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kabhi

28 मई 2022

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मैं सालों बाद उस गली पर पैदल चल रही थी, जो मेरे घर से निकलकर इन वादियों के घुमावदार रास्तों में कहीं विलीन हो जाती थी। उस गली के हर कदम पर मैं खुद को बिखरा महसूस कर रही थी। उस गली से भी ना जाने कितनी यादें जुड़ी थीं और हर जगह मुझे मैं ही दिख रही थी....कभी स्कूल से वापस आते हुए....कभी बर्फ हाथों में समेटकर उसकी बाॅल बनाते हुए....कभी मीनाक्षी के साथ हॅसते हुए टहलते हुए। उस रोज़ भी गली के किनारों पर सेब और देवदार के पेड़ वैसे ही खुद पर कोहरे के हजारों सर्द मोती सहेजे साॅस रोके खड़े थे। 

उस सुबह शहर पिछली रात की तरह शून्य नहीं था। मैंने कई पुलिसकर्मियों और सैनिकों को शहर में गश्त करते देखा। शहर में अड़तालीस घंटे से कर्फ्यू लगा हुआ था। त्रासदी के बाद यह दूसरी सुबह थी और हमारे शहर को दिन के समय कर्फ्यू में छूट मिली हुई थी। मैंने देखा, ज्यादातर दरवाजे बंद थे। मैं अपने कुछ परिचित लोगों से मिली भी जिन्होंने मेरी माँ के बारे में पूछा और उनकी मृत्यु पर मुझे सांत्वना दी। मुझे उनके शब्दों में उसी डर की बू आ रही थी। भट्टी चाचा की तरह, उन्होंने भी मुझे हिंदुओं और मुसलमानों के बारे में वही पुरानी कहानी सुनाई। उन्होंने मुझे बताया, कैसे उन खामोष सड़कों पर हिंसा का सांप रेंग रहा था। लोग एक-दूसरे से डरते थे। उनका मानना था कि कभी भी-, कुछ भी हो सकता है। 

Û Û Û Û Û Û

हवा में कोहरा इतना घना था कि महज पांच या छह मीटर की दूरी के बाद देख पाना मुष्किल था। जब भी मैं किसी गली से अकेली गुजरती तो लगता कि कोई मेरा पीछा कर रहा है ... कि कोई मुझसे कुछ कदम पीछे चल रहा है लेकिन जब-जब मैंने ठहरकर पीछे देखा, तो मुझे वहाॅ कोई नहीं दिखा। लेकिन हर बार उस एहसास से मेरी रीढ़ की हड्डी में आतंक की लहर दौड़ जाती थी।

“कितना हुआ?” मैंने सारा सामान एक छोटे से थैले में रखते हुए उस बूढे़ दुकानदार से पूछा।

वह एक छोटी सी दुकान थी जिसके छज्जे के नीचे मैं खड़ी थी। उस सुबह बाजार में ज्यादातर दुकानें बंद ही थीं। सुनने में आया था कि उसी बाज़ार की कई हिन्दू दुकानों को आग लगा दी गयी थी। नारायण अंकल ने जो सूची मुझे दी थी उसमें से कुछ भी मिलना बहुत मुष्किल हो रहा था। बस एक वही दुकान थी जो खुली थी और जिसमें पूजा आदि का सामान भी मिल गया। 

दुकानदार ने धीरे-धीरे अपना कैलकुलेटर उठाया और गंणना शुरू की। मैं अपने छोटे से बटुए की चेन खोल ही रही थी कि अचानक मेरे कान के पास से कुछ बहुत तेज गति से गुजरा! इससे पहले कि मैं कुछ समझ या देख पाती, दुकानदार नीचे गिर गया। उसे गोली लगी थी! 

“हे भगवान!” मैं चिल्लायी और पीछे घूमी। बड़े-काले लबादे में ढँके कुछ लोग, बंदूक पकड़े हुए एक संकरी गली की ओर भाग रहे थे। मैंने उन काले सायों को देखा और अगले ही पल वे कोहरे की गाढ़ी परत में गायब हो गए। दूसरी तरफ दुकानदार फर्श पर पड़ा था, और उसका खून फर्ष पर बिखर रहा था। मेरा मुंह एक बार फिर किसी को पुकारने को खुला लेकिन, मुझे पता था कि मदद के लिए पुकारना कोई विकल्प नहीं है।

