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कभी

28 मई 2022

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अचानक मुझे पदचाप सुनाई दी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मुझे लगा कि यह हमारा भोजन है। “ऐ तुम!” एक लड़का अंदर आया और मैं कमरे के बीच ठहर गया। हम सब उसे ताड़ रहे थे और वह सिर्फ मुझे। वह शायद ही सत्रह या अठारह साल का होगा, लेकिन वह अपनी राइफल से इतना परफेक्ट होने की कोशिश कर रहा था। उसकी आवाज एक नये रंगरूट सी थी- बुलंद और निडर। मैं उस पर मुस्कुराने ही वाली थी कि- “चीफ ने तुम्हें बुलाया है।” मेरी मुस्कान गायब हो गई!

सन्देह के साथ मैं खड़ी हुई- “क्यों?”

वह थोड़ी देर के लिए अवाक रह गया और फिर वह मेरे पास आया। “घूम जाओ।” उसने मेरे हाथों को रस्सी से बाॅध दिया। ऐसा पहले कभी किसी के साथ नहीं हुआ था। वे कभी भी चीफ के पास ले जाते समय महिला के हाथ नहीं बाॅधते। यह हो सकता है ये नई चीज मेरे साथ इसलिए हो रही थी क्योंकि वे जानते थे कि मैं उनके खिलाफ खडी होने में सक्षम हूं।

“रुको- रुको, रुको।” मैंने कहा और जब वह  हाथ बाॅध चुका था तो मैंने उसे घूरा। “हम में से प्रत्येक बुखार से पीडि़त हैं। क्या तुम उन्हें अस्पताल या डॉक्टर के पास ले जा सकते हों? ”मैंने उससे निवेदन किया और उसकी आँखें खाली पाईं। उसकी आँखों में कोई दर्द, कोई चिंता और मानवता जैसा कुछ नहीं दिखाई दिया। “कम से कम कुछ दवा ही ला दो?” मैंने जोर दिया। वह बस मुझे मेरी बात कहने का समय दे रहा था। मैंने अपनी आँखें सिकोड़ लीं- “सुहानी मर सकती है।” मैंने फिर कहा। उसने जवाब नहीं दिया और गाँठ की जाँच की कि क्या यह ढीला है? “चलो!” उसने आदेश दिया।

“मैं भी किस मषीन से बात कर रही हूॅ?” मैं गुस्से में बड़बड़ायी और उसके साथ दरवाजा पार किया। बाहर अंधेरा था। हो सकता है कि सुरक्षा कारणों से वे रात में भी रोशनी का उपयोग नहीं करते थे। घर कोहरे से घिरा था। वह एक सर्द और खूबसूरत रात थी। लंबे समय के बाद मैं खुली हवा में सांस ले रही थी लेकिन मैं अपने अगले पल को लेकर इतनी फिक्रमन्द थी कि चाॅदनी भी चुभ रही थी मुझे। दो आतंकवादी थे जो अपनी बंदूकों के साथ बरामदे में टहल रहे थे। वे चीफ की वापसी की बात कर रहे थे। तब मैं समझी कि मुझे अभी तक क्यों नहीं बुलाया गया था?

“एक औरत है जो बुखार में मर रही है।” इन शब्दों ने मेरी चाल को थोड़ा धीमा कर दिया और मैने पीछे देखा। यह वही लड़का था जो मुझे बाहर लाया था। वह ठीक मेरे पीछे चल रहा था और उसने दूसरे बंदूकधारी से सिर्फ वही एक वाक्य कहा, जो बरामदे में बंदूक के साथ टहल रहा था। जब तक मैंने बरामदे को पार किया और सीढि़यों पर कदम रखा, मैंने देखा कि एक बंदूकधारी कमरे में घुस गया और उसने सुहानी को बाहर निकाल लिया। मैं थोड़ी देर के लिए वहीं जम सी गयी। जिस तरह से उसने दीवार के सहारे एक बेहोश, असहाय महिला को खडा किया हुआ था ये जानते हुए भी कि वह खड़ी नहीं रह पा रही। सुहानी आगे झुक रही थी, किसी भी पल गिरने वाली थी, लेकिन उसने परवाह नहीं की। उसने एक हाथ में सुहानी के बालों को जकडें हुए दूसरे हाथ से उसके गालों को थपथपाया। मेरी आँखों में आग भर गई। इतना जाहिर था कि उस आदमी को किसी के स्वास्थ्य से कोई वास्ता नहीं है। मैं जल्द समझ गयी कि वह उसे दवा देने के लिए बाहर नही लाया था। मैं दांत पीसते हुए आगे बढ़ गयी। 

मैं उसके साथ घूम रही थी और रिहान की तलाश कर रही थी, जो वहां नहीं दिख रहा था। हम उन्हीे सीढि़यों से गुजरते हुए नीचे पहुॅचें। वहीं दूसरे कमरे के दरवाजे के सामन उस लड़के ने मुझे रोका और-“अन्दर जाओ।” नौसिखिए ने मेरे लिए दरवाजा खोला। वह बाहर खड़ा था। “तुम लोग सुहानी के साथ क्या करोगे?” 

