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कभी

28 मई 2022

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एक सेकंड में मेरे दिमाग में दर्जनों सवाल पलक कौंध गये और मैं तय नहीं कर पायी कि पहले क्या पूछूँ? मैं पूछने वाली थी कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो? लेकिन उसी क्षण मुझे याद आया कि मीनाक्षी ने मुझसे क्या कहा था? क्या वह सच था? मैंने सोचा ... बेशक! वह यहां आतंकवादियों के एक समूह के साथ था। हाँ, वह एक आतंकवादी है! मेरे शब्द मेरे होंठों पर मर गए और मेरा चेहरा गुस्से और हैरानी से लाल हो गया। “सही समय का इन्तजार करो।” उसने मेरी आॅखों में देखते हुए ठंडे लहजे में कहा। यह सुनिश्चित करने के लिए चारों ओर देखा कि क्या अन्य कैदी नियंत्रण में हैं? 

“मैं जाना चाहती हूँ!” मैंने अपने कंधों से उसके गंदे हाथ झटक दिये। उन पर मेरी माॅ का खून लगा था। 

“हर कोई चाहता है-,” एक अल्पविराम। “लेकिन कोई नहीं जा सकता।” उसकी आवाज अभी भी सर्द थी, मानों वह थक चुका है और हार गया है। लेकिन मुझे उसकी मनोदषा की कोई फिक्र नहीं थी। वह एक हत्यारा था जिसने मेरी माँ सहित कई लोगों को मार डाला होगा। कभी -, हम प्यार करते जरूर थे एक-दूजे से लेकिन उस वक्त मेरे लिए वह केवल एक अपराधी था। मुझे उसके चेहरे तक से नफरत थी! “मैं कैदी नहीं बनना चाहती। इससे आसान मुझे मारना होगा।” मैंने उसे चेताया 

उसकी आँखें नीचे हुईं। “तुम कैदी नहीं  हो। यहाॅ कोई भी कैदी नहीं है-,बंधक हैं और इसलिए वे अब जिन्दा हैं।” उसने दूसरों की ओर देखा। “यही कारण है कि तुम सभी अब तक जिन्दा हो।”

मैं उसे घूरती रही। “तुम मुझे पहले ही दो बार मार चुके हो रिहान।” मैंने अपनी आवाज होठों में दबाते हुए कहा। “पहले, बार का तो तुम्हें याद ही होगा और दूसरी बार जब तुमने मेरी माँ को मार डाला।” 

मेरे लव्जों पर उसकी नजरें उठी और उसके होठं कुछ कहने को खुले। एक पल ठहरकर-“तुम कुछ नहीं जानती ...। तुम वहाॅ नहीं थीं।” जैसे ही मैनें उसकी आॅखों में देखा, दरवाजा खुल गया।

रिहान अब मुझसे चार फीट दूर था।

“कौन है वह लड़की?” एक आदमी जिसकी आवाज बुलंद थी वह अपने कुछ चेलों के साथ कमरे में आया। वह सबसे अधिक आत्मविश्वास और मजबूत लग रहा था यहाॅ। वह चेहरा परिपक्व और रौबदार था। कपड़ें औरांें के मुकाबले उजले थे। उसकी बाहर को निकली हल्की भूरी आॅखें जिन पर सुरमा लगा हुआ था-, तनी हुईं भौहें और लाल दाढ़ी में ढॅका जबड़ा था। देखने में वह किसी राक्षस से मिलता जुलता था। जिस तरह से उसने पूछताछ की और रिहान एक ओर सिर झुकाये खड़ा हो गया था, यह मान लेना आसान था कि जो आया, वह यहाॅ का प्रमुख होगा। उनका चीफ।

रिहान ने जवाब नहीं दिया।

प्रमुख ने अपनी आँखें मुझ पर केन्द्रित कीं। उसने मुझे सिर से पैरों तक ताड़ा। मेरी बाॅहों से होते हुए उसकी नजरें मेरे थैले पर पड़ीं और अटक गयीं। “यह क्या है?” वह मेरे पास आया और अपने दूधिया सफेद हाथ में थैले को उठा लिया। “उसे हाथ भी मत लगाओ!” मैंने कहा “वापस रखो उसे।” मैं चिल्लायी

मुखिया ने मुझे घूरा और बिना कुछ कहे थैले को खोल दिया। उसने सारा सामान उलट-पलट कर लिया लेकिन उसमें कुछ भी संदिग्ध नहीं था। निर्मम मुस्कान के साथ उसने वह थैला रिहान की तरफ उछाल दिया। रिहान ने उसे लपका।

“तो, तुम हो वह जिसने आते ही हमारी नाक में दम कर दिया?” एक अल्पविराम। “तुमने मेरे आदमी को गोली मारने की कोशिश की? दिलचस्प।” एक झूठी मुस्कान के साथ उसने मेरे चारों ओर एक चक्कर लगायास। “क्या उम्र है तुम्हारी?” उसने इस पंक्ति में थोड़ी दिलचस्पी भरी। मैंने जवाब नहीं दिया। वह मेरे सामने रुक गया। उसने मेरी ठुड्डी पकडी और मेरी मेरी आँखों में सीधे देखने के लिए मेरा चेहरा ऊपर उठाया। मेरे होंठों के कोने से रिसने वाले खून को तर्जनी से साफ करते हुए- “मैंने पूछा- आपकी उम्र कितनी है?”

