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कभी

28 मई 2022

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मैंने बोतल एक तरफ रख दी और बच्चे की तरफ देखा। “इसे ले लो।” मैंने मुस्कुरा कर उसे आग्रह किया और पत्तल लड़कों की ओर बढ़ा दी। वे तेजी से आए और अपना मुंह भरने लगे। वे इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने इसे ठीक से चबाने के लिए समय भी बर्बाद नहीं किया। मैं थोड़ी देर के लिए उन निर्दोष बच्चों को देखती रही और जल्द ही- “माफ करना। ” मैं धीरे से खड़ी हुई। 

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जब वह आदमी मुझे पीट रहा था, तो मैंने केवल उसके वार महसूस किये, लेकिन अब मुझे पता चल रहा था कि मेरे शरीर का सत्तर प्रतिशत हिस्सा चोटिल था। जब मैं उठ रही थी, जब मैं खुद को पैरों पर संतुलित कर रही थी, जब मैं शौचालय की तरफ जा रही थी और जब मैंने दरवाजा खोला ... मैं दर्द और केवल दर्द महसूस कर सकती थी। यह हर गुजरते घंटे के साथ बढ़ता जा रहा था।

जैसे ही मैंने शौचालय का दरवाजा खोला, मुझे एहसास हुआ कि यह अगली सुबह है। शौचालय दूसरे कमरे के मुकाबले ज्यादा रोषन था और उसे देखकर किसी सार्वजनिक शौचालय की याद आती थी क्योंकि ये काफी बदबूदार था। इसे आखिरी बार जाने कब साफ किया गया होगा? जगह-जगह मल-मूत्र के धब्बे थे। पान के थूक के निषान थे और साबुन आदि की व्यवस्था होना तो यहाॅ वैसे भी मुमकिन नहीं था। मैंने अपने हाथों से अपनी नाक और मुंह ढक लिया। एक बार फिर मेरे दिल ने कहा, यहाँ रहने के बजाय मर जाना बेहतर होगा। उस रोज़ मुझे भागने का एक और कारण मिला!

वहाॅ प्लासिटक का एक पुराना मग था और लोहे की जंग लगी बाल्टी। संभवतः ये शौचालय आतंकवादी भी इस्तेमाल कर रहे थे। पुरानी वास्तुकला के अनुसार, इसकी बाईं दीवार में एक छोटी हवादार खिड़की थी। मैं उसके करीब गयी और ध्यान से उसकी जाँच की। इसे मोटे प्लाईबोर्ड के एक टुकड़े के साथ सील कर दिया गया था, जो थोड़े प्रयास से अलग हो सकता था। जितना मैं समझ सकी , वह जंगल की तरफ खुलता होगा और उसका व्यास मानव के लिए अंदर या बाहर जाने के लिए पर्याप्त था। मैं इसे खोलने और तुरंत वहाॅ से भागने का प्रयास कर सकती थी, लेकिन मेरे शरीर ने मुझे अनुमति नहीं दी। उस वक्त मैं कोषिष करती तो भी चार कदम ना चल पाती। 

मैंने इंतजार करने का फैसला किया।

हम घंटों या दिनों की गिनती नहीं कर सकते थे वहाॅ, क्योंकि उस अंधेरे कमरे में हर समय रात होती थी। जब भी मुझे मौसम या दिन या रात के बारे में जानना होता, तो हम शौचालय इस्तेमाल करती थी। यह अपने रोषनदान के कारण दिन के समय थोड़ा उज्ज्वल हुआ करता था।

मैं हर रोज की गिनती के लिए वहाॅ की दीवार पर नाखूनों से एक खरोंच मार देती जिससे मुझे रातों को गिनने और याद रखने में आसानी रहे। ऐसा वहाॅ पहले किसी ने नहीं किया। वे समय के बारे में चिंतित नहीं थे, लेकिन मैं थी। मैं थी क्योंकि मुझे पता था कि यह मेरा जीवन है, दिनों, घंटों और मिनटों में विभाजित ... और मुझे चिंता थी क्योंकि मैं अपने जीवन के बाकी हिस्सों को अपने तरीके से बितानी चाहती थी और उसके लिए किसी से दया की भीख माॅगने वाली नहीं थी। 