“हम बिमार लोगों के मरने का इंतजार नहीं करते। उन्हें जंगल में ले जाकर गोली मार देते हैं।” इससे पहले कि मैं वास्तव में सुनाई गई बातों पर विश्वास कर पाता, उसने मुझे धक्का दे दिया। “तुम अपनी फिक्र करो!” 

मेरी गलती थी कि मैने उसे बच्चा समझा। वह तो बाकियों का भी बाप था।

कमरे में केवल एक मोमबत्ती थी और चीफ सामने अपने बिस्तर पर बैठा मेरी राह तक रहा था। “आईये-आईये!” उसने   नाटकीय तरीके से कहा। मैंने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। अब मुझे यकीन करना ही पड़ा कि उसने मुझे यहाॅ क्यों बुलाया था। मुझे उस आदमी के सामने खुद को बिछा देना था और उसे खुष करना था जिससे मैं जिन्दगी में सब से ज्यादा नफरत करती हॅू। जिसे देखकर ही मुझे घिन आती है। अश्वश्री सही थी कि वे हमें हर तरह से उपयोग करते थे।

यह कमरा हमारे कमरे से बड़ा था। उसका छ बाॅय चार का वह बिस्तर भी काफी साफ सुथरा और गर्म था। एक लोहे की सलाखों वाली खिडकी दरवाजे के दाॅयी तरफ थी और बिस्तर के सिरहाने पर दीवार में जड़ी एक अलमारी। मैंने बाएं कोने में दो लकड़ी के बक्से देखे जिन पर ताले लगे थे, उनमें से एक का रंग लाल था। एक कुर्सी के साथ एक लकड़ी की मेज। यह कमरा साफ सुथरा था। “आपको मेरा कमरा पसंद आया?” चीफ ने अपनी बुरी नजरों से मुझे तकते हुए पूछा “आप बीमार लोगों का इलाज नहीं करते, लेकिन गोली मार देते हैं?” यह मेरी पहली पंक्ति थी

वह मेरे पास आया- “हां क्योंकि हम कुर्बानी में यकीन करते हैं।” 

“क्या बकवास है!” मैंने अपने जबड़े पीसते हुए खुद से कहा।

उसने आहिस्ता से मेरे हाथों की रस्सी खोल दी। “अपने कपड़े उतारो ... मेरे पास बर्बाद करने का समय नहीं है।” मेेरे गाल को आहिस्ता से सहलाकर वह दरवाजा अन्दर से बंद करने के लिए उस ओर जाने लगा। मेरा चेहरा और सख्त हो गया। अब मेरे हाथ आजाद थे। मैं उसके ठीक पीछे थी। उसके कदमों का पीछा करते हुए मैने रस्सी के दोनों किनारों को अपनी हथेलियों पर इस तरह लपेट लिया कि बीच का कुछ हिस्सा छोड़कर बाकि पर मेरी जबरदस्त पकड़ रहे। जैसे ही उसने दरवाजे की चटकनी लगाने के लिए अपने कदम रोके मैने लपक कर रस्सी उसके गले एक बार लपेट दी। “ओ!” उसके मुॅह से शब्द नहीं निकल रहे थे इसका मतलब था कि उसका गला घुट रहा है।

