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कभी

28 मई 2022

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अब सारा माहौल ड़र की चादर ओढ़े खामोष होकर दुबका हुआ था। उस रोज वह कुछ घण्टे बड़े थका देने वाले थे मेरे लिए। बाकि बंधक बड़ी-बड़ी आॅखों से मुझे तक रहीं थीं, मानों कह रहीं हो कि अब हो गयी तसल्ली? मैं अपने दूसरे खामोष कोने में सिमट कर बैठ गयी। सिर से पाॅव तक जहाॅ-तहाॅ लगी चोटें अब दर्द करने लगीं थीं। मेरे पास कोई मतरहम नहीं था सिवाय आॅखें बन्द कर अपनी माॅ और विदुर को याद करने के। धीरे-धीेरे मेरी बन्द पलकों ने मेरे दिमाग को इतना शान्त कर दिया कि मैं सो गयी।

मैंेने अपनी माॅ को सपने में देखा। वह मुझे कहीं से पुकार रहीं थी। अपने सपने में मैंने नोएडा वाला अपना घर देखा। मैंने खुद को विदुर के साथ देखा। हम किसी बाज़ार में खरीदारी कर रहे हैं। हम खुश थे-, हम मुस्कुरा रहे थे और अपने दिन का आनंद ले रहे थे। मैं उसके साथ कितना स्वतंत्र और आराम महसूस करती थी? मैंने रिहान को लेकर भी सपना देखा। लंबे समय के जाने के बाद, मैंने ऐसा सपना देखा होगा। वह अपने घर के पिछले आॅगन में गिटार बजा रहा था। उसके घर के पिछले आॅगन में सेब के पेड़ों की भरमार है ,और पेड़ों की प्रत्येक शाखा सफेद फूलों से लदी हुई थी। हरी घास के बीच वह सफेद फूलों से लदे पेड़ और साफ नीला आकाष, स्वर्ग सा एहसास करा रहे थे। माहौल रिहान के चित की तरह एकाग्र है और उसके द्वारा बजायी जा रही लय के साथ हवायें बह रही थीं। मैं दूर अपने घर की छत से उसे तकते हुए जाने कब उसके करीब आ गयी। वैसे ही जैसे कभी देखा करती थी। गिटार के तारों के साथ खेलती उसकी सफेद उंगलियाॅ कितनी माहिर थीं। वह हमारे काॅलेज में भी गिटार बजाने और अपने शर्मिले स्वभाव के कारण मषहूर था। 

मैं यहाॅ उसके एक बार अपनी तरफ देखने का इंतजार कर रही थी और अचानक उसने वाकई मेरी ओर देखा। उसने लापरवाह सी नजर मुझे पर ड़ाली और फिर मुझे अनदेखा कर दिया। मुझे महसूस हुआ कि अब वह मुझसे प्यार नहीं करता और उसे मेरी या मेरी भावनाओं की भी परवाह नहीं। वह अपनी जगह पर खड़ा हो गया। अपने गिटार को अलग रखा और - “मेरा जीवन मेरे लोगों और मेरे समुदाय के लिए समर्पित है। अब तुम्हारे लिए इसमें कोई जगह नहीं है।”

उसके शब्दों के साथ, मौसम बदल गया! हवा पागल हो गई और अपनी पूरी गति से बहने लगी। हमारे आसपास प्रति पल मौसम बदलने लगा। मैं रो रही थी और उससे पूछ रहा थी “क्यों?” लेकिन उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और एक दरवाजे की ओर बढ़ गया। वह मुझसे बहुत दूर चला गया है और मैं अपनी पूरी क्षमता के साथ चिल्लायी- “क्यों- ??”