“चैबीस साल।” मैंने कहा और उसका हाथ एक तरफ कर दिया। मुझे हर पल घबराहट हो रही थी कि कहीं चीफ यहीं कुछ अभद्र ना कर दे। डर मेरी रीढ़ को झकझोर रहा था, लेकिन मैंने उसे इसका एहसास नहीं होने देना चाहती थी। दिल सिहर रहा था और दिमाग सोच रहा था कि अब मैं क्या करूँ? मेरी नजरें बेवजह ही रिहान पर गयीं। लगा कि कम से कम रिहान तो मेरी मदद करेगा ...और कुछ नही ंतो विरोध ही सही, लेकिन उनका चेहरा और आँखें बुत सी बेजान, भावहीन ही रहीं। चीफ अपने चेलों को साथ लेकर जाने को हुआ- “हिम्मत वाली केवल एक तुम ही नहीं हो यहाॅ-, और भी है। मैं तुम्हारी हिम्मत की कद्र करता हूॅ लेकिन आगे कुछ भी करने से पहले ध्याान रहे कि तुम्हारी जान मेरे हाथ में है।” उसने चलते हुए एक बार रिहान को देखा- “सीधे गोली मार देना जो कोई भी यहाॅ शोर करता है।” इस आदेष के साथ वह सभी चले गये।

रिहान उसके पीछे गया।


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वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक पल में उठ बैठी! “माँ”? मैं उनके चेहरे को देखते हुए दोहराया। जितनी आंतकित मैं थी सुनकर शायद वह भी थे ये बात बोलते हुए। “किसकी माँ?” मैंने थोड़ी शंका के साथ पूछा कि क्या वह मेरी ही माँ के बारे में बात कर रहे हैं? उनके चेहरे पर भी शायद वही आंदेषा था, जो मेरे मन में हलचल मचा रहा था। कश्मीर में देर रात एक आतंकी हमले में मेरी मां की मौत हो गई।
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कभी...। वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक

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ये पहली मौत नहीं थी जो मैनें देखी थी। कुछ तीन साल पहले इसी तरह पिताजी को भी देख चुकी थी, और वह भी इसी घर में। वह बीमार रहते थे, उनकी मौत अपेक्षित थी लेकिन माॅ की मौत मेरे लिए चैंका देने वाली थी। मुझे

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मेरी आॅखें उस वक्त भी आसूॅओं से भर गयीं। मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा। हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक ही घटना के बारे में सोच रहे थे। अजान की आवाज खामोष हुई। “क्या यह तुम्हें अब भी ड़रा देता है?” उसने

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गर्म पानी के स्नान के बाद मैं हमाम से बाहर आयी। अपने कमरे में आकर मैनें खिडकी के पर्दे उठाए। कोहरे ने मेरी खिड़की के सभी शीषों को धुंधला कर दिया था। मैं उनके पार नहीं देख सकती थी। बाहर का मौसम सर्द है

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मैं सालों बाद उस गली पर पैदल चल रही थी, जो मेरे घर से निकलकर इन वादियों के घुमावदार रास्तों में कहीं विलीन हो जाती थी। उस गली के हर कदम पर मैं खुद को बिखरा महसूस कर रही थी। उस गली से भी ना जाने कितनी

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वह आदमी दुकान तक गया और मेरा थैला उठा लाया। उसने इसे मेरे चेहरे पर फेंक दिया और मेरे जाने का इंतजार करने लगा। मैंने एक बार दुकान पर नजर डाली। मुझे उस गरीब दुकानदार की चिंता थी, जो हर गुजरते पल के साथ

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आधे घंटे बादः उसने वैन को कहीं रोक दिया। एक जगह, जहाॅ मैं अपने जीवन में कभी नहीं गयी। जहाँ तक मैं देख सकती थी वहाँ तक पेड़, कोहरा, पहाड़ और घास ही दिख रहे थे। इससे पहले भी मैंने विंडशील्ड के बाहर झाॅ

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मेरी धड़कनें खुद मुझे भी सुनायी दे रहीं थीं। मैं महसूस कर सकती थी कि मेरा दिल मेरी छाती के पिंजर पर जोर से टकरा रहा है लेकिन उस रोषनी में मुझे जो दिखा उसने मुझे थोड़ी तस्सली दी। मुझे यह देखकर ताजुब्ब

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“याद नहीं।” उसने जवाब दिया  “शायद पंद्रह दिन, या उससे भी ज्यादा।” अन्य महिलाओं में से एक ने वहीं कोने से जवाब दिया। “हमारे पास दिनों की गिनती करने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने हमारा सब कुछ ले लिया। ”