यद्यपि, वह मुझसे थोडा लंबा था, लेकिन मैं उस पर ठीक से पकड़ पाने में कामयाब रही। मैं अपने पूरे शरीर की ताकत से उसकी गर्दन को निचोड़ रही थी। मेरा मन, मेरी आत्मा, मेरा दिल-, मेरी प्रत्येक मांसपेशी और मेरी प्रत्येक हड्डी उसे तुरंत मार देना चाहती थी। मैं अच्छी तरह से वाकिफ थी यह मेरा आखिरी मौका और मेरी आखिरी हरकत हो सकती है। अगर मैं जीना चाहती हूं, तो मुझे उसे मारना होगा। वह मुझसे बहुत शक्तिशाली था, लेकिन वह अपनी मृत्यु से डरता था और मैं नहीं। मुझे पता था कि अगर वह बच जाता है तो आने वाले आधे घण्टे में मेरी मौत निष्चित थी इसलिए मैं मौत की हद तक उसे मार डालने की कोषिष कर रही थी। वह भी खुद को बचाने के लिए मचल रहा था। मेरा चेहरा या कान या बाल पाने के लिए हाथ लहरा रहा था। मुझे नहीं पता था कि वह कैसा महसूस कर रहा होगा, लेकिन मेरा शरीर उसके खिलाफ अपनी पूरी ताकत का उपयोग करते हुए कांप रहा था। मेरे गाल थरथरा रहे थे और जबड़े आपस में कस गये था। मैं हर पल थकती जा रही थी। मेरी हथेलियों में रस्सी चुभने लगी थी। और जाने कैसे और कब मेरे बाल उसकी पकड़ में आ गये और अपने आगे पटक दिया!


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रचनाएँ
कभी
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वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक पल में उठ बैठी! “माँ”? मैं उनके चेहरे को देखते हुए दोहराया। जितनी आंतकित मैं थी सुनकर शायद वह भी थे ये बात बोलते हुए। “किसकी माँ?” मैंने थोड़ी शंका के साथ पूछा कि क्या वह मेरी ही माँ के बारे में बात कर रहे हैं? उनके चेहरे पर भी शायद वही आंदेषा था, जो मेरे मन में हलचल मचा रहा था। कश्मीर में देर रात एक आतंकी हमले में मेरी मां की मौत हो गई।
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कभी

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कभी...। वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक

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ये पहली मौत नहीं थी जो मैनें देखी थी। कुछ तीन साल पहले इसी तरह पिताजी को भी देख चुकी थी, और वह भी इसी घर में। वह बीमार रहते थे, उनकी मौत अपेक्षित थी लेकिन माॅ की मौत मेरे लिए चैंका देने वाली थी। मुझे

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मेरी आॅखें उस वक्त भी आसूॅओं से भर गयीं। मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा। हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक ही घटना के बारे में सोच रहे थे। अजान की आवाज खामोष हुई। “क्या यह तुम्हें अब भी ड़रा देता है?” उसने

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गर्म पानी के स्नान के बाद मैं हमाम से बाहर आयी। अपने कमरे में आकर मैनें खिडकी के पर्दे उठाए। कोहरे ने मेरी खिड़की के सभी शीषों को धुंधला कर दिया था। मैं उनके पार नहीं देख सकती थी। बाहर का मौसम सर्द है

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मैं सालों बाद उस गली पर पैदल चल रही थी, जो मेरे घर से निकलकर इन वादियों के घुमावदार रास्तों में कहीं विलीन हो जाती थी। उस गली के हर कदम पर मैं खुद को बिखरा महसूस कर रही थी। उस गली से भी ना जाने कितनी

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वह आदमी दुकान तक गया और मेरा थैला उठा लाया। उसने इसे मेरे चेहरे पर फेंक दिया और मेरे जाने का इंतजार करने लगा। मैंने एक बार दुकान पर नजर डाली। मुझे उस गरीब दुकानदार की चिंता थी, जो हर गुजरते पल के साथ

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आधे घंटे बादः उसने वैन को कहीं रोक दिया। एक जगह, जहाॅ मैं अपने जीवन में कभी नहीं गयी। जहाँ तक मैं देख सकती थी वहाँ तक पेड़, कोहरा, पहाड़ और घास ही दिख रहे थे। इससे पहले भी मैंने विंडशील्ड के बाहर झाॅ

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मेरी धड़कनें खुद मुझे भी सुनायी दे रहीं थीं। मैं महसूस कर सकती थी कि मेरा दिल मेरी छाती के पिंजर पर जोर से टकरा रहा है लेकिन उस रोषनी में मुझे जो दिखा उसने मुझे थोड़ी तस्सली दी। मुझे यह देखकर ताजुब्ब

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“याद नहीं।” उसने जवाब दिया  “शायद पंद्रह दिन, या उससे भी ज्यादा।” अन्य महिलाओं में से एक ने वहीं कोने से जवाब दिया। “हमारे पास दिनों की गिनती करने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने हमारा सब कुछ ले लिया। ”

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“तुम यहाॅ कैसे फॅसी?” अंत में सब से ज्यादा चुप रहने वाली महिला ने अपना मुंह खोला। जब से मैं यहाँ थी, मैंने पहली बार उसकी आवाज सुनी थी। उसकी आवाज हर शब्द पर कांप रही थी। “तुम कहाॅ से हो? क्या तुम भागने

