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कभी

28 मई 2022

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रिहान ने मेरी तरफ देखा। उसने मेरी हालत देखी और मेरा डर भी। उसने मेरे कपड़ों को देखा और फिर उसने दूसरे बंधकों को देखा। “वह फिर से नहीं आयेगा। आप सभी अब सो सकते हैं।” उसने सभी से कहा लेकिन उसकी आँखें मुझ पर केंद्रित थीं। जवाब में, मैं केवल अपने आप को अपनी बाहों में लपेटने और अपने कंपकंपी शरीर को संभालने की कोषिष करती रही। यह एक बचकाना सा वायदा था। मैं तब तक सुरक्षित नहीं थी जब तक मैं वहां थी। युसुफ या उनमें से कोई कभी भी वापस आ सकता था। रिहान अभी तक कमरे मंें ही था। उसके साथी ने चलने के लिए लालटेन हाथ में ले ली थी औ यहाॅ मैं कुछ बोल देने के कषमकष में थी। तय नहीं कर पा रही थी कि मुझे असल में कहना क्या है? बस इतना जानती थी कि मैं केवल शुक्रिया तो नहंी कहना चाहती। और फिर अपनी ही माँ के हत्यारे से क्या मैं अपनी आजादी की भीख माॅग सकती थी? 

रिहान ने एक बार शौचालक के अन्दर जाकर देखा। वह सुनिश्चित करना चाहता था कि कोई दूसरा वहाँ छिपा नहीं है। वह मुख्य दरवाजे तक पहुॅच गया था कि - “रिहान।” मैंने हिम्मत करके उसे पुकारा।

वह अपनी जगह पर ठहर गया। शायद वह समझ गया था कि मैं क्या कहने वाली हूॅ इसीलिए मेरी ओर पलटा नही। “मुझे जाने दो।” मैंने अपने होंठ चाट लिए क्योंकि मेरा गला हर सांस के साथ सूख रहा था क्योंकि मुझे उसका जवाब पहले से ही पता था। और ये बात कहने पर मैं खुद को जमीन में गढ़ा हुआ भी महसूस कर रही थी।

उसने कुछ सोचा और-“यह मेरी औकात से बाहर है।” वही ठण्डा लहजा। “और ना ही ये मेरे काम का हिस्सा है। ना ही मैं हस्तक्षेप कर सकता हूॅ।” मेरी आँखें उसे देखते हुए भींग सी गयीं। “थोड़ा सब्र रखिये। आप या आप में से अधिकांश, कुछ समय बाद आजाद हो जाएंगे।” 

“क्या तुम अपने ही बारे में गारंटी दे सकते हो?” मेरे सवाल पर वह मेरी ओर पलटा। “तुम बेवकूफ हो रिहान।” मुझे उस पर दया आ रही थी कि मुझे सांत्वना देने के लिए उसके पास सही शब्द तक नहीं थे।

वह भी फर्श पर टकटकी लगाए मुस्काया। “हम सब पहले से ही मर चुके हैं अरन्या। हमने अपने समुदाय और लोगों की भलाई के लिए अपना खून पहले ही कुर्बान कर दिया है।” 

मैं उसे सुनते हुए पलक झपकाना तक भूल गयी। उसे ये शब्द कहाँ से मिले होगें? मैंने उसका चेहरा पढ़ा। क्या यह रिहान है या कोई और, जो उसके लिए बोल रहा है? ये वह रिहान तो नहंी था जो स्वभाव से इतना शर्मिला था कि जल्द किसी से बात तक नहीं कर पाता था। 

जल्द ही मुझे सम्हलना पड़ा। मैंने अपना गला साफ किया। “चलों माना कि तुम खुद को कुर्बान कर सकते हो लेकिन वह कुर्बान नहीं कर सकते जो तुम्हारा है ही नहीं। तुम इस तरह मासूम लोगों को नहीं मार सकते, महिलाओं का बलात्कार नहीं कर सकते और ना ही बच्चों का अपहरण।” 

