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कभी

28 मई 2022

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हालात बदतर होते जा रहे थे। वह जनवरी का महीना था। ज्यादातर दिन या तो बारिश होती थी या बर्फबारी। बारीष का पानी उस घर की छत से कहीं-कहीं रिसता भी था। उससे कमरे की नमी बढ़ गयी थी और साथ ही गारे की बू भी। दूसरों की तरह मेरे पास भी अपने आप को गर्म रखने के लिए केवल एक स्वेटशर्ट था। हमारे अंग हमेशा ठंडे और सुन्न रहते थे। कभी-कभी जब मैं सोकर जगती, तो मै अपने पैरों को हिलने में असमर्थ पाती। मुझे कुछ व्यायाम करके खुद को गर्म करना पड़ता था। अस्वस्थ दिनचर्या, नमी और घुटन भरे माहौल ने पहले से ही अश्विश्री और दो लड़कों को बीमार कर दिया। और अब मेरी बारी थी। 

वह रात थी या दोपहर, मुझे यकीन नहीं था लेकिन मेरा शरीर मुझे नीचे पर लेट जाने को कह रहा था। मुझे अपने सिर में ईंट टकराने जैसा दर्द महसूस हो रहा था। मेरी आँखें जल रही थीं और मुझे अपने पूरे शरीर में ताप महसूस हो रहा थी। ठण्ड से मेरे शरीर काॅप रहा था और कुछ घाव अभी भी बुरी तरह दंुख रहे थे। मैंने अन्य लोगों को देखा जिन्होंने पहले ही हालातों से हार मान ली थी और दिन भर बुखार मंे सोये रहते थे। 

कभी-कभी मुझे भी लगता कि मैं भी उन कमीनों से अपनी आजादी और दया की भीख माँगू। कभी लगता कि युसुफ के सामने नतमस्तक होकर उसे खुष कर के यहाॅ से निकलने का रास्ता बना लूॅ और अगले ही पल मेरा जमीर मुझे उससे पहले मर जाने को कहता। यूॅ भी लता के बारे में मैं सुन चुकी थी जिसे वहाॅ के आदमियों ने इसी तरह बहुत इस्तेमाल किया और वह अब तक भी उनकी कैद में थी। वह आजाद तो नहीं हो सकी उल्टे उसका मजाक बन गया। 

कभी-कभी लगता कि मैं दुनिया के एक ऐसे छोर पर खड़ी हूॅ जिसकी सीमा पर सब कुछ खत्म हो जाता है। अन्य औरतों की तरह कभी-कभी मुझे भी लगता कि मुझे भी सब कुछ ईष्वर के हाथों सौपं देना चाहिये। 

Û Û Û Û Û Û

हर दिन, हर घंटे और हर मिनट मैं विदुर के बारे में या भागने के बारे में सोचती रही। मैं भाग जाने के लिए एक मौके के इन्तजार में थी ... इससे पहले कि वे मेरा बलात्कार करते या मुझे मारते या बीमारी और कमजोरी मेरे शरीर को अंपग कर देते। विदुर और मैं, हम दोनों ही कष्मीर में सुरक्षित नहीं थे। मैंने यहाॅ रूककर उसकी भी जान जोखिम में डाल दी थी। ये एक अपराधबोध भी मुझे आराम नहीं करने देता था। किसी भी तरह और किसी भी कीमत पर मैं उसके पास वापस जाना चाहती थी। मैं उसके गले लगकर उसके शरीर की उस गर्माहट को महसूस करना चाहती थी जो मेरी सारी थकान दूर कर सकती थी। मुझे यकीन था कि वह मुझे खोज रहा होगा ... और साथ ही ये यकीन भी था कि वह कभी नहीं जान सकेगा कि मैं कहाँ हूँ? वह मुझ तक कभी नहीं आ सकात था। अब केवल मैं थी जो उस तक जा सकती थी। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं, ताकि मैं उसे अपने ख्यालों में बुला सकूॅ। मैं उसे अपनी बाहों में महसूस करना चाहती थी। मैं इस ठंडक को अपने शरीर से बाहर रखने के लिए उसकी गर्मी को महसूस करना चाहती थी। कुछ देर को उसकी बाॅहों में बैठकर मैं भूल जाना चाहती थी कि ये वक्त कितना बुरा बीत रहा है। ये कि मैं कहाँ और किस हाल में हूँ? धीरे-धीरे, बहुत धीरे-धीरे मैं इस शांति की गहराई में उतरती जा रही थी। 

अचानक मुझे एक ठंडा स्पर्श महसूस हुआ। एक हाथ मेरे अंगों पर घूम रहा था। कोई मेरी जीन्स की चेन खोलना और मेरे निजी अंगों को छूने की कोशिश कर रहा था। कभी वह स्पर्श मेरे स्तन तक जाता और फिर अन्य भागों पर। जैसे ही मुझे एहसास हुआ कि मैं घर नहीं हूं। मैंने अपनी आँखें खोलीं! पहली चीज जो मैंने देखी वह थी दो लाल आँखें, वासना से भरी हुईं। मैं चींख पडी! 