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“तुम यहाॅ कैसे फॅसी?” अंत में सब से ज्यादा चुप रहने वाली महिला ने अपना मुंह खोला। जब से मैं यहाँ थी, मैंने पहली बार उसकी आवाज सुनी थी। उसकी आवाज हर शब्द पर कांप रही थी। “तुम कहाॅ से हो? क्या तुम भागने

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अब सारा माहौल ड़र की चादर ओढ़े खामोष होकर दुबका हुआ था। उस रोज वह कुछ घण्टे बड़े थका देने वाले थे मेरे लिए। बाकि बंधक बड़ी-बड़ी आॅखों से मुझे तक रहीं थीं, मानों कह रहीं हो कि अब हो गयी तसल्ली? मैं अपन

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मैंने बोतल एक तरफ रख दी और बच्चे की तरफ देखा। “इसे ले लो।” मैंने मुस्कुरा कर उसे आग्रह किया और पत्तल लड़कों की ओर बढ़ा दी। वे तेजी से आए और अपना मुंह भरने लगे। वे इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने इसे ठीक

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हालात बदतर होते जा रहे थे। वह जनवरी का महीना था। ज्यादातर दिन या तो बारिश होती थी या बर्फबारी। बारीष का पानी उस घर की छत से कहीं-कहीं रिसता भी था। उससे कमरे की नमी बढ़ गयी थी और साथ ही गारे की बू भी।

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रिहान ने मेरी तरफ देखा। उसने मेरी हालत देखी और मेरा डर भी। उसने मेरे कपड़ों को देखा और फिर उसने दूसरे बंधकों को देखा। “वह फिर से नहीं आयेगा। आप सभी अब सो सकते हैं।” उसने सभी से कहा लेकिन उसकी आँखें मु

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अचानक मुझे पदचाप सुनाई दी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मुझे लगा कि यह हमारा भोजन है। “ऐ तुम!” एक लड़का अंदर आया और मैं कमरे के बीच ठहर गया। हम सब उसे ताड़ रहे थे और वह सिर्फ मुझे। वह शायद ही सत्रह

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मैं एक बार फिर हार गयी थी। मैंने अपनी मुट्ठी फर्श पर मार दी। मैं थोड़ी और देर रस्सी को क्यों नहीं थामे रह पायी? उसकी गर्दन केवल एक निषान के साथ आजाद हो गयी थी। “ह-मजादी! आज बताता हूॅ तुझे!” उसने मेरी

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मेरी रीढ़ अब तक दर्द में थी। मैं अपने पैरों पर सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वहाॅ किसी ने भी मुझे किसी तरह की दवा नहीं दी। दर्द से तड़पना ही एकमात्र विकल्प बचा था मेरे पास। लगभग एक दिन न तो रिहान और

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अचानक मुझे बाहर कुछ आवाजें सुनाई दीं। मैंने पहली आवाज को पहचाना-, यह अश्वश्री थी और दूसरा कुछ पुरुष था। जब तक मैं बाल्टी से कूद कर नीचे आयी तब तक दरवाजे पर एक तेज दस्तक ने मुझे चैंका दिया! “कौन?” मैं

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मैने वही किया जो उसने मुझे करने को कहा था। मैंने चलने की कोशिश की। मैं थोड़ी मुश्किल से ही सही लेकिन चल सकती थी। मेरा सिर अभी भी भारी दर्द में था और मैं बहुत बीमार महसूस कर रही थी। मेरी नसों में एक ती

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वह गाड़ी चलाता रहा और विंडशील्ड से बाहर देखता रहा। यह दुखद था! यह केवल मेरे रिहान के बारे में नहीं था। मैंने वहां देखे गए प्रत्येक आतंकवादी में रिहान को पाया। उनके पास विकल्प हैं लेकिन कहां? उनकी पहचा

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जब हम उस आर्मी कैंप से निकल रहे थे तो हमें बताया कि आगे के रिकॉर्ड के लिए हमारे प्रत्येक दस्तावेज की एक प्रति उन्हे चाहिये होगी। विदुर वहीं ठहर गये ताकि उनकेा सारे कागजों की प्रतियाॅ करा कर दे सकें और

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मेरी नजर या तो सड़क पर थी या उसकी छाती पर। अभी भी खून बह रहा था। मैंने देखा कि उसकी पट्टी पर धब्बा हर मिनट के साथ अपना आकार बढ़ा रहा था। उसकी हालत गंभीर थी और मैं उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। मैं आगे नही

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मैं गाड़ी चलाते हुए उसके अगले शब्द का इंतजार कर रही थी। मेरी नजर विंडशील्ड पर टिकी थी। “रिहान?” मैंने उसे पुकारा। “मुझे घर दिखायी दे रहा है।” मैंने उससे कहा और कुछ दूरी पर ब्रेक दबाया। मैं कोई फैसला ख

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