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एक सेकंड में मेरे दिमाग में दर्जनों सवाल पलक कौंध गये और मैं तय नहीं कर पायी कि पहले क्या पूछूँ? मैं पूछने वाली थी कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो? लेकिन उसी क्षण मुझे याद आया कि मीनाक्षी ने मुझसे क्या कहा

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अब सारा माहौल ड़र की चादर ओढ़े खामोष होकर दुबका हुआ था। उस रोज वह कुछ घण्टे बड़े थका देने वाले थे मेरे लिए। बाकि बंधक बड़ी-बड़ी आॅखों से मुझे तक रहीं थीं, मानों कह रहीं हो कि अब हो गयी तसल्ली? मैं अपन

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मैंने बोतल एक तरफ रख दी और बच्चे की तरफ देखा। “इसे ले लो।” मैंने मुस्कुरा कर उसे आग्रह किया और पत्तल लड़कों की ओर बढ़ा दी। वे तेजी से आए और अपना मुंह भरने लगे। वे इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने इसे ठीक

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हालात बदतर होते जा रहे थे। वह जनवरी का महीना था। ज्यादातर दिन या तो बारिश होती थी या बर्फबारी। बारीष का पानी उस घर की छत से कहीं-कहीं रिसता भी था। उससे कमरे की नमी बढ़ गयी थी और साथ ही गारे की बू भी।

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रिहान ने मेरी तरफ देखा। उसने मेरी हालत देखी और मेरा डर भी। उसने मेरे कपड़ों को देखा और फिर उसने दूसरे बंधकों को देखा। “वह फिर से नहीं आयेगा। आप सभी अब सो सकते हैं।” उसने सभी से कहा लेकिन उसकी आँखें मु

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मैं एक बार फिर हार गयी थी। मैंने अपनी मुट्ठी फर्श पर मार दी। मैं थोड़ी और देर रस्सी को क्यों नहीं थामे रह पायी? उसकी गर्दन केवल एक निषान के साथ आजाद हो गयी थी। “ह-मजादी! आज बताता हूॅ तुझे!” उसने मेरी

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मेरी रीढ़ अब तक दर्द में थी। मैं अपने पैरों पर सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वहाॅ किसी ने भी मुझे किसी तरह की दवा नहीं दी। दर्द से तड़पना ही एकमात्र विकल्प बचा था मेरे पास। लगभग एक दिन न तो रिहान और

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अचानक मुझे बाहर कुछ आवाजें सुनाई दीं। मैंने पहली आवाज को पहचाना-, यह अश्वश्री थी और दूसरा कुछ पुरुष था। जब तक मैं बाल्टी से कूद कर नीचे आयी तब तक दरवाजे पर एक तेज दस्तक ने मुझे चैंका दिया! “कौन?” मैं

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मैने वही किया जो उसने मुझे करने को कहा था। मैंने चलने की कोशिश की। मैं थोड़ी मुश्किल से ही सही लेकिन चल सकती थी। मेरा सिर अभी भी भारी दर्द में था और मैं बहुत बीमार महसूस कर रही थी। मेरी नसों में एक ती

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वह गाड़ी चलाता रहा और विंडशील्ड से बाहर देखता रहा। यह दुखद था! यह केवल मेरे रिहान के बारे में नहीं था। मैंने वहां देखे गए प्रत्येक आतंकवादी में रिहान को पाया। उनके पास विकल्प हैं लेकिन कहां? उनकी पहचा

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जब हम उस आर्मी कैंप से निकल रहे थे तो हमें बताया कि आगे के रिकॉर्ड के लिए हमारे प्रत्येक दस्तावेज की एक प्रति उन्हे चाहिये होगी। विदुर वहीं ठहर गये ताकि उनकेा सारे कागजों की प्रतियाॅ करा कर दे सकें और

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मेरी नजर या तो सड़क पर थी या उसकी छाती पर। अभी भी खून बह रहा था। मैंने देखा कि उसकी पट्टी पर धब्बा हर मिनट के साथ अपना आकार बढ़ा रहा था। उसकी हालत गंभीर थी और मैं उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। मैं आगे नही

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मैं गाड़ी चलाते हुए उसके अगले शब्द का इंतजार कर रही थी। मेरी नजर विंडशील्ड पर टिकी थी। “रिहान?” मैंने उसे पुकारा। “मुझे घर दिखायी दे रहा है।” मैंने उससे कहा और कुछ दूरी पर ब्रेक दबाया। मैं कोई फैसला ख

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