वह जवाब में सिर्फ थोड़ा बैचेन हुआ। अन्य बंधक भी हमारी इस चर्चा को सुन रहे थे। उम्मीद कर रहे थे कि शायद किसी शर्त पर ये लोग सहमत हो सकते उन्हें आजाद करने के लिए? मैं भी इंतजार कर रही थी। जाहिर है कि वह एक दुश्मन, एक हत्यारा था, लेकिन वह मेरे लिए एक आखिरी उम्मीद भी था। “मैं सिर्फ ये कह सकता हूॅ कि आप सभी जिन्दा रहें और इंतजार करें-,”

“और कब तक??”” मैने कटाक्ष किया।

“जब तक कि आप लोग मर नहीं जाते।”

वह अपराजेय था। अपने मकसद के लिए पूरी तरह समपिर्त और दृढ़ था। “आखिर किसने तुम्हें इतना बदल दिया?” मैंने उसका चेहरा पढ़ते हुए कहा। “यकीन नहीं होता कि उन्होंने वह सब कुछ मिटा दिया तुम्हारे अन्दर से जो कुछ तुमने  जिन्दगी से सीखा था।” मैने उससे मुॅह फेर लिया। “तुम रिहान हो सकते।” 

उसने एक बार मेरी ओर देखा और बिना एक भी शब्द कहे, उसने इस चर्चा को समाप्त कर दिया। उसने लालटेन ली और मेरे पास आया। “किसी को ये समझने ना दो कि तुम मुझे जानती हो।” उसकी आवाज बहुत धीमी थी

“मैं वाकई तुम्हें नहीं जानती।” मेरी आवाज और आँखों में घृणा भर गई।

“बेहतर।” उसने और दरवाजे की ओर बढ़ गया।

उसके हर कदम पर रोषनी भी हमसे दूर जा रही थी और उसके दरवाजा बन्द करते ही कमरा स्याह हो गया। वह पूरे प्रकाश को अपने साथ ले जा चुका था। यह मेरे लिए अच्छा था क्योंकि मैं अपनी गलतियों पर रोना चाहती थी। 

Û Û Û Û Û Û

जब तक मैं वहां रही, मुझे खुद से नफरत होती रही कि कभी मैनें रिहाने से प्यार किया था। कभी हम एक जोड़े के रूप में अपने दोस्तों के बीच मषहूर थे। हमारे दोस्त हमारे प्यार में विश्वास करते थे। वे कहते थे, यह एक उत्कृष्ट प्रेम कहानी है, जिसमें रिहान एक नायक थे और मैं उनकी नायिका। 

हम दोनों ग्यारहवीं कक्षा में थे जब हमने अपनी भावनाओं को एक दूसरे से जाहिर किया। इस बात को जानने के बावजूद, हम अलग-अलग बल्कि विपरीत समुदाय, धर्म और जाति के है, हम एक दूसरे से प्यार करते थे। हमने कभी दुनिया और समाज की परवाह नहीं की। हमने सब कुछ प्लान किया था कि हम अपनी पढ़ाई के बाद किसी दूसरे शहर में चले जायेगें। हम कोर्ट मैरिज करेगें और दोनों में से कोई भी एक-दूसरे पर अपनी राय नहीं थोपेगा। और भी बहुत कुछ हमने सोचा था। आज वह सब कितना बचकाना लगता है। जब हम बीए कर रहे थे, उसने अपने माता-पिता के सामने हमारे रिश्ते का खुलासा किया और मैं उसके नतीजों को पहले ही जानती थी। अचानक और आश्चर्यजनक रूप से रिहान ने मुझसे रिष्ता तोड़ लिया। उसकी जिन्दगी में नये मायने और नये उद्देष्य पैदा हो गये।

मुझे यह स्वीकार करने में लगभग एक महीना लग गया कि हमारा रिश्ता टूट गया था। मैंने अनगिनत आँसू, रातों की नींद और कितने ही बैचेन दिन उस पर कुर्बान किये लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। पता नहीं उसे क्या या किसने बदल दिया, लेकिन अचानक मेरा प्यार -,रिहान चोरी हो गया था। 

जब मेरे पिताजी को रिहान और मेरे बारे में पता चला, तो उन्होंने भी वही आक्रोश व्यक्त किया। उन्होंने मेरी शादी एक ब्राह्मण परिवार में तय की-, वह भी तब जब मैं सिर्फ उन्नीस साल की थी। मुझे विदुर को चुनना पड़ा और मैं अपने जीवन में आगे बढ़ गयी।

