने दीवार के सहारे एक बेहोश, असहाय महिला को खडा किया हुआ था ये जानते हुए भी कि वह खड़ी नहीं रह पा रही। सुहानी आगे झुक रही थी, किसी भी पल गिरने वाली थी, लेकिन उसने परवाह नहीं की। उसने एक हाथ में सुहानी के बालों को जकडें हुए दूसरे हाथ से उसके गालों को थपथपाया। मेरी आँखों में आग भर गई। इतना जाहिर था कि उस आदमी को किसी के स्वास्थ्य से कोई वास्ता नहीं है। मैं जल्द समझ गयी कि वह उसे दवा देने के लिए बाहर नही लाया था। मैं दांत पीसते हुए आगे बढ़ गयी।
मैं उसके साथ घूम रही थी और रिहान की तलाश कर रही थी, जो वहां नहीं दिख रहा था। हम उन्हीे सीढि़यों से गुजरते हुए नीचे पहुॅचें। वहीं दूसरे कमरे के दरवाजे के सामन उस लड़के ने मुझे रोका और-“अन्दर जाओ।” नौसिखिए ने मेरे लिए दरवाजा खोला। वह बाहर खड़ा था। “तुम लोग सुहानी के साथ क्या करोगे?”
“हम बिमार लोगों के मरने का इंतजार नहीं करते। उन्हें जंगल में ले जाकर गोली मार देते हैं।” इससे पहले कि मैं वास्तव में सुनाई गई बातों पर विश्वास कर पाता, उसने मुझे धक्का दे दिया। “तुम अपनी फिक्र करो!”
मेरी गलती थी कि मैने उसे बच्चा समझा। वह तो बाकियों का भी बाप था।
कमरे में केवल एक मोमबत्ती थी और चीफ सामने अपने बिस्तर पर बैठा मेरी राह तक रहा था। “आईये-आईये!” उसने नाटकीय तरीके से कहा। मैंने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। अब मुझे यकीन करना ही पड़ा कि उसने मुझे यहाॅ क्यों बुलाया था। मुझे उस आदमी के सामने खुद को बिछा देना था और उसे खुष करना था जिससे मैं जिन्दगी में सब से ज्यादा नफरत करती हॅू। जिसे देखकर ही मुझे घिन आती है। अश्वश्री सही थी कि वे हमें हर तरह से उपयोग करते थे।
यह कमरा हमारे कमरे से बड़ा था। उसका छ बाॅय चार का वह बिस्तर भी काफी साफ सुथरा और गर्म था। एक लोहे की सलाखों वाली खिडकी दरवाजे के दाॅयी तरफ थी और बिस्तर के सिरहाने पर दीवार में जड़ी एक अलमारी। मैंने बाएं कोने में दो लकड़ी के बक्से देखे जिन पर ताले लगे थे, उनमें से एक का रंग लाल था। एक कुर्सी के साथ एक लकड़ी की मेज। यह कमरा साफ सुथरा था। “आपको मेरा कमरा पसंद आया?” चीफ ने अपनी बुरी नजरों से मुझे तकते हुए पूछा “आप बीमार लोगों का इलाज नहीं करते, लेकिन गोली मार देते हैं?” यह मेरी पहली पंक्ति थी
वह मेरे पास आया- “हां क्योंकि हम कुर्बानी में यकीन करते हैं।”
“क्या बकवास है!” मैंने अपने जबड़े पीसते हुए खुद से कहा।
उसने आहिस्ता से मेरे हाथों की रस्सी खोल दी। “अपने कपड़े उतारो ... मेरे पास बर्बाद करने का समय नहीं है।” मेेरे गाल को आहिस्ता से सहलाकर वह दरवाजा अन्दर से बंद करने के लिए उस ओर जाने लगा। मेरा चेहरा और सख्त हो गया। अब मेरे हाथ आजाद थे। मैं उसके ठीक पीछे थी। उसके कदमों का पीछा करते हुए मैने रस्सी के दोनों किनारों को अपनी हथेलियों पर इस तरह लपेट लिया कि बीच का कुछ हिस्सा छोड़कर बाकि पर मेरी जबरदस्त पकड़ रहे। जैसे ही उसने दरवाजे की चटकनी लगाने के लिए अपने कदम रोके मैने लपक कर रस्सी उसके गले एक बार लपेट दी। “ओ!” उसके मुॅह से शब्द नहीं निकल रहे थे इसका मतलब था कि उसका गला घुट रहा है।
यद्यपि, वह मुझसे थोडा लंबा था, लेकिन मैं उस पर ठीक से पकड़ पाने में कामयाब रही। मैं अपने पूरे शरीर की ताकत से उसकी गर्दन को निचोड़ रही थी। मेरा मन, मेरी आत्मा, मेरा दिल-, मेरी प्रत्येक मांसपेशी और मेरी प्रत्येक हड्डी उसे तुरंत मार देना चाहती थी। मैं अच्छी तरह से वाकिफ थी यह मेरा आखिरी मौका और मेरी आखिरी हरकत हो सकती है। अगर मैं जीना चाहती हूं, तो मुझे उसे मारना होगा। वह मुझसे बहुत शक्तिशाली था, लेकिन वह अपनी मृत्यु से डरता था और मैं नहीं। मुझे पता था कि अगर वह बच जाता है तो आने वाले आधे घण्टे में मेरी मौत निष्चित थी इसलिए मैं मौत की हद तक उसे मार डालने की कोषिष कर रही थी। वह भी खुद को बचाने के लिए मचल रहा था। मेरा चेहरा या कान या बाल पाने के लिए हाथ लहरा रहा था। मुझे नहीं पता था कि वह कैसा महसूस कर रहा होगा, लेकिन मेरा शरीर उसके खिलाफ अपनी पूरी ताकत का उपयोग करते हुए कांप रहा था। मेरे गाल थरथरा रहे थे और जबड़े आपस में कस गये था। मैं हर पल थकती जा रही थी। मेरी हथेलियों में रस्सी चुभने लगी थी। और जाने कैसे और कब मेरे बाल उसकी पकड़ में आ गये और अपने आगे पटक दिया!