अब सारा माहौल ड़र की चादर ओढ़े खामोष होकर दुबका हुआ था। उस रोज वह कुछ घण्टे बड़े थका देने वाले थे मेरे लिए। बाकि बंधक बड़ी-बड़ी आॅखों से मुझे तक रहीं थीं, मानों कह रहीं हो कि अब हो गयी तसल्ली? मैं अपने दूसरे खामोष कोने में सिमट कर बैठ गयी। सिर से पाॅव तक जहाॅ-तहाॅ लगी चोटें अब दर्द करने लगीं थीं। मेरे पास कोई मतरहम नहीं था सिवाय आॅखें बन्द कर अपनी माॅ और विदुर को याद करने के। धीरे-धीेरे मेरी बन्द पलकों ने मेरे दिमाग को इतना शान्त कर दिया कि मैं सो गयी।
मैंेने अपनी माॅ को सपने में देखा। वह मुझे कहीं से पुकार रहीं थी। अपने सपने में मैंने नोएडा वाला अपना घर देखा। मैंने खुद को विदुर के साथ देखा। हम किसी बाज़ार में खरीदारी कर रहे हैं। हम खुश थे-, हम मुस्कुरा रहे थे और अपने दिन का आनंद ले रहे थे। मैं उसके साथ कितना स्वतंत्र और आराम महसूस करती थी? मैंने रिहान को लेकर भी सपना देखा। लंबे समय के जाने के बाद, मैंने ऐसा सपना देखा होगा। वह अपने घर के पिछले आॅगन में गिटार बजा रहा था। उसके घर के पिछले आॅगन में सेब के पेड़ों की भरमार है ,और पेड़ों की प्रत्येक शाखा सफेद फूलों से लदी हुई थी। हरी घास के बीच वह सफेद फूलों से लदे पेड़ और साफ नीला आकाष, स्वर्ग सा एहसास करा रहे थे। माहौल रिहान के चित की तरह एकाग्र है और उसके द्वारा बजायी जा रही लय के साथ हवायें बह रही थीं। मैं दूर अपने घर की छत से उसे तकते हुए जाने कब उसके करीब आ गयी। वैसे ही जैसे कभी देखा करती थी। गिटार के तारों के साथ खेलती उसकी सफेद उंगलियाॅ कितनी माहिर थीं। वह हमारे काॅलेज में भी गिटार बजाने और अपने शर्मिले स्वभाव के कारण मषहूर था।
मैं यहाॅ उसके एक बार अपनी तरफ देखने का इंतजार कर रही थी और अचानक उसने वाकई मेरी ओर देखा। उसने लापरवाह सी नजर मुझे पर ड़ाली और फिर मुझे अनदेखा कर दिया। मुझे महसूस हुआ कि अब वह मुझसे प्यार नहीं करता और उसे मेरी या मेरी भावनाओं की भी परवाह नहीं। वह अपनी जगह पर खड़ा हो गया। अपने गिटार को अलग रखा और - “मेरा जीवन मेरे लोगों और मेरे समुदाय के लिए समर्पित है। अब तुम्हारे लिए इसमें कोई जगह नहीं है।”
उसके शब्दों के साथ, मौसम बदल गया! हवा पागल हो गई और अपनी पूरी गति से बहने लगी। हमारे आसपास प्रति पल मौसम बदलने लगा। मैं रो रही थी और उससे पूछ रहा थी “क्यों?” लेकिन उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और एक दरवाजे की ओर बढ़ गया। वह मुझसे बहुत दूर चला गया है और मैं अपनी पूरी क्षमता के साथ चिल्लायी- “क्यों- ??”
अचानक मैंने अपनी आँखें खोलीं। एक चेहरा मेरे बहुत करीब था। “क्या?” मैं पीछे हटी और - “आआह!” मेरी रीढ़ में दर्द की लहर सी दौड गयी। मैंने आॅखें जोर से मंीच लीं।
“क्या तुम ठीक हो?” मैंने उसकी आवाज में दर्द सुना। “मैंने तुम्हंे रोकने की कोषिष की थी लेकिन-”
मैंने जवाब में एक कड़ी मुस्कान दी। मेरा पेट में अब मरोड़ से उठ रहे थे। दर्द मेरी रीढ़ स्पिन और मेरे शरीर की हर नस में दौड़ रहा था। मुझे ठीक से बैठने में कुछ पल लगे।
“खाना।” अश्विश्री चावल और मांस से भरी एक पत्ती की प्लेट पकड़े हुए थे। कमरा मांस और प्याज की गंध से भरा हुआ था।
“ओह, प्लीज। इसे दूर रखो मुझसे।” मैंने उससे कहा।
“ओह डियर, हमें शायद ही कुछ खाने को मिले दोबारा।” उसने बाकियों की ओर देखा जो अपनी प्लेटें लगभग खाली कर चुके थे। “कोई नहीं जानता कि हमें अगली बार कब खाना मिलेगा? ”
बेशक, मैं भूखी थी लेकिन मैं शाकाहारी हूॅ। इसके अलावा बहुुत सी चीजें उस वक्त मैं खा भी नहीं सकती थी क्योंकि मेरी माॅ की मौत को अभी दो दिन ही हुए थे। अष्विश्री इस बात से अन्जान थी कि मैंने क्या खोया है? उसने मुझे अजीब तरीके से देखा। “क्या मुझे पानी मिल सकता है?” मैंने उससे पूछा
उसने एक लड़के को बुलाया। वह एक पुरानी प्लास्टिक की बोतल में पानी लेकर आया। “धन्यवाद।” मैं मुस्कुरायी। जवाब में वह बच्चा भी मुस्कुरा नहीं सका। वह लगभग आठ साल का होगा और उस उम्र में, वह बचपन का आकर्षण खो चुका था। वह पहले से ही भय में मर चुके थे।
“आप अरन्या हैं?” अश्विश्री ने मुझसे कहा। मैने सहमति में सिर हिलाया। उसने दूसरों पर उंगली उठाई। “वह लता, सुहानी और ...” पिछले एक को देखकर उसने एक उलझन भरा चेहरा बनाया- “वह शायद ही बात करती है। मैं उसका नाम नहीं जानती, लेकिन हम उसे माँ बुलाते हैं- ” उसने मुस्कुराते हुए कहा “उन लड़कों की माँ। ”
मुझे परिचय में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं थी। मैं बस उन पर दृष्टि दौड़ाती रही। “क्या तुम उस आदमी को जानती हो?” मुझे पता था कि वह रिहान के बारे में पूछ रही है। मैंने उसके सवाल को नजरअंदाज कर दिया क्योंकि मुझे नहीं पता था कि मुझे क्या जवाब देना चाहिए? “तुम्हें वाकई नहीं खाना?” उसने मेरे पंजों के सामने रखी उस थाली की ओर देखते हुए अपना प्रश्न बदल दिया। मैंने अपना सिर थोड़ा हिलाया और पानी पीती रही। “लड़के अभी भी भूखे हैं। ये आधी थाली उनके लिए कभी भी पर्याप्त नहीं होता।” उसने अनुरोध करने के लिए मेरे दाॅहिने कंधे पर अपना हाथ रख दिया।