मैंने अपनी आँखें खोलीं। अपनी उंगलियों के पोर से दीवार की सतह को छुआ और उन पंक्तियों को पढ़ा जिन्हें मैने खरोंचा था। यहां मेरा चैथा दिन था। पिछले दिन से मैं बुखार में थी और इतनी ठंड महसूस कर रही थी मानो मैं बर्फ में दब गया हूँ। एक तीखा दर्द भी मेरे शरीर और सिर की प्रत्येक हड्डी को खोद रहा था।

मैंने अपना चेहरा बाॅयी ओर किया। वे सभी सुहानी के आसपास इकट्ठे थे। अश्वश्री बीच में बैठी थी। उसने अपनी बाहें सुहानी के चारों ओर लपेटी हुईं थी ताकि उसे ठण्ड से बचा सके। सुहानी बुखार और ठंड में कांप रही थी। वह पिछले कुछ दिनों से मतली और बुखार से ग्रस्त थी। दो दिनों से उसने सिवाय पानी के कुछ और नहीं लिया था। बीमारी के दौरान उसका वजन आधा रह गया था। हम सभी ने दवाई माॅगीं, जो कभी मिली ही नहीं। दूसरी तरफ रिहान और चीफ भी कुछ घंटों से गायब थे।

मैं उसकी हालत देखने के लिए करीब गयी। “वह कैसी है?” मैं उसके बगल में बैठी। अश्वश्री ने भरी आँखों से मेरी ओर देखा। 

“ये अपनी आँखें नहीं खोल रही है।” अष्वीश्री घबराई हुई थी। 

मैंने अपना हाथ सुहानी के बालों पर फिराया। “तुम हमें सुन रही हो?” लेकिन वह अपनी सुध में नहीं थी। उसकी साँसें गहरी थीं और उसकी साॅसों से गन्दी बू आ रही थी जिसे में कुछ इंच की दूरी से भी सूँघ सकती थी। “क्या कर सकते हैं?” मैं मन पक्का करते हुए वहाॅ से उठकर अपने इस कोने में आ गयी। 

बीमार तो पड़ना ही था। जब से हम यहाँ थे हमने सूरज नहीं देखा था। जिन्होनें हमें कैद किया हुआ था वे हमें बेकार और बासी भोजन परोस रहे थे। उन्होंने हमें एक नम, डिब्बे जैसे कमरे में रखा था जहां हमें ताजी हवा का झोंका नहीं नसीब होता था। मैं भी बुरी हालत से गुजर रही थी, लेकिन बीमारी के बावजूद मैं अपनी हिम्मत खोना नहीं चाहती थी। 

मैं अपने घावों की जाँच कर रही थी कि अश्वश्री मेरे पास आयी। वह मुझे अजीब से देख रही थी। मैंने उसकी तरफ, और फिर दूसरों की तरफ देखा। वे हमारी ओर टकटकी लगाए देख रहे थे। “तुम मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो?” अश्विश्री अपने घुटनों के बल चलते हुए मेरे और करीब आई। “क्या?” मैंने पूछा।

“तुम उनमें से एक को जानती हो ना?” उसने पूछने की हिम्मत की

मैंने अपने बाएं घुटने को उंगलियों से दबाया कि वह अब भी दुंखता है या नहीं? हाॅ, थोड़ा दर्द अभी भी था। “किसे?” मैंने कहा और पैरों का पंजा गोल घुमाया ये समझने के लिए कि अगर मैं दौड़ती हूॅ तो ये दुंखेगा या नहीं?

“रिहान।” अष्वि ने कहा और उसके गाल गुलाबी हो गए। मैं उसे देखकर मुस्कुरा गयी। वह शरमा रही थी।

“तुम मुझसे ये क्यों पूछ रही हो?” 