अचानक मैंने अपनी आँखें खोलीं। एक चेहरा मेरे बहुत करीब था। “क्या?” मैं पीछे हटी और - “आआह!” मेरी रीढ़ में दर्द की लहर सी दौड गयी। मैंने आॅखें जोर से मंीच लीं।

“क्या तुम ठीक हो?” मैंने उसकी आवाज में दर्द सुना। “मैंने तुम्हंे रोकने की कोषिष की थी लेकिन-” 

मैंने जवाब में एक कड़ी मुस्कान दी। मेरा पेट में अब मरोड़ से उठ रहे थे। दर्द मेरी रीढ़ स्पिन और मेरे शरीर की हर नस में दौड़ रहा था। मुझे ठीक से बैठने में कुछ पल लगे। 

“खाना।” अश्विश्री चावल और मांस से भरी एक पत्ती की प्लेट पकड़े हुए थे। कमरा मांस और प्याज की गंध से भरा हुआ था।

“ओह, प्लीज। इसे दूर रखो मुझसे।” मैंने उससे कहा। 

“ओह डियर, हमें शायद ही कुछ खाने को मिले दोबारा।” उसने बाकियों की ओर देखा जो अपनी प्लेटें लगभग खाली कर चुके थे। “कोई नहीं जानता कि हमें अगली बार कब खाना मिलेगा? ”

बेशक, मैं भूखी थी लेकिन मैं शाकाहारी हूॅ। इसके अलावा बहुुत सी चीजें उस वक्त मैं खा भी नहीं सकती थी क्योंकि मेरी माॅ की मौत को अभी दो दिन ही हुए थे। अष्विश्री इस बात से अन्जान थी कि मैंने क्या खोया है? उसने मुझे अजीब तरीके से देखा। “क्या मुझे पानी मिल सकता है?” मैंने उससे पूछा

उसने एक लड़के को बुलाया। वह एक पुरानी प्लास्टिक की बोतल में पानी लेकर आया। “धन्यवाद।” मैं मुस्कुरायी। जवाब में वह बच्चा भी मुस्कुरा नहीं सका। वह लगभग आठ साल का होगा और उस उम्र में, वह बचपन का आकर्षण खो चुका था। वह पहले से ही भय में मर चुके थे।

“आप अरन्या हैं?” अश्विश्री ने मुझसे कहा। मैने सहमति में सिर हिलाया। उसने दूसरों पर उंगली उठाई। “वह लता, सुहानी और ...” पिछले एक को देखकर उसने एक उलझन भरा चेहरा बनाया- “वह शायद ही बात करती है। मैं उसका नाम नहीं जानती, लेकिन हम उसे माँ बुलाते हैं- ” उसने मुस्कुराते हुए कहा “उन लड़कों की माँ। ”

मुझे परिचय में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं थी। मैं बस उन पर दृष्टि दौड़ाती रही। “क्या तुम उस आदमी को जानती हो?” मुझे पता था कि वह रिहान के बारे में पूछ रही है। मैंने उसके सवाल को नजरअंदाज कर दिया क्योंकि मुझे नहीं पता था कि मुझे क्या जवाब देना चाहिए? “तुम्हें वाकई नहीं खाना?” उसने मेरे पंजों के सामने रखी उस थाली की ओर देखते हुए अपना प्रश्न बदल दिया। मैंने अपना सिर थोड़ा हिलाया और पानी पीती रही। “लड़के अभी भी भूखे हैं। ये आधी थाली उनके लिए कभी भी पर्याप्त नहीं होता।” उसने अनुरोध करने के लिए मेरे दाॅहिने कंधे पर अपना हाथ रख दिया।


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वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक पल में उठ बैठी! “माँ”? मैं उनके चेहरे को देखते हुए दोहराया। जितनी आंतकित मैं थी सुनकर शायद वह भी थे ये बात बोलते हुए। “किसकी माँ?” मैंने थोड़ी शंका के साथ पूछा कि क्या वह मेरी ही माँ के बारे में बात कर रहे हैं? उनके चेहरे पर भी शायद वही आंदेषा था, जो मेरे मन में हलचल मचा रहा था। कश्मीर में देर रात एक आतंकी हमले में मेरी मां की मौत हो गई।
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कभी...। वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक

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ये पहली मौत नहीं थी जो मैनें देखी थी। कुछ तीन साल पहले इसी तरह पिताजी को भी देख चुकी थी, और वह भी इसी घर में। वह बीमार रहते थे, उनकी मौत अपेक्षित थी लेकिन माॅ की मौत मेरे लिए चैंका देने वाली थी। मुझे

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मेरी आॅखें उस वक्त भी आसूॅओं से भर गयीं। मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा। हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक ही घटना के बारे में सोच रहे थे। अजान की आवाज खामोष हुई। “क्या यह तुम्हें अब भी ड़रा देता है?” उसने

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गर्म पानी के स्नान के बाद मैं हमाम से बाहर आयी। अपने कमरे में आकर मैनें खिडकी के पर्दे उठाए। कोहरे ने मेरी खिड़की के सभी शीषों को धुंधला कर दिया था। मैं उनके पार नहीं देख सकती थी। बाहर का मौसम सर्द है

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मैं सालों बाद उस गली पर पैदल चल रही थी, जो मेरे घर से निकलकर इन वादियों के घुमावदार रास्तों में कहीं विलीन हो जाती थी। उस गली के हर कदम पर मैं खुद को बिखरा महसूस कर रही थी। उस गली से भी ना जाने कितनी

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वह आदमी दुकान तक गया और मेरा थैला उठा लाया। उसने इसे मेरे चेहरे पर फेंक दिया और मेरे जाने का इंतजार करने लगा। मैंने एक बार दुकान पर नजर डाली। मुझे उस गरीब दुकानदार की चिंता थी, जो हर गुजरते पल के साथ

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आधे घंटे बादः उसने वैन को कहीं रोक दिया। एक जगह, जहाॅ मैं अपने जीवन में कभी नहीं गयी। जहाँ तक मैं देख सकती थी वहाँ तक पेड़, कोहरा, पहाड़ और घास ही दिख रहे थे। इससे पहले भी मैंने विंडशील्ड के बाहर झाॅ

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मेरी धड़कनें खुद मुझे भी सुनायी दे रहीं थीं। मैं महसूस कर सकती थी कि मेरा दिल मेरी छाती के पिंजर पर जोर से टकरा रहा है लेकिन उस रोषनी में मुझे जो दिखा उसने मुझे थोड़ी तस्सली दी। मुझे यह देखकर ताजुब्ब

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“याद नहीं।” उसने जवाब दिया  “शायद पंद्रह दिन, या उससे भी ज्यादा।” अन्य महिलाओं में से एक ने वहीं कोने से जवाब दिया। “हमारे पास दिनों की गिनती करने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने हमारा सब कुछ ले लिया। ”

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“तुम यहाॅ कैसे फॅसी?” अंत में सब से ज्यादा चुप रहने वाली महिला ने अपना मुंह खोला। जब से मैं यहाँ थी, मैंने पहली बार उसकी आवाज सुनी थी। उसकी आवाज हर शब्द पर कांप रही थी। “तुम कहाॅ से हो? क्या तुम भागने

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एक सेकंड में मेरे दिमाग में दर्जनों सवाल पलक कौंध गये और मैं तय नहीं कर पायी कि पहले क्या पूछूँ? मैं पूछने वाली थी कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो? लेकिन उसी क्षण मुझे याद आया कि मीनाक्षी ने मुझसे क्या कहा

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अब सारा माहौल ड़र की चादर ओढ़े खामोष होकर दुबका हुआ था। उस रोज वह कुछ घण्टे बड़े थका देने वाले थे मेरे लिए। बाकि बंधक बड़ी-बड़ी आॅखों से मुझे तक रहीं थीं, मानों कह रहीं हो कि अब हो गयी तसल्ली? मैं अपन

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मैंने बोतल एक तरफ रख दी और बच्चे की तरफ देखा। “इसे ले लो।” मैंने मुस्कुरा कर उसे आग्रह किया और पत्तल लड़कों की ओर बढ़ा दी। वे तेजी से आए और अपना मुंह भरने लगे। वे इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने इसे ठीक

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हालात बदतर होते जा रहे थे। वह जनवरी का महीना था। ज्यादातर दिन या तो बारिश होती थी या बर्फबारी। बारीष का पानी उस घर की छत से कहीं-कहीं रिसता भी था। उससे कमरे की नमी बढ़ गयी थी और साथ ही गारे की बू भी।

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रिहान ने मेरी तरफ देखा। उसने मेरी हालत देखी और मेरा डर भी। उसने मेरे कपड़ों को देखा और फिर उसने दूसरे बंधकों को देखा। “वह फिर से नहीं आयेगा। आप सभी अब सो सकते हैं।” उसने सभी से कहा लेकिन उसकी आँखें मु

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अचानक मुझे पदचाप सुनाई दी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मुझे लगा कि यह हमारा भोजन है। “ऐ तुम!” एक लड़का अंदर आया और मैं कमरे के बीच ठहर गया। हम सब उसे ताड़ रहे थे और वह सिर्फ मुझे। वह शायद ही सत्रह

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मैं एक बार फिर हार गयी थी। मैंने अपनी मुट्ठी फर्श पर मार दी। मैं थोड़ी और देर रस्सी को क्यों नहीं थामे रह पायी? उसकी गर्दन केवल एक निषान के साथ आजाद हो गयी थी। “ह-मजादी! आज बताता हूॅ तुझे!” उसने मेरी

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मेरी रीढ़ अब तक दर्द में थी। मैं अपने पैरों पर सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वहाॅ किसी ने भी मुझे किसी तरह की दवा नहीं दी। दर्द से तड़पना ही एकमात्र विकल्प बचा था मेरे पास। लगभग एक दिन न तो रिहान और

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अचानक मुझे बाहर कुछ आवाजें सुनाई दीं। मैंने पहली आवाज को पहचाना-, यह अश्वश्री थी और दूसरा कुछ पुरुष था। जब तक मैं बाल्टी से कूद कर नीचे आयी तब तक दरवाजे पर एक तेज दस्तक ने मुझे चैंका दिया! “कौन?” मैं

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मैने वही किया जो उसने मुझे करने को कहा था। मैंने चलने की कोशिश की। मैं थोड़ी मुश्किल से ही सही लेकिन चल सकती थी। मेरा सिर अभी भी भारी दर्द में था और मैं बहुत बीमार महसूस कर रही थी। मेरी नसों में एक ती

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वह गाड़ी चलाता रहा और विंडशील्ड से बाहर देखता रहा। यह दुखद था! यह केवल मेरे रिहान के बारे में नहीं था। मैंने वहां देखे गए प्रत्येक आतंकवादी में रिहान को पाया। उनके पास विकल्प हैं लेकिन कहां? उनकी पहचा

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जब हम उस आर्मी कैंप से निकल रहे थे तो हमें बताया कि आगे के रिकॉर्ड के लिए हमारे प्रत्येक दस्तावेज की एक प्रति उन्हे चाहिये होगी। विदुर वहीं ठहर गये ताकि उनकेा सारे कागजों की प्रतियाॅ करा कर दे सकें और

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मेरी नजर या तो सड़क पर थी या उसकी छाती पर। अभी भी खून बह रहा था। मैंने देखा कि उसकी पट्टी पर धब्बा हर मिनट के साथ अपना आकार बढ़ा रहा था। उसकी हालत गंभीर थी और मैं उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। मैं आगे नही

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मैं गाड़ी चलाते हुए उसके अगले शब्द का इंतजार कर रही थी। मेरी नजर विंडशील्ड पर टिकी थी। “रिहान?” मैंने उसे पुकारा। “मुझे घर दिखायी दे रहा है।” मैंने उससे कहा और कुछ दूरी पर ब्रेक दबाया। मैं कोई फैसला ख

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