मैंने दुकान की सीढ़ीयों से कदम नीचे लिये। गली शून्य थी। मुझे पता था कि कुछ लोग हैं जो बंद दरवाजे और गिरे हुए शटरों के पीछे छिपे हुए हैं लेकिन मुझे ये भी पता था कि कोई भी मेरी मदद के लिए नहीं आएगा। मैंने अपना सेल फोन निकाल लिया। फोन निकालते हुए मैं तक नहीं तय कर पा रही थी कि पहले पुलिस को फोन लगाऊॅ या एम्बुलेंस को?  लेकिन इससे पहले कि मैं कोई कॉल कर सकूं- “रुको!” मेरी फैली हुई पुतलियाॅ उठीं। मेरे चेहरे पर अपनी बंदूक के बैरल को ताने एक व्यक्ति खड़ा था। मुझे तो लगा था कि वह चले गए हैं। “यहाॅ से निकल लो-, वरना तुम्हारा भी वही हाल होगा।” उसका चेहरा काले कपड़े से ढंका था। मैं केवल उसकी आँखें देख सकती थी और यह उसकी आँखों में था, कि वह वास्तव में मुझे गोली मार सकता है। मेरे पास कोई विकल्प नही था। मैंने अपने हाथ नीचे कर लिये। 


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कभी
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वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक पल में उठ बैठी! “माँ”? मैं उनके चेहरे को देखते हुए दोहराया। जितनी आंतकित मैं थी सुनकर शायद वह भी थे ये बात बोलते हुए। “किसकी माँ?” मैंने थोड़ी शंका के साथ पूछा कि क्या वह मेरी ही माँ के बारे में बात कर रहे हैं? उनके चेहरे पर भी शायद वही आंदेषा था, जो मेरे मन में हलचल मचा रहा था। कश्मीर में देर रात एक आतंकी हमले में मेरी मां की मौत हो गई।
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कभी...। वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक

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ये पहली मौत नहीं थी जो मैनें देखी थी। कुछ तीन साल पहले इसी तरह पिताजी को भी देख चुकी थी, और वह भी इसी घर में। वह बीमार रहते थे, उनकी मौत अपेक्षित थी लेकिन माॅ की मौत मेरे लिए चैंका देने वाली थी। मुझे

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मेरी आॅखें उस वक्त भी आसूॅओं से भर गयीं। मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा। हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक ही घटना के बारे में सोच रहे थे। अजान की आवाज खामोष हुई। “क्या यह तुम्हें अब भी ड़रा देता है?” उसने

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गर्म पानी के स्नान के बाद मैं हमाम से बाहर आयी। अपने कमरे में आकर मैनें खिडकी के पर्दे उठाए। कोहरे ने मेरी खिड़की के सभी शीषों को धुंधला कर दिया था। मैं उनके पार नहीं देख सकती थी। बाहर का मौसम सर्द है

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मैं सालों बाद उस गली पर पैदल चल रही थी, जो मेरे घर से निकलकर इन वादियों के घुमावदार रास्तों में कहीं विलीन हो जाती थी। उस गली के हर कदम पर मैं खुद को बिखरा महसूस कर रही थी। उस गली से भी ना जाने कितनी

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वह आदमी दुकान तक गया और मेरा थैला उठा लाया। उसने इसे मेरे चेहरे पर फेंक दिया और मेरे जाने का इंतजार करने लगा। मैंने एक बार दुकान पर नजर डाली। मुझे उस गरीब दुकानदार की चिंता थी, जो हर गुजरते पल के साथ

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आधे घंटे बादः उसने वैन को कहीं रोक दिया। एक जगह, जहाॅ मैं अपने जीवन में कभी नहीं गयी। जहाँ तक मैं देख सकती थी वहाँ तक पेड़, कोहरा, पहाड़ और घास ही दिख रहे थे। इससे पहले भी मैंने विंडशील्ड के बाहर झाॅ

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मेरी धड़कनें खुद मुझे भी सुनायी दे रहीं थीं। मैं महसूस कर सकती थी कि मेरा दिल मेरी छाती के पिंजर पर जोर से टकरा रहा है लेकिन उस रोषनी में मुझे जो दिखा उसने मुझे थोड़ी तस्सली दी। मुझे यह देखकर ताजुब्ब

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“याद नहीं।” उसने जवाब दिया  “शायद पंद्रह दिन, या उससे भी ज्यादा।” अन्य महिलाओं में से एक ने वहीं कोने से जवाब दिया। “हमारे पास दिनों की गिनती करने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने हमारा सब कुछ ले लिया। ”

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“तुम यहाॅ कैसे फॅसी?” अंत में सब से ज्यादा चुप रहने वाली महिला ने अपना मुंह खोला। जब से मैं यहाँ थी, मैंने पहली बार उसकी आवाज सुनी थी। उसकी आवाज हर शब्द पर कांप रही थी। “तुम कहाॅ से हो? क्या तुम भागने