“हम सभी की आँखें हैं। हमने तुम दोनों को बात करते हुए सुना है, और जहाॅ तक मैं समझती हूॅ तुम उसे पहले से ही जानती हो।” 

उसे यकीन था।

“ओह!” मैंने कहा “तुम मुझसे क्या चाहती हो?” मैंने अपनी बाहों को अपने घुटनों के चारों ओर लपेट लिया और उसकी प्रतिक्रियाओं का इन्तजार करने लगी। मैं समझ सकती थी कि उसके लिए कुछ कहना आसान नहीं था। उसने दूसरों की ओर एक बार देखा और फिर - “मैं कह रहा था कि-“ वह टूट सी गयी। जिस तरह से वह बार-बार वापस देख रही थी, मुझे यकीन था कि अन्य बंधकों ने उसे मुझसे बात करने के लिए मजबूर किया होगा।

मैंने एक पल का इंतजार किया। “क्या होगा अगर मैं?” मैं सीधे उसकी आँखों में देख रही थी

“मेरा मतलब है कि अगर तुम उसे जानती हो तो क्या उसे बोल नहीं सकती कि हमें जाने दे?” 

मैंने अपनी आँखें मंूद लीं। मैं सच मंें नही समझ पा रही थी कि उसे क्या कहूॅ? यूॅ तो कितना ही कुछ मुॅह को आ रहा था लेकिन खुलकर मेरा मुॅह दो बार बन्द हो गया। “प्लीज अरन्या। हम यहाँ मर रहे हैं।” उसने मेरे हाथ थाम लिये।

“क्या तुम लोगों ने उस रात देखा नहीं कि मैने कोशिश की थी।” मेरे कहते ही वह निराष दिखने लगी। “अश्वि उन लोगों के पास दिल नहीं हैं ... उनके पास भावनाएं नहीं हैं। हम मरे हुए लोगों के बीच है।” मुझे पता था कि हर कोई उस नरक से बाहर जाना चाहता है। मैंने सभी को देखा और पाया और पाया कि वे सभी भागना चाहते हैं लेकिन क्या वे कोषिष करेगें? “तुम सच में जाना चाहते हो?” मैंने पूछा। उसने एक भी पल बिताए बिना सिर हिलाया। “तो फिर उसके लिए हमें खुद ही कोषिष करनी होगी। हमें जोखिम उठाना होगा और मुझे यकीन है कि इस कोषिष में हम में से आधे लोग मर जाएंगे।”

उसका चेहरा नीला पड़ गया। “मैं जीने के लिए बाहर जाना चाहता हूँ!”

“संभावनाएं हैं।” मैंने ठंडे लहजे में कहा। असल में मैं खुद भी उन्हें कोई झूठी तस्सली नहीं दे सकती थी। “कौन जिन्दा बचेगा और कौन मरेगा ये हम पर निर्भर है ... यह हमारी बुद्धि और इच्छा शक्ति पर निर्भर है।” मेरे शब्दों में वह कुछ खो सी गयी।

“लेकिन वे आतंकवादी हैं ... उनके पास घातक हथियार है।” उसने तर्क रखा

“उनका आतंकवादी होना या उनके पास हथियार होना नहीं हैं, जो आपको यहाँ कैद किये है। यह आपका डर है। मृत्यु के डर से, आपका विश्वास कि आप कमजोर हैं ... कि आप नहीं लड़ सकते।” मैंने उसकी आँखों में सीधे देखा। “मैंने देखा है कि कभी-कभी वे दरवाजे को बाहर से बंद करना भूल जाते हैं। आप लोगों को लगता है कि बाहर उनकी एक पूरी फौज होगी लेकिन मुझे पता है, वे केवल आठ या नौ है और कई बार तो वह केवल दो रह जाते है। वे दिन में पांच बार नमाज पढ़ते हैं ... वे रातों में सोते हैं, और फिर भी आप लोग कभी यहाॅ से निकलने की कोषिष नहीं कर सके?”

वह अब भी सोच रही थी। मैंने उसके चेहरे को ध्यान से पढ़ा। एक मूक समझौता मैंने उसकी आँखों में देखा। यह सुनिश्चित था कि वह कोशिश करना चाहती है लेकिन उसे अभी भी असफल होने का डर है। उसकी आँखें मुख्य द्वार पर केंद्रित थीं। उसने अपने होंठ चाटें-, दो बार पलकें झपकायीं और - “हाँ। मुझे पता है कि भाग जाना ज्यादा आसान होगा ... लेकिन मैंने उस आदमी को देखा है, जिसने ऐसी कोषिष की और - ” उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी। वह उठकर वापस चल दी। “मुझे लगता है कि हमें भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए। जब तक हम उनकी मानते रहेगें-, सुरक्षिति रहेगें।” 