मेरी गिनती के अनुसार मैं तीन रातें तीन दिन उस अंधेरे कमरे में बिता चुकी थी। वह कमरा मुझे बीमार बना रहा था। दूसरी ओर, एक डर मुझे मार रहा था कि चीफ मुझे किसी भी क्षण सोने के लिए बुलाएगा। युसुफ ने भी अपने गंदे इरादों से मेरे अंगों को छूने का मौका नहीं छोड़ता था। सुना था कि मुझे मिलने के ठीक बाद चीफ यहाॅ से कहीं बाहर गया था। ये मेरे लिए अच्छी बात थी लेकिन मैं ये नहीं समझ पा रही थी युसुफ को ऐसा करने से आखिर रोक कौन रहा होगा? बहरहाल, जो दिन कट रहे थे गनीमत थी।

इस अवधि के दौरान वे लोग हमें बहुत कम भोजन देते रहे दिन में एक बार। वे बस हमें जिन्दा रखने के लिए खिला रहे थे, पोषण के लिए नहीं। मैं शाकाहारी हूँ। जब तक मैं सहन कर सकती थी, तब तक मैंने मांसाहारी भोजन का स्वाद नहीं चखा। लेकिन आखिरकार मेरी ताकत और मेरे शरीर ने घुटने टेक दिए। फिर जो कुछ भी उन्होंने हमें परोसा ... मुर्गा-, गौमाॅस मैनें सब कुछ खाया। हमें क्यों या क्या यह पूछने की अनुमति नहीं थी। 

इस बीच में रिहान हमसे मिलने आया ... लेकिन दूसरों से कम। केवल तभी, जब उसे हमारे लिए भोजन या पानी लाना होता या शौचालय का उपयोग करना होता। असल में वहाॅ केवल एक शौचालय था और मैं सही थी, इसे बंधकों और आतंकवादियों द्वारा साॅझा किया जा रहा था। रिहान ने वहाॅ से गुजरते हुए कभी मुझसे आँख नहीं मिलाई। उसने कभी मेरे स्वास्थ्य के बारे में नहीं पूछा। उसने यह तक नहीं पूछा कि क्या मुझे कोई समस्या है? लेकिन मैंने उनके मुंह से दो शब्द अक्सर सुने- “शांत रहें और सही वक्त का इंतजार करो।” वह भोजन या पानी परोसते समय मुझसे यही कहता रहा-,बहुत ही दबे हुई आवाज में। इसके अलावा, वह हमेशा सभ्य और खुद में लीन रहता था।

मैंने देखा, अश्वश्री पर रिहान का अच्छा प्रभाव था। वह अक्सर उसके बारे में बात करती थी। उसने मुझे बताया कि जब वह पहली बार चीफ के पास गई थी, तो रिहान भी उस कमरे में था। वह एक कुर्सी पर बैठा था और अपने काम में लीन था। अष्वी ने मान लिया कि रिहान भी उसका यौन उत्पीड़न करेगा, लेकिन रिहान ने उसे कमरे में आते देखते ही कमरा  छोड़ दिया। मुझे लगा कि शायद उसे ऐसा करने की अनुमति नहीं होगी?’ तब अष्वी मुझे बताया कि रिहान एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जिसने कभी भी अपनी ताकत का फायदा नहीं उठाया था। मैंने सुना था कि वह इस समूह का सब से व्यस्त और बहुत महत्वपूर्ण सदस्य था। मुझे नहीं पता था कि क्यों? और न ही मैं जानने में मेरी दिलचस्पी थी।