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एक सेकंड में मेरे दिमाग में दर्जनों सवाल पलक कौंध गये और मैं तय नहीं कर पायी कि पहले क्या पूछूँ? मैं पूछने वाली थी कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो? लेकिन उसी क्षण मुझे याद आया कि मीनाक्षी ने मुझसे क्या कहा

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अब सारा माहौल ड़र की चादर ओढ़े खामोष होकर दुबका हुआ था। उस रोज वह कुछ घण्टे बड़े थका देने वाले थे मेरे लिए। बाकि बंधक बड़ी-बड़ी आॅखों से मुझे तक रहीं थीं, मानों कह रहीं हो कि अब हो गयी तसल्ली? मैं अपन

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मैंने बोतल एक तरफ रख दी और बच्चे की तरफ देखा। “इसे ले लो।” मैंने मुस्कुरा कर उसे आग्रह किया और पत्तल लड़कों की ओर बढ़ा दी। वे तेजी से आए और अपना मुंह भरने लगे। वे इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने इसे ठीक

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हालात बदतर होते जा रहे थे। वह जनवरी का महीना था। ज्यादातर दिन या तो बारिश होती थी या बर्फबारी। बारीष का पानी उस घर की छत से कहीं-कहीं रिसता भी था। उससे कमरे की नमी बढ़ गयी थी और साथ ही गारे की बू भी।

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रिहान ने मेरी तरफ देखा। उसने मेरी हालत देखी और मेरा डर भी। उसने मेरे कपड़ों को देखा और फिर उसने दूसरे बंधकों को देखा। “वह फिर से नहीं आयेगा। आप सभी अब सो सकते हैं।” उसने सभी से कहा लेकिन उसकी आँखें मु

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अचानक मुझे पदचाप सुनाई दी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मुझे लगा कि यह हमारा भोजन है। “ऐ तुम!” एक लड़का अंदर आया और मैं कमरे के बीच ठहर गया। हम सब उसे ताड़ रहे थे और वह सिर्फ मुझे। वह शायद ही सत्रह

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मैं एक बार फिर हार गयी थी। मैंने अपनी मुट्ठी फर्श पर मार दी। मैं थोड़ी और देर रस्सी को क्यों नहीं थामे रह पायी? उसकी गर्दन केवल एक निषान के साथ आजाद हो गयी थी। “ह-मजादी! आज बताता हूॅ तुझे!” उसने मेरी

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मेरी रीढ़ अब तक दर्द में थी। मैं अपने पैरों पर सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वहाॅ किसी ने भी मुझे किसी तरह की दवा नहीं दी। दर्द से तड़पना ही एकमात्र विकल्प बचा था मेरे पास। लगभग एक दिन न तो रिहान और

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अचानक मुझे बाहर कुछ आवाजें सुनाई दीं। मैंने पहली आवाज को पहचाना-, यह अश्वश्री थी और दूसरा कुछ पुरुष था। जब तक मैं बाल्टी से कूद कर नीचे आयी तब तक दरवाजे पर एक तेज दस्तक ने मुझे चैंका दिया! “कौन?” मैं

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मैने वही किया जो उसने मुझे करने को कहा था। मैंने चलने की कोशिश की। मैं थोड़ी मुश्किल से ही सही लेकिन चल सकती थी। मेरा सिर अभी भी भारी दर्द में था और मैं बहुत बीमार महसूस कर रही थी। मेरी नसों में एक ती

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वह गाड़ी चलाता रहा और विंडशील्ड से बाहर देखता रहा। यह दुखद था! यह केवल मेरे रिहान के बारे में नहीं था। मैंने वहां देखे गए प्रत्येक आतंकवादी में रिहान को पाया। उनके पास विकल्प हैं लेकिन कहां? उनकी पहचा

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जब हम उस आर्मी कैंप से निकल रहे थे तो हमें बताया कि आगे के रिकॉर्ड के लिए हमारे प्रत्येक दस्तावेज की एक प्रति उन्हे चाहिये होगी। विदुर वहीं ठहर गये ताकि उनकेा सारे कागजों की प्रतियाॅ करा कर दे सकें और

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मेरी नजर या तो सड़क पर थी या उसकी छाती पर। अभी भी खून बह रहा था। मैंने देखा कि उसकी पट्टी पर धब्बा हर मिनट के साथ अपना आकार बढ़ा रहा था। उसकी हालत गंभीर थी और मैं उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। मैं आगे नही

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मैं गाड़ी चलाते हुए उसके अगले शब्द का इंतजार कर रही थी। मेरी नजर विंडशील्ड पर टिकी थी। “रिहान?” मैंने उसे पुकारा। “मुझे घर दिखायी दे रहा है।” मैंने उससे कहा और कुछ दूरी पर ब्रेक दबाया। मैं कोई फैसला ख

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