मैंने अपनी आँखें मूंद लीं। वे कभी कोशिश नहीं करेंगे।


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वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक पल में उठ बैठी! “माँ”? मैं उनके चेहरे को देखते हुए दोहराया। जितनी आंतकित मैं थी सुनकर शायद वह भी थे ये बात बोलते हुए। “किसकी माँ?” मैंने थोड़ी शंका के साथ पूछा कि क्या वह मेरी ही माँ के बारे में बात कर रहे हैं? उनके चेहरे पर भी शायद वही आंदेषा था, जो मेरे मन में हलचल मचा रहा था। कश्मीर में देर रात एक आतंकी हमले में मेरी मां की मौत हो गई।
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कभी...। वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक

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ये पहली मौत नहीं थी जो मैनें देखी थी। कुछ तीन साल पहले इसी तरह पिताजी को भी देख चुकी थी, और वह भी इसी घर में। वह बीमार रहते थे, उनकी मौत अपेक्षित थी लेकिन माॅ की मौत मेरे लिए चैंका देने वाली थी। मुझे

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मेरी आॅखें उस वक्त भी आसूॅओं से भर गयीं। मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा। हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक ही घटना के बारे में सोच रहे थे। अजान की आवाज खामोष हुई। “क्या यह तुम्हें अब भी ड़रा देता है?” उसने

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गर्म पानी के स्नान के बाद मैं हमाम से बाहर आयी। अपने कमरे में आकर मैनें खिडकी के पर्दे उठाए। कोहरे ने मेरी खिड़की के सभी शीषों को धुंधला कर दिया था। मैं उनके पार नहीं देख सकती थी। बाहर का मौसम सर्द है

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मैं सालों बाद उस गली पर पैदल चल रही थी, जो मेरे घर से निकलकर इन वादियों के घुमावदार रास्तों में कहीं विलीन हो जाती थी। उस गली के हर कदम पर मैं खुद को बिखरा महसूस कर रही थी। उस गली से भी ना जाने कितनी

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वह आदमी दुकान तक गया और मेरा थैला उठा लाया। उसने इसे मेरे चेहरे पर फेंक दिया और मेरे जाने का इंतजार करने लगा। मैंने एक बार दुकान पर नजर डाली। मुझे उस गरीब दुकानदार की चिंता थी, जो हर गुजरते पल के साथ

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आधे घंटे बादः उसने वैन को कहीं रोक दिया। एक जगह, जहाॅ मैं अपने जीवन में कभी नहीं गयी। जहाँ तक मैं देख सकती थी वहाँ तक पेड़, कोहरा, पहाड़ और घास ही दिख रहे थे। इससे पहले भी मैंने विंडशील्ड के बाहर झाॅ

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मेरी धड़कनें खुद मुझे भी सुनायी दे रहीं थीं। मैं महसूस कर सकती थी कि मेरा दिल मेरी छाती के पिंजर पर जोर से टकरा रहा है लेकिन उस रोषनी में मुझे जो दिखा उसने मुझे थोड़ी तस्सली दी। मुझे यह देखकर ताजुब्ब

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“याद नहीं।” उसने जवाब दिया  “शायद पंद्रह दिन, या उससे भी ज्यादा।” अन्य महिलाओं में से एक ने वहीं कोने से जवाब दिया। “हमारे पास दिनों की गिनती करने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने हमारा सब कुछ ले लिया। ”

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“तुम यहाॅ कैसे फॅसी?” अंत में सब से ज्यादा चुप रहने वाली महिला ने अपना मुंह खोला। जब से मैं यहाँ थी, मैंने पहली बार उसकी आवाज सुनी थी। उसकी आवाज हर शब्द पर कांप रही थी। “तुम कहाॅ से हो? क्या तुम भागने

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एक सेकंड में मेरे दिमाग में दर्जनों सवाल पलक कौंध गये और मैं तय नहीं कर पायी कि पहले क्या पूछूँ? मैं पूछने वाली थी कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो? लेकिन उसी क्षण मुझे याद आया कि मीनाक्षी ने मुझसे क्या कहा

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अब सारा माहौल ड़र की चादर ओढ़े खामोष होकर दुबका हुआ था। उस रोज वह कुछ घण्टे बड़े थका देने वाले थे मेरे लिए। बाकि बंधक बड़ी-बड़ी आॅखों से मुझे तक रहीं थीं, मानों कह रहीं हो कि अब हो गयी तसल्ली? मैं अपन