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वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक पल में उठ बैठी! “माँ”? मैं उनके चेहरे को देखते हुए दोहराया। जितनी आंतकित मैं थी सुनकर शायद वह भी थे ये बात बोलते हुए। “किसकी माँ?” मैंने थोड़ी शंका के साथ पूछा कि क्या वह मेरी ही माँ के बारे में बात कर रहे हैं? उनके चेहरे पर भी शायद वही आंदेषा था, जो मेरे मन में हलचल मचा रहा था। कश्मीर में देर रात एक आतंकी हमले में मेरी मां की मौत हो गई।
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ये पहली मौत नहीं थी जो मैनें देखी थी। कुछ तीन साल पहले इसी तरह पिताजी को भी देख चुकी थी, और वह भी इसी घर में। वह बीमार रहते थे, उनकी मौत अपेक्षित थी लेकिन माॅ की मौत मेरे लिए चैंका देने वाली थी। मुझे

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मेरी आॅखें उस वक्त भी आसूॅओं से भर गयीं। मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा। हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक ही घटना के बारे में सोच रहे थे। अजान की आवाज खामोष हुई। “क्या यह तुम्हें अब भी ड़रा देता है?” उसने

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गर्म पानी के स्नान के बाद मैं हमाम से बाहर आयी। अपने कमरे में आकर मैनें खिडकी के पर्दे उठाए। कोहरे ने मेरी खिड़की के सभी शीषों को धुंधला कर दिया था। मैं उनके पार नहीं देख सकती थी। बाहर का मौसम सर्द है

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मैं सालों बाद उस गली पर पैदल चल रही थी, जो मेरे घर से निकलकर इन वादियों के घुमावदार रास्तों में कहीं विलीन हो जाती थी। उस गली के हर कदम पर मैं खुद को बिखरा महसूस कर रही थी। उस गली से भी ना जाने कितनी

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वह आदमी दुकान तक गया और मेरा थैला उठा लाया। उसने इसे मेरे चेहरे पर फेंक दिया और मेरे जाने का इंतजार करने लगा। मैंने एक बार दुकान पर नजर डाली। मुझे उस गरीब दुकानदार की चिंता थी, जो हर गुजरते पल के साथ

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आधे घंटे बादः उसने वैन को कहीं रोक दिया। एक जगह, जहाॅ मैं अपने जीवन में कभी नहीं गयी। जहाँ तक मैं देख सकती थी वहाँ तक पेड़, कोहरा, पहाड़ और घास ही दिख रहे थे। इससे पहले भी मैंने विंडशील्ड के बाहर झाॅ

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मेरी धड़कनें खुद मुझे भी सुनायी दे रहीं थीं। मैं महसूस कर सकती थी कि मेरा दिल मेरी छाती के पिंजर पर जोर से टकरा रहा है लेकिन उस रोषनी में मुझे जो दिखा उसने मुझे थोड़ी तस्सली दी। मुझे यह देखकर ताजुब्ब

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“याद नहीं।” उसने जवाब दिया  “शायद पंद्रह दिन, या उससे भी ज्यादा।” अन्य महिलाओं में से एक ने वहीं कोने से जवाब दिया। “हमारे पास दिनों की गिनती करने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने हमारा सब कुछ ले लिया। ”

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“तुम यहाॅ कैसे फॅसी?” अंत में सब से ज्यादा चुप रहने वाली महिला ने अपना मुंह खोला। जब से मैं यहाँ थी, मैंने पहली बार उसकी आवाज सुनी थी। उसकी आवाज हर शब्द पर कांप रही थी। “तुम कहाॅ से हो? क्या तुम भागने

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एक सेकंड में मेरे दिमाग में दर्जनों सवाल पलक कौंध गये और मैं तय नहीं कर पायी कि पहले क्या पूछूँ? मैं पूछने वाली थी कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो? लेकिन उसी क्षण मुझे याद आया कि मीनाक्षी ने मुझसे क्या कहा

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अब सारा माहौल ड़र की चादर ओढ़े खामोष होकर दुबका हुआ था। उस रोज वह कुछ घण्टे बड़े थका देने वाले थे मेरे लिए। बाकि बंधक बड़ी-बड़ी आॅखों से मुझे तक रहीं थीं, मानों कह रहीं हो कि अब हो गयी तसल्ली? मैं अपन