उसने एक हाथ से मेरा मुँह ढक दिया। “चुप!” उसने मुझे दीवार पर भीचं दिया। “अभी तो सिर्फ मैं हूॅ, चिल्लायेगी तो और भी आ जायेगें।” वह मेरे घुटनों को दबाकर मेरे पैर सीधे करने की कोषिष कर रहा था और मुझे लगा कि मेरे सिर से पैर तक कोई बर्फीली लहर दौड गयी हो। मैं लगभग जम गयी! मैं मुश्किल से सांस ले पा रही थी क्योंकि उसके हाथ ने मेरे होठों के अलावा नाक के छेद तक ढाॅकें हुए थे। मैं थोड़ी शान्त हुई। जब वह निश्चित हो गया कि मैं फिर से चीखूॅगीं नहीं, तो उसने मेरे मुंह से अपना हाथ हटा दिया। उसका अंगूठा मेरे निचले होंठ से खेल रहा था। वह गहरी सांस लेते हुए मेरे करीब आ रहा था और मैं तय नहीं कर पा रही थी कि क्या करू? मैंने धीरे से अपनी भयभीत आँखों को दूसरे बंधकों पर घुमाया। मुझे पता था कि वे जाग रहे थे, लेकिन फिर भी इस तरह पडे हुए थे मानों कुछ जानते ही नहीं। उनसे सिर्फ पांच फीट की दूरी पर क्या हो रहा है, ये उन्हें कैसे ना पता होता?  “अपने कपड़े उतार।” उसने मेरे चेहरे के बहुत करीब आकर कहा। उसके मुॅह की गन्दी बास मेरी साॅसों में भर गयी। ये जानकर तो मेरी जान ही निकल रही थी कि वह मुझे चूमने वाला है। “जल्दी कर!” उसने फिर से आदेश दिया लेकिन मैंने ऐसा कुछ करने वाली नहीं थी उल्टे मैंने उसके चेहरे के दाईं ओर थप्पड़ जड़ दिया।

“कुतिया!” उसने मेरे बाल पकड़ लिए और मुझे फर्श पर धकेल दिया। मैं फिर चिल्लायी। वो मेरी जीन्स के बटन खोलने की कोशिश कर रहा था और मैं उससे जूझ रही थी। मैंने अपना हाथ हमारे बीच अड़ा लिया। मैंे उसे दूर धकेलने की पूरी कोशिश की, लेकिन ऐसा लग रहा था मानों मैं किसी दीवार को धकेल रही हॅू। अपनी पूरी ताकत के साथ, मैं उसे खुद से थोडा दूर रखा हुआ था और वह मुझ पर हावी होने की कोशिश कर रहा था। इस दौरान, उसने कई बार दरवाजे की तरफ देखा, शायद वह बिना अनुमति के यहां था। मैं अपने हाथ- पैरों को हिलाती रही और तब तक हिलाती रही जब तक मैं हिला सकती थी। 

अन्य बंधकों को आखिरकार उठना पड़ा। “अरे, छोड़ो उसे!” मुझे लगता है कि अश्विश्री ने यह कहा होगा। वह हमारे पास आ रही थी लेकिन किसी अन्य महिला ने उसे रोक दिया। मैं समझ सकती थी वे सभी डरे हुए थे और उन आंतकियों के खिलााफ जाने का साहस नहीं कर सकतीं थीं। अष्विश्री कानों पर हाथ रखे चेहरा कोहिनयों में डाले खामोष हो गयी। यहाॅ सिर्फ मैं थी, जिसे लड़ने की जरूरत थी। अब वह लगभग मेरे ऊपर था। किसी तरह, मैंने अपने घुटनों को मोड़ा और उसे हम दोनों के बीच अड़ा लिया। मैं उसे एक तरफ धकेलने के लिए तैयार थी कि दरवाजे पर जोरदार दस्तक हुई।

