हालात बदतर होते जा रहे थे। वह जनवरी का महीना था। ज्यादातर दिन या तो बारिश होती थी या बर्फबारी। बारीष का पानी उस घर की छत से कहीं-कहीं रिसता भी था। उससे कमरे की नमी बढ़ गयी थी और साथ ही गारे की बू भी। दूसरों की तरह मेरे पास भी अपने आप को गर्म रखने के लिए केवल एक स्वेटशर्ट था। हमारे अंग हमेशा ठंडे और सुन्न रहते थे। कभी-कभी जब मैं सोकर जगती, तो मै अपने पैरों को हिलने में असमर्थ पाती। मुझे कुछ व्यायाम करके खुद को गर्म करना पड़ता था। अस्वस्थ दिनचर्या, नमी और घुटन भरे माहौल ने पहले से ही अश्विश्री और दो लड़कों को बीमार कर दिया। और अब मेरी बारी थी।
वह रात थी या दोपहर, मुझे यकीन नहीं था लेकिन मेरा शरीर मुझे नीचे पर लेट जाने को कह रहा था। मुझे अपने सिर में ईंट टकराने जैसा दर्द महसूस हो रहा था। मेरी आँखें जल रही थीं और मुझे अपने पूरे शरीर में ताप महसूस हो रहा थी। ठण्ड से मेरे शरीर काॅप रहा था और कुछ घाव अभी भी बुरी तरह दंुख रहे थे। मैंने अन्य लोगों को देखा जिन्होंने पहले ही हालातों से हार मान ली थी और दिन भर बुखार मंे सोये रहते थे।
कभी-कभी मुझे भी लगता कि मैं भी उन कमीनों से अपनी आजादी और दया की भीख माँगू। कभी लगता कि युसुफ के सामने नतमस्तक होकर उसे खुष कर के यहाॅ से निकलने का रास्ता बना लूॅ और अगले ही पल मेरा जमीर मुझे उससे पहले मर जाने को कहता। यूॅ भी लता के बारे में मैं सुन चुकी थी जिसे वहाॅ के आदमियों ने इसी तरह बहुत इस्तेमाल किया और वह अब तक भी उनकी कैद में थी। वह आजाद तो नहीं हो सकी उल्टे उसका मजाक बन गया।
कभी-कभी लगता कि मैं दुनिया के एक ऐसे छोर पर खड़ी हूॅ जिसकी सीमा पर सब कुछ खत्म हो जाता है। अन्य औरतों की तरह कभी-कभी मुझे भी लगता कि मुझे भी सब कुछ ईष्वर के हाथों सौपं देना चाहिये।
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हर दिन, हर घंटे और हर मिनट मैं विदुर के बारे में या भागने के बारे में सोचती रही। मैं भाग जाने के लिए एक मौके के इन्तजार में थी ... इससे पहले कि वे मेरा बलात्कार करते या मुझे मारते या बीमारी और कमजोरी मेरे शरीर को अंपग कर देते। विदुर और मैं, हम दोनों ही कष्मीर में सुरक्षित नहीं थे। मैंने यहाॅ रूककर उसकी भी जान जोखिम में डाल दी थी। ये एक अपराधबोध भी मुझे आराम नहीं करने देता था। किसी भी तरह और किसी भी कीमत पर मैं उसके पास वापस जाना चाहती थी। मैं उसके गले लगकर उसके शरीर की उस गर्माहट को महसूस करना चाहती थी जो मेरी सारी थकान दूर कर सकती थी। मुझे यकीन था कि वह मुझे खोज रहा होगा ... और साथ ही ये यकीन भी था कि वह कभी नहीं जान सकेगा कि मैं कहाँ हूँ? वह मुझ तक कभी नहीं आ सकात था। अब केवल मैं थी जो उस तक जा सकती थी। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं, ताकि मैं उसे अपने ख्यालों में बुला सकूॅ। मैं उसे अपनी बाहों में महसूस करना चाहती थी। मैं इस ठंडक को अपने शरीर से बाहर रखने के लिए उसकी गर्मी को महसूस करना चाहती थी। कुछ देर को उसकी बाॅहों में बैठकर मैं भूल जाना चाहती थी कि ये वक्त कितना बुरा बीत रहा है। ये कि मैं कहाँ और किस हाल में हूँ? धीरे-धीरे, बहुत धीरे-धीरे मैं इस शांति की गहराई में उतरती जा रही थी।
अचानक मुझे एक ठंडा स्पर्श महसूस हुआ। एक हाथ मेरे अंगों पर घूम रहा था। कोई मेरी जीन्स की चेन खोलना और मेरे निजी अंगों को छूने की कोशिश कर रहा था। कभी वह स्पर्श मेरे स्तन तक जाता और फिर अन्य भागों पर। जैसे ही मुझे एहसास हुआ कि मैं घर नहीं हूं। मैंने अपनी आँखें खोलीं! पहली चीज जो मैंने देखी वह थी दो लाल आँखें, वासना से भरी हुईं। मैं चींख पडी!