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मैंने बोतल एक तरफ रख दी और बच्चे की तरफ देखा। “इसे ले लो।” मैंने मुस्कुरा कर उसे आग्रह किया और पत्तल लड़कों की ओर बढ़ा दी। वे तेजी से आए और अपना मुंह भरने लगे। वे इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने इसे ठीक

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हालात बदतर होते जा रहे थे। वह जनवरी का महीना था। ज्यादातर दिन या तो बारिश होती थी या बर्फबारी। बारीष का पानी उस घर की छत से कहीं-कहीं रिसता भी था। उससे कमरे की नमी बढ़ गयी थी और साथ ही गारे की बू भी।

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रिहान ने मेरी तरफ देखा। उसने मेरी हालत देखी और मेरा डर भी। उसने मेरे कपड़ों को देखा और फिर उसने दूसरे बंधकों को देखा। “वह फिर से नहीं आयेगा। आप सभी अब सो सकते हैं।” उसने सभी से कहा लेकिन उसकी आँखें मु

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अचानक मुझे पदचाप सुनाई दी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मुझे लगा कि यह हमारा भोजन है। “ऐ तुम!” एक लड़का अंदर आया और मैं कमरे के बीच ठहर गया। हम सब उसे ताड़ रहे थे और वह सिर्फ मुझे। वह शायद ही सत्रह

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मैं एक बार फिर हार गयी थी। मैंने अपनी मुट्ठी फर्श पर मार दी। मैं थोड़ी और देर रस्सी को क्यों नहीं थामे रह पायी? उसकी गर्दन केवल एक निषान के साथ आजाद हो गयी थी। “ह-मजादी! आज बताता हूॅ तुझे!” उसने मेरी

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मेरी रीढ़ अब तक दर्द में थी। मैं अपने पैरों पर सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वहाॅ किसी ने भी मुझे किसी तरह की दवा नहीं दी। दर्द से तड़पना ही एकमात्र विकल्प बचा था मेरे पास। लगभग एक दिन न तो रिहान और

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अचानक मुझे बाहर कुछ आवाजें सुनाई दीं। मैंने पहली आवाज को पहचाना-, यह अश्वश्री थी और दूसरा कुछ पुरुष था। जब तक मैं बाल्टी से कूद कर नीचे आयी तब तक दरवाजे पर एक तेज दस्तक ने मुझे चैंका दिया! “कौन?” मैं

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मैने वही किया जो उसने मुझे करने को कहा था। मैंने चलने की कोशिश की। मैं थोड़ी मुश्किल से ही सही लेकिन चल सकती थी। मेरा सिर अभी भी भारी दर्द में था और मैं बहुत बीमार महसूस कर रही थी। मेरी नसों में एक ती

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वह गाड़ी चलाता रहा और विंडशील्ड से बाहर देखता रहा। यह दुखद था! यह केवल मेरे रिहान के बारे में नहीं था। मैंने वहां देखे गए प्रत्येक आतंकवादी में रिहान को पाया। उनके पास विकल्प हैं लेकिन कहां? उनकी पहचा

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जब हम उस आर्मी कैंप से निकल रहे थे तो हमें बताया कि आगे के रिकॉर्ड के लिए हमारे प्रत्येक दस्तावेज की एक प्रति उन्हे चाहिये होगी। विदुर वहीं ठहर गये ताकि उनकेा सारे कागजों की प्रतियाॅ करा कर दे सकें और

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मेरी नजर या तो सड़क पर थी या उसकी छाती पर। अभी भी खून बह रहा था। मैंने देखा कि उसकी पट्टी पर धब्बा हर मिनट के साथ अपना आकार बढ़ा रहा था। उसकी हालत गंभीर थी और मैं उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। मैं आगे नही

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मैं गाड़ी चलाते हुए उसके अगले शब्द का इंतजार कर रही थी। मेरी नजर विंडशील्ड पर टिकी थी। “रिहान?” मैंने उसे पुकारा। “मुझे घर दिखायी दे रहा है।” मैंने उससे कहा और कुछ दूरी पर ब्रेक दबाया। मैं कोई फैसला ख

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