अश्विश्री ने लपक कर उसे खोल दिया। दो आतंकवादी लालटेन लेकर अंदर आए। युसूफ अचानक अलग हो गया। मैं उसी कोने में हाॅफ रही थी। मैंने उन दोनों के चेहरे गौर से देखे। शायद यह संयोग था कि उनमें से एक रिहान था। “तुम यहाँ क्या कर रहे हैं?” रिहान के साथी ने पूछा। युसुफ खड़ा हुआ और अपने बालों में हाथ घ्ुामाकर एक ओर देखने लगा। उसने अपना सवाल दोहराया और जाकर उसका गिरहबान पकड़ लिया। “तुम्हें यहाॅ आने को मना किया था ना?” जबड़ों को पीसते हुए उसने युसुफ के चेहरे को बहुत बारीकी से देखा। उसकी आँखें जल रही थीं। यूसुफ ने उसके हाथ झटक दिये और- “तुम चीफ नहीं हो।” वह दरवाजे की ओर बढ़ने ही वाला था कि रिहान फिर से उसके रास्ते में आ गया।

उसने उस पर उंगली उठाई। “मैं तुम्हें आखिरी बार चेतावनी दे रहा हूं।” उसने कहा। वे दोनों कुछ देर तक जलती आँखों से एक-दूसरे को तकते रहे और फिर यूसुफ कमरे से बाहर निकल गया।


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कभी
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वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक पल में उठ बैठी! “माँ”? मैं उनके चेहरे को देखते हुए दोहराया। जितनी आंतकित मैं थी सुनकर शायद वह भी थे ये बात बोलते हुए। “किसकी माँ?” मैंने थोड़ी शंका के साथ पूछा कि क्या वह मेरी ही माँ के बारे में बात कर रहे हैं? उनके चेहरे पर भी शायद वही आंदेषा था, जो मेरे मन में हलचल मचा रहा था। कश्मीर में देर रात एक आतंकी हमले में मेरी मां की मौत हो गई।
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कभी...। वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक

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ये पहली मौत नहीं थी जो मैनें देखी थी। कुछ तीन साल पहले इसी तरह पिताजी को भी देख चुकी थी, और वह भी इसी घर में। वह बीमार रहते थे, उनकी मौत अपेक्षित थी लेकिन माॅ की मौत मेरे लिए चैंका देने वाली थी। मुझे

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मेरी आॅखें उस वक्त भी आसूॅओं से भर गयीं। मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा। हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक ही घटना के बारे में सोच रहे थे। अजान की आवाज खामोष हुई। “क्या यह तुम्हें अब भी ड़रा देता है?” उसने

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गर्म पानी के स्नान के बाद मैं हमाम से बाहर आयी। अपने कमरे में आकर मैनें खिडकी के पर्दे उठाए। कोहरे ने मेरी खिड़की के सभी शीषों को धुंधला कर दिया था। मैं उनके पार नहीं देख सकती थी। बाहर का मौसम सर्द है

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मैं सालों बाद उस गली पर पैदल चल रही थी, जो मेरे घर से निकलकर इन वादियों के घुमावदार रास्तों में कहीं विलीन हो जाती थी। उस गली के हर कदम पर मैं खुद को बिखरा महसूस कर रही थी। उस गली से भी ना जाने कितनी

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वह आदमी दुकान तक गया और मेरा थैला उठा लाया। उसने इसे मेरे चेहरे पर फेंक दिया और मेरे जाने का इंतजार करने लगा। मैंने एक बार दुकान पर नजर डाली। मुझे उस गरीब दुकानदार की चिंता थी, जो हर गुजरते पल के साथ

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आधे घंटे बादः उसने वैन को कहीं रोक दिया। एक जगह, जहाॅ मैं अपने जीवन में कभी नहीं गयी। जहाँ तक मैं देख सकती थी वहाँ तक पेड़, कोहरा, पहाड़ और घास ही दिख रहे थे। इससे पहले भी मैंने विंडशील्ड के बाहर झाॅ

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मेरी धड़कनें खुद मुझे भी सुनायी दे रहीं थीं। मैं महसूस कर सकती थी कि मेरा दिल मेरी छाती के पिंजर पर जोर से टकरा रहा है लेकिन उस रोषनी में मुझे जो दिखा उसने मुझे थोड़ी तस्सली दी। मुझे यह देखकर ताजुब्ब

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“याद नहीं।” उसने जवाब दिया  “शायद पंद्रह दिन, या उससे भी ज्यादा।” अन्य महिलाओं में से एक ने वहीं कोने से जवाब दिया। “हमारे पास दिनों की गिनती करने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने हमारा सब कुछ ले लिया। ”

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“तुम यहाॅ कैसे फॅसी?” अंत में सब से ज्यादा चुप रहने वाली महिला ने अपना मुंह खोला। जब से मैं यहाँ थी, मैंने पहली बार उसकी आवाज सुनी थी। उसकी आवाज हर शब्द पर कांप रही थी। “तुम कहाॅ से हो? क्या तुम भागने