उसने एक हाथ से मेरा मुँह ढक दिया। “चुप!” उसने मुझे दीवार पर भीचं दिया। “अभी तो सिर्फ मैं हूॅ, चिल्लायेगी तो और भी आ जायेगें।” वह मेरे घुटनों को दबाकर मेरे पैर सीधे करने की कोषिष कर रहा था और मुझे लगा कि मेरे सिर से पैर तक कोई बर्फीली लहर दौड गयी हो। मैं लगभग जम गयी! मैं मुश्किल से सांस ले पा रही थी क्योंकि उसके हाथ ने मेरे होठों के अलावा नाक के छेद तक ढाॅकें हुए थे। मैं थोड़ी शान्त हुई। जब वह निश्चित हो गया कि मैं फिर से चीखूॅगीं नहीं, तो उसने मेरे मुंह से अपना हाथ हटा दिया। उसका अंगूठा मेरे निचले होंठ से खेल रहा था। वह गहरी सांस लेते हुए मेरे करीब आ रहा था और मैं तय नहीं कर पा रही थी कि क्या करू? मैंने धीरे से अपनी भयभीत आँखों को दूसरे बंधकों पर घुमाया। मुझे पता था कि वे जाग रहे थे, लेकिन फिर भी इस तरह पडे हुए थे मानों कुछ जानते ही नहीं। उनसे सिर्फ पांच फीट की दूरी पर क्या हो रहा है, ये उन्हें कैसे ना पता होता? “अपने कपड़े उतार।” उसने मेरे चेहरे के बहुत करीब आकर कहा। उसके मुॅह की गन्दी बास मेरी साॅसों में भर गयी। ये जानकर तो मेरी जान ही निकल रही थी कि वह मुझे चूमने वाला है। “जल्दी कर!” उसने फिर से आदेश दिया लेकिन मैंने ऐसा कुछ करने वाली नहीं थी उल्टे मैंने उसके चेहरे के दाईं ओर थप्पड़ जड़ दिया।
“कुतिया!” उसने मेरे बाल पकड़ लिए और मुझे फर्श पर धकेल दिया। मैं फिर चिल्लायी। वो मेरी जीन्स के बटन खोलने की कोशिश कर रहा था और मैं उससे जूझ रही थी। मैंने अपना हाथ हमारे बीच अड़ा लिया। मैंे उसे दूर धकेलने की पूरी कोशिश की, लेकिन ऐसा लग रहा था मानों मैं किसी दीवार को धकेल रही हॅू। अपनी पूरी ताकत के साथ, मैं उसे खुद से थोडा दूर रखा हुआ था और वह मुझ पर हावी होने की कोशिश कर रहा था। इस दौरान, उसने कई बार दरवाजे की तरफ देखा, शायद वह बिना अनुमति के यहां था। मैं अपने हाथ- पैरों को हिलाती रही और तब तक हिलाती रही जब तक मैं हिला सकती थी।
अन्य बंधकों को आखिरकार उठना पड़ा। “अरे, छोड़ो उसे!” मुझे लगता है कि अश्विश्री ने यह कहा होगा। वह हमारे पास आ रही थी लेकिन किसी अन्य महिला ने उसे रोक दिया। मैं समझ सकती थी वे सभी डरे हुए थे और उन आंतकियों के खिलााफ जाने का साहस नहीं कर सकतीं थीं। अष्विश्री कानों पर हाथ रखे चेहरा कोहिनयों में डाले खामोष हो गयी। यहाॅ सिर्फ मैं थी, जिसे लड़ने की जरूरत थी। अब वह लगभग मेरे ऊपर था। किसी तरह, मैंने अपने घुटनों को मोड़ा और उसे हम दोनों के बीच अड़ा लिया। मैं उसे एक तरफ धकेलने के लिए तैयार थी कि दरवाजे पर जोरदार दस्तक हुई।
अश्विश्री ने लपक कर उसे खोल दिया। दो आतंकवादी लालटेन लेकर अंदर आए। युसूफ अचानक अलग हो गया। मैं उसी कोने में हाॅफ रही थी। मैंने उन दोनों के चेहरे गौर से देखे। शायद यह संयोग था कि उनमें से एक रिहान था। “तुम यहाँ क्या कर रहे हैं?” रिहान के साथी ने पूछा। युसुफ खड़ा हुआ और अपने बालों में हाथ घ्ुामाकर एक ओर देखने लगा। उसने अपना सवाल दोहराया और जाकर उसका गिरहबान पकड़ लिया। “तुम्हें यहाॅ आने को मना किया था ना?” जबड़ों को पीसते हुए उसने युसुफ के चेहरे को बहुत बारीकी से देखा। उसकी आँखें जल रही थीं। यूसुफ ने उसके हाथ झटक दिये और- “तुम चीफ नहीं हो।” वह दरवाजे की ओर बढ़ने ही वाला था कि रिहान फिर से उसके रास्ते में आ गया।
उसने उस पर उंगली उठाई। “मैं तुम्हें आखिरी बार चेतावनी दे रहा हूं।” उसने कहा। वे दोनों कुछ देर तक जलती आँखों से एक-दूसरे को तकते रहे और फिर यूसुफ कमरे से बाहर निकल गया।