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हालात बदतर होते जा रहे थे। वह जनवरी का महीना था। ज्यादातर दिन या तो बारिश होती थी या बर्फबारी। बारीष का पानी उस घर की छत से कहीं-कहीं रिसता भी था। उससे कमरे की नमी बढ़ गयी थी और साथ ही गारे की बू भी।

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रिहान ने मेरी तरफ देखा। उसने मेरी हालत देखी और मेरा डर भी। उसने मेरे कपड़ों को देखा और फिर उसने दूसरे बंधकों को देखा। “वह फिर से नहीं आयेगा। आप सभी अब सो सकते हैं।” उसने सभी से कहा लेकिन उसकी आँखें मु

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अचानक मुझे पदचाप सुनाई दी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मुझे लगा कि यह हमारा भोजन है। “ऐ तुम!” एक लड़का अंदर आया और मैं कमरे के बीच ठहर गया। हम सब उसे ताड़ रहे थे और वह सिर्फ मुझे। वह शायद ही सत्रह

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मैं एक बार फिर हार गयी थी। मैंने अपनी मुट्ठी फर्श पर मार दी। मैं थोड़ी और देर रस्सी को क्यों नहीं थामे रह पायी? उसकी गर्दन केवल एक निषान के साथ आजाद हो गयी थी। “ह-मजादी! आज बताता हूॅ तुझे!” उसने मेरी

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मेरी रीढ़ अब तक दर्द में थी। मैं अपने पैरों पर सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वहाॅ किसी ने भी मुझे किसी तरह की दवा नहीं दी। दर्द से तड़पना ही एकमात्र विकल्प बचा था मेरे पास। लगभग एक दिन न तो रिहान और

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अचानक मुझे बाहर कुछ आवाजें सुनाई दीं। मैंने पहली आवाज को पहचाना-, यह अश्वश्री थी और दूसरा कुछ पुरुष था। जब तक मैं बाल्टी से कूद कर नीचे आयी तब तक दरवाजे पर एक तेज दस्तक ने मुझे चैंका दिया! “कौन?” मैं

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मैने वही किया जो उसने मुझे करने को कहा था। मैंने चलने की कोशिश की। मैं थोड़ी मुश्किल से ही सही लेकिन चल सकती थी। मेरा सिर अभी भी भारी दर्द में था और मैं बहुत बीमार महसूस कर रही थी। मेरी नसों में एक ती

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वह गाड़ी चलाता रहा और विंडशील्ड से बाहर देखता रहा। यह दुखद था! यह केवल मेरे रिहान के बारे में नहीं था। मैंने वहां देखे गए प्रत्येक आतंकवादी में रिहान को पाया। उनके पास विकल्प हैं लेकिन कहां? उनकी पहचा

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जब हम उस आर्मी कैंप से निकल रहे थे तो हमें बताया कि आगे के रिकॉर्ड के लिए हमारे प्रत्येक दस्तावेज की एक प्रति उन्हे चाहिये होगी। विदुर वहीं ठहर गये ताकि उनकेा सारे कागजों की प्रतियाॅ करा कर दे सकें और

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मेरी नजर या तो सड़क पर थी या उसकी छाती पर। अभी भी खून बह रहा था। मैंने देखा कि उसकी पट्टी पर धब्बा हर मिनट के साथ अपना आकार बढ़ा रहा था। उसकी हालत गंभीर थी और मैं उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। मैं आगे नही

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मैं गाड़ी चलाते हुए उसके अगले शब्द का इंतजार कर रही थी। मेरी नजर विंडशील्ड पर टिकी थी। “रिहान?” मैंने उसे पुकारा। “मुझे घर दिखायी दे रहा है।” मैंने उससे कहा और कुछ दूरी पर ब्रेक दबाया। मैं कोई फैसला ख

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