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एक सेकंड में मेरे दिमाग में दर्जनों सवाल पलक कौंध गये और मैं तय नहीं कर पायी कि पहले क्या पूछूँ? मैं पूछने वाली थी कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो? लेकिन उसी क्षण मुझे याद आया कि मीनाक्षी ने मुझसे क्या कहा

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अब सारा माहौल ड़र की चादर ओढ़े खामोष होकर दुबका हुआ था। उस रोज वह कुछ घण्टे बड़े थका देने वाले थे मेरे लिए। बाकि बंधक बड़ी-बड़ी आॅखों से मुझे तक रहीं थीं, मानों कह रहीं हो कि अब हो गयी तसल्ली? मैं अपन

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मैंने बोतल एक तरफ रख दी और बच्चे की तरफ देखा। “इसे ले लो।” मैंने मुस्कुरा कर उसे आग्रह किया और पत्तल लड़कों की ओर बढ़ा दी। वे तेजी से आए और अपना मुंह भरने लगे। वे इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने इसे ठीक

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रिहान ने मेरी तरफ देखा। उसने मेरी हालत देखी और मेरा डर भी। उसने मेरे कपड़ों को देखा और फिर उसने दूसरे बंधकों को देखा। “वह फिर से नहीं आयेगा। आप सभी अब सो सकते हैं।” उसने सभी से कहा लेकिन उसकी आँखें मु

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अचानक मुझे पदचाप सुनाई दी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मुझे लगा कि यह हमारा भोजन है। “ऐ तुम!” एक लड़का अंदर आया और मैं कमरे के बीच ठहर गया। हम सब उसे ताड़ रहे थे और वह सिर्फ मुझे। वह शायद ही सत्रह

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मैं एक बार फिर हार गयी थी। मैंने अपनी मुट्ठी फर्श पर मार दी। मैं थोड़ी और देर रस्सी को क्यों नहीं थामे रह पायी? उसकी गर्दन केवल एक निषान के साथ आजाद हो गयी थी। “ह-मजादी! आज बताता हूॅ तुझे!” उसने मेरी

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मेरी रीढ़ अब तक दर्द में थी। मैं अपने पैरों पर सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वहाॅ किसी ने भी मुझे किसी तरह की दवा नहीं दी। दर्द से तड़पना ही एकमात्र विकल्प बचा था मेरे पास। लगभग एक दिन न तो रिहान और

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अचानक मुझे बाहर कुछ आवाजें सुनाई दीं। मैंने पहली आवाज को पहचाना-, यह अश्वश्री थी और दूसरा कुछ पुरुष था। जब तक मैं बाल्टी से कूद कर नीचे आयी तब तक दरवाजे पर एक तेज दस्तक ने मुझे चैंका दिया! “कौन?” मैं

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मैने वही किया जो उसने मुझे करने को कहा था। मैंने चलने की कोशिश की। मैं थोड़ी मुश्किल से ही सही लेकिन चल सकती थी। मेरा सिर अभी भी भारी दर्द में था और मैं बहुत बीमार महसूस कर रही थी। मेरी नसों में एक ती

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वह गाड़ी चलाता रहा और विंडशील्ड से बाहर देखता रहा। यह दुखद था! यह केवल मेरे रिहान के बारे में नहीं था। मैंने वहां देखे गए प्रत्येक आतंकवादी में रिहान को पाया। उनके पास विकल्प हैं लेकिन कहां? उनकी पहचा

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जब हम उस आर्मी कैंप से निकल रहे थे तो हमें बताया कि आगे के रिकॉर्ड के लिए हमारे प्रत्येक दस्तावेज की एक प्रति उन्हे चाहिये होगी। विदुर वहीं ठहर गये ताकि उनकेा सारे कागजों की प्रतियाॅ करा कर दे सकें और

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मेरी नजर या तो सड़क पर थी या उसकी छाती पर। अभी भी खून बह रहा था। मैंने देखा कि उसकी पट्टी पर धब्बा हर मिनट के साथ अपना आकार बढ़ा रहा था। उसकी हालत गंभीर थी और मैं उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। मैं आगे नही

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मैं गाड़ी चलाते हुए उसके अगले शब्द का इंतजार कर रही थी। मेरी नजर विंडशील्ड पर टिकी थी। “रिहान?” मैंने उसे पुकारा। “मुझे घर दिखायी दे रहा है।” मैंने उससे कहा और कुछ दूरी पर ब्रेक दबाया। मैं कोई